Thursday, July 01, 2010

गर्व से कहो हम वर्जिन (नहीं) हैं...

हाल ही में किसी अंग्रेज़ी अखबार में एक ख़बर पढी कि पाकिस्तान की आधुनिक सड़कों पर कुछ अलग किस्म के बैनर और होर्डिंग्स इन दिनों खूब दिखने लगे हैं । इन होर्डिंग्स के ज़रिए महिलाओं को लुभाने की कोशिश की जा रही है। ये विज्ञापन हैं चिकित्सा विज्ञान द्वारा वर्जिनिटी बचाए रखने के तरीकों के !  हाइमन सर्जरी या हाइमनोप्लास्टी तकनीक के ज़रिए उन महिलाओं का कौमार्य यानी वर्जिनिटी बरकरार रखने में मदद मिलती है जो शादी के पहले सेक्स संबंध बनाती हैं और चाहती हैं कि उनके संबंधों का पता उसके पति को न चले ताकि वैवाहिक जीवन में कोई बाधा न आए । ऐसे में हाइमन सर्जरी तकनीक 40-50 हज़ार रुपये में ' कुंवारेपन' की गारंटी देती है। एक तरह से रुढ़िवादी देशों में ये तकनीक महिलाओं के लिए हथियार की तरह है जो सेक्स की आज़ादी भी ले सकती हैं और फिर सामान्य वैवाहिक जीवन भी गुज़ार सकती हैं। बाद में जब कुछ साथियों से पूछा तो पाया कि भारत में भी ये तकनीक ठीकठाक लोकप्रिय है। मुझे इसके बारे में पता नहीं था। (और न ही इसका कोई आंकड़ा कहीं से मिल पाया है)
इसीलिए जानकर हैरत भी हुई और उत्सुकता भी। हैरत इसीलिए कि क्या सचमुच कट्टर, तालिबानी (या फिर भारत जैसे रुढिवादी)देशों की महिलाएं सेक्स को लेकर इतनी सजग हो गई हैं कि वो अपनी पसंद से संबंध भी बनाएं और फिर बाद में दकियानूसी सोच वाले समाज से बचाकर इस सच पर पर्दा डाल दें?  उत्सुकता इसीलिए कि क्या सेक्स सचमुच इतना 'आसान' और  'हल्का' विषय हो गया है कि  जब चाहा किया और फिर भुला  दिया ।  पता नहीं।
कुछ महीने पहले मध्यप्रदेश के शहडोल में शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने कन्यादान योजना के तहत एक सामूहिक विवाह का आयोजन किया था। शादी से ठीक पहले मंडप से दुल्हनों को उठाकर मेडिकल टेस्ट करा दिया गया । ये टेस्ट कौमार्य परीक्षण का था। मतलब, ये जांचने की कोशिश कि कौन-सी लड़की वर्जिन है और कौन नहीं ! मुझे नहीं मालूम उस टेस्ट के बाद उन जोड़ों का क्या हुआ। मुझे नहीं मालूम उनमें से कितनी लड़कियों ने इस कौमार्य परीक्षण को समझा भी होगा। और कितनों को हाइमनोप्लास्टी जैसी मेडिकल तकनीक के बारे में पता होगा जो इस परीक्षण से पहले वो करवा चुकी होंगी। मगर, इतना मालूम है कि उस परीक्षण के लिए सिर्फ दुल्हनें ही आई थीं, दूल्हे नहीं।

