Tuesday, June 29, 2010

पृथ्वी पर इस्लाम का समय अब पूरा हो चुका है ?

अमेरिका में कार बम विस्फोट के सिलसिले में पाक-अमेरिकी नागरिक गिरफ्तार. ये कुछ दिनों पहले की खबर है और इस तरह की खबरें अमूमन हर थोड़े दिन में सुनने में आती हैं. दुनिया धीरे-धीरे दो भागों में बंटती जा रही है - एक इस्लामिक और एक गैर-इस्लामिक. ये सच है कि हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता और ये भी सच है कि दुनिया का 8० फीसदी आतंकवाद इस्लामिक आतंकवाद है. मेरी बात को अन्यथा कतई न लिया जाए, मैं एक धर्म के रूप में इस्लाम का सम्मान करता हूँ. मैं पैगम्बर मोहम्मद के जीवन से वाकिफ हूँ. मोहम्मद का पूरा जीवन लड़ाइयों में बीता लेकिन फिर भी उनका सन्देश शांति और भाईचारे का था. लडाइयां उनकी मजबूरी थी क्योंकि वो समय, वो परिस्थितियाँ कुछ और थी. आदमी जंगली था और आपसी लड़ाइयों में उलझा हुआ था, उसे एकजुट करने के लिए उन्होंने सबको जीता. लेकिन समय बदलने के साथ बहुत सी चीज़ें बेकार हो जाती हैं, सिर्फ वस्तुएं ही नहीं, विचार और क़ानून-कायदे भी बेकार हो जाते हैं. वो समय कब का बीत चुका. उस समय की दुनिया और आज की दुनिया में ज़मीन-आसमान का फर्क आ चुका है लेकिन इस्लाम के अनुयायी इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं, वे वक़्त के साथ चलने को अधर्म मानते हैं. वे आज भी वही जंगली और बर्बर जीवन शैली अपनाए रहना चाहते हैं. उनका समय, उनके विचार जड़ हो गए हैं, एक ही जगह रुक गए हैं और बहता पानी अगर रुक जाए तो वो सड़ जाता है. यही हुआ है. गैर-इस्लामिक लोग अगर इस्लाम को न समझ पायें तो बात समझ में आती है लेकिन इस्लाम का दुर्भाग्य ये है कि उसके अनुयायी ही उसे नहीं समझ पाए. आज क्या इस्लामिक और क्या गैर इस्लामिक सब उसे जिहाद का पर्याय ही मानते हैं मानो अगर क़त्ले-आम न हो तो वो इस्लाम ही नहीं है. मैं ऐसा नहीं कहता कि सभी मुस्लिम उसे जिहाद मानते हैं लेकिन ऐसा मानने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है और समझ वालों की कम वरना पढ़े-लिखे और अच्छे घरों के नौजवान क्यों आतंकवादी बनाते. इस्लाम अपने शुद्ध रूप में खूबसूरत है लेकिन उस शुद्ध रूप को समझने वाले लोग कब के ख़त्म हो चुके जिस तरह अब हिन्दू धर्म के शुद्ध रूप को समझने वाले लोग भी कम होते जा रहे हैं. आज जो संस्कृति का झंडा उठाये हुए हैं वे कपड़ों को ही धर्म समझते हैं। उन्हें उसके उच्च मूल्यों का ज्ञान तो दूर, आभास भी नहीं है. वे ठीक इस्लामिक आतंकवादियों की कार्बन-कॉपी होते जा रहे हैं. खैर, हमारा विषय ये नहीं है, बात हो रही है इस्लाम की. सोचने वाली बात ये है कि अब जब दुनिया आगे की ओर बढ़ रही है ऐसे में इस्लाम का ये पिछड़ापन उसके लिए चुनौती है. कोशिश की जा सकती है कि उन्हें इस्लाम का सही अर्थ समझ में आये लेकिन जड़ हो चुकी बुद्धि में कुछ भी उतरना लगभग असंभव हो जाता है. तो क्या ऐसा कहा जा सकता है कि पृथ्वी पर इस्लाम का समय अब पूरा हो चुका है, उसे जो भलाई इंसान की करनी थी वो उसने कर दी और अब सिर्फ नुकसान ही उसकी झोली में बचा है जो उसके अपने ही लोगो ने डाला है.
इस्लामिक संस्कृति ने हमें बहुत सी खूबसूरत चीज़ें दी हैं इसमें कोई शक नहीं. बहुत सी समृद्ध कलाएं जैसे भवन निर्माण जिसका बेहतेरीन नमूना ताजमहल है. लेकिन ये सब इतिहास बन चुका है, मौजूदा स्थितियों में वो कुछ भी रचनात्मक नहीं दे रहा है बल्कि जो कुछ भी रचनात्मक है उसे ख़त्म कर रहा है.
इन परिस्थितियों में दो ही बातें हो सकती हैं, या तो मुस्लिम धर्म के कुछ ऐसे नुमाइंदे सामने आएं जो दुनिया को उसका सही मतलब समझाएं और उसे तरक्की के रास्ते पर ले जाएँ या फिर इस्लाम शांतिपूर्वक दुनिया से विदा हो जाए क्योंकि आखिर में जो बात मायने रखती है वो ये है कि इंसानियत बचनी चाहिए. मैं जानता हूँ कि मेरी बात व्यावहारिक नहीं है लेकिन फिर भी वो एक रास्ता तो है और एक बार बात सामने आ जाए तो पता नहीं कब वो जोर पकड़ ले. सारे फसाद की जड़ ये है कि धर्म को ज़रुरत से ज्यादा संजीदा बना दिया गया है. आखिर धर्म क्या है? वो जीने का एक तरीका है, या यूँ कहें कि शांतिपूर्वक जीने का तरीका है, अगर उसका ये बुनियादी उद्देश्य ही पूरा नहीं हो रहा है तो फिर वो क्यों है? एक बच्चा जब पैदा होता है तो वो किसी धर्म को साथ लेकर नहीं आता. सदियों पहले की दुनिया आज की तरह नहीं थी. तब लोग इस तरह जुड़े हुए नहीं थे. सबने अपनी-अपनी जगहों और परिस्थितियों के अनुसार अपने धर्म बनाए. आज पूरी दुनिया बहुत पास-पास आ गई है. ऐसे में बहुत सारे मतभेदों के साथ नहीं रहा जा सकता. जीने के नए रास्ते अपने आप सामने आते रहेंगे और ये इंसान को ही तय करना है कि कौन सा रास्ता इंसानियत के हक में है जिसे मंज़ूर किया जाए और किसे नकार दिया जाए. एक खूबसूरत सा ख़याल ये भी है कि सभी धर्मों की अच्छाइयों को लेकर एक विश्व-धर्म बने जिसे पूरी दुनिया के लोग माने तो दुनिया कितनी सुखी और सुन्दर हो.आखिर हर इंसान अदृश्य तारों से आपस में जुड़ा है, एक ही उर्जा ने सबको बाँध रखा है फिर अगर मनुष्यता का एक हिस्सा दूसरे को आहत करता है तो वो खुद भी चैन से कभी नहीं रह सकता.

अनिरुद्ध शर्मा

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31 बैठकबाजों का कहना है :

रंजन (Ranjan) का कहना है कि -

लगता तो ये ही है...

