दुनिया नये दौर में प्रवेश कर रही है तो हम भी इस आयोजन में शिरकत करते हैं...पेश है अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा का वाशिंगटन डीसी के लिंकन मेमोरियल हॉल में शपथ ग्रहण के दौरान 20 लाख लोगों की मौजूदगी में दिया गया भाषण...आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा....
"मैं बराक हुसैन ओबामा बोल रहा हूं"
मैं उन सभी वक्ताओं और प्रदर्शकों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं जिन्होंने हमें अपने गीतों और शब्दों के जरिए याद दिलाया कि अमेरिका की वह कौन सी बात है जिसे हम इतना प्यार करते हैं। मैं इस भयानक ठंड और भीड़ का सामना करने के लिए आप सबका शुक्रिया अदा करता हूं और कुछ लोग तो आज यहां इस कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए हज़ारों मील का सफर तय करके आए हैं। उन सभी का शुक्रिया। वॉशिगंटन में और नए अमेरिका के निर्माण के इस उत्सव में आपका स्वागत है।
हमारे देश के इतिहास में कुछ मुट्ठी भर पीढ़ियों को ही ऐसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिनका सामना आज हम कर रहे हैं। हमारे देश में जंग छिड़ी है। हमारी अर्थव्यवस्था संकट में है। लाखों अमेरिकी अपनी नौकरियां और आशियाने गंवा रहे हैं। वे चिंतित हैं कि अपने बच्चों के कॉलेज की फीस कैसे चुकाएंगे और उनकी रसोई की मेज पर जो बिलों का अंबार लगा है, उसके पैसे कैसे भरेंगे और सबसे ज़्यादा वे अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता और चिंताओं से घिरे हैं। उन्हें इस बात की फ़िक्र है कि क्या अमेरिकियों की यह पीढ़ी हमारे बच्चों और उनके बच्चों तक यह बात पहुंचा सकेगी कि इस देश को लेकर सबसे अच्छी बात क्या है?
मैं यह दावा तो नहीं करूंगा कि इनमें से किसी भी चुनौती से निपटना आसान होगा। इसके लिए एक महीने या एक साल से ज़्यादा या हो सकता है और भी ज़्यादा लग जाएं। इस दौरान कुछ गतिरोध आएंगे, कई बार शुरुआत ग़लत होगी और ऐसे भी दिन आएंगे जब एक राष्ट्र के बतौर हमारे बुनियादी संकल्प की परीक्षा होगी। लेकिन इस सब के बावजूद हमारे सामने जो लक्ष्य है, उसकी विशालता के बावजूद मैं यहां हमेशा की तरह उसी उम्मीद के साथ खड़ा हूं कि संयुक्त राज्य अमेरिका इसे दृढता के साथ सहेगा और इस देश की नींव रखने वालों के स्वप्न हमारे समय में और मजबूत होंगे।
वह क्या है,जो मुझे यह उम्मीद बंधाता है। ये लिंकन मेमोरियल हॉल, जब मैं चारों ओर इन पर नज़र डालता हूं, इन स्मारकों में वह असंभव कहानियां खुदी हुई हैं जो हमारे हठी विश्वास को और भी दृढ करती हैं। यह विश्वास कि अमेरिका में कुछ भी संभव है। हमारे सामने एक ऐसे व्यक्ति का स्मारक है, जिसने थोड़े-से किसानों और दुकानदारों को साथ लेकर एक समूचे साम्राज्य की सेना के विरुद्ध क्रांति की और यह सब एक विचारधारा के लिए किया गया था। इसकी सतह में ऐसी पीढ़ी के लिए श्रद्धांजलि है, जो युद्ध और अवसाद के खिलाफ डटकर खड़ी हुई, मेरे दादा-दादी की तरह जिन लोगों ने बांबर एसेंबली लाइन पर पसीना बहाया और निरंकुशता के चंगुल से दुनिया को मुक्त करने के लिए पूरे यूरोप में अभियान चलाया। हमारे ठीक सामने एक जलाशय है, जो आज भी एक राजा के स्वप्न और एक व्यक्ति की महिमा का बखान करता है, जिसने अभियान छेड़ा और अपनी रक्त बहाया ताकि उसके बच्चों को चारित्रिक खूबियों के कारण जाना जाए और मेरे पीछे उस संघ को निहारता वह व्यक्ति बैठा है, जिसने इसे बचाया और कई मायनों में इस दिन को संभव बनाया।
आज जो मैं आप सबके सामने यहां खड़ा हूं, कौन मुझे इतनी गहरी उम्मीद देता है। चारों ओर से घेरे हुए ये पत्थर और संगमरमर नहीं, बल्कि इनके बीच जो मौजूद है, वहां से मुझे ये उम्मीद मिलती है। वो आप हैं-हर नस्ल, क्षेत्र और शहरों के अमेरिकी, जो यहां आये क्योंकि आपको भरोसा है कि यह देश क्या हो सकता है और क्यूंकि आप वहां तक पहुंचने में हमारी मदद करना चाहते हैं। यही वह चीज़ है, जिसने मुझे उसी दिन से उम्मीद दी, जब तक़रीबन दो साल पहले इस राष्ट्रपति पद की मुहिम शुरू की थी; एक भरोसा कि यदि हम ख़ुद को एक-दूसरे के रूप में पहचान लें और डेमोक्रेट्स, रिपब्लिकन्स व इंडिपेंडेंट्स; लातिनी, एशियाई और मूल अमेरिकी, श्वेत व अश्वेत, समलैंगिक व विपरित लैंगिक, अपंग व आम सभी को एक साथ ले आयें तो न सिर्फ उम्मीदों और अवसरों को फिर से बहाल कर पायेंगे, जो हम सभी की इच्छा है, बल्कि संभव है कि इस प्रक्रिया में हम अपने संघ को और भी मजबूत करें।
यहीं है मेरा विश्वास, लेकिन आपने इस विश्वास को सच कर दिखाया है। आपने एक बार फिर यह साबित कर दिया है जो लोग इस देश से प्यार करते हैं, वे इसे बदल सकते हैं। अब जबकि मैं राष्ट्रपति पद संभालने जा रहा हूं, आप लोग ही वह आवाज़ है, जिसे में हर दिन उस ओवल ऑफिस में प्रवेश करते हुए अपने साथ ले जाउंगा। उन स्त्रियों और पुरूषों की आवाज, जिनकी कहानीयां अलग-्लग हैं, लेकिन जिनके स्वपन एक हैं। जो सिर्फ यह सवाल करेंगी कि एक अमेरिकी के बतौर हमारा वादा क्या था, कि हम अपने जीवन को वौसा बना सकें, जैसा हम चाहते हैं. और अपने बच्चों को खुद से भी ज्यादा बुलंदियों तक पहुंचते हुए देखें।
यही वह धागा है, जो इस साझा कोशिश में हमें एक साथ बांधता है, जो इस इमारत की प्रत्येक स्मृति के साथ चलता है, जो महें उन सबसे जोड़ता है, जिन्होंने संघर्ष किया, बलिदान दिया और यहां पहले खड़े हुए।
इस तरह इस राष्ट्र ने महान मतभेदों और लंबे समय की असमानताओं पर विजय प्राप्त की, क्योंकि ऐसा कोई अवरोध नहीं है, जो बदलाव की मांग कर रहे लाखों लोगों की आवाज़ की राह में टिक सकें।
यही वह भरोसा है, जिसके साथ हमने इस मुहिम की शुरूआत की। उसी की ताकत से हम उस सब पर विजय प्राप्त करेंगे, जो हमें तकलीफ पहुंचा रहा है। इसमें कोइ संदेह नहीं कि हमारी राह लंबी होगी. हमारी चढ़ाई सीधी होगी। लेकिन यह कभी न भूलें कि हमारे देश का असली चरित्र सरल और आसान समय में उजागर नहीं हुआ, बल्कि तब सामने आया ,जब हम मुश्किलों मे थे। मैं आप सबसे अपील करता हूं कि एक बार फिर उसी चरित्र को उभारने में मेरी मदद करें और इस तरह हम एक साथ मिलकर बतौर एक राष्ट्र अपने पूर्वजों की उसी विरासत को आगे ले जाएं, जिसका आज हम जश्न मना रहे हैं।
