लंदन में रहने वालीं शन्नो अग्रवाल नारियों की वर्तमान हालत को ध्यान में रखते हुए कुछ मासूम सवाल कर रही हैं-
गौर करिये कि सीता को दो बार अग्नि-परीक्षा देनी पड़ी थी वह भी रामराज्य में पर आज की कितनी ही नारियों को आये दिन तरह-तरह की अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। अग्नि केवल धधकती हुई लपटों वाली ही नहीं होती बल्कि जहाँ यातनाएँ बढ़ती जाती हैं अंतरात्मा झुलसने लगती है और नारी को उस यातना की अग्नि से गुजरना पड़ता है जो असहनीय होती है और मरते दम तक जलाती रहती है, वह भी एक अग्नि ही है। यहाँ पर सीता मैया और आज की नारी के बीच कुछ मोटे-मोटे से तथ्य हैं जिनपर भी नज़र डालना ज़रूरी है। कुछ में समानता है और कुछ में नहीं।
1. उस समय के हिसाब से सतयुग की सीता का जीवन बहुत सीधा-सादा व सरल सा था। घर गृहस्थी के मामले में भी और उम्मीदों की तुलनात्मक दृष्टि से भी। क्योंकि आज की नारी कलियुग की होते हुये भी उस युग की नारी से मानसिक विकास में अधिक बड़ी हैं, साथ में मानसिक परेशानियाँ भी झेलती है। उसे ना जाने कितनी उम्मीदों पर खरा उतरना पड़ता है और उससे न जाने कितनी उम्मीदें बढ़ती ही रहती हैं.....जिनका अंत ही नहीं होता। मानसिक और शारीरिक रूप से कामों में व्यस्त व सजग रहती है। उसके बाद भी कितनी ही अंतर्मन को झुलसा देने वाली अग्नि-परीक्षाओं से वह गुजरती है। लेकिन सीता को आज की नारी की तरह इतना कुछ नहीं सहना पड़ा था......फिर भी उनके नाम का ही उदाहरण दिया जाता है।
2. सीता के साथ हुये अन्याय के लिये राम ही जिम्मेदार थे जिन्होंने अपनी पत्नी को दूसरों के शक करने पर उनकी अग्नि परीक्षा ली पर उन्होंने कभी अपनी पत्नी का अपमान नहीं किया। लेकिन आज के तमाम राम (पति परमेश्वर) समाज के लिये नहीं बल्कि समाज से छिपा कर स्त्री में दोष ढूंढकर उसका अपमान करते हैं। कभी-कभी घरवालों के संग मिलकर भी ज्यादतियां और अत्याचार करते जाते हैं। (औरत इसमें दहकती है)।
3. राम सीता के कहने पर केवल मृग के पीछे इसलिए भागे थे ताकि सीता को वह हिरन पकड़ कर दे सकें। किन्तु आज के राम की बुद्धि के कपाट कब बंद हो जाएँ पता ही नहीं चलता और कब वह किसी मायाविनी के पीछे पड़कर अपनी सीता जैसी पत्नी को तज दे उस छलना के लिये.....कहना मुश्किल है। (औरत इसमें दहकती है)।
4. कलियुग में भी घर के बाहर बहुत से रावण मिलेंगें जो स्त्री पर बुरी दृष्टी रखते हैं। किन्तु जिस रावण ने सीता मैया का अपहरण किया था उसने पवित्रता की मर्यादा नहीं लांघी और सीता पवित्र रहीं। वह रावण एक विद्वान व धार्मिक व्यक्ति था किन्तु उसने केवल अपनी बहन की जिद के आगे झुककर बदले की भावना से ही अपहरण के बारे में सोचा था। फिर भी सीता की पवित्रता पर शक किया गया। आजकल के युग में भी बाहरी रावणों से स्त्री बचती रहती है पर फिर भी शक किया जाता है, और ताने सुनती है। (औरत फिर दहकती है)।
5. लक्ष्मण ने तो केवल कुटिया के बाहर ही रेखा खींची थी और सीता ने किसी बुरे इरादे से उसे नहीं लांघा था किन्तु उनका धोखे से अपहरण हो गया। और बाद में शक का शिकार बनीं, और आज की नारी वैसे तो निकलती है घर के बाहर लेकिन उसके लिये आज भी कुछ सामाजिक दायरों का बंधन है जिसका कभी धोखे से भी उल्लंघन हो गया तो पुरुष के शक की कटारी आ गिरती है उसपर। किसी पुरुष के संग निर्दोषता से भी हँसने-बोलने या बाहर जाने पर उसे सबकी निगाहों व बातों का शिकार बनकर ताने सुनने पड़ते हैं। लेकिन पुरुष अपनी मनमानी करते रहते हैं और कितने लोग अनदेखी कर जाते हैं। (औरत फिर दहकती है)।
6. चलो मानते हैं कि उस समय रामराज्य था और उस समय की विचारधारा और थी। और एक राजा ने प्रजा को प्रभावित करने के लिए अपनी पत्नी को अग्नि परीक्षा देने को मजबूर कर दिया। उस प्रभावशाली व्यक्ति या देवता ने इस अक्षम्य अपराध को किया। पर आज के युग में..... ऐसा क्यों? क्या पुरुष भी ऐसी ही अग्नि परीक्षा देकर अपने को साबित कर सकते थे/ हैं? क्या कहा....नहीं।