सवाल ये है कि वर्जिनिटी को लेकर सारी मुश्किलें लड़कियों से ही क्यों जुड़ी हैं। क्या लड़कों को वर्जिनिटी छिपाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। क्या उन्हें मालूम होता है कि वर्जिनिटी से जुड़ा सवाल भारत में अब भी लड़की (पत्नी) शायद ही लड़के (पति)  से पूछे। या फिर, उन्हें इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता कि लड़की उसके 'चरित्र' के बारे में क्या सोचती है। वैसे भी लड़कों की वर्जिनिटी मापने का कोई तरीका शायद है भी नहीं । तो उन्हें छिपाने की ज़रूरत भी क्या है।
दरअसल, भारत जैसे देश में समाज का दोहरापन शुरू से रहा है। लड़के और लड़की के लिए नैतिक मापदंड अलग-अलग हैं। देहरादून की एक दोस्त (महिला) से इस बारे में राय ली तो उसने कहा कि शहर में हर लड़का चाहता है कि एक लड़की का साथ उसे ज़रूर मिले। लड़की जो खुलकर बातें कर सके, सब कुछ शेयर कर सके, मतलब 'इज़ी-गोइंग गर्ल' (ये मेरी दोस्त का इजाद किया हुआ शब्द है)। मगर, जब शादी की बात आएगी तो कैसी भी लड़की चल जाएगी, सिवाय उस इज़ी-गोइंग  गर्ल के ! 
ये लड़कियों के लिए समाज का पैमाना है जो उसकी सब खूबियों को एक झटके में दरकिनार कर सकता है, अगर उसे ये पता चल जाए कि 'लड़की' ने शादी से पहले 'आज़ादी' का अपराध किया है।
फिर, ऐसे समाज में मेडिकल साइंस का सहारा बुरा विकल्प तो नहीं है। क्या आधुनिक समाज का रास्ता देह की आज़ादी से होकर नहीं जाता है?  आप क्या सोचते हैं?

निखिल आनंद गिरि

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13 बैठकबाजों का कहना है :

himani का कहना है कि -

शादी के पहले की आजादी नामक जो कॉन्सेप्ट आज भीड़ भरे शहरों की तनहाईयों की वजह से इजाद किया गया है उसकी वजह ये धारणा भी है कि शादी एक बंधन है। अगर इजी गोइंग गलॆ को गो बैक करने के तात्परय की बजाए उसके साथ चलने के उद्देश्य से ही साथ लिया जाए तो आजादी और बंधन के बीच की खाई अपने आप भर जाएगी। लेकिन आज प्रेम, इश्क और मोहब्बत नामक शब्द डायनासोर की तरह हो गए हैं ठेठ अंग्रेजी का आईलवयू बचा है जो बना ही है पहले तन्हाई मिटाने के लिए फिर तन्हा छोड़ जाने के लिए। ऐसे समय जब एक दूसरे को यूज करना एक शाश्वत सत्य बन गया हो तब बाजार और पूंजी को सिर पर बिठाए चल रही इस दुनिया में गरभ निरोधक की गोली से लेकर हाइमनोप्लास्टी की तकनीक तक हर चीज संभव है और इसका बिकना इसलिए तय है क्योंकि इंसानों के नाम पर उपभोक्ता इजाद किए जा रहे हैं।
हालांकि आपकी आखरी लाइनों को पढ़कर आपका विचार पूरी तरह समझ नहीं आया


ऐसे समाज में मेडिकल साइंस का सहारा बुरा विकल्प तो नहीं है। क्या आधुनिक समाज का रास्ता देह की आज़ादी से होकर नहीं जाता है?

Prem Chand Sahajwala का कहना है कि -

निखिल जी बहुत साल पहले मैंने एक सिंधी उपन्यास पढ़ा था जिस में नव-विवाहित जोड़ा सुहाग रात मनाने के बहाने अपना अपना अतीत बता कर रात बिता रहा था. दूल्हे महाराज ने कहा कि शादी से पहले उस का एक लड़की से बहुत गहरा प्यार था पर जब शादी का समय आया तो दूल्हा महाशय की माँ ने अडंगी डाल दी कि शादी होगी तो मेरी मर्ज़ी पर नहीं तो मैं स्टोव जला कर अपने आप को फूंकती हूँ. दुल्हन का भी दिल किया कि वह अपने जीवन साथी के प्रति वफ़ादारी के तौर पर सब कुछ बता दे. उसने स्पष्ट बताया कि कॉलेज से ही उस का प्यार अपने एक सहपाठी से चल रहा था पर पढाई पूरी होते ही वह अमरीका चम्पत हो गया और उस के पिता ने फिर उस की यहाँ शादी करा दी. निखिल जी बस, यहीं से उपन्यास शुरू हो गया और बाकी सारे उपन्यास में दुल्हन की तकलीफें दिन – ब - दिन बढ़ती गई क्यों कि दूल्हे महाशय कि यह पसंद नहीं था कि उस की पत्नी का ऐसा ‘अपवित्र’ अतीत हो. उपन्यास के चरम पर दुल्हन अपने मायके की राह पकडती है और घर पहुँचते ही उस का पिता उसे थप्पड़ रसीद करता है कि दूल्हे को तुम्हारा पुराना संबंध पता कैसे चला? यानी यह दोहरापन भारत में बरसों पुराना है, आप तो सेक्स की बात करते हैं, उस ज़माने तो प्यार में सेक्स हुआ हो, ज़रूरी नहीं था. इसलिए समाजशास्त्रियों ने सभी भारतीय लड़कियों को शिक्षा दी है कि वे चाहे बूढ़ी हो जाएँ, अपने पतियों को अपने विवाह-पूर्व प्रेम संबंध न बताएं, पति चाहे डींग हांकता कई इश्किया किस्से बखानता फिरे. क्यों कि बुढापे में भी भारतीय पति महाराज को अपनी बूढ़ी बीबी का विवाह पूर्व संबंध पता चले तो महाशय चैन से नहीं मर पाएंगे ... (जारी).