निर्मला कपिला का कहना है कि -

आखिर हर इंसान अदृश्य तारों से आपस में जुड़ा है, एक ही उर्जा ने सबको बाँध रखा है फिर अगर मनुष्यता का एक हिस्सा दूसरे को आहत करता है तो वो खुद भी चैन से कभी नहीं रह सकता.
सार्थक संदेश देता आलेख । धन्यवाद।

Prem Chand Sahajwala का कहना है कि -

1. लेख में इस बात से तो मैं सहमत हूँ कि कतिपय मुस्लमान अपने ही धर्म को समझने में असमर्थ हैं. पर शीर्षक में यह कहना कि पृथ्वी पर इस्लाम का समय अब पूरा हो चुका है. किसी भी धर्म को हम शाश्वत मानते हैं और उस के समाप्तप्राय होने की घोषणा अनुचित है. 2. मुहम्मद ने अपने समय सैकड़ों सुधार किये. मक्का में उस समय स्थति यह थी कि 'काबा' जो आज सब से बड़ी मस्जिद है, में 360 मूर्तियां थी और वे सब पैसा कमाने या लूटने तक का ज़रीया बानी हुई थी. जैसे आज मथुरा में बैठा हर पंडित दुकानदार लगता है वैसा ही हाल मक्का का भी था. लोगों से ज़बरदस्ती भी चढावे चढवाए जाते थे. लोंग पाने की बजाय रेत से नहाते थे और अपनी अँगुलियों के बीच एक खेल की तरह रेत को टिका कर अंदर मूर्तियों तक जाते थे. विशेष दिनों पर पूरे के पूरे परिवार सारे कपडे उतार कर परिक्रमा करते थे. मुहम्मद ने रेत की जगह पानी का इस्तेमाल सिखाया तथा परिक्रमा आज मुस्लिम लोंग हज के समय दो सफ़ेद वस्त्र पहन कर सभ्य तरीके से करते हैं. मुहम्मद ने उस समय की सब से कमाऊ 'तीन देवियाँ' समेत सब की सब मूर्तियां हटा दी थी.

Aruna Kapoor का कहना है कि -

कोई भी धर्म कभी गलत शिक्षा नहीं देता...गलत लोग, गलत आचरण द्वारा अपने अपने धर्मो की इज्जत पर कुठाराघात करतें है!... इस्लाम धर्म की रक्षा करने वाले नेक दिल इन्सान आज भी अपना कर्तव्य निभा रहे है!...इस्लाम धर्म की सुरक्षा के लिये, गलत लोगों की हरकतों पर अंकुश लगाना होगा!....

Anonymous का कहना है कि -

धर्म का उद्देश्य - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) की स्थापना करना ।
व्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिर बुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म के विरुद्ध किया गया कर्म, अधर्म होता है ।
व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
धर्म सनातन है भगवान शिव (त्रिदेव) से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
धर्म एवं उपासना द्वारा मोक्ष एक दूसरे आश्रित, परन्तु अलग-अलग है । ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों के हिसाब से किया जाता है ।
कृपया इस ज्ञान को सर्वत्र फैलावें । by- kpopsbjri

Anonymous का कहना है कि -

वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी आम मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार एवं मानवीय मूल्यों के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।

sandeep Bansal का कहना है कि -

ना ही तो इस्लाम कोई धर्म है और ना कुरान कोई इश्वरिये ग्रन्थ और ना मोहम्द कोई पगेम्बैर मोहम्मद ने अपनी लूट को जायज़ ठहराने और अपने काबिले के देवता "अल्लाह " को सबसे ऊँचा दर्ज़ा दिलवाने के लिए कुरान नाम की एक मौकापरस्त और मनघडत किताब की रचना की थी

sabr khan का कहना है कि -

allha hi sab ka malik hai vishvash nhi hai to kayamat kai din aapko pata chal jayaga mohammad / pegmbar ke dhra btaye raste par chlo nhi to dojak milege ALLHA sare jaan ka malik hai uska shukar gujar karo kuran shrif allha ke hukam se friste jibrael alesalam ke share duniya me bheje the y manghad kehnewalo ko ALLHA maf kar dena y nasamj ke hai ALLHA HU AKBAR AAMEN

Anonymous का कहना है कि -

Gallt

Anonymous का कहना है कि -

इस्लाम को आंतकवादी बोलते हो। जापान मे तो अमेरिका ने परमाणु बम गिराया लाखो बेगुनाह मारे गये तो क्या अमेरिका आंतकवादी नही है। प्रथम विश्व युध्द मे करोडो लोग मारे गये इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या अब भी मुस्लिम आंतकवादी है। दूसरे विश्व युध्द मे भी लाखो करोडो निर्दोषो की जान गयी इनको मारने मे भी कोई मुस्लिम नही था। तो क्या मुस्लिम अब भी आंतकवादी हुए अगर नही तो फिर तुम इस्लाम को आंतकवादी बोलते कैसे हो। बेशक इस्लाम शान्ति का मज़हब है।और हाॅ कुछ हदीस ज़ईफ होती है।ज़ईफ हदीस उनको कहते है जो ईसाइ और यहूदियो ने गढी है। जैसे मुहम्मद साहब ने 9 साल की लडकी से निकाह किया ये ज़ईफ हदीस है। आयशा की उम्र 19 साल थी। ये उलमाओ ने साबित कर दिया है। क्योकि आयशा की बडी बहन आसमा आयशा से 10 साल बडी थी और आसमा का इंतकाल 100 वर्ष की आयु मे 73 हिज़री को हुआ। 100 मे से 73 घटाओ तो 27 साल हुए।आसमा से आयशा 10 साल छोटी थी तो 27-10=17 साल की हुई आयशा और आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम ने आयशा से 2 हिज़री को निकाह किया।अब 17+2=19 साल हुए। इस तरह शादी के वक्त आयशा की उम्र 19 आप सल्ललाहु अलैही वसल्लम की 40 साल थी इन हिन्दुओ का इतिहास द्रोपती ने 5 पांडवो से शादी की क्या ये गलत नही है हम मुसलमान तो 11 औरते से शादी कर सकते है ऐसी औरते जो विधवा हो बेसहारा हो। लेकिन क्या द्रोपती सेक्स की भूखी थी। और शिव की पत्नी पार्वती ने एक लडके को जन्म दिया शिव की गैरमूजदगी मे। पार्वती ने फिर किसकी साथ सेक्स किया ।इसलिए शिव ने उस लडके की गर्दन काट दी क्या भगवान हत्या करता है ।श्री कृष्ण गोपियो नहाते हुए क्यो देखता था और उनके कपडे चुराता था जबकि कृष्ण तो भगवान था क्या भगवान ऐसा गंदा काम कर सकता है । महाभारत मे लिखा है कृष्ण की 16108 बीविया थी तो फिर हम मुस्लिमो एक से अधिक शादी करने पर बुरा कहा जाता । महाभारत युध्द मे जब अर्जुन हथियार डाल देता तो क्यो कृष्ण ये कहते है ऐ अर्जुन क्या तुम नपुंसक हो गये हो लडो अगर तुम लडते लडते मरे तो स्वर्ग को जाओगे और अगर जीत गये तो दुनिया का सुख मिलेगा। तो फिर हम मुस्लिमो को क्यो बुरा कहा जाता है हम जिहाद बुराई के खिलाफ लडते है अत्यचारियो और आक्रमणकारियो के विरूध वो अलग बात है कुछ मुस्लिम जिहाद के नाम पर बेगुनाहो को मारते है और जो ऐसा करते है वे मुस्लिम नही हैक्योकी आल्लाह पाक कुरान मे कहते है एक बेगुनाह का कत्ल सारी इंसानयत का कत्ल है। और सीता की बात करू तो राम तो भगवान थे क्या उनमे इतनी भी शक्ति नही कि वे सीता के अपहरण को रोक सके जब राम भगवान थे तो रावण की नाभि मे अमृत है ये उनको पहले से ही क्यो नही पता था रावण के भाई ने बताया तब पता चला। क्या तुम्हारे भगवान राम को कुछ पता ही नही कैसा भगवान है ये।और सीता को घर से बाहर निकाल दिया गया था तो लव कुश कहा से आये किससे सेक्स किया सीता ने बताओ।और इन्द्र देवता ने साधु का वेश धारण कर अपनी पुत्रवधु का बलात्कार किया फिर भी आप देवता क्यो मानते हो। खुजराहो के मन्दिर मे सेक्सी मानव मूर्तिया है क्या मन्दिर मे सेक्स की शिक्षा दी जाती है मन्दिरो मे नाच गाना डीजे आम है क्या ईश्वर की इबादत की जगह गाने हराम नही है ।राम ने हिरण का शिकार क्यो किया बहुत से हिन्दु कहते है हिरण मे राक्षस था तो क्या आपके राम भगवान मे हिरण और राक्षस को अलग करने की क्षमता नही थी ये कैसा भगवान है।हमे कहते हो जीव हत्या पाप है मै भी मानता हू कुत्ते के बेवजह मारना पाप है ।कीडी मकोडो को मारना पाप है पक्षियो को मारना पाप है। लेकिन ऐसे जानवर जिनका कुरान मे खाना का जिक्र है खा सकते है क्योकि मुर्गे कटडे बकरे नही खाऐगे तो इनकी जनसख्या इतनी हो जायेगी बाढ आ जायेगी इन जानवरो की। सारा जंगल का चारा ये खा जाया करेगे फिर इन्सान के लिए क्या बचेगा। हर घर मे कटडे बकरे होगे। बताओ अगर हर घर मे भैंसे मुर्गे होगे तो दुनिया कैसे चल पाऐगी। आए दिन सिर्फ हिन्दुस्तान मे लाखो मुर्गे और हजारो कटडे काटे जाते है । 70% लोग मांस खाकर पेट भरते है । सब को शाकाहारी भोजन दिया जाये तो महॅगाई कितनी हो जाएगी। समुद्री तट पर 90% लोग मछली खाकर पेट भरते है। समझ मे आया कुछ शाकाहारी भोजन खाने वालो मांस को गलत कहने वाले हिन्दुओ अक्ल का इस्तमाल करो

