जबकि हर तरफ नेता-चुनाव-लोकतंत्र की चर्चा है तो ये भी इससे अछूते नहीं है। अपने व्यंग्य के ज़रिए 'भूतपूर्व' की महिमा बता रहे हैं।
साधारणतया लोग भूतों से डरते हैं मगर इस देश के राजनेता, प्रशासक, सैनिक अधिकारी आदि लोगों को भूतों से बहुत प्रेम हैं। वे जब तक पद पर बने रहते हैं तब तक बेचारे भूत की कोई फिक्र नही करते और पद छोड़ते ही श्रीमान जी अपने पीछे `भूतपूर्व' हो जाते हैं। जैसे- भूतपूर्व प्रद्यानमंत्री, भूतपूर्व मुख्यमंत्री, भूतपूर्व सचिव आदि। इन दिनों तो यह प्रचलन इतना बढ़ चुका है कि लोग अपने नाम के पीछे 'भूतपूर्व चोर' भी लगा लेते हैं। जिसका अर्थ बताते हैं कि वो पहले चोर थे मगर अब आध्यात्म अपना लिया है। फिर भी उन्हे अपने भूतकाल पर इतना फ़क्र होता है कि वो आज भी पहले `भूतपूर्व चोर' लिखते हैं फिर अपना नाम।
हाल ही में इस देश में एक आदमी बीमार था। यूं तो हजारों लोग यहाँ मरते है जिनकी कहीं कोई चर्चा नही होती मगर वो भूतपूर्व प्रद्यानमंत्री होने के नाते रोज समाचार पत्रों की दो बाई दो की जगह घेरे रहता है। मेरा भी आजकल मन करता है कि मैं भी `भूतपूर्व' हो जाऊँ मगर मुझे भूतों से बहुत डर लगता है, इसलिए यह क्रांतिकारी कदम नहीं उठा सकता।
भूतपूर्व लगाने से आदमी को उसका भूतकाल हमेशा याद रहता है। वैसे सारे मनुष्य लगा सकते है `भूतपूर्व जानवर' ताकि आदमी को यह अहसास रहे कि वो कभी जानवर था, इसीलिए आज भी जानवरों जैसी हरकतें कर देता है। कल श्री राम सेना वाले भी अपने नाम के पीछे लगाएँगे `भूतपूर्व पब कलचर पर हमलाकारी'। मेरे दादा जी के एक दोस्त भूतपूर्व मंत्री हैं। वो कहते हैं कि जब हम मंत्री थे तब यह भ्रष्टाचार जैसी चीजों के लिए कोई जगह नहीं थी मगर अब क्या करें हम तो भूतपूर्व हो गये। वो बात अलग थी कि उनके सरकारी कार्यकाल के दौरान उनकी सम्पति मे अभूतपूर्व वृद्धि हुई। आज भी उनके यहॉँ आयकर विभाग का छापा नहीं पड़ता है क्योंकि उनके पास `भूतपूर्व मंत्री' का कवच है। उनकी गाड़ी को कोई पुलिस वाला नहीं रोकता क्योंकि वो अपनी गाड़ी की नम्बर प्लेट पर बड़े-बड़े लाल अक्षरों में छपवा रखा था `भूतपूर्व मंत्री'। बेचारे पुलिस वाले डरते है कि कहीं भूत इनका पीछा छोड़ दिया और यह सिर्फ मंत्री हो गये तो उनके बच्चों को मिड डे मिल पर काम चलाना पड़ेगा, और यह अपना भूत उनके पीछे लगाकर उन्हें `भूतपूर्व इन्सपेक्टर' बना देंगे।
वाह रे! कुर्सी जब तक नीचे है तब तक तो मजा है ही और नीचे से हटते ही लोग `भूतपूर्व' लगा कर मजा करेंगे। अगर उपयोगितावाद का यह सिद्धान्त बेचारे जरमी बेंथम को पता होता तो वह छाती पीट-पीटकर रोता कि वो हिन्दुस्तान में क्यों नही जन्मा?
कुछ दिनों पहले राजस्थान के विधानसभा चुनाव में मैं वहँ एक गावँ में था, उसी दिन एक विधायक पद के उम्मीदवार का भाषण था जो पहले मुख्यमंत्री थे और अब `भूतपूर्व मुख्यमंत्री' रह गये थे। वे सभा में आये और बोले, `भाइयों और बहनों मुझे बचा लिजिए, मेरी जान आपके हाथों में है, मुझे भूत से बहुत डर लगता है। आप इस बार अपना अमूल्य वोट देकर मेरा भूतपूर्व हटा दें ताकि मैं मुख्यमंत्री रह जाऊँ।"
मुझे भी इस भूतपूर्व शब्द से इतनी मोहब्बत हो गई है कि मैंने उठकर पूछा, "श्रीमान जी आपके भूतपूर्व वादों का क्या हुआ?"
वे जोश के साथ बोले, "मैं वादा करता हूँ कि मेरा भूतपूर्व हटने के साथ ही मैं वादों का भी भूतपूर्व हटा दूँगा तब मैं सिर्फ मुख्यमंत्री रह जाऊँगा और भूतपूर्व वादे सिर्फ वादे।"
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3 बैठकबाजों का कहना है :
बैठक में स्वागत है आपका..अच्छा आलेख...
व्यंग की भषा में धार जितनी तेज हो मजा इतना ही अधिक आता है. हरिशंकर परसाई की भाषा के तेवर देखें. आपके प्रयास प्रारंभ की दृष्टि से सराहनीय है.
संदीप भाई,
आपको व्यंग्य की धार ज़रा और तेज़ करनी पड़ेगी। सलिल जी की बातों पर ध्यान दीजिए। विषय आपने अच्छा चुना है।
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