Prem Chand Sahajwala का कहना है कि -

...मध्य-प्रदेश की खबर पढ़ कर पूरा विश्वास नहीं आया. सामूहिक विवाह में सब की जानकारी के बीच दुल्हनों का ‘पवित्रता’ टेस्ट शायद अमानवीय हो. अर्थात एन विवाह के क्षण ही उन सब को शक के घेरे में खड़ा किया गया. यह भी मैंने नहीं सुना कि प्रबंधित विवाह में लड़के अपनी मंगेतर का कोई ऐसा टेस्ट कराते हैं. यदि ऐसी डिमांड लड़कों से होती है तो लड़की को इनकार कर के यह कहना चाहिए कि मेरी ज़बान ही मेरा टेस्ट है बस. पर टेस्ट कराने का रिवाज है, यह भी संदेह-जनक सा है. आज लड़के लड़कियां कॉलेज जाते हैं, नौकरी करते हैं और जीने के लिए समुचित आज़ादी उन्हें बतौर अधिकार के मिली हुई है, सो यह संभव है कि कोई भी लड़की जो विवाह कर रही हो, उसने विवाह से पहले कहीं सेक्स संबंध रखे हों. यह समझ लड़कों को पैदा करनी पड़ेगी कि अपनी दुल्हन के अतीत को जाने बिना वे उन्हें जीवनसाथी मानें और यह मान कर चलें कि विवाह-पूर्व लड़की ने संभवतः सेक्स संबंध कहीं रखे भी हों. पति की इतनी डिमांड काफी है कि फेरे लगने के बाद हम दोनों एक दूसरे के प्रति वफादार रहेंगे क्यों कि यदि सेक्स संबंध रखने का उन लड़कों को अधिकार था जिन के साथ हमारी बीबी ने सेक्स संबंध रखा तो इन लड़कियों को भी अधिकार होना चाहिए. अब यह तो है नहीं कि एक अविवाहित लड़का-लड़की सेक्स का आनंद ले रहे हैं तो लड़का तो ठीक कर रहा है और लड़की गलत कर रही है! यदि लड़कों में ऐसी समझ आ जाएगी तो किसी भी घर में बीबी के अतीत को ले कर कलह नहीं पैदा होगी, बशर्ते कि अतीत अतीत ही हो और वर्तमान पर उस की छाया न पड़े. यूं यह सवाल भी उठता है कि विवाहित दम्पति भी बड़ी बड़ी नौकरियां करते हैं जहाँ विवाहित नारी के भी पुरुष मित्र होते हैं, तब यह संभावना भी बनी रहती है कि पत्नी के कहीं बाहर संबंध बन गए तो क्या स्थिति होगी. शायद इस में भी नारी-पुरुष को बराबरी पर रखा जाए तो ही न्याय होगा, क्यों कि पुरुष बाहर आसानी से संबंध रखता है जब कि नारी बहुत दबे पाँव आगे बढ कर कभी कभी अपनी इच्छा की शिकार हो चुकी होती है.

Aruna Kapoor का कहना है कि -

आपने सही फरमाया निखिलजी!... शादी की जब बात चलती है तो वर्जिनिटी की मांग हंमेशा लड्कियों से ही की जाती है!... समाज का यह सदियों पुराना चलन है!.. अब जमाना बदल गया है!...लड्कियां लड्कों के बराबर हर क्षेत्र में खडी है,तो वर्जिनिटी की मांग उनसे करना कहां तक जायज है?...लेकिन समाज की मानसिकता में कोई फरक आया नहीं है!... दहेज का राक्षस आज भी लड्कियों को निगल ही रहा है!... माता-पिता भी लड्का और लड्की में फरक कर ही रहे है!... स्त्री भ्रूण हत्याएं भी सामने आ रही है!

