
पाकिस्तान की स्टेट होम मिनिस्ट्री ने इस संबंध में एक अधिसूचना जारी की है, जिसमें कहा गया है कि सिंध प्रांत की जेलों में क़ैद पुरूषों की पत्नियां अब उनके साथ हर 3 महीने के बाद जेल की भीतर एक रात बिता सकती हैं…
जेल अधिकारियों का आदेश दिया गया है कि जेल के भीतर क़ैदियों और उनकी पत्नियों के मिलने के लिए एक जगह की व्यवस्था की जाए...साथ ही उनकी गोपनीयता का भी ध्यान रखा जाए.
अधिसूचना के अनुसार 5 साल या उससे अधिक की सज़ा वाले क़ैदी इस सरकारी राहत से लाभ उठा सकते हैं...जो क़ैदी इस सुविधा का लाभ लेना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले जेल के अधीक्षक के समक्ष अपना निकाहनामा प्रस्तुत करना होगा...
अधिसूचना में कहा गया है कि अगर किसी क़ैदी की 2 पत्नियाँ हैं तो उन्हें अलग अलग समय दिया जाएगा, जबकि महिलाएं अपने साथ 6 साल की उम्र तक के बच्चों को भी ला सकती हैं...ये तो बल्ले-बल्ले है जी.
लेकिन ऐसा नहीं कि सभी क़ैदियों को यह सुविधा मिलने वाली है...पहली बंदिश तो 5 साल से अधिक की क़ैद होना है, दूसरी यह है कि संबंधित क़ैदी आतंकवाद के मामले में लिप्त न हो...या उस पर इससे संबंधित कोई मुकदमा न चल रहा हो.
खैर, एक तरफ जहां इस सुविधा को वाज़िब और लोकहित में बताया जा रहा है, वहीं सिंध के जेल अधीक्षकों के कान खड़े हो गए हैं...सरकार का क्या है...घोषणा तो सरकार ने कर दी, लेकिन मूर्त रूप तो उन्हें ही देना...ग़ौरतलब है कि सिंध प्रांत की 20 जेलों में 14 हज़ार के करीब क़ैदी बंद हैं...जबकि इन जेलों में 10 हज़ार क़ैदियों के रखने की ही जगह है...यानी एक तो पहले से ही सुपर हाउसफुल है...ऊपर से जब बीवी और बच्चों वाली बात आएगी, तो उनकी व्यवस्था कैसे की जाएगी...वह भी निहायत ही पोशीदा तरीके से...और तुर्रा ये कि इनमें से 75 फीसदी क़ैदियों के मुक़दमे अदालतों में चल रहे हैं.
हाल ही में अदालत ने अपने एक फैसले में कहा था कि शादीशुदा क़ैदी को अपनी पत्नी से मिलना का पूरा अधिकार है और यह सुविधा उसे जेल के भीतर दी जानी चाहिए...अदालत का कहना था कि क़ैदी अपनी पत्नी से न मिलने की वजह से मानसिक बीमारी का भी शिकार होते हैं और अक्सर नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं...यहां एक बात गौर करने वाली है कि जब क़ैदी जेल के अंदर हैं, तो उन्हें नशीले पदार्थ कहां से उपलब्ध होते हैं...यानी प्रशासन और व्यवस्था...अनचाहे और अप्रत्यक्ष रूप से यह भी मानती है कि उनकी जेलों में हिंदुस्तान की जेलों की ही तरह सबकुछ दुरुस्त है (खासकर बेऊर जैसी जेलों की तरह, जहां उत्कृष्ट किस्म के साहित्य से लेकर गुब्बारे और भी जाने क्या-क्या उपलब्ध होते रहते हैं)
इससे पहले भी 2005 में, पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत की सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर क़ैदियों को जेल के भीतर साल में 3 दिन अपनी पत्नियों के साथ रहने की अनुमति दी थी, जिसका व्यापक स्तर पर स्वागत किया गया था...यानी पश्चिमोत्तर प्रांत से चली ये बयार अभी दूर तलक जाएगी...अब तो भारत के क़ैदियों की भी यही तमन्ना है कि काश ! ये बयार भारतीय सरहद में दाखिल हो जाए.
आलोक सिंह साहिल
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
7 बैठकबाजों का कहना है :
पहले कोई फ़तवा आए तो पता चले कि यह सही है या ग़लत.
हाहाहाहाहाहा.....बहुत सही, सटीक और जोरदार प्रतिक्रिया है काजल जी।
त्रासदी ही है, कि इक्कीसवीं सदी में भी हमें हर औनी-पौनी बात के लिए ढेरों फतवों का सामना करना पड़ जाता है। क्या बुरा हो, अगर कुछ फतवे हमारे-आप जैसे मैंगो पीपल भी देने लगें।
हा-हा-हा-हा फिर तो आप ये समझिये कि पाकिस्तान का पूरा बेडागरक होना ज्यादा दूर की कौड़ी नहीं ! क्योंकि मिंया जी जो चाहेंगे (हथियार, नशीले पदार्थ वगैरह) बेगम जी बुर्के में ठूंस का ले जायेंगी आसानी से !
हाल ही में अदालत ने अपने एक फैसले में कहा था कि शादीशुदा क़ैदी को अपनी पत्नी से मिलना का पूरा अधिकार है और यह सुविधा उसे जेल के भीतर दी जानी चाहिए'
क्यों न कैद सपत्निक किया जाये!!
बुरा क्या है
अच्छी नई जानकारी..पर ये लेख लिखा किसने है..उसका नाम?
अधिकतर फ़तवे भारत में ही पैदा होते हैं साहिल भाई... सेक्युलर सरकार की नाक के नीचे.. :-)
क्या करें तपन भाई...बिल्कुल बचपन में ही...जब स्कूल जाना भी शुरू नहीं किया था...तब एक गाना सुना था...प्यार करने वालों को जब-जब दुनिया तड़पाएगी..मोहब्बत बढ़ती जाएगी...मजमून तो समझ ही गए होंगे...हर दिन इसी बात की बेकरारी रहती है...शायद आज किसी की नजर हम पर पड़े....हाहाहाहा.....
सही कहा गोदियाल जी आपने...एक पहलू यह भी हो सकता है...इस नई पहल का...
लेकिन वर्मा जी, आपका सुझाव तो सही है...लेकिन थोड़ी ज्यादती हो जाएगी...अब मान लीजिए बेगम के दिल में कुछ और हो तो...बात गड़बड़ हो जाएगी न...
ये हक कैदियों का नहीं, अपितु उन की पत्नियों का है। उन्हें किस बात की सजा?
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)