इसका मतलब है कि रामराज्य और कलियुग की नारी में एक बात की समानता अब भी है....और वह है उसपर शक किया जाना और परीक्षाओं से गुजरना।
आज का युग कलियुग कहा जाता है, नारी हर दिशा में सतयुग की नारी से बढ़-चढ़ कर है और हर क्षेत्र में पुरुष की बराबरी करने की इच्छा व क्षमता रखती है और सिद्ध कर चुकी है...पर आज के कितने पुरुषों की विचारधारा नारी को लेकर बदली है? कोई बतायेगा? आज की नारी मानसिक रूप से समर्थ होते हुये भी पुरुष से तरह-तरह की मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना सहती है। देश-विदेश में हर जगह देखो पुरुष का अहम् ही नारी का सबसे बड़ा दुश्मन बन रहा है। नारी की साधना, उसका आत्म विश्वास, उसका खिलखिलाना जब पुरुष तोड़ता है तो सब मुरझाकर भस्म हो जाता है। जीते जी कितनी ही नारियाँ सुलग रही हैं समाज में चारों तरफ। मिलने-जुलने वाले लोग आते हैं और अपनेपन की बातें करते हैं दिखावे को व मन बहलाने के लिए किन्तु जैसे ही वहां पर किसी नारी पर अत्याचार होने का आभास पाते हैं तो तुंरत ही वह सब अपने को एक किनारे कर लेते है, सोचते हुये कि ' हम क्यों किसी की बुराई-भलाई व झगडे में पड़ें'... उस समय उस लाचार औरत को कितने अकेलेपन का अहसास होता होगा क्या कभी किसी ने सोचा है? सभी अपने उस समय पराये हो जाते हैं उसके लिये। सबको अपनी-अपनी पड़ी रहती है इस दुनिया में। इसीलिए शायद कहा गया है कि 'यह दुनिया केवल मुंह देखे की है', जहाँ किसी को सुख में देखा तो जलन और किसी को परेशानी में देखा तो मुँह छिपा कर खिसक लेते हैं लोग। एक टूटता हुआ इंसान सहारा न पाकर बिलकुल ही टूट जाता है। ऐसी स्थिति में एक इंसान की नहीं बल्कि कइयों के संबल की आवश्यकता होती है मुसीबत की मारी किसी नारी को। एक नहीं बल्कि तमाम आवाजों से किसी अत्याचार की दीवारें हिलाई जा सकती हैं। वरना जब तक हम यह चाहेंगे और होने देंगें तब तक यह सब होता रहेगा.... क्योंकि नारी वसन लज्जा कहा जाता है और उस लज्जा से वह अपनी असलियत को नंगा नहीं करती क्योंकि अत्याचार के विरुद्ध बोलने से उसकी बदनामी होती है....और मुंह बंद रखकर कष्ट झेलती रहती है घर भर का सम्मान बचाने को। घर की मान-मर्यादा बचाकर सबके सामने अपनी तकलीफों को छिपाने का ढोंग करती रहती है जाने-पहचाने लोगों में.....लेकिन फिर अन्दर ही अन्दर मन में घुटकर किसी के जाने बिना ही वह सबकी निगाहों से बचकर अपनी अग्नि में एक दिन वास्तव में मर जाती है...स्वाहा कर देती है अपने को अत्याचार की आग में....कितना दुखद और अजीब है यह क्रम!! सोचती हूँ कि सीता में तो दैविक शक्ति थी जो आज की नारी में नहीं है. और वह दूसरी बार अग्नि परीक्षा से गुजरते हुये अपमान को न झेल पायीं थीं और पृथ्वी में समा गयीं हमेशा के लिये. किन्तु आज की नारी तिल-तिल कर जलती है सोचते हुये कि वह भी धरती में समा जाये ताकि और अपमान ना सहना पड़े।
माँ, बहन, बेटी का रूप और पुरुष की सहचरी
जो सृष्टि की रचना करती वह तो केवल नारी है
दया-धरम, प्यार-ममता की मूरत का प्रतिरूप
इतना होने पर भी नारी इस धरती पर भारी है।
--शन्नो अग्रवाल
चित्र-साभार- राधिकिता
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7 बैठकबाजों का कहना है :
घर की मान-मर्यादा बचाकर सबके सामने अपनी तकलीफों को छिपाने का ढोंग करती रहती है जाने-पहचाने लोगों में.....लेकिन फिर अन्दर ही अन्दर मन में घुटकर किसी के जाने बिना ही वह सबकी निगाहों से बचकर अपनी अग्नि में एक दिन वास्तव में मर जाती है...स्वाहा कर देती है shanno ji bahut accha mudda uthaya hai aapne. aapke vicharo se purnth sahmat hoon. mere computer per hindi fonts nahi chal rahe hai.lsliye jald hi vapas is baithk per hajir honge.damdar aalekh ke liye badhai !
