दुनियाभर में भ्रष्टाचार की नब्ज़ पर नज़र रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने कहा है कि भारत और चीन दुनिया के बड़े बाज़ार तो हैं लेकिन विदेशों में कारोबार के मामले में इन देशों की कंपनियों को बहुत भ्रष्ट समझा जाता है. भारत में जिन लोगों ने ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के सर्वे में भाग लिया उनमें से 30 प्रतिशत का कहना था कि भारतीय कंपनियाँ अपना काम जल्दी करवाने के लिए निचले स्तर के अधिकारियों को रिश्वत देना पसंद करती हैं.एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों के लिए जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार की वजह से बहुत बड़ा नुक़सान हो रहा है.
भारत और चीन के बारे में कहा गया है कि दोनों ही देश बड़े-बड़े बाज़ार उपलब्ध कराते हैं और अंतरराष्ट्रीय कारोबार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. लेकिन इन दोनों देशोंकी कंपनियों को ख़ासतौर से अंतरराष्ट्रीय कारोबार करते हुए बहुत भ्रष्ट समझा जाता है. पाकिस्तान में इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले साठ प्रतिशत कंपनी अधिकारियों का कहना था कि उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों को रिश्वत दी थी. रिपोर्ट में भारत की यह कहते हुए प्रशंसा भी की गई है कि प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार से निबटने के लिए ठोस क़दम उठा रहा है, कंपनियों को वित्तीय अपराधों के लिए जुर्माना अदा करने का विकल्प दिया जा रहा है.
अरबों का नुकसान
वर्ष 2009 की वैश्विक भ्रष्टाचार रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में फैले भ्रष्टाचार, घूसखोरी, फिक्सिंग और सार्वजनिक नीतियों को निजी स्वार्थों के लिए प्रभावित करने की वजह से अरबों का नुक़सान हो रहा है और इससे टिकाऊ आर्थिक प्रगति का रास्ता भी बाधित हो रहा है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने दुनिया भर में भ्रष्टाचार पर चिंता जताते हुए अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि भ्रष्ट चाल-चलन से ऐसा माहौल बनता है जिसमें साफ़-सुथरी प्रतिस्पर्धा के लिए जगह नहीं बचती है, आर्थिक प्रगति अवरुद्ध होती है और अंततः भारी नुक़सान होता है.
पिछले सिर्फ़ दो वर्षों में ही बहुत की कंपनियों को भ्रष्ट चाल-चलन की वजह से अरबों का जुर्माना भी अदा करना पड़ा है. इतना ही नहीं, इस तरह की सज़ाएं मिलने से कर्मचारियों के मनोबल पर असर पड़ता है और ऐसी कंपनियों का विश्वास ग्राहकों में भी कम होता है और संभावित भागीदारों में भी उसकी साख गिरती है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशलन के अध्यक्ष ह्यूगेट लाबेले का कहना है, "निवेश की सुरक्षा बढ़ाने, व्यावसायिक सफलता सुनिश्चित करने और ग़रीब और धनी देशों द्वारा वांछित स्थायित्व लाने के लिए यह ज़रूरी है कि एक ऐसा माहौल बनाया जाए जिसमें व्यावसायिक साख को बढ़ावा दिया जाए. आर्थिक संकट से उबरने के लिए यह ख़ासतौर से बहुत आवश्यक है."
इस रिपोर्ट में बड़ी कंपनियों में बहुत से ऐसे प्रबंधकों, शेयरधारकों और अन्य महत्वपूर्ण अधिकारियों के मामलों का ज़िक्र किया गया है जिन्होंने अपने निजी फ़ायदों के लिए अपने पदों और अधिकारों का दुरुपयोग किया. इससे न सिर्फ़ कंपनी, ग्राहकों और शेयरधारकों को ही नुक़सान हुआ बल्कि व्यापक तौर पर पूरे समाज को नुक़सान हुआ.
रिपोर्ट कहती है कि विकासशील देशों में बहुत सी कंपनियों ने भ्रष्ट राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से एक वर्ष में लगभग 40 अरब डॉलर की घूसखोरी की है.
रिपोर्ट के लिए किए गए शोध में बताया गया है कि भ्रष्ट नीतियों की वजह से लागत में भी लगभग दस प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो जाती है और इसका ख़ामियाजा अंततः आम नागरिकों को ही भुगतना पड़ता है क्योंकि बढ़ी हुई लागत उन्हीं से तो वसूल की जाती है. रिपोर्ट में एक ख़ास बिंदू की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए कहा गया है कि दुनिया भर में कुछ गिनी-चुनी कंपनियाँ हैं जिनकी ताक़त बहुत बढ़ चुकी है और वो इस ताक़त के ज़रिए विभिन्न देशों की सरकारों को अपने हित साधने के लिए प्रभावित करती हैं. इनमें अपने क़ानूनों को अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करवाना भी शामिल है.
बीबीसी
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4 बैठकबाजों का कहना है :
ये सही है की विश्व बाज़ार में भारत बड़ा बाज़ार है.किन्तु भ्रष्टाचार के कारण ऊंचाई को नहीं छू पा रहा है..यह बहुत चिंता का विषय है...भारत में भ्रष्टाचार राजनीति से शुरू हुआ है,और जब तक कोई सरकार भ्रष्ट राजनेताओं से शुरुआत नहीं करेगी भ्रष्टाचार कभी ख़त्म नहीं हो सकता...मुझे उम्मीद है की शायद कोई सूर्योदय इस क्षेत्र में हो..और सरकार चाहे तो भ्रष्टाचार को काबू में करने की शुरुआत हो.....
जागरूक आलेख है .वैयक्तिक ईमानदारी को अपनाकर हम भ्रष्टाचार को रोक सकते है .देश में सुधार की आशा कर सकते हैं . कम्पनियों में कुछ लोगों को छोड़ कर जब संतरी से मंत्री भ्रष्ट हो तो जग में भ्रष्ट कम्पनियां अपनी साख बचा ना पाएगी . पारदर्शी आलेख इसी बात का गवाह है .बधाई
कल ह सिलिकोन इडिया के किसी ब्लाग पर ऐसा आलेख पढआ था सही कहा आपने। ये भ्रस्ग्टाचा खत्म करने के लिये शायद कोइ कल्कि अवतार हे आये नहीं तो नेताओं ने तो इसे और बढाना है।
आलेख पढ़कर हैरानी हुई की भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है.लेकिन इसके उलट एक बात यह भी है की इसे बढ़ने वाले भी वही लोग हैं जिनके उपर इसे मिटने की ज़िम्मेदारी है.
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