आजकल क्रिकेट पर बड़ी बहस चल रही है। टी-20 वर्ल्ड कप में हार का जिम्मेदार किसे ठहराया जाये। कप्तान धोनी का हनीमून पीरियड खत्म होता दिख रहा है। आईपीएल और मोदी से शुरू हुआ किस्सा अब पार्टियों पैसा और पब पर आकर रुका हुआ है। खिलाड़ी देर रात पार्टियों में जाते हैं। शराब, शबाब और कबाब के दौर चलते हैं। इन सब से खेल और खिलाड़ियों पर असर पड़ना लाज़मी है। ये हम सब जानते हैं।
खेल पर असर पड़ना अभी शुरू हुआ हो ऐसा भी नहीं है। एक मैच में सूरज बने खिलाड़ी को जब हर ब्रैंड खरीद लेता है तो उस सूरज को गुमान हो ही जाता है। नये नये खिलाड़ी इतनी जल्दी पैसा कमाने लगते हैं कि वे भूल ही जाते हैं कि उन्हें क्रिकेट खेलना है और देश के लिये खेलना है।
करीबन दस साल पहले सौरव गांगुली ने टीम की कप्तानी ली तब टीम नाम के लिये थी। कोई दमखम या जीतने का जज़्बा न था। कहते हैं कि दादा ने ही टीम बनाई। युवराज, भज्जी, जहीर, सहवाग, नेहरा आदि युवा तभी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में आये। दादा के नेतृत्व में भारत ने विदेश में जीतना शुरु किया और धीरे धीरे "टीम" बन गई। लेकिन नये खिलाड़ियों के जोश को भुना नये-नये ब्रैंड ने। हर क्रिकेटर ऊपर से नीचे तक बिक गया और तब बॉलीवुड और क्रिकेट का "ब्लैंड" बनना भी शुरू होने लगा। तभी क्रिकेट की बर्बादी भी शुरु हुई। उसके बाद "युवा" धोनी को टीम की कमान सौंप दी गई।
हमारा क्रिकेट बोर्ड क्रिकेट का ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व का सबसे अमीर बोर्ड है। लेकिन शायद सबसे कम आयकर देता होगा। कारण यह कि हमारे बोर्ड को "चैरिटेबल संस्था" का दर्जा मिला हुआ है। और इस चरिटेबल संस्था में चैरिटी करते हैं हमारे नेता। हैरानी की बात यह कि क्रिकेट को चलाने में किसी खिलाड़ी का नहीं बल्कि नेताओं का हाथ होता है। यदि सरकार चाहे तो क्रिकेट बोर्ड से इतना टैक्स वसूल कर सकती है कि बाकि खेलों के बोर्ड अपना खर्चा आराम से चला सकते हैं।
अब बोर्ड की खेल से बेरूखी देखिये। आप जानते हैं कि महिला टीम विश्वकप के सेमीफ़ाइनल तक पहुँची और आईपीएल से वार्म-अप होकर विश्वकप खेलने पहुँचे और बड़े-बेआबरू होकर उनके कूँचे से वापस लौटे हैं। हाल ही में मैंने खबर पड़ी कि महिला टीम के विदेश रवाना होने से ठीक पहले उनके कोच को बदल दिया गया। यानी कि खेल को कैसे बिगाड़ना है वो सारा खेल बोर्ड जानता है।
तो ये थे कुछ ऐसे कारण/गतिविधियाँ जिनसे पता चल सकता है कि जो कुछ हो रहा है वो अभी से नहीं हो रहा। पर जो हो रहा है वो खेल के लिये अच्छा हो रहा है। चलते-चलते महिला टीम को सेमीफ़ाइनल पहुँचने की, आनंद को विश्व-चैम्पियन, सुशील कुमार को एशिया चैम्पियन और हॉकी टीम को बधाई देते चलें जिनकी खोज खबर मीडिया वाले नहीं लेंगे। क्योंकि ये खबरें प्राइम टाइम में पैसा कमाने का जरिया नहीं बनते। मीडिया को अगर मैं अपने लेख में न कोसूँ तो मेरा लिखना पूरा नहीं होता। भारतीय टीम को "टीम इंडिया" का खिताब इसी मीडिया ने दिया था। सर पर भी यही चढ़ाता है और उतारता भी यही है। बहुत कारण निकल सकते हैं ये खेल बिगड़ने के। फ़िलहाल तो यही कह सकते हैं कि क्लाइमेक्स जबर्दस्त होने वाला है। आईपीएल से बड़ा सट्टा लगेगा। आगे आगे देखते हैं होता है क्या!!
पहलवान सुशील कुमार एम.एस.सी (फ़िज़िकल एजुकेशन) कर रहे हैं। उन्हें शुभकामनायें भी देते जायें।
-तपन शर्मा
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3 बैठकबाजों का कहना है :
बेहतर होगा अगर ठीकरा बीसीसीआई के सर फूटे...
साऱी कहानी, सारी समीकरण कीं न हीं वहीं से संचालित है...चाहें खिलाड़ियों का ब्रैंड बनने का मसला हो...या पब में दारुबाज़ी का...या फिर खौंखियानी बिल्ली की तरह एरोमेंस दिखाने का...आवाजें उठ रही हैं..हालांकि ये कोई नई बात नहीं है...पहले भी आवाजें उठती ही हैं...लेकिन इसबार शायद कुछ हो जाए...इतनी उम्मीद की जानी चाहिए...रही बात मीडिया की तो...उसे इतना दोष न दीजे...मीडिया काफी हद तक अपने धर्म का निबाह कर रही है...और अगर आज हम ये उम्मीद कर पा रहे हैं कि शायद बीसीसीआई को जवाबदेह बनाने की पहल में कुछ जमीनी तौर पार काम होगा, तो ये भी मीडिया की ही देन है...य़ा फिर सोमवार को अगर नेहरा, युवराज, रोहित की बैंड बजती है, तो ये भी मीडिया की ही देन है....सीधा सा फंडा है...औकात में रहोगे, तो हीरो बना देंगे...पजामे से बाहर निकले, तो ज़ीरो बनाने का हुनर भी हमें आता है......
हमारे बोर्ड को "चैरिटेबल संस्था" का दर्जा मिला हुआ है। और इस चरिटेबल संस्था में चैरिटी करते हैं हमारे नेता।
यही संस्थाएं तो भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की कामधेनु और कल्पवृक्ष हैं
एक और बुरी खबर जोड़ दूं...धोनी सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज रंची में बीए पार्ट वन की परीक्षा में भी फेल हो गए हैं.....न घर के रहे न घाट के.....
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