Anonymous का कहना है कि -

हिन्दु धर्म मे शिव भगवान ही नसेडी है तो उसके कावडिया भी नसेडी। जितने त्योहार है हिन्दुओ के सब बकवास।होली को लेलो मानते है भाईचारे का त्योहार होली पर शराब पिलाकर एक दुसरे से दुश्मनी निकाली जाती है।होली से अगले दिन अखबार कम से कम 100 लोगो के मरने की पुष्टि करता है ।अब दीपावली को देखलो कितना प्रदुषण बुड्डे बीमार बुजुर्गो की मोत होती है। पटाखो के प्रदुषण से नयी नयी बीमारिया ऊतपन होती है। गणेशचतुर्थी के दिन पलास्टर ऑफ पेरिस नामक जहरीले मिट्टी से बनी करोडो मूर्तिया गंगा नदियो मे बह दी जाती है। पानी दूषित हो जाता है साथ ही साथ करोडो मछलिया मरती है तब कहा चली जाती है इनकी अक्ल जीव हत्या तो पाप हैहम मुस्लिमो को बोलते है चचेरी मुमेरी फुफेरी मुसेरी बहन से शादी कर लेते हो। इन चूतियाओ से पूछो बहन की परिभाषा क्या होती है मै बताता हू साइंस के अनुसार एक योनि से निकले इन्सान ही भाई बहन हो सकते है और कोई नही। तुम भाई बहन के चक्कर मे रह जाओ इसलिए हिन्दु लडको की शादिया भी नही होती अक्सर । हमारे बनत नाम के गाव मे 300 जाट के लडके रण्डवे है शादी नही होती फिर उनका सेक्स का मन करता है वे फिर लडकियो महिलाओ की साथ बलात्कार करते है ये है हिन्दु धर्म । और सबूत हिन्दुस्तान मे अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा रेप होते है । किसी मुस्लिम मुल्क का नाम दिखा दो या बता दो बता ही नही सकते। तुम्हारे हिन्दुओ लडकियो को कपडे पहनने की तमीज नही फिटिंग के कपडे छोटे कपडे जीन्स टीशर्ट आदि पहननती है ।भाई बाप के सामने भी शर्म नही आती तुमको ऐसे कपडो मे थू ऐसे कपडो मे को देखकर तो सभी इन्सानो की ऑटोमेटिकली नीयत खराब हो जाती है इसलिए हिन्दु और अंग्रेजी लडकियो की साथ बलात्कार होते हे इसके लिए ये लडकिया खुद जिम्मेदार है।।और हिन्दु लडकियो के हाथ मे सरे आम इंटरनेट वाला मोबाइल उसमे इतनी गंदी चीजे थू और लडकियो को पढाते इतने ज्यादा है जो उसकी शादी भी ना हो पढी लिखी को स्वीकार कौन करता है जल्दी से पढने का तो नाम है घरवालो के पैसे बरबाद करती है और लडको की साथ अय्याशी करती है उन बेचारो का टाइम वेस्ट। इन चूतियाओ से पूछो लडकि इतना ज्यादा पढकर क्या करेगी।मर्द उनके जनखे हो जो औरत कमाऐगी मर्द बैठकर खाऐगे।सही कहू तो मर्दो की नौकरिया खराब करती है जहा मर्द 20000 हजार रूपये महीने की माॅग करे वहा लडकिया 2000 मे ही तैय्यार हो जाती हैबहुत हिन्दु गर्व के साथ कहते है कि हमारी गीता मे लिखा है कि ईश्वर कण कण मे विध्मान है ।सब चीजे मे है इसलिए हम पत्थरो को पूजते है और भी बहुत सारी चीजो को पूजते है etc. लेकिन मै कहूगा इनकी ये सोच बिल्कुल गलत है क्योकि अगर कण कण मे भगवान है तो क्या गू गोबर मे भी है आपका भगवान। जबकि भगवान या खुदा तो पाक साफ है तो कण कण मे कहा से विध्मान हुआ भगवान। इसलिए मै आपसे कहना चाहता हू भगवान हर चीज मै नही है बल्कि हर चीज उसकी है और वो एक है इसलिए पूजा पाठ मूर्ति चित्र सब गलत है कुरान अल्लाह की किताब है इसके बताये गये रास्ते पर चलो। सबूत भी है क्योकि कुरान की आयते पढकर हम भूत प्रेत बुरी आत्माओ राक्षसो से छुटकारा पाते है।हमारी मस्जिद मे बहुत हिन्दु आते है ईलाज करवाने के लिए । और मौलवी कुरान की आयते पढकर ही सभी को ठीक करते है । इसलिए कुरान अल्लाह की किताब है । जबकि आप वेदो मंत्रो से दसरो को नुकसान पहुचा सकते है अच्छाई नही कर सकते किसी की और सभी भगत पंडित जादू टोना टोटके के अलावा करते ही क्या है। जबकि कुरान से अच्छाई के अलावा आप किसी के साथ बुरा कर ही नही सकते। इसलिए गैर मुस्लिमो कुरान पर ईमान लाओ।

Anonymous का कहना है कि -

ham apne tevharo me masoom janvaro ki jaan nahi lete hai.
america ne chori se hamla nahi kiya tha japana pe.
tumahare muhammad ke uncle kiski pooja karte the.
muhammad duniya ka pehala homosexula tha.

