
‘क्या मतलब?’
‘ माडल मुहल्ले से ही हो न?’
‘हां जी!’
‘मैं तो देखते ही पहचान गया था।’ कुछ देर हँसने के बाद वह आगे बोला, 'कहो किस चीज की शिकायत दर्ज करवानी है बिजली की?’
‘ नहीं, वह तो चार महीने पहले करवाई थी। अब शिकायत लिखवा लिखवा कर थक गए।’
‘तो गंदगी की?’
‘थक हार कर अब हम खुद ही मुहल्ले को साफ करने लग गए हैं।’
‘वैरी गुड यार! लगता है समझदार हो रहे हो। अगर व्यवस्था को इसी तरह सहयोग दो तो न कठिनाई तुम्हें हो और न हमें। तो सीवरेज की.....!’
‘नहीं साहब! अब हमने अपने मुहल्ले में शौच करना बंद कर दिया है।’
‘ अरे वाह! तुम तो हद से ज्यादा समझदार हो रहे हो। अब देखना! तुम भी चैन से रहोगे और हम भी। जीना इसी का नाम है मित्र।’ कह उसने मुझे शादीशुदा प्रेमिका की तरह गले लगा लिया। मैं उसके गले लगते ही उसके कान में फुसुसाया,‘पानी की शिकायत करने आया हूं।‘ मेरे कहते ही एकदम मुझसे दूर हटते बोला, ' बस यार! कर दी न फिर वही बात! आप लोग हो ही ऐसे। नाक में दम करके रखते हो। एक शिकायत निपटती नहीं कि दूसरी लेकर आ धमकते हो। तुम्हें शिकायत करने के सिवाय कोई और काम भी हैं क्या? मालूम है, हमें तो आप लोग दम लेने नहीं दोगे पर कम से शिकायत को तो दम लेने दिया करो। जीना हो तो कुछ और भी करो दोस्त! शिकायत करने से पेट नहीं भरा करते। रजिस्टर ही भरा करते हैं। लो, दर्ज कर दी शिकायत! अब खुश??’
उन बंदों में से एक मेरे पास आया, बोला, ‘दरी होगी?’
‘हां है।’
‘ तो दीजिए।‘ मैं भीतर गया और उसका मुँह देखते हुए दरी उसे पकड़ा दी। उसने दरी ली और मुहल्ले के चबूतरे पर बिछा ताश खेलने जम गए। ग्यारह बजे....बारह बजे ...एक बज गया... दो भी बज गए... वे ताश में ही मस्त रहे। हिम्मत कर मुहल्ले के प्रधान ने उनसे पूछा, ‘माफ कीजिए कहां से आए हो?’
‘कमेटी से।’ उनके कहते ही यह खबर मुहल्ले में आग की तरह फैल गई।
‘नलका ठीक करने आए हो?’
‘नहीं।’ एक ने बालों में उंगलियां देते कहा।
‘बिजली ठीक करने आए हो?’
‘नहीं, चाय बनेगी क्या?’ दूसरे ने अलसाते हुए कहा।
‘तो फिर सीवरेज ठीक करने आए होंगे?’
‘ एक बात बताना? इस मुहल्ले में शिकायतें रहती हैं या बंदे?’ तीसरे ने गुस्साए कहा। शायद ताश खेलकर कुछ ज्यादा ही थक गया था।
‘तो आप किसलिए आए हैं?’ काका में पता नहीं हिम्मत कहाँ से आ गई थी।
‘मुहल्ले के लिए बुत सेंक्शन हुआ है। लड्डू शड्डू खिलाओ यार! बड़ी भूख लगी है। मंत्री जी के आदेश हैं कि मुहल्ले में जगह देखो कि कहां लगाना है। अगले हफ्ते वे बुत का शिलान्यास करेंगे। इस नल की जगह लगा दें बुत? वैसे भी इसमें पानी तो आ नहीं रहा। कि ये बिजली का पोल हटा दें यहां से? लाइट है इसमें?’
‘जी नहीं।’
‘बेकार की चीजें ही भरी हैं क्या यार इस मुहल्ले में?’
‘ साहब! सीवरेज भी बंद है।’
‘इस मुहल्ले के लोगों को खाने और हगने के सिवाय और भी कोई काम है क्या?? चलो यार! चलते हैं अब चार बज गए, बाकी कल देख लेंगे।’
‘ड्यूटी तो पांच बजे तक होती है न सरकार??’
‘चार के बाद पांच ही बजते हैं न? तीन तो नहीं बजते?’ चारों ने बड़बड़ाते हुए एक साथ कहा और ये गए कि वो गए। जाते-जाते मुए झाड़ कर दरी भी नहीं दे गए।
अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड, नजदीक मेन वाटर टैंक,सोलन-173212 हि.प्र.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
बैठकबाज का कहना है :
आपकी समस्या पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। मुद्दा बहुत सही उठाया है। रोचक और गंभीर भी।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)