...ऐसे में सर्जरी का सहारा ले कर वर्जिनिटी का दिखावा अगर लड्कियों को करना पड्ता है तो...यह उनकी बेचारगी के सिवाय कुछ भी नहीं है!

निर्मला कपिला का कहना है कि -

जल्दी मे हूँ मगर आपने सवाल बहुत अच्छा उठाया जिसका जवाब शाय्द जल्दी हे बदलती हुयी परिस्थितियां देंगी। मगर हर सवाल पर लडकी ही कटघरे मे खडी मिलेगी और पुरुश्ग सवाल पूछते। "हाँ" या"न" दोनो ही पुरुषों को मंजूर नही होगा क्यों कि पहले मे भी वो बराबर का हिस्सेदार है और दूसरे मे हिस्सेदार होना पडेगा। बहुत अच्छा लगा आलेख।अभार।

Divya Prakash का कहना है कि -

बहुत अच्छा निखिल ....
बहुत दिनों बाद आज आपने लिखवा ही लिया मुझसे ...
मैंने बहुत पहले ये कहीं पढ़ा था ... Lets accept this fact … . Virginity is not DIGNITY it’s just lack of opportunities!!
मुझे ये बात बड़ी सही लगी ..थी..तब भी ,अब भी ...लड़के के लिए भी… लड़की के लिए भी ....
मुझे याद है २-३ साल पहले इंडिया टुडे ने की कवर स्टोरी थी ये “हाइमन सर्जरी “
Movie “दिले से” में बड़ी मासूमियत से प्रीती जिनता शाहरुख़ खान से पूछती है "ARE U VIRGIN ??”
रही बात समाज के दोहरेपन की तोह वो हमेशा से रही है ..लेकिन अच्छी बात ये है की अब्ब धीरे धीरे समाज खुल रहा है ...EASY GOING GALS के सहारे ही सही ....
हिमानी जी ने लिखा “ ऐसे समय जब एक दूसरे को यूज करना एक शाश्वत सत्य बन गया हो तब बाजार और पूंजी को सिर पर बिठाए चल रही इस दुनिया में गरभ निरोधक की गोली से लेकर हाइमनोप्लास्टी की तकनीक तक हर चीज संभव है और इसका बिकना इसलिए तय है क्योंकि इंसानों के नाम पर उपभोक्ता इजाद किए जा रहे है”
और हिमानी main आपकी एक भी बात से सहमत नहीं ..हम Sales and marketing वालों पे हमेशा ये इलज़ाम लगता है की हम समाज को corrupt कर रहे हैं ,
“गर्भ निरोधक की गोली और हाइमनोप्लास्टी “जरुरत है समाज की ... हम लोग (sales and marketing wale) बस जरुरत को पूरा कर रहे हैं ....
This is very strong line “इंसानों के नाम पर उपभोक्ता इजाद किए जा रहे हैं” … उपभोक्ता यानि Consumer….Consumer does not mean he/she has done some wrong thing…
कोई गर्भ निरोधक गली अगर खरीद रहा है...तो कहीं न कहीं उसकी कोई जरुरत थी ..उस “उपभोक्ता” को Negative sense में न लें….It’s not crime to be consumer (“उपभोक्ता) .Plz correct your basics…
और हाँ मुझे लगता है आधुनिक समाज का रास्ता देह की आज़ादी से होकर ही जा सकता है ..और जाना भी चाहिए .....और उसमे मुझे कोई बुराई नज़र नहीं आती ...न ही लड़के के लिए ना ही लड़कियों लिए ...
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अपना दिमाग तो चकरा जाता है इस दुनिया की बातों और तौर-तरीकों के बारे में सोचकर..असल में कहाँ क्या हो रहा है..देश या उसके समाज में वह लोगों की बिचारधारा से नियंत्रित होता है..लेकिन एक लड़की या औरत पर ही उंगली क्यों उठती है, भाई..जरा इस बारे में दे कोई अपनी सफाई..समय बदला हवा बदली..और धीरे-धीरे शर्मीली लडकियाँ भी जरा तेज-तर्रार हो गयीं..इसमें समाज का भी कसूर है..काफी पहले मेरा मतलब है कि हमारे समय में तो अगर किसी लड़की को किसी लड़के से बातचीत भी करते कोई देख लेता था कालेज या यूनी में तो लोग कहते थे कि लड़की बदचलन है..लेकिन ..फिर समाज ने लड़के की बराबरी की लड़कियों की माँग की शादी के लिये..तो फिर पढ़ाई-लिखाई में बराबरी करते-करते लडकियाँ लड़कों से और बातों में भी बराबरी करने की हिम्मत करने लगीं...बात आगे बढ़ती गयी..अब चाहें भारत की माडर्न औरत हो या पकिस्तान की...वह सब लड़कों की हरकतों व आदतों की होड़ कर रही हैं..फेसबुक पर झाँकिये जरा तो असली झाँकी देखिये..कि पाकिस्तान की लड़कियाँ और लड़के कितने फारवर्ड बिचारों वाले हो रहे हैं..कि बिश्वास ही नहीं होता..वही दशा भारत की भी..जिस तरह का पहनना-ओढ़ना व उनकी सोच है उसमें वह पश्चिमी देशों को भी पछाड़ रहे हैं..खता लड़कों की भी तो है कि बराबरी करने वाली लड़की चाहते हैं..और जब लडकियाँ वैसी बनने लगतीं हैं...तब उनसे प्रूव करने को कहा जाता है..लेकिन लड़के खुद उतने प्योर क्यों नहीं बनना चाहते...हमारे समय की औरतों के बिचार और तरह के थे..कि पढ़-लिख कर भी अपने को कुछ बातों से दूर रखें अपनी व परिवार की भलाई के लिये..लेकिन आज की पीढ़ी को कैसे बताया जाये इन सब बातों के बारे में...?

