तपन शर्मा हिंदयुग्म के उन कार्यकर्ताओं में से हैं जिन्हें पर्दे के पीछे रहकर काम करने में मज़ा आता है...हिंदयुग्म के हर आयोजन में वो चुपचाप अपने जिम्मे का काम करते हैं और प्रेरणा देते हैं....इंडियन एक्सप्रेस में हाल ही में छपी एक ख़बर पर उन्होंने हमें ये लेख भेजा है...मदरसों की पढाई को सीबीएसई के बराबर मान्यता मिलने की संभावनाओं के बीच बैठक पर ये विमर्श दूर तक जाए, ऐसी हसरत है...
कांग्रेस सरकार में कुछ मंत्री हमेशा चर्चा में रहे। शिवराज पाटिल नामक शख्स जो अब चले गये हैं, रामादौस जिन्होंने एम्स को बीमार कर रखा है और तीसरे हैं अपने अर्जुन सिंह। समझ में नहीं आता कि चाहते क्या हैं। आरक्षण नाम की बैसाखी तो इन्होंने पहले ही हाथों में दे रखी है। जो सीटें आरक्षित होती हैं वे दाखिले की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी नहीं भरती। फिर भी उन्हें बढ़ा दिया गया वो भी जाति के नाम पर। आर्थिक आधार होता तो समझ भी आता। आंध्र में सीटें बाँटी जाती हैं धर्म के नाम पर। फिर भी सरकार अपने को सेक्युलर कहती है। सुप्रीम कोर्ट कहता है कि बची सीटें जनरल छात्रों को दी जायें तो उस पर अमल नहीं होता, उलटा कोर्ट को अपनी हद में रहने की सलाह दी जाती है। खैर अभी मामला आरक्षण का नहीं। मानव संसाधन मंत्रालय कुछ और ही करने की तैयारी में जुटा है। देश भर में जितने मदरसे हैं उनसे पढ़े गये छात्र वही दर्जा पायेंगे जो सी.बी.एस.ई. से उत्तीर्ण छात्र पाते हैं। कहने का मतलब ये कि मेहनत करने की, रात भर जागने की जरूरत नहीं है। कारण बताया गया है कि मुस्लिम छात्र भी आम छात्रों की तरह आगे आ पायेंगे। आपको मदरसों से भी वही सर्टिफिकेट मिलेगा जो आम स्कूल से पास करने पर मिलता है।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि इस देश में मुसलमानों का फायदा उठाया गया है। यदि ऐसा न होता तो आजादी के ६० बरस बाद भी शिक्षा के मामले में पिछड़े न कहलाते। वे शिक्षा के मामले में पिछड़े हैं इसमें भी किसी को कोई शक नहीं होना चाहिये। लेकिन सर्टिफिकेट बाँटे जाने का तरीका ठीक नहीं। सरकार चाहे तो मुस्लिम बहुल इलाकों में स्कूलों की तादाद बढ़ा सकती है। उन्हें जागरूक कर सकती है। मुझे नहीं पता और न ही लगता है कि मदरसों में वही पढ़ाई होती है जो कि बोर्ड करवाता है। इस तरह से हम उन्हें और भी कमजोर कर देंगे। वे बोर्ड से पास हुए छात्र के बराबर दर्जा तो पा लेंगे पर पढ़ाई में फिर भी पिछड़ जायेंगे। गलत तरीके से फायदा उठा कर पहले से ही त्रस्त समुदाय के वोट माँगने में ये सरकार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।
तीन विश्वविद्यालयों- जामिया हमदर्द, जामिया मिलिया और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में स्नातकोत्तर में दाखिले के लिये मदरसों के सर्टिफिकेट मान्य हैं। मानव संसाधन ने यूजीसी को कहा है कि बाकि विश्ववैद्यालयों में भी इसे लागू किया जाये। परन्तु इसका विरोध होने के कारण यूजीसी ने एक कमेटी बैठाने का निर्णय लिया है।
आई.आई.टी और आई.आई.एम जैसे संस्थानों में आरक्षण दे कर भारत में शिक्षा के स्तर को मंत्रालय पहले ही गिरा चुका है। कहीं ये कदम भी गलत राह पर न पहुँचा दे।
तपन शर्मा
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12 बैठकबाजों का कहना है :
Bhai ji,ye kadam bhi galat disha mein na jaye jaisi koi bat hi nahin hai,ye kadam uthaye hi isiliye liye jate hain ki ye galat disha mein chale jayein….
Kise chinta hai desh ki, par aise uljalul kadamon se unhe kuchh jahilon ke vot to mil hi jayenge…….aur un naamuraadon ko isse jyada ki darkaar bhi to nahin hai..
ALOK SINGH “SAHIL”
संयोग देखिये कि इस बात की चिंता करते हुए आज ही मैंने पोस्ट लिखी है… ठीक इस पोस्ट से कुछ ही समय पहले… :)
जी हाँ सुरेश जी, मैंने भी गौर किया... संयोग ही कहेंगे.. :-)
बेहतर होता कि सीबीएसई को ही मदरसों के बराबर कर दिया जाता,देश की पूरी पढ़ाई मुख्यधारा में आ जाती।
sab vote ki raajneeti hai.
shivraj chauhan nahin vah patil sahib the, sabse kamjor home minister.