वेदना, करुणा और दुःखानुभूति को उजागर करती रचना हमें यह गौर करने पर मज़बूर करती हा कि हमारे देश में महिला सशक्तिकरण के प्रयास क्या नाकाफी हैं। विषय को गहराई में जाकर देखा गया है और इसकी गंभीरता और चिंता को आगे बढ़या गया है।
आज के दौर में जब शीर्षस्थ पदों पर महिलाएं आसीन हैं, कुछ बदलाव की उम्मीद जगी है। लेकिन कहीं-न-कहीं मन में एक शंका रह ही जाती है कि कहीं सबकुछ बड़े-बड़े वादों और खोखले नारों में ही बदल कर तो नहीं रह जाएगा।
शन्नोजी,
आपने सटीक बात कही है । इस संदर्भ में मैंने भी कुछ कहा है । सो पेश करता हूँ ।
(1)
मैं
इसी भारत में
सहस्त्रों भरत पैदा कर दूँ
कहीं से
राम तो ढूंढ कर लाओ
मैं घर-घर में
सीता दिखला दूँ
कोई राम तो दिखाओ
(2)
हे राम
यकीनन तुम भगवान न थे
कुंठित समाज़ की
कठपुतली - मात्र इन्सान थे
तभी तो
आदर्शों की होली में
झोंक दिया था
सीता का तन
केवल लांछन से
छोड़ दिया
भटकने को बन-बन
यह तो सोचा होता
कल कौन बनेगी सीता
जिसे केवल
अहंतुष्टि के लिये
यूँ ही जलना पड़े
बन-बन भटकना पड़े
धरती का ग्रास बनना पड़े
राम, तुम तो राम ही रहे
सीता ही रही न सीता
सुमीता जी, मनोज जी, और अनिल जी,
आप लोगों ने अपने बिचारों की अभिव्यक्ति की उसके लिये मेरा धन्यबाद. सभी समर्थन करने वालों का भी धन्यबाद. इस अन्याय के प्रति, जो हर देश की स्त्रियों के साथ हो रहा है, क्या होना चाहिये हमेशा सवाल बन कर रह जाता है. और अनिल जी कितना सही कहा है आपने:
राम, तुम तो राम ही रहे
सीता ही रही न सीता.
सोचती हूँ:
जंगल में अपने राम से दूर
क्या-क्या नहीं उसपर बीता.
--शन्नो
हर स्त्री में यह आग रहनी चाहिए | मां ही समाज में परिवर्तन ला सकती है | सहयोग पुरूष का हो तो अति सुंदर|
Same to same someone post on his blog! Who coied whose, no menyion. You must original as you a lady ,he gents cannot write this. So he copied. Such fraud should punish him severe. Just aws om word pres. YOu to see this post coping word by word:
https://rkkblog1951.wordpress.com/ab-nari-ki-bari/
Very bad things go on on soshal media.
Apne bahut sahi likha h magar ek aurat hi aurat ki dushman hai chahe wo saas bahu hon nand bhabhi hon ya aas paas ki dakiyanusi krne wali aurat. Or sita maa ki koi agni pariksha nahi hui thi wo agni se ram bhagwan ne apni seeta ko wapis liya tha.
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