
कथा सारांश:
फिल्म का प्रथम भाग भगवान गणेश के बचपन की बहुत सारी कथाओ में से कुछ कथाओं की माला लेकर आता है। इनमें पहली कहानी है भगवान गणेश और एक बिल्ली की। इस कहानी में अपने वाहक मूषकराज को डराने वाली बिल्ली को सबक सिखाते-सिखाते खुद बाल गणेश को ही पार्वती माता से एक सबक मिलता है कि हमेशा प्राणिमात्र की सहायता करनी चाहिए।
दूसरी कहानी में महर्षि व्यास के लेखक बने बाल गणेश की बुद्धिमानी, एकाग्रता और कार्य के प्रति समर्पण के गुण उजागर किये गए हैं। और बच्चों को ये भी पता चलता है कि बाल गणेश को लेखन का काम सौंप कर महर्षि व्यास ने महाभारत जैसे महान काव्यग्रंथ की रचना की थी।
तीसरी कहानी इस बात की जानकारी देती है कि गणेश के वाहक मूषक वस्तुतः एक भयानक राक्षस थे जिसने भोलेशंकर से मिले वरदान का दुरुपयोग कर के तीनो लोक में त्राहि मचा दी थी। तो उस राक्षस को पराभूत कर के बाल गणेश ने उसे मूषक बना के अपना वाहन बना दिया।
पटकथा:
कहानियों में विस्तृत दृश्यों की कमी के वजह से पटकथा में आज के ज़माने के चूहों की मंडली को सूत्रधार के रूप में इस्तेमाल किया गया है। पर उनको बेवजह "मुम्बैया" भाषा दी गयी है जो बच्चों के लिए अच्छी सबक नहीं पेश करता। क्या मुम्बैया भाषा में वार्तालाप करना इंसान को जादा स्टाइलिश और मजेदार बना देता है? मुझे तो वह निचली दर्जे का लगा। और संवाद भी नीरस रहने के कारण फिल्म के कथन में सूत्रधार के ये दृश्य रुकावट जैसे लगते है। बाकि बाल गणेश की कहानियों की जान छोटी सी होने के वजह से उन्हें बढाने के लिए बचकाना पैतरेबाजी का इस्तेमाल किया गया है जो बच्चों को तो हँसाता है पर उनके साथ मजबूरन जाने वाले बड़ों को उबासिया लेने पे मजबूर करता है। गुदगुदी करने से हँसी जरुर आती है पर क्या वही उत्तम मनोरंजन का प्रतिक है? नहीं ना? इसीलिए मुझे लगता है एनीमेशन फिल्म के लेखन के बारें में बाल गणेश 2 के लेखक पंकज शर्मा ने हॉलीवुड एनीमेशन फिल्मों का और अभ्यास करना चाहिए।
निर्देशन:
जब लेखन ही कमजोर हो तो दिग्दर्शक को फिल्म की नैया किनारे पार लगाने में तकलीफ तो होगी ही। पंकज शर्मा के लेखन ने पंकज शर्मा के ही दिग्दर्शन को कमजोर कर दिया है। मुम्बैया सूत्रधारों को मजेदार समाज पे फिल्म का बड़ा भाग उनपे चित्रित करने से अच्छा उन्होंने कुछ और सोचना चाहिए था। शायद उतने ही समय में एक और गणेश कथा दर्शकों को दिखाई जा सकती थी।
एनीमेशन :
फिल्म के बजट को ध्यान में रख कर दिग्दर्शक ने मुख्य किरदारों के एनीमेशन पर ज्यादा जोर दे कर सह किरदारों का एनीमेशन थोड़ा कम अच्छा किया है। जैसे कि बाल गणेश के एनिमेटेड किरदार का अभिनय बहुत ही सुन्दर बन आया है। चेहरे के हावभाव और शारीरिक हालचाल को नैसर्गिक तरीके से उभारा गया है। उसके लिए एनिमेटरों को दाद देनी चाहिए। पर फिर भी फेब्रिक एनीमेशन यानी कपडे का एनीमेशन, हेयर एनीमेशन यानी के बालों का एनीमेशन नैसर्गिक नहीं है। और सह किरदारों के एनीमेशन पे ज्यादा तवज्जो न देने के कारण मिला-जुला जो प्रभाव है वह कम हो जाता है।
संगीत और पार्श्वसंगीत:
फिल्म में एक मजेदार गाना है जो बच्चों को नाचने पे मजबूर कर देता है। और पार्श्व संगीत भी कहानी को न्याय देता है। शमीर टंडन और संजय ढकन का काम अच्छा है।
संकलन:
फिल्म सिर्फ़ 1 घंटे की है फिर भी बोरियत लाने में कामयाब होती है। इसमें संकलक से ज्यादा लेखन और निर्देशन की असफलता है।
चित्रांकन (रेंडरिंग):
एनीमेशन फिल्मे पूरी तरह से संगणक पे ही बनायीं जाती है इसलिए चित्रांकन की जगह उसमे हम रेंडरिंग की समीक्षा कर सकते है। जिस प्रकार का रेंडरिंग किया गया है वह किरदारों को प्लास्टिकी रूप देता है जहा हॉलीवुड की फिल्में पूरी तरह से नैसर्गिक रेंडरिंग कर पाती हैं। तो इस लिहाज से ये फिल्म बनावटी सी लगती है जैसे कि प्लास्टिक के खिलौने।
निर्माण की गुणवत्ता:
शेमारू ने निर्माण में एनीमेशन मार्केट को ध्यान में रख के जितना मुनाफा हो सकता है उसके हिसाब से ही लगत लगायी है इसलिए मुख्य किरदारों के एनीमेशन पे जादा वक्त यानी अन्त में पैसा लगाया है और बाकि बारीकियों को नजरंदाज किया है। बिज़नेस के हिसाब से ये सही चाल है पर फिल्म मेकिंग में यह है लो क्वालिटी वर्क ही माना जायेगा। फिल्म का सिनेमास्कोप भी नहीं है। पर लगातार एनीमेशन फिल्म्स बना के ये मार्केट को जिन्दा रखने के लिए शेमारू को बधाइयाँ।
लेखा-जोखा:
** (2 तारे)
बाल गणेश के मनमोहक हावभाव और शारीरिक हालचाल को अच्छी तरह से एनिमेट करने के लिए एक तारा। और दूसरा तारा किसी तरह भी हो पर भारतीय एनीमेशन मार्केट में नए प्रोडक्ट लाते रहने के लिए निर्माता शेमारू के लिए।
यह चित्रपट जल्द ही डीवीडी में आएगा, तो सिनेमाघरो में सैकडो रुपये बर्बाद करने से अच्छा रहेगा के आप डीवीडी लें और बच्चों को बार-बार बाल गणेश की लीलाओं का आनंद लेने दें।
चित्रपट समीक्षक: --- प्रशेन ह.क्यावल
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2 बैठकबाजों का कहना है :
ाप्ने पास तो यूँ भी समय नहीं है तो घर मे बच्चे हैं नहीं इस लिये आपकी सलाह सही है कभी मन किया तो डी वी डी मे देख लेंगे।पैसा कमाने के लोये ये लोग कई तरह का तडका लगाते हैं और भाषा भी उन तडकों मे आती है इन्हें अपनी संस्कृ्ति या धर्म के प्रसार प्रचार से कोई लेना देना नहीं है। धन्यवाद्
animation need origanality, and that is missing in bollywood :)
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