अति Random का कहना है कि -

दिव्य प्रकाश जी मुझे मारकेटिंग और सेल्स की कोई जानकारी नहीं है औऱ न हीं मैनें ये बात सेल्स और मारकेटिंग से जुड़े प्रोफेशनलस पर कोई टिका-टिप्पणी करते हुए लिखी। इंसानों के नाम पर उपभोक्ता इजाद किए जा रहे हैं इसे आपने शायद अपने प्रोफेशन से जोड़ कर देख लिया जबकि यहां बात एक पूरी व्यवस्था की हो रही है जिसमें आपकों आजादी के नाम पर अराजकता की ओर धकेला जा रहा है और फिर गिर कर संभलने के लिए सहारों और सुविधाओं का प्रोडक्शन करके उन्हें बेचा जा रहा हैं। आप मेरे विचार से सहमत नहीं है तो भी अच्छा ही है इस बहाने बहस एक तरफा होने से बच रही है।

Anonymous का कहना है कि -

क्या यह बेहतर नहीं है कि पवित्र शब्द 'देह' की दहलीज से ही परे रखा जाए? देह कोई महीना दो महीना नहीं, बरसों जीती है. बरसों प्यासी रहना तो उस से रहा, और फिर बरसों एक ही व्यक्ति उपलब्ध हो यह भी हमेशा संभव नहीं. क्यों न हम नारी पुरुष दोनों की देह से पवित्रता नाम की यह छड़ हटा दें? यानी free sex? पर उस परिस्थिति की अपनी मुसीबतें हैं. इसीलिये गोपनीयता बड़ी चीज़ है भाई. अब केवल यही और कहूँगी कि समझने वाले समझ गए, जो ना समझे वो अनाड़ी है... उर्मिल शर्मा

Divya Prakash का कहना है कि -
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Divya Prakash का कहना है कि -

हिमानी . फिर एक भ्रामक बात कही आपने ....”आजादी के नाम पर अराजकता की ओर धकेला जा रहा है और फिर गिर कर संभलने के लिए सहारों और सुविधाओं का प्रोडक्शन करके उन्हें बेचा जा रहा हैं”
फ़र्ज़ करिए ..मेरी शादी हो गयी .और किसी कारन वश मुझे अपनी अर्धांगिनी को ....गर्भ निरोधक गोली देने की जरुरत पड़ती है... तो इसमें कौन सी अराजकता फ़ैल जाएगी ....गिर के संभलने के लिए की गयी कोई भी व्यवस्था समाज एक हिस्से की जरुरत को पूरा करती है..तो उसके production में कोई बुराई नहीं है .. ऐसा मुझे लगता है ..
हाँ इस बात से मैं सहमत हूँ की बहस एक तरफ़ा न हो ...
उर्मिल शर्मा आपने बहुत सटीक बात कही ....”क्यों न हम नारी पुरुष दोनों की देह से पवित्रता नाम की यह छड़ हटा दें? यानी free sex? पर उस परिस्थिति की अपनी मुसीबतें हैं”
इसलिए जरुरी है ...की हमारी पीढ़ी उस मुसीबत को स्वीकार करे ...अपने जवाब भी लिखे.अपने नए मायने भी सुनाये दुनिया को ...आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ....और जो बीत रही हैं उनके लिए भी....

सादर
दिव्य

Anonymous का कहना है कि -

मैं इस बात से इंकार करता हूँ। अगर किसी लड़की को सेक्स की इतनी ज्यादा जरुरत है तो वो विवाह कर सकती है। जिसको करियर बनाना होता है वो शादी के बाद भी बना सकते हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे देश की सभ्यता कुछ सौ साल की है। ये इससे काफी पुरानी है। हमारे पूर्वजों ने पहले ही सारे तरीके अपना के देख लिए थे। और जो तरीका उन्हें सबसे ठीक लगा उसे अपनी पीढ़ी को सिखाया।
पाश्चात्य सभ्यता अभी ज्यादा पुरानी नहीं है। वे अभी भी सीख रहे हैं। फ्री सेक्स होने की वजह से ही वहां ज्यादातर लोगों क्र तलाक हो रहे हैं। वो लोग संस्कारो और संबंधों में भारत से ईर्ष्या रखते है ।
वैसे भी विवाह पूर्व सम्बन्ध बनाना यदि इतना ठीक है तो आप अपने भाई बहनों को इसके लिए प्रेरित क्यों नहीं करते । या फिर अपने माता पिता को बता कर करें। या फिर शादी से पहले ही एक दूसरे से सम्बन्ध बना कर शादी का फैसला लें। परंतु आप ये सब नहीं करेंगे। क्योंकि आप ये अपनी अंतरात्मा से जानते हैं कि यह अनैतिक है। अगर नारी को सशक्त बनाने के नाम पर आप ऐसा कह रहे है तो ये सरासर मूर्खता है। क्या नारी सशक्त तभी होगी जब वो कई मर्दों के साथ संबंध बना ले। और शादी के बाद भी इस बात की क्या गारंटी है कि वो किसी और से सम्बन्ध ना बनाये क्योंकि उसे इसकी पहले से ही आदत थी। या फिर अपने पुराने प्रेमी को कोई जरुरी नहीं है कि भूल ही जाये या उस से छुप के न मिले। या फिर पुराना प्रेमी संबंध बनाने का दबाव न डाले। या अचानक से कभी डीएनए टेस्ट में ये पता चले की जिसे आदमी अपनी संतान समझ के पाल रहा था वो उसकी संतान नहीं । अगर पुरुष कोई गलती कर रहा है तो इसका ये तात्पर्य नहीं है कि नारी को वह गलती करने का हक़ मिल गया है।
इन बंदिशों का ये फायदा है कि आदमी जिस संतान पे अपना पूरा जीवन बिना किसी भेद भाव बिना किसी आकांछा के न्योछावर कर रहा हो वो उसी की संतान हो।
बाकि मैं व्यक्तिगत तौर पे नारी का बहोत सम्मान करता हु। मेरे घर में भी लडकिया हैं जिन्हें मैं बहुत स्नेह करता हूँ। परंतु यदि कुछ छण के शारीरिक सुख के लिए उन्हें ऐसा अनैतिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है तो मैं इसका विरोध करता हूँ।

Anonymous का कहना है कि -

एकदम सही कहा भाई आपने क्या गॅरेंटी है की जो लड़की शादी से पहले संबंध बना सकती है वो शादी के बाद संबंध न बनाये गैर मर्द से। क्या प्यार का नाम देकर वासना की पूर्ती करना सही है? गलती सिर्फ लड़को की नही लड़कियों कई भी होती है कोई जबरदस्ती संबंध तो नहीं बनाया होगा किसी ने उसके साथ जो किया वो दोनों की मर्ज़ी
से।

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