पिछले कुछ महीनों से चीनी के भाव में तेजी आ रही है। सरकार भाव को काबू
में रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। सरकारी प्रयासों से चीनी के
भाव कुछ नीचे आते हैं लेकिन तुरंत ही पूर्व स्तर से भी ऊपर चले जाते हैं।
हाल ही में सरकार ने चीनी के भाव को काबू में करने के लिए कुछ उपाय किए
हैं। सरकार ने ड्यूटी मुक्त रिफाईंड चीनी के आयात की अवधि को बढ़ा कर 30
नवम्बर, 2009 कर दिया है। इसी प्रकार कच्ची चीनी के ड्यूटी मुक्त आयात की
अवधि 31 मार्च, 2009 कर दी है। इसके साथ ही मिलों के साथ व्यापारियों को
भी इसके आयात की अनुमति प्रदान कर दी है।
सरकार आश्वस्त लेकिन ?सरकार अब आश्वस्त है कि आगामी त्यौहारी सीजन में चीनी के भाव काबू में
रहेंगे और उपभोक्ताओं के लिए कड़ुवाहट पैदा नहीं करेंगे। लेकिन ऐसा लगता
नहीं है कि सरकार चीनी के बढ़ते भाव को रोक पाएगी।
उत्पादन, बकाया स्टाक, आयात को मिलाकर कुल उपलब्ध्ता और खपत का गणित साफ
संकेत दे रहा है कि चीनी के भाव कम होने की बात ही दूर वर्तमान स्तर पर
रुकने भी संभव नहीं हैं। यही नहीं आगामी सीजन में भी चीनी के भाव नीचे
आने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं।
चीनी का गणितचालू चीनी वर्ष 2008-09 (अक्टूबर 2008-सितम्बर 2009) में चीनी का उत्पादन
147 लाख टन पर ही सिमट जाने के अनुमान हैं जबकि गत वर्ष यह 264 लाख टन
था।
चालू चीनी वर्ष के आरंभ में चीनी का बकाया स्टाक लगभग 100 लाख टन का था
(हालांकि सरकार और उद्योग में इस पर एक मत नहीं हैं।)। आयात आदि को मिला
कर चीनी की कुल उपलब्धता लगभग 260 लाख टन होने का अनुमान है। भाव बढ़ने के
कारण चीनी की खपत में कमी आई है और सरकार ने निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा
दिया है। इससे अब आलोच्य वर्ष में खपत का अनुमान 230 लाख टन का है।
उपलब्धता में खपत को घटाने के बाद देश में चीनी का स्टाक लगभग 30 लाख टन
बचने का अनुमान है। जबकि सरकारी व व्यापारिक अनुमानों के अनुसार किसी भी
समय देश में चीनी का स्टाक कम से कम तीन माह ही अवधि के बराबर होना
चाहिए। ये आंकड़े ही तेजी के संकेत दे रहे हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आगामी महीनों में रिफाईंड चीनी का आयात भी
होगा और कुछ कच्ची चीनी पाईप लाईन में भी होगी लेकिन घरेलू चीनी के स्टाक
की कमी ही चीनी की तेजी को हवा देने के लिए पर्याप्त है।
इसके अलावा भारत में चीनी का उत्पादन कम होने और इसके द्वारा आयात किए
जाने से विश्व बाजार मे भाव लगातार बढ़ रहे हैं और चोटी पर पहुंच गए हैं।
इससे आयात भी महंगा होगा। व्यापारियों का कहना है कि वास्तव में आयातित
चीनी की लागत स्वदेशी चीनी की तुलना में अधिक होगी। इससे नहीं लगता कि
त्यौहारों के दौरान चीनी के भाव में कोई कमी आएगी।
आगामी सीजनवास्तव में आगामी सीजन में भी उपभोक्ताओं के चीनी के अधिक दाम चुकाने
पड़ेंगे क्योंकि मानसून की देरी और कमी ने गन्ने की बिजाई को गड़बड़ा दिया
है।
इस वर्ष अब तक 42.50 लाख हैक्टेयर पर गन्ने की बिजाई की जा चुकी है जो गत
वर्ष की इसी अवधि की बिजाई की तुलना में 1.29 लाख हैक्टेयर कम है। राज्य
के अधिकांश जिले सूखे की चपेट में आ चुके हैं। देश के अन्य गन्ना उत्पादक
राज्यों में भी वर्षा की कमी अनुभव की जा रही है। इससे निसंदेह गन्ने के
कुल उत्पादन और उसमें रस की मात्रा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। हालांकि
अभी से आगामी सीजन में चीनी के कुल उत्पादन के बारे में कुछ नहीं कहा जा
सकता है लेकिन यह तय है कि वह चीनी की घरेलू मांग को पूरा नहीं कर पाएगा।
आगामी वर्ष भी मांग को पूरा करने के लिए आयात का सहारा लेना ही
पड़ेगा।
राजेश शर्मा
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4 बैठकबाजों का कहना है :
तथ्यों से पूर्ण बढि़या लेख.
धीरे-धीरे खाने पीने की सभी वस्तुयें हाथों से फिसलती जा रही हैं.
देखें आगे और क्य-क्य होता है ?
जानकारी बहुत अच्छी है और कहना भी सही है मगर ये बताईये कि सरकार बस मै है क्या? बडिया आलेख शुभकामनायें
चीनी की व्यापक जानकारी मिली .जब दाम बड जाते है तो कभी भी कम नहीं होते हैं .
त्योहारों के लिए सरकार चीनी के दाम कम करने के लिए कुछ विकल्प करे .जिससे जनता ख़ुशी से त्योहार बना सके .आभार .
अजी सरकार के बस में चीनी ही नहीं किसी भी तरह की मंहगाई रोकना नहीं है.
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