2-3 दिसंबर की रात को जब जहरीली गैस ने पूरे भोपाल को मौत की नींद बांटनी शुरू की होगी, मेरी उम्र के लोग अपनी मां की गोद में छोटी-छोटी आंखे बंद किए निश्चिंत सो रहे होंगे....हमारी मांओं को भी तब सिर्फ अपने बेटों की तरक्की के सपने ही आते होंगे...फिर भी, अब जब 25 साल बाद इस घटना के पन्ने दोबारा देश भर में ज़हर फैला रहे हैं तो हमारा खून भी खौल उठता है...ये सिर्फ हिंदुस्तान में ही मुमकिन है कि एक कंपनी पूरे शहर को तबाह कर दे और कंपनी का गुनाह तय कर पाने में 25 साल गुज़र जाएं....इस पूरे मामले ने 19 जज देखे, करोड़ों रुपए बर्बाद हुए और फैसला क्या आया.....दो साल की सज़ा वो भी ज़मानत पर रिहाई के साथ.....सज़ा उसको नहीं जिसका दोष जगज़ाहिर था...सज़ा उन छोटी मछलियों को जो उस वक्त सिर्फ अपनी सैलरी लेकर इंक्रीमेंट और प्रोमोशन के लालच में अमेरिकी बॉस की गुलामी करने को मजबूर थे......25 हज़ार मौतों के बाद भी एक एंडरसन भारत नहीं लाया जा सका...अमेरिका की बेशर्मी की हद देखिए कि इस मौके पर जब पत्थर का कलेजा भी पिघल जाता, वो कहता है कि इस फैसले के बाद आगे किसी जांच की गुंजाइश नहीं है और इस मुद्दे पर अब हर तरह से पर्दा गिर जाना चाहिए....अमेरिका इतनी बेहयाई से कह इसीलिए पा रहा है कि हम विदेशियों को सुनने और गुलामी करने के लिए ही बने हैं.....मनमोहन सिंह या फिर सुपर प्राइम मिनिस्टर सोनिया गांधी इस मुद्दे पर कोई सफाई नहीं दे रहे हैं.....वॉरेन एंडरसन 89 साल की उम्र में अमेरिका में मज़े ले रहा है और यहां उसकी लापरवाही की सज़ा भुगत रहे बेगुनाह अपने मुआवाज़े की रकम के लिए दर-दर भटक रहे हैं....मुमकिन है कि उनके मुआवज़े की रकम दलाल खा गए और अपने-अपने बंगले बनवा लिए.....वीरप्पा मोइली कहते हैं अभी एंडरसन का मामला बंद नहीं हुआ है.....वाह जी, अभी तो एंडरसन जी के गए 25 साल ही हुए हैं....कभी न कभी तो भारत आने का मन करेगा उनका....कभी न कभी तो मन होगा कि जवानी की यादें ताज़ा करें....तो जब भारत आएंगे फिर उन पर नए सिरे से सोचा जाएगा....अभी तो भारत की जनता 2 साल की सज़ा से ही खुश रहे..... जिस वक्त भोपाल हादसा हुआ, अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे....मगर, उन्हें इस घटना की प्रतिक्रिया देने से पहले दस बार राजीव गांधी से मशवरा करना पड़ा.....तब तक मुंह छिपाए फिरते रहे....इस बीच एक काम ये हो गया कि एंडरसन जिसे लोकल पुलिस ने तुरंत गिरफ्तार कर लिया था, रात भर में ही ससम्मान जमानत दे दी गई और वो तभी अपने निजी विमान से अमेरिका उड़ गया...तब भोपाल अपने परिजनों के अंतिम संस्कार में व्यस्त था.....
कानून अंधा होता है, झूठी बात है...कानून देखता है कि फैसला किसके खिलाफ लेना है, ये देखने के बाद अंधा होने का ढोंग करता है.....हमें अफसोस है कि हमने उस पीढ़ी में होश संभाला जब हम पहले ही किसी और देश को बिक चुके हैं.....अभी न्यूक्लियर डील के तहत सिविल लियाबिलिटी बिल आना बाक़ी है...तब देश में कम से कम 18 परमाणु संयंत्र लगने हैं और वो भी रिहाइशी इलाकों में....कहीं एक भी चूक हुई तो पूरा देश ऊर्जारहित हो जाएगा.....मैं तो कहूंगा कि अदालतों के फैसले के कागज़ जांचे जाएं....कहीं ऐसा न हो कि नया खुलासा हो कि भारत की अदालतों के फैसलों पर आखिरी मुहर अमेरिका ही लगाता है....हम अपनी अगली पीढ़ी को एक सच की विरासत देना चाहते हैं....
एक और बात जो आज ही कहीं पढ़ रहा था......भोपाल में फैक्ट्री लगाए जाने के वक्त जब भारत ने अमेरिका से नुकसान के बारे में रिपोर्ट मांगी गई थी तो लिखा आया था कि भोपाल के उस इलाके में फैक्ट्री लगाना उतना ही नुकसानरहित है जितना चॉकलेट की फैक्ट्री लगाना....इस अमेरिका का झूठ तो हम तब से बर्दाश्त करते आ रहे हैं...और ये सब सरकारें करती आई हैं.....बीजेपी ने ही अपनी सत्ता के सात साल में क्या उखाