
वर्तमान में योग गुरू रामदेव जी को भी कुछ उपरोक्त नामी-गिरामी हस्तियों की तरह भ्रम उत्पन्न हो गया। उन्हे लग रहा है वे अपनी लोकप्रियता को राजनैतिक क्षेत्र में भुना सकते है। परन्तु उन्हे यह जानना चाहिए समाज आप के साथ किस विषय पर खड़ा है। स्वामी जी को यह बात भली भॉति समझकर कदम उठाना चाहिए कि जनता किसे प्यार देती है किसे सम्मान और वह किसे नोट देती है और किसे वोट। रामदेवा जी को जानना चाहिए जनता उनके साथ कपाल-भाति मे तो है पर राजनीति में साथ दे ऐसा बिल्कुल भी आवश्यक नहीं।
रामदेव कब स्वामी से लेकर योग गुरू बन गये उनके शब्द, शिक्षा, प्रवचन-भाषणों में परिवर्तित होते चले गये पता हीं नहीं चला। देखते ही देखते हरिद्वार की सड़कों पर साइकिल से चलने वाला एक साधारण व्यक्ति किस प्रकार लगभग 10 वर्षों में करीब सत्तर हजार करोड़ रूपये का स्वामी बन गया। आज स्वामी जी के पास विदेशों में भी अकूत अचल सम्पत्ति है। यह बात सत्य है भारत से विलुप्त हो चुके योग विज्ञान को उन्होने पुनः सार्वजनिक किया। इस विषय पर उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम होगी। परन्तु उसकी आड़ में धन का जो खेल चला वह उनके उक्त सम्मान का कम करता है। योग की कक्षा लगा सिनेमा की तरह श्रेणीगत टिकटों की बिक्री उनकी उक्त लोकप्रियता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है। उनकी यौगिक क्रियाओं की सी0डी0 तथा साहित्य की ऊॅची कीमतों पर बिक्री भी उनके योग व्यवसायीकरण की तरफ इंगित करती है। आज वे नमक, शरबत टूथब्रश तथा अचार सहित विभिन्न छोटी-छोटी दैनिक उपयोग की वस्तुओं की भी बिक्री करने लगे। सुना जा रहा है जल्द ही वे मिनरल वाटर बनाने का भी संयत्र लगाने जा रहे है।
स्वामी जी के योग आसन तथा प्राणायाम के ज्ञान को जनता ने सिर ऑखों पर बैठाया। उनके प्रवचन से लेकर दन्त मंजन तक समाज ने स्वीकार किये। परन्तु राजनीति में भाग्य आजमाने का फैसला उनके लिए निश्चित ही मुश्किले खड़ी करेगी। वे किस प्रकार रजनीति में शुचिता की बात करेंगे। क्या जनता उनसे यह नहीं पूछेगी उनका इतना बड़़ा आर्थिक ताना-बाना किस सामाजिक शुचिता की उपलब्धि है।
स्वामी जी जिस प्रकार बीमारों का इलाज करते-करते भगवा वस्त्रों की आड़ ले राजनैतिक जनसमर्थन प्राप्त करने का प्रयास एवं प्रधानमंत्री पद की लिप्सा पाले अपने जनकल्याण के स्वरूप का व्यापारीकरण एवं अब राजनीतिकरण किया है। समाज सब देख रहा है। जिस तरह बाबा ने वर्ष 2014 में होने वाले आम लोकसभा चुनाव में सभी 542 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करने की घोषणा की है। इस प्रकार की घोषणा किसी भी एक व्यक्ति ने पूर्व में भारत के इतिहास में नहीं की। उनकी व्यवस्थित राजनैतिक तैयारियों को देखते हुए ऐसा लगता है उनके पीछे कई बड़े समूह है जो देशी भी हो सकते है तथा विदेशी भी। बाबा की योग कक्षाओ, आयुर्वेदिक दवाओं, दिनचर्या की साधारण वस्तुओं से लेकर योग साहित्य तक की व्यवस्थित मार्केटिंग उक्त शक को और पुख्ता करती है। उक्त व्यवस्था में बाबा के विश्वस्त साथी बालकिशन महाराज जी का नाम आता है। परन्तु मार्केटिंग ऐसे कठिन विषय को महज एक व्यक्ति संचालित कर रहा है, जो समझ से परे है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय राजनीति में जहॉ काग्रेस पार्टी स्वाधीनता के रथ पर सवार होकर आयी वहीं जनसंघ (वर्तमान भाजपा) ने प्रखर राष्ट्रवाद तथा हिन्दुत्व के साथ राजनीति का दामन पकड़। जय प्रकार प्रकाश नारायण जी ने युवाओं के साथ अपनी राजनैतिक पारी खेली वही कम्युनिस्ट मजदूरों के सहारे राजनैतिक अखाड़े में अपनी उपस्थिति बनाये है। बात एकदम स्पष्ट है हर दल के साथ एक न एक महत्वपूर्ण समाज जुडा है या था। जो उनके आधार मत की तरह हमेशा उनके साथ खड़ा रहा। हर राष्ट्रीय दल का अपना एक गौरवशाली इतिहास है न कि स्वामी रामदेव जी की तरह आसन, भाषण, तथा अन्त में शासन की अभिलाषा वाली सिर्फ बेचैनी।
बाबा रामदेव अपनी योजना भर पूरा प्रयास कर रहे है कि उनकी राजनैतिक पारी की शुरूआत दमदार तरीके से हो। उनसे कोई छोटी सी चूक भी न हो जिसका परिणाम उन्हे भुगतना पड़े। इसीलिए देश में 18 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं पर उन्होने प्रथम डोरे डालने प्रारम्भ किये। मुस्लिम उलमाओं से सम्पर्क उनकी मुस्लिम घेरे बन्दी का प्रथम चरण था। वैश्विक स्तर पर अपनी कट्टर छवि के लिए मशहूर देवबंद मदरसे में उनका जाना, अपने उद्बोधन का प्रारम्भ कुरान शरीफ की आयातों से करना उनकी राजनैतिक योजना का हिस्सा थी।
इसी वर्ष उनकी एक देशव्यापी आन्दोलन की तैयारी भी है। भारत स्वाभिमान ट्रस्ट जिसकी राजनैतिक इकाई अगला लोकसभा चुनाव लडे़गी। मजे की बात है केसरिया वस्त्र धारण किये स्वामी रामदेव ने अपनी राजनैतिक पार्टी का ध्वज वाहक हिन्दु धर्म को नहीं बनाया है। उन्हे भय है हिन्दू धर्म का विषय आते ही मुस्लिम मतदाता भड़क न जाये।
भारतीय संस्कृति में गुरू के स्थान को ईश्वर से भी उच्च आसन प्रदान किया गया है। वैश्विक योग गुरू के रूप में स्थापित रामदेव जी महाराज स्वयं को गुरू कहलाने में गौरवान्वित महसूस करते है। परन्तु स्वयं उनके गुरू शंकर देव जी कहां हैं। कभी उनके मुंह से अनायास भी नहीं निकलता इस भय से कि कहीं उनकी लोकप्रियता मे वे हिस्सेदार न हो जाये।
एक पुरानी कहावत है तेज दौड़ने वाला व्यक्ति उतनी ही तेजी से गिरता है। ऐसा लगता है मानेा स्वामी जी के साथ भी ऐसा ही कुछ घटित होने वाला है। वास्तव में रामदेव जी की माया का इन्द्रजाल समाप्त होने के कगार पर है। जिसका अन्तिम चरण उनके मन में भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर रहा है। रामदेव जी से पहले भी बडे़-बडे़ स्वामी हुए। ओशो रजनीश जिनके पास धन-धर्म तथा समाज का एक बड़ा वर्ग था। उन्होने तो स्वयं को भगवान तक कहला लिया था। महेश योगी जिनका मुख्यालय हालैण्ड में था उनके शिष्यों में रामनाथ गोयनका से लेकर सत्ता के ऊॅचे-ऊॅचे लोग थे। परन्तु इस प्रकार का स्वप्न इन्होने भी नहीं देखा। कर्ण के द्वारा कुण्डल कवच का दान हो या रावण द्वारा सीता माता का छला जाना। भारतीय समाज हमेशा धर्म की ओट में ही ठगा गया है। बाबा राम देव जी ने संत वेश का उपयोग व्यापार में किया जिसे अब राजनीति मे करना चाहते है। जो निन्दनीय है। देश की जनता की परख बहुत तीखी होती है। वह समय आने पर अपना काम अवश्य करती है। आने वाला समय स्वामी जी के दिवास्वप्न को धूलधूसरित करेगा। उनके सफल योग गुरू से सफल व्यापारी उसके बाद उनकी प्रधान मंत्री पद की लालसा उन्हे लोकप्रियता के अन्तिम पड़ाव पर पहुंचा रही है।
राघवेन्द्र सिंह