tum log har non-muslim ko katuya nanane me lage go bas

Anonymous का कहना है कि -

झूठ के बोझ को संभालने के लिए मुसलमान कैसे रात दिन एक कर देते है ,एक आनलाइन डिबेट मे इसका नमूना देखिए :-
. 1) इस्लाम की पोल खुलने पर सबसे पहले मुस्लिम बोलते है कि ये सब तथ्यहीन आधारहीन है ,अज्ञानता है ,इस्लाम मे कोई जबरदस्ती नही है! अगर आप रैफरेंस देंगे वो सिरे से नकार देंगे और आपको पूरी तरह कुरान स्टड़ी करने को बोला जायेगा तभी रोशनी मिलेगी ! .
2)अगर आप कुरान और हदीसो के हवाले देंगे तो आपको बोलेगे कि तुमने आयते अधूरी समझी है ,आयतो को गलत संदर्भ मे लिया है और उन आयतो मे लडाई का मतलब उस समय के युद्ध से था । (यानि इससे मुस्लिम यह दिखाना चाहते है कि अब हम दुनियाभर मे जेहाद नही कर रहे है) .
3)अगर आप संपूर्ण आयतो और हदीसो का हवाला देंगे तो वो कहेंगे आपका अनुवाद गलत है और आपको अरबी सीखने के साथ आरिजनल वर्जन पढ़ने को बोला जायेगा ! .
4)अगर आप कहेंगे कि आप अरबी भी जानते है साथ ही आपके पास प्रमाणित अनुवाद और सारी जानकारी उन्ही प्रमाणित रिसोर्स से है जिससे सर्वश्रेष्ठ मुस्लिम स्कालर्स हवाला देते है ,तो मुसलमान कहेंगे कि हदीसे पढ़ना भी जरूरी है ... अगर आप हदीस से सच साबित करेंगे तो वे कहेंगे कुरान ही एकमात्र सच है ! .
5)इन सबके बाद अगर आप जारी रखते है तो वे इस मुद्दे से बात घुमाने के लिये दूसरे टापिक उठायेंगे जैसे गरीबी ,इंसानियत ,शांति ,फिलिस्तीन ,इजराइल ,अमेरिका .
6)अगर आप कहेंगे कि कुरान इंसान ने लिखी है तो वे Dr Bucalie की किताब का हवाला देकर सुनिश्चित करेंगे कि कुरान मे विज्ञान भी है ! .
7)जबकि असल मे Dr bucalie सऊदी अरब से पैसे लिया करता था और Dr bucalie को कई विशेषज्ञो ने गलत और झूठा साबित कर दिया है ! .
8)अब फिर मुस्लिम बोलेंगे कि ये सब वैस्टर्न मीड़िया का प्रौपगेंड़ा है इस्लाम को बदनाम करने का ! .
9)अगर आप फिर भी सच सामने लायेंगे तो मुस्लिम कुतर्को पर उतर आएंगे और दूसरे मजहबो मे की किताबो मे कमियां निकालेंगे जैसे बाइबल ,तोराह ,वेद गीता आदि ! .
10)लेकिन हद तो यहा है कि जिन किताबो को ये नही मानते उन्ही किताबो मे ये अपने मोहम्मद जी को अवतार भी दिखायेंगे (जैसे वेदो मे मुहम्मद को दिखाना).. और इस्लाम को जबरदस्ती विज्ञान से जोड़गे! (मतलब किसी भी तरह से हर हाल मे इस्लाम और मौहम्मद जी की मार्केटिंग करते रहते है ! इस तरह ये हमेशा काफिरो को थकाकर और उलझा कर रखते है !) .
11)अगर आप न रूकेतो मुसलमान द्वारा आपको जाहिल झुठा ,कुत्ता ,जालिम वगैरह के साथ मां बहन की गाली और निजी हमले किये जायेंगे .. .
12)अब मुस्लिम रट्टा लगायेंगे कि "इस्लाम तेजी से फैल रहा है "लेकिन जैसे ही सच्चाई सामने लायी जाये तो ये चिल्ला भी पड़ेंगे "इस्लाम खतरे मे है !" .
13)अगर फिर भी आप असली मुद्दे पर अड़े रहेंगे तो मुसलमान बोलेंगे तुम जहुन्नम मे जाओगे ...आखिरी दिन तुम्हारा हिसाब होगा ...तुम पर अल्लाह का आजाब होगा ..अल्लाह तुम्हारे साथ ये कर देगा.. वो कर देगा ,वगैरह वगैरह! .
14)और आखिर मे जब सब फेल हो जायेगा तो अब मुसलमान धमकाने पर आ जायेंगे जैसे तुम्हे देख लूंगा,बचके रहना ,अपना नंबर और एड्रेस बताओ ! .
15)और आखिर मे डरकर बंदा चुप हो जायेगा तो ये ढोल पीटेंगे और कहेंगे कि हमने डिबेट जीत ली है ,इस्लाम जीत गया है ...इस्लाम जिंदाबा* !! . .
इसलिए मुसलमान ऊपर से जैसे भी हो पर उनके दिलोदिमाग मे ,नसो मे इस्लाम गूंजता रहता है ....! . आज दुनिया भर के मुसलमान चलते फिरते "Islamic Zombies"बन चुके है ,जो मौका मिलने पर अक्सर नारा लगाते है ... .
अल्लाह(शैतान)जिंदाबाद !... इस्लाम(अंधेरा )कायम रहे .

saint shri का कहना है कि -

Dharti par rakshso ke dharam ko banaya gaya sanatan dharam kav khatam nahi hoga

Anonymous का कहना है कि -

Har sikke ke do pahlu hote h usi tarah har dharm me kuchh achchhi baat to kuchh buri baat h lekin ham insaano pe depend karta h ki ham kis baat ko apne jeevan me utarte h....har koi dharm dharm chilla raha h ek doosre ko bura kah raha h....koi kisi k dharm ki achchhi baat saamne nahi Lata sirf burai karta h.....islam ko duniya buri nazar s isliye dekhti h kyonki inhone quran ki achchhi bato ko jeevan me nahi apnaya lekin maar kaat buri cheez aurato ko azadi na dena aadi baaton ko bahut aasani s apna liya h yadi har insaan insaaniyat apnaye to ye faltu ki baate internet per koi nahi karta......ek kahawat h ki bina aag lage dhuuaa nahi uthta thik usi tarah kuchh to problem h musalmano me jo puri duniya inhe bura kahti h...aur indian muslim kai baar ashfaq ullah khan aur abdul kalam ji ka example dekar khud achchha sabit Karne ki koshish Karte h unhone jis tarah s har dharm ka samman karte hue apna jeevan jiya agar saare musalman dil s har dharm ko utna samman de to har dharm k log apka bhi samman karenge....aur musalmano ko sirf kattarpanthi aur nafrat ki seekh di jaati h....isiliye inke masjid m kaba me namaz me gair muslim shamil nahi ho sakta kyonki inke maulviyon ki aur inke dharm ki sikchhhaaa ki asliyat ki pol khul jaayegi.....jabki baaki dharm me aisa nahi h......

Unknown का कहना है कि -

Sahi kaha aapne hindu bhatka hua hi sab ko bhagwan maan leta hi kisi ek ko bhagwan maanna chahiye aur woh hi sirf ek allah

Unknown का कहना है कि -

इतिहास के साथ यह अन्याय!!

दो शब्द
भारतीय इतिहास की यह विडम्बना है कि उसे कभी वास्तविकता के परिप्रेक्ष्य में शुद्ध ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नहीं देखा गया। अंग्रेज़ों ने विजित राष्ट्र पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए ‘फूट डालो और राज्य करो' (Devide And Rule) की नीति के कारण इतिहास को विकृत किया और अपने पीछे ऐसी टोली छोड़ गए जो सिर्फ़ उन्हीं का राग नहीं अलापती बल्कि उनकी योजना को उसने और आगे बढ़ाया और विकसित किया।

आज़ादी के बाद अंगे्रजों की नीति का अनुसरण करने में ही हमारे कुछ राजनैतिक और शैक्षिक विचारकों को भी अपना हित नज़र आया। राष्ट्रवाद के कुत्सित स्वार्थो की प्रेरणा से अपने विद्यालयों में इसी विकृत इतिहास के द्वारा नई पीढ़ी के दिशा-निर्देशन का कार्य आरंभ किया गया। उन्होंने समाज को तोड़ने के लिए इतिहास को द्वेष के बीज के रूप में प्रयोग किया जिससे समाज में एक जुट होकर मूल समस्या से संघर्ष करने की संगठित शक्ति बाक़ी न रहे। इस योजना को इतना सुचारू रूप से चलाया गया कि आज हर शहर और गाँव में नफ़रत और विद्वेष का ज़हर फैल गया है।

अतः आज की स्थिति किसी अचानक दुर्घटना का परिणाम नहीं है, वरन् वर्षों के सुनियोजित प्रयास से सींचे गए विष-वृक्ष का अनुकूल फल है। इसके बिना उन ‘महारथियों' की स्वार्थरक्षा संभव नहीं।

वास्तविकता यह है कि मध्यकालीन भारतीय साहित्य और इतिहास को ग़लत दिशा देने को जो काम हुआ है उसके कई धरातल और कई दिशाएं हैं। डा0 बी0.एन0. पाण्डेय जी का यह प्रयास उसके एक छोटे अंश पर प्रकाश डालता है। इस दिशा में कुछ अन्य विद्वानों के कार्य भी सराहनीय हैं जो इस असत्य के घोर अंधकार में सत्य का चिराग़ बनकर वास्तविकता को दर्शाते हैं।

भारत के इतिहास का क्रमबद्ध संकलन सबसे पहले इलियट और डाउसन नामक दो अंग्रेज़ विद्वानों ने किया। सारी स्त्रोत-सामग्री में से घटनाओं को चुन-चुन कर उसे एक मनोवांछित दिशा देना और घटनाओं की व्याख्या करना उनकी मौलिकता रही। किन्तु उन्होंने पुस्तक का नाम दिया -‘The History of India as told by its own historians' (भारतीय इतिहास-भारतीय इतिहासकारों के कथनानुकूल)। उनकी निर्धारित की हुई दिशा में अन्य विद्वानों ने उस काम को आगे बढ़ाया। भारतीय विद्वानों में सर यदुनाथ सरकार और पं0 हरप्रसाद शास्त्री सरीखे विद्वानों ने उसमें चार चाँद लगाने का काम किया। ये लोग अंग्रेज़ों ने अनुचर ही नहीं उनके भक्त भी थे। ऐसे ही लोगों ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) में भारतीयों के विरुद्ध अंग्रेज़ी सेना के सहयोग के लिए अपने विद्यालय को सैनिक बैरक में बदल दिया था।

अंग्रेज़ों ने अपने सशक्त सहयोगियों के बल पर इतिहास को ग़लत दिशा पर डाल दिया। समय बीतने के साथ ही सदियों से आपसी सहयोग और भाईचारे के साथ एक जगह बसनेवाले दो समुदायों के बीच की खाई इतनी चैड़ी हो गई कि लाखों मनुष्यों के रक्तपात और देश-विभाजन के साथ अंग्रेज़ बहादुर को सलामी देकर विदा तो कर दिया गया, किन्तु द्वेष का ‘देवता' आज भी प्रतिष्ठित है। इस ‘देवता' को प्रसन्न रखने के लिए आज भी नर-बलि दी जा रही है, सैकड़ों गाँव और नगर हवन किए जा रहे है और रथ-यात्राएँ आयोजित की जा रही हैं।
देश का संविधान और सारे तंत्र मुखौटा डाले परोक्ष या प्रत्यक्ष उस ‘देवता' का नमन कर रहे है। क्या मानवता उस देवता के सामने घुटने टेक देगी? कदापि नहीं, ऐसा इसलिए संभव नहीं कि समय की तेज़ धार अपने कमज़ोर आधारवाली चट्टान को बहुत दिनों तक टिकने नहीं देती। आशा है कि आदरणीय पाण्डेय द्वारा खोजे गये तथ्य ये युवा पीढ़ी को नया प्रकाश मिलेगा। उन्हीं के सबल हाथों से एक सुन्दर भारत का नव-निर्माण संभव है। प्रभु से प्रार्थना है कि इस पुस्तिका के प्रकाशन से यह आशा पूरी हो।

प्रकाशक
इतिहास के साथ यह अन्याय!!
उड़ीसा के भूतपूर्व राज्यपाल, राज्यसभा के सदस्य और इतिहासकार प्रो0 विशम्भरनाथ पाण्डेय ने अपने अभिभाषण और लेखन में उन ऐतिहासिक तथ्यों और वृतान्तों को उजागार किया है, जिनसे भली-भाँति स्पष्ट हो जाता है कि इतिहास को मनमाने ढंग से तोड़ा-मरोड़ा गया है। उन्होंने कहा-

‘‘अब मैं कुछ ऐसे उदाहरण पेश करता हूँ, जिनसे यह स्पष्ट हो जायेगा कि ऐतिहासिक तथ्यों को कैसे विकृत किया जाता है।

जब में इलाहाबाद में 1928 ई0 में टीपू सुल्तान के सम्बन्ध में रिसर्च कर रहा था, तो ऐंग्लों-बंगाली कालेज के छात्र-संगठन के कुछ पदाधिकारी मेरे पास आए और अपने ‘हिस्ट्री-एसोसिएशन' का उद्घाटन करने के लिए मुझको आमंत्रित किया। ये लोग कालेज से सीधे मेरे पास आए थे। उनके हाथो में कोर्स की किताबें भी थीं, संयोगवश मेरी निगाह उनकी इतिहास की किताब पर पड़ी। मैंने टीपू सुल्तान से संबंधित अध्याय खोला तो मुझे जिस वाक्य ने बहुत ज़्यादा आश्चर्य में डाल दिया, वह यह थाः

‘‘़

Unknown का कहना है कि -

मैंने टीपू सुल्तान से संबंधित अध्याय खोला तो मुझे जिस वाक्य ने बहुत ज़्यादा आश्चर्य में डाल दिया, वह यह थाः

‘‘तीन हज़ार ब्राह्मणों ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि टीपू उन्हें ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहता था।''

इस पाठ्य-पुस्तक के लेखक महामहोपाध्याय डॉ0 हरप्रसाद शास्त्री थे जो कलकत्ता विश्वविद्यालय में संस्कृत के विभागाध्यक्ष थे। मैंने तुरन्त डॉ0 शास्त्री को लिखा कि उन्होंने टीपू सुल्तान के सम्बन्ध में उपरोक्त वाक्य किस आधार पर और किस हवाले से लिखा है। कई पत्र लिखने के बाद उनका यह जवाब मिला कि उन्होंने यह घटना ‘मैसूर गज़ेटियर'(Mysore Gazetteer) से उद्धृत की है। मैसूर गज़ेटियर न तो इलाहाबाद में और न तो इम्पीरियल लाइब्रेरी, कलकत्ता में प्राप्त हो सका। तब मैंने मैसूर विश्व विद्यालय के तत्कालीन कुलपति सर बृजेन्द्रनाथ सील को लिखा कि डॉ0 शास्त्री ने जो बात कही है, उसके बारे में जानकारी दें। उन्होंने मेरा पत्र प्रोफ़ेसर श्री कंटइया के पास भेज दिया जो उस समय मैसूर गज़ेटियर का नया संस्करण तैयार कर रहे थे।