राजेश जी,
टाइपिंग की ग़लती थी, लेखक की नहीं....सुधार ली गयी है....ध्यान दिलाने के लिए आपका शुक्रिया...
निखिल आनंद गिरि
'कहीं ये कदम ग़लत' नहीं.....
"यकीनन" ये बहुत ग़लत कदम है ..............इस तरह की शिक्षा के नतीजे पता नहीं कब तक और किस किस रूप में भुगतने पड़ेंगे...
मदरसों में क्या सिखाया जाता है, यह सब लोग जानते हैं | लेकिन उस बात को स्वीकार नहीं करना चाहते | देश विदेश में हुए आतंकवादी हमलों में पकड़े गए आतंकवादी या तो मदरसों से ग्रजुएट थे या किसी विदेशी यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रजुएट | इसलिये मदरसों की शिक्षा पर आप विशवास नहीं कर सकते | यह तो सब जानते हैं की मदरसों में जो पाठ्यक्रम है वह उर्दू में है | और हमारे सरकारी काम काज में हिन्दी एवम अंग्रेज़ी का प्रयोग होता है | कैसे मदरसों से पड़े लोग इतना सामर्थ रखेंगे की वह कार्य तो समय अनुसार पूर्ण कर सके? में मानता हूँ की सरकार यह सब वोटों के लिए कर रही है, परन्तु क्या मुस्लमान सचमुच उपर उठाना चाहते हैं? क्या मदरसों में दी गई शिखा से कोई इंजिनियर अथवा साइंटिस्ट बना है?
तपन की चिंताएं वाजिब हैं। मदरसों की ज़रूरत ही क्या है? बहुसंख्यक हिन्दुओं के लिए क्या कोई अलग स्कूल या पाठ्यक्रम हैं ? अगर मदरसों में इस्लामी संस्कृति के साथ व्यावहारिक शिक्षा दी जाती है तो फिर हिन्दुओं के लिए भी गुरुकुल खोले जाएं। हिन्दू भी अपनी संस्कृति भूलते जा रहे हैं। इन गुरुकुलों को भी वैसी ही सुविधाएं और उतनी ही फिक्र की जाए जैसी मदरसों की की जा रही है।
मुसलमान छलावे और भुलावे में आना छोड़े। उन्हें कोई और नहीं उनके मौलवी-मौलाना गलत-सलत जानकारियां दे कर छल रहे हैं। -भारत मुसलमानों का था। अंग्रेजों ने इसे हिन्दुओं को दे दिया...जैसे बेवकूफाना तथ्य मुसलमानों में बरसों से भ्रम फैला रहे हैं। इस देश के अस्सी फीसदी मुसलमान तो वैसे भी हिन्दू ही थे....क्या यह भी समझने-समझाने की ज़रूरत है ?
शिक्षा हमेश ही राजनेताओं और प्रशासनिक अफसरों के हाथ का खिलौना रही है. म.प्र. में कभी १०वी कभी ११वी, कभी १२वी, कभी ११वी-१२वी और अब १०वी-१२वी कक्षाओं की बोर्ड परीक्षाएं की गयीं आजकल महाविद्यालयों में बैठे तुगलकी आयुक्त ने मनमानी नीतियां थोप कर दहशत फैला राखी है.
मदरसों के बारे में भी यही हालत है. सही-ग़लत की चिंता न होना तो कम है, नेता और अफसर तो इतना ग़लत करना चाहते हैं कि लोग उस में उलझ कर अन्य जरूरी मुद्दों को न देख पायें.
शिक्षा का राजनीतिकरण हमे गर्त में ले जा चुका है ,कुछ दिन पहले बिटिया को सामाजिक विषय में १८५७ की क्रान्ति के बारे में पढ़ा रही थी ,कहीं पर भी मंगल पाण्डेय
का जिक्र तक नही ,अलबत्ता लियाकतली जी का नाम दिखायी दे रहा था |हमारे देश में ही हम बेगानों की तरह आख़िर कब तक ,मुसलमान भाइयों को भी वही शिक्षा दी जाए ,
वरना ये कभी मुख्य धारा में नही आ सकते ,कहीं ये सियासत की कोई चाल तो नही
नीलम जी.. सही कहा आपने.. वैसे एक लियाकत अली तो पाक्सितान में हुए हैं.. १८५७ वाले मैं नहीं जानतां...
अभी हाल ही में सर्वे हुआ था... मैंने युग्म पर किसी मंच पर भी ये लिखा था.. फिर दोहरा रहा हूँ..
उस सर्वे में बच्चों को महापुरुषों के चित्र पहचानने को कहा... "महात्मा" गाँधी और जवाहर लाल नेहरू के अलावा और किसी भी स्वतंत्रता सेनानी का चित्र बच्चे नहीं पहचान सके.. ये शर्मनाक स्थिति है कि बच्चे तिलक, शास्त्री, लाला लाजपत राय, बोस, भगत, आज़ाद जैसे लोगों को नहीं पहचान पा रहे...
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