साभार : दैनिक भास्कर
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10 बैठकबाजों का कहना है :
अगर हम मंदी की बात करें तो निकट भविष्य में ओबामा से अधिक उम्मीदें लगाना ठीक नहीं.. जो हालात बिगड़े हैं वो तो अपने समय पर ही सुधरेंगे, यदि ओबामा अभी कदम उठाते हैं तो भी समय तो लगेगा ही। चुटकी बजाने से नहीं होगा।
मैं समझता हूँ कि इराक और अफगानिस्तान जैसे देशों में जरूर जल्द बदलाव आयेगा। ओबामा ने पहले भी जिक्र किया था कि इराक से सेना २ महीने में वापस बुला ली जायेगी।
जो भी हो, ओबामा अभी सबसे शक्तिशाली व्यक्ति जरूर बन गये हैं, पर काँटों का ताज पहना है। ओबामा को बधाई और शुभकामनायें। उम्मीदों पर खरे उतरें, यही आशा है।
हिंद-युग्म की बैठक में बराक ओबामा!!!!!!!!!
मैं कहने वाला था कि ओबामा को बैठक में बुलाने से पहले राजेंद्र यादव जी से पूछा गया था या नहीं?
वैसे यादव जी की टिप्पणी का इंतजार रहेगा.
वसंत जी,आपको यहाँ पाकर खुशी हुई,
अच्छा लगा कि आप हमारा हित सोंचते हैं,पर टाईमिंग वाली समस्या अभी भी बरकरार है.अरे,गलती हो गई,होंगे तो आप भी हिन्दुस्तानी ही न (मुझे उम्मीद है इस वक्त मैं ग़लत नहीं हूँ),आदत है जाते जाते जायेगी.जानते हैं महोदय यही टाईमिंग के ही चलते अच्छा से अच्छा साहित्य और अच्छी से अच्छी कामेडी फ्लाप कर जाती है...उम्मीद है अगली बार से समय पर आपकी राय हाजिर हो जायेगी.
और रही बात राजेन्द्र यादव जी की तो महोदय उनकी तो बात ही छोडिये हमतो आपकी राय भी हर वक्त चाहेंगे.अलबत्ता कृपा करके टाईमिंग का ख्याल रखें....
आलोक सिंह "साहिल"
ओबामा , ओबामा ,ओबामा
नीलम जी, नीलम जी, नीलम जी....
nikhil ji ...nikhil ji...nikhil ji.....
pahchaan kaun....?
anonymous!anonymous!anonymous!
अरे निखिल भाई, मैं हूँ ,बड़े सीरियसली कमेंट देने आया था ...बस आप लोगों को देखकर मसखरी सूझ गई ........पर कमाल है के आपने पहचाना नहीं..........
या मेरी तरह सोचा होगा के मालूम तो है पर नाम नहीं ले सकते
ओबामा हों या कोई और हमारे मसाले हमें ही सुलझाने होंगे. भारत को आतंकवाद से मुक्ति ओबामा तश्तरी में रखकर नहीं दे सकते. मंदी के संकट से हमारे प्रयास ही हमें उबारेंगे. भारतीय प्रेस के लिए ओबामा भी एक मसाला हैं जिनको केन्द्र बनाकर वह सबसे पहले की दौड़ में कुछ नकुछ परोसती रहेगी.
आचार्य जी ,
इतना नाउम्मीद मत होइए ,बहुत कुछ हमारे देश के पक्ष में होने के आसार नजर आ रहें हैं ,भारत से दोस्ती ,रजामंदी और तकनीकी सब के लिए उन्हें भारत का साथ ,और भारत को ओबामा का साथ ,रास्ते प्रशस्त हैं
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