प्रोफ़ेसर श्री कंटइया ने मुझे लिखा कि तीन हज़ार ब्राह्मणों की आत्महत्या की घटना ‘मैसूर गज़ेटियर' में कहीं भी नहीं है और मैसूर के इतिहास के एक विद्यार्थी की हैसियत से उन्हें इस बात का पूरा यक़ीन है कि इस प्रकार की कोई घटना घटी ही नहीं है। उन्होंने मुझे सूचित किया कि टीपू सुल्तान के प्रधानमंत्री पुनैया नामक एक ब्राह्मण थे और उनके सेनापति भी ब्राह्मण कृष्णराव थे। उन्होंने मुझको ऐसे 156 मंदिरों की सूची भी भेजी जिन्हें टीपू सुल्तान वार्षिक अनुदान दिया करते थे। उन्होंने टीपू सुल्तान के तीस पत्रों की फ़ोटो कापियाँ भी भेजीं जो उन्होंने श्रृंगेरी मठ के जगद्गुरू शंकाराचार्य को लिखे थे और जिनके साथ सुल्तान के अति घनिष्ठ मैंत्री सम्बन्ध थे। मैसूर के राजाओं की परम्परा के अनुसार टीपू सुल्तान प्रतिदिन नाश्ता करने के पहले रंगनाथ जी के मंदिर में जाते थे, श्रीरंगापटनम के क़िले में था। प्रोफ़ेसर श्री कंटइया के विचार में डॉ0 शास्त्री ने यह घटना कर्नल माइल्स की किताब ‘हिस्ट्री आफ़ मैसूर' (मैसूर का इतिहास) से ली होगी। इसके लेखक का दावा था कि उसने अपनी किताब को ‘टीपू सुल्तान का इतिहास' एक प्राचीन फ़ारसी पांडुलिपि से अनूदित किया है, जो महारानी विक्टोरिया के निजी लाइब्रेरी में थी। खोज-बीन से मालूम हुआ कि महारानी की लाइब्रेरी में ऐसी कोई पांडुलिपि थी ही नहीं और कर्नल माइल्स की किताब की बहुत-सी बातें बिल्कुल ग़लत एवं मनगढंत हैं।

डॉ0 शास्त्री की किताब पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में पाठ्यक्रम के लिए स्वीकृत थी। मैंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति सर आशुतोष चैधरी को पत्र लिखा और इस सिलसिले में अपने सारे पत्र-व्यवहारों की नक़्लें भेजीं और उनसे निवेदन किया कि इतिहास की इस पाठ्य-पुस्तक में टीपू सुल्तान से सम्बन्धित जो ग़लत और भ्रामक वाक्य आए हैं, उनके विरुद्ध समुचित कार्यवाई की जाए। सर आशुतोष चैधरी का शीध्र ही यह जवाब आ गया कि डॉ0 शास्त्री की उक्त पुस्तक को पाठ्यक्रम से निकाल दिया गया है। परन्तु मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि आत्महत्या की वही घटना 1972 ई0 में भी उत्तर प्रदेश में जूनियर हाई स्कूल की कक्षाओं में इतिहास के पाठ्यक्रम की किताबों में उसी प्रकार मौजूद थी। इस सिलसिले में महात्मा गांधी की वह टिप्पणी भी पठनीय है जो उन्होंने अपने अख़बार ‘यंग इंडिया' में 23 जनवरी, 1930 ई0 के अंक में पृष्ठ 31 पर की थी। उन्होंने लिखा था कि-

‘‘मैसूर के फ़तह अली (टीपू सुल्तान) को विदेशी इतिहासकारों ने इस प्रकार पेश किया है कि मानो वह धर्मान्धता का शिकार था। इन इतिहासकारों ने लिखा है कि उसने अपनी हिन्दू प्रजा पर ज़ुल्म ढाए और उन्हें ज़बरदस्ती मुसलमान बनाया, जबकि वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत थी। हिन्दू प्रजा के साथ उसके बहुत अच्छे सम्बन्ध थे।............... मैसूर राज्य (अब कर्नाटक) के पुरातत्व विभाग (Archaelogy Department) के पास ऐसे तीस पत्र हैं, जो टीपू सुल्तान ने श्रृंगेरी मठ के जगदगुरू शंकराचार्य को 1793 ई0 में लिखे थे। इनमें से एक पत्र में टीपू सुल्तान ने शंकराचार्य के पत्र की प्राप्ति का उल्लेख करते हुए उनसे निवेदन किया है कि वे उसकी और सारी दुनिया की भलाई, कल्याण और ख़ुशहाली के लिए तपस्या और प्रार्थना करें। अन्त में उसने शंकराचार्य से यह भी निवेदन किया है कि वे मैसूर लौट आएं, क्योंकि किसी देश में अच्छे लोगों के रहने से वर्षा होती है फ़सल अच्छी होती है और ख़ुशहाली आती है।'' यह पत्र भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाने के योग्य है। ‘यंग इण्डिया' में आगे कहा गया है-

Unknown का कहना है कि -

यंग इण्डिया' में आगे कहा गया है-

‘‘टीपू सुल्तान ने हिन्दू मन्दिरों विशेष रूप से श्री वेंकटरमण, श्रीनिवास और श्रीरंगनाथ मन्दिरों को ज़मीनों एवं अन्य वस्तुओं के रूप में बहुमूल्य उपहार दिए। कुछ मन्दिर उसके महलों के परिसर में थे यह उसके खुले ज़ेहन, उदारता एवं सहिष्णुता का जीता-जागता प्रमाण है। इससे यह वास्तविकता उजागर होती है कि टीपू एक महान शहीद था। जो किसी भी दृष्टि से आज़ादी की राह का हक़ीक़ी शहीद माना जाएगा, उसे अपनी इबादत में हिन्दू मन्दिरों की घंटियों की आवाज़ से कोई परेशानी महसूस नहीं होती थी। टीपू ने आज़ादी के लिए लड़ते हुए जान दे दी और दुश्मन के सामने हथियार डालने के प्रस्ताव को सिरे से ठुकरा दिया। जब टीपू की लाश उन अज्ञात फ़ौजियों की लाशों में पाई गई तो देखा गया कि मौत के बाद भी उसके हाथ में तलवार थी-वह तलवार जो आज़ादी हासिल करने का ज़रिआ थी। उसके ये ऐतिहासिक शब्द आज भी याद रखने के योग्य है: ‘शेर की एक दिन की ज़िन्दगी लोमड़ी के सौ सालों की ज़िन्दगी से बेहतर है।' उसकी शान में कही गई एक कविता की वे पंक्तियाँ भी याद रखे जाने योग्य हैं, जिनमें कहा गया है कि "ख़ुदाया, जंग के ख़ून बरसाते बादलों के नीचे मर जाना, लज्जा और बदनामी की ज़िन्दगी जीने से बेहतर है।''

Unknown का कहना है कि -

इसी प्रकार जब मैं इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई0 से 1953 ई0 तक) तो मेरे सामने दाख़िल-ख़ारिज का एक मामला लाया गया। यह मामला सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर से संबंधित जायदाद के बारे में था। मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे। एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज दाख़िल किये जो उसके ख़ानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे। इन दस्तावेज़ों में शहंशाह औरंगज़ेब के फ़रमान भी थे। औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था। मैंने सोचा कि ये फ़रमान ज़ाती होंगे। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोड़ने के लिए प्रसिद्ध है, वह एक मन्दिर को यह कह कर जागीर दे सकता है कि यह जागीर पूजा और भोग के लिए दी जा रही है। आख़िर औरंगज़ेब कैसे बुतपरस्ती के साथ अपने को शरीक कर सकता था।

मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली है, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डॉ0 सर तेज बहादुर सप्रू से राय लेना उचित समझा। वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। मैंने दस्तावेज़ें उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि औरंगज़ेब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं। इसके बाद उन्होंने अपने मंशी से बनारस के जंगमबाड़ी शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा। यह मुक़द्दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था। जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मन्दिर को जागीर दी गई थी।

इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया। डॉक्टर सप्रू की सलाह पर मैंने भारत के विभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतों के पास पत्र भेज कर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उन मन्दिरों को जागीर दी गई हो तो वे कृपा करके उनकी फ़ोटो-स्टेट कापियाँ मेरे पास भेज दें। अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई। उज्जैन के महाकलेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गोहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुंजाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरुद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फ़रमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुईं। ये फ़रमान 1065 हि0 से 1091 हि0, अर्थात् 1685 ई0 के बीच जारी किए गए थे।

हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसाले हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाणित हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रुख़ सामने लाया गया है। भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं। यदि सही ढंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाएँगे जिनसे औरंगज़ेब के ग़ैर-मुस्लिमों के प्रति उदार व्यवहार का पता चलेगा। औरंगज़ेब के फ़रमानों की जाँच-पड़ताल के सिलसिले में मेंरा सम्पर्क श्री ज्ञानचन्द्र और पटना म्यूज़ियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डॉ0 पी0एल0 गुप्ता से हुआ। ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे। मुझे ख़ुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता भी सच्चाई को तलाश करने में व्यस्त हैं और काफ़ी बदनाम औरंगज़ेब की तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे है। औरंगज़ेब जिसे पक्षपाती इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हुकूमत का प्रतीक मान रखा है, उसके बारे में वे क्या विचार रखतेहैं इसके विषय में यहाँ तक कि शिब्ली जैसे इतिहास गवेशी कवि को कहना पड़ा:

तुम्हें ले-दे के सारी दास्ताँ में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगार था।।

औरंगज़ेब पर हिन्दू-दुश्मनी के आरोप के सम्बन्ध में जिस फ़रमान को बहुत उछाला गया है, वह ‘फ़रमाने-बनारस' के नाम से प्रसिद्ध है। यह फ़रमान बनारस के मुहल्ला ग़ौरी के एक ब्राह्मण परिवार से संबंधित है। 1905 ई0 में इसे गोपी उपाध्याय के नवासे मंगल पाण्डेय ने सिटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था। इसे पहली बार ‘एशियाटिक-सोसाइटी' बंगाल के जर्नल (पत्रिका) ने 1911ई0 में प्रकाशित किया था। फलस्वरूप रिसर्च करने वालों का ध्यान इधर गया। तब से इतिहासकार प्रायः इसका हवाला देते आ रहे हैं और वे इसके आधार पर औरंगज़ेब पर आरोप लगाते हैं कि उसने हिन्दू मन्दिरों के निर्माण पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, जबकि इस फ़रमान का वास्तविक महत्व उनकी निगाहों से ओझल रह जाता है।
यह लिखित फ़रमान औरंगज़ेब ने 15 जुमादुल-अव्वल 1065 हि0 (10 मार्च 1659 ई0) को बनारस के स्थानीय अधिकारी के नाम भेजा था जो एक ब्राह्मण की शिकायत के सिलसिले में जारी किया गया था। वह ब्राह्मण एक मन्दिर का महंता था और कुछ लोग

Unknown का कहना है कि -

वह ब्राह्मण एक मन्दिर का महंता था और कुछ लोग उसे परेशान कर रहे थे। फ़रमान में कहा गया है:

‘‘अबुल हसन को हमारी शाही उदारता का क़ायल रहते हुए यह जानना चाहिए कि हमारी स्वाभाविक दयालुता और प्राकृतिक न्याय के अनुसार हमारा सारा अनथक संघर्ष और न्यायप्रिय इरादों का उद्देश्य जन-कल्याण को बढ़ावा देना है और प्रत्येक उच्च एवं निम्न वर्गों के हालात को बेहतर बनाना है। अपने पवित्र क़ानून के अनुसार हमने फ़ैसला किया है कि प्राचीन मन्दिरों को तबाह और बर्बाद न किया जाए, अलबत्ता नए मन्दिर न बनाए जाएं।

हमारे इस न्याय पर आधारित काल में हमारे प्रतिष्ठित एवं पवित्र दरबार में यह सूचना पहुँची है कि कुछ लोग बनारस शहर और उसके आस-पास के हिन्दू नागरिकों और मन्दिरों के ब्राह्मण-पुरोहितों को परेशान कर रहे हैं तथा उनके मामलों में दख़ल दे रहे हैं, जबकि ये प्राचीन मन्दिर उन्हीं की देख-रेख में है। इसके अतिरिक्त वे चाहते हैं कि इन ब्राह्मणों को इनके पुराने पदों से हटा दें। यह दख़लंदाजी इस समुदाय के लिए परेशानी का कारण है।

इस लिए यह हमारा फ़रमान है कि हमारा शाही हुक्म पहुँचते ही तुम हिदायत जारी कर दो कि कोई भी व्यक्ति ग़ैर-क़ानूनी रूप से दखलंदाजी न करे और न उन स्थानों के ब्राह्मणों एवं अन्य हिन्दू नागरिकों को परेशान करे। ताकि पहले की तरह उनका क़ब्ज़ा बरक़रार रहे और पूरे मनोयोग से वे हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के लिए प्रार्थना करते रहें। इस हुक्म को तुरन्त लागू किया जाये।''

इस फ़रमान से बिल्कुल स्पष्ट है कि औरंगज़ेब ने नए मन्दिरों के निर्माण के विरुद्ध कोई नया हुक्म जारी नहीं किया, बल्कि उसने केवल पहले से चली आ रही परम्परा का हवाला दिया और उस परम्परा की पाबन्दी पर ज़ोर दिया। पहले से मौजूद मन्दिरों को ध्वस्त करने का उसने कठोरता से विरोध किया। इस फ़रमान से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह हिन्दू प्रजा को सुख - शान्ति से जीवन व्यतीत करने का अवसर देने कर इच्छुक था।

यह अपने जैसा केवल एक ही फ़रमान नहीं है। बनारस में ही एक और फ़रमान मिलता है जिससे स्पष्ट होता है कि औरंगज़ेब वास्तव में चाहता था कि हिन्दू सुख-शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। यह फ़रमान इस प्रकार है:

‘‘रामनगर (बनारस) के महाराजाधिराज राजा रामसिंह ने हमारे दरबार में अर्ज़ी पेश की है कि उनके पिता ने गंगा नदी के किनारे अपने धार्मिक गुरू भगवत गोसाईं के निवास के लिए एक मकान बनवाया था। अब कुछ लोग गोसाईं को परेशान कर रहे है। अतः यह शाही फ़रमान जारी किया जाता है कि इस फ़रमान के पहुँचते ही सभी वर्तमान एवं आने वाले अधिकारी इस बात का पूरा ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति गोसाईं को परेशान एवं डरा-धमका न सके, और न उनके मामले में हस्तक्षेप करे, ताकि वे पूरे मनोयोग के साथ हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए प्रार्थना करते रहें। इस फ़रमान पर तुरन्त अमल किया जाए।'' (तारीख़-17 रबीउस्सानी 1091 हि0)

जंगमबाड़ी मठ के महंत के पास मौजूद कुछ फ़रमानी से पता चलता है कि औरंगज़ेब कभी यह सहन नहीं करता था कि उसकी प्रजा के अधिकार किसी प्रकार से भी छीने जाएं, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। वह अपराधियों के साथ सख़्ती से पेश आता था। इन फ़रमानों में एक जंगम लोगों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) की ओर से एक मुसलमान नागरिक नज़ीर बेग के विरुद्ध शिकायत के सिलसिले में है। यह मामला औरंगज़ेब के दरबार में लाया गया, जिस पर शाही हुक्म दिया गया कि बनारस सूबा इलाहाबाद के अफ़सरों को सूचित किया जाता है कि परगना बनारस के नागरिकों अर्जुनमल और जगमियों ने शिकायत की है कि बनारस के एक नागरिक नज़ीर बेग ने क़स्बा बनारस में उनकी पाँच हवेलियों पर क़ब्ज़ा कर लिया है। उन्हें हुक्म दिया जाता है कि यदि शिकायत सच्ची पाई जाए और जायदाद की मिल्कियत का अधिकार प्रमाणित हो जाए तो नज़ीर बेग को उन हवेलियों में दाख़िल न होने दिया जाए, ताकि जंगमियों को भविष्य में अपनी शिकायत दूर करवाने के लिए हमारे दरबार में न आना पड़े।

Unknown का कहना है कि -

करवाने के लिए हमारे दरबार में न आना पड़े।

इस फ़रमान पर 11 शाबान, 13 जुलूस (1672 ई0) की तारीख़ दर्ज है। इसी मठ के पास मौजूद एक दूसरे फ़रमान में जिस पर पहली रबीउल-अव्वल 1978 हि0 की तारीख़ दर्ज है, यह उल्लेख है कि ज़मीन का क़ब्ज़ा जंगमियों को दिया गया। फ़रमान में है-

‘‘परगना हवेली बनारस के सभी वर्तमान और भावी जागीरदारों एवं करोड़ियों को सूचित किया जाता है कि शहंशाह के हुक्म से 178 बीघा ज़मीन जंगमियों को दी गई। पुराने अफ़सरों ने इसकी पुष्टि की थी और उस समय के परगना के मालिक की मुहर के साथ यह सुबूत पेश किया गया है कि ज़मीन पर उन्हीं का हक़ है। अतः शहंशाह की जान के सदक़े के रूप में यह ज़मीन उन्हें दे दी गई। ख़रीफ़ की फ़सल के प्रारम्भ से ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा बहाल किया जाय और फिर किसी प्रकार की दख़लंदाजी न होने दी जाए, ताकि जंगमी लोग उसकी आमदनी से अपनी देख-रेख कर सकें। ''

इस फ़रमान से केवल यही पता नहीं चलता कि औरंगज़ेब स्वभाप से न्यायप्रिय था, बल्कि यह भी साफ़ नज़र आता है कि वह इस तरह की जायदादों के बंटवारे में हिन्दू धार्मिक सेवकों के साथ कोई भेदभाव नहीं बरतता था। जंगमियों को 178 बीघा ज़मीन संभवतः स्वंय औरंगज़ेब ही ने प्रदान की थी, क्योंकि एक दूसरे फ़रमान ( तिथि 5 रमजान, 1071 हि0) इसका स्पष्टीकरण किया गया है कि यह ज़मीन मालगुज़ारी मुक्त है।

औरंगज़ेब ने एक दूसरे फ़रमान (1098 हि0) के द्वारा एक-दूसरी हिन्दू धार्मिक संस्था को भी जागीर प्रदान की । फ़रमान में कहा गया है:
‘‘बनारस में गंगा नदी के किनारे बेनी-माधो घाट पर दो प्लाट ख़ाली हैं, एक मर्क़ज़ी मस्जिद के किनारे रामजीवन गोसाईं के घर के सामने और दूसरा उससे पहले। ये प्लाट बैतुल-माल की मिल्कियत हैं। हमने यह प्लाट रामजीवन गोसाईं और उनके लड़के को ‘इमाम' के रूप में प्रदान किया, ताकि उक्त प्लाटों पर ब्रहम्मणों एवं फ़क़ीरों के रहने के लिए मकान बनाने के बाद वे ख़ुदा की इबादत और हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए दुआ और प्रार्थना करने में लग जाएं। हमारे बेटो, वज़ीरों, अमीरों, उच्च पदाधिकारियों, दारोग़ा और तर्वमान एवं भावी कोतवाली के लिए अनिवार्य है कि वे इस आदेश के पालन का ध्यान रखे और उक्त प्लाट, उपर्युक्त व्यक्ति और उसके वारिसों के क़ब्ज़े ही में रहने दे और उनसे न कोई मालगुज़ारी या टैक्स लिया जाए और न उनसे हर साल नई सनद मांगी जाए।

sameer का कहना है कि -

भले ही एसा होता होगा लेकिन हिन्दू धर्म मे कहीं भी इसकी अनुमति नही है मतलब यह कि आम लोगों को ठगने का काम वही लोग करते है जो ठग होते है।। उनको हमारे धर्म मे मोहि व्यक्ति कहा गया है।। और यह भी स्तय है कि इस्लाम धर्म खतरे में ही नही बल्कि समाप्त भी हो जायगा। जिस तरह पाप का घड़ा भरने पर फट जाता है।। उसी तरह एक नये धर्म का उजागर होगा जिसके प्रति सभी धर्म के लोग जुड़ने लगेंगे और सारी दुनिया केवल एक मात्र धर्म को मानने लगेगी।।

sameer का कहना है कि -

हिन्दू धर्म ही केवल एक मात्र धर्म है जो कट्टर न होते हुए एक ज़िंदगी की राह भी है।। इसमें आपको हर चीज की छूट है। इस धर्म मे किसी को भी माना जा सकता है इस धर्म मे ही केवल लोग मानते है भक्त जैसा भगवान वैसा।। मतलब यह कि भगवान तो एक है लेकिन उसको आप अपने कर्मों के हिसाब से मान सकते है।। इसी धर्म मे लिखा है मानव धर्म ही सबसे ऊंचा धर्म है।। और मानव धर्म सनातन भी माना गया है।।

sameer का कहना है कि -

उसको आतंकवाद नही युद्ध कहते है।। आतंकवाद मुस्लिम धर्म को इसलिए कहा गया है कि 100 % अगर आज आतंकवाद किसी को काफिर कह कर मार जाता है तो वो इस्लाम धर्म ही है।। हालांकि 20%लोग ऐसे लोगों का साथ नही देते।। लेकिन80 फीसदी लोग इस्लाम आतंकवाद का साथ देते है।। और मास खाना बुरा काम नही है मूर्ख इंसान लेकिन अपनी मास खाने वाली क्षमता पूरी करने के लिए और स्वाद के लिए किसी जीव की हत्या करना सही बात नही है मूर्ख इंसान मास खाना केबल तभी बताया गया है ताकि जीवन बचाया जा सके कठिन घड़ी में।।

sameer का कहना है कि -

अल्लाह कोई भगवान नही है ना ही गॉड वो एक इंसान था जिसको अल्लाह का नाम देदिया गया।।

sameer का कहना है कि -

आप जैसे गांडू लोग ही तो आज दुनिया का सत्यानाष कर रहे है।। जहां लड़कियां चांद पर पहुंच गई आप मुल्ले धरती से चाँद को मानते हैं। वहां लोग टटिया कर के आगये आप यहां उसकी तरफ देख के गांड उठा कर सर झुकाते है। और तो और आतंकवाद फैलाते हौ।। काफीर को मारो कब्जा करो लड़कीयोन का रेप करो।। मारो काटो इसके इलावा है ही क्या इस्लाम धर्म मे।। जबकि हिन्दू धर्म मे साफ साफ लिखा है कि मूर्ति पूजा खण्डन किया है।। और मूर्ति पूजा केवल सन्तुष्टि के लिए की जाती है जैसे अपने मरे हुए अब्बा को देख कर याद करते है बस उसी तरह।। भगवान की मूरत को देख कर याद करते है पूजा सृष्टि की करते है जिसने हमे सब कुछ दिया कुदरत पेड़ पौधे देखने योगया श्रिष्टी नदियां पहाड़ सूरज चांद तारे। तुम लोगन की तरह उसका बहिष्कार नही करते उसकी पूजा करते है पूजा मतलब उसका सम्मान करते है।। भगवान नंही मानते। और भगवान कण कण में है इसका यह मतलब नही की आप जैसी सोच रखने वाले गुह में अल्लाह को ढूंढते फिरे अगर भगवान पाक और साफ है तो जाहिर है भगवान पाक और साफ जगह पर ही मिलेंगे तुम कुतों की तरह गुह में नही ढूंढते जैसी तुम्हारी मानसिकता है।। chutiye इंसान

Unknown का कहना है कि -

अबे चुतिया मुल्ले हमारा भगवान ने अच्छे लोगो की रक्षा के लिए हिंसा की ती ओर तुम मादरचोत सुअर साले ऊस हिजड़े आल्ला के नामपर निष्पाप लोगो की हत्या करते हो

harun का कहना है कि -

mynamehkhan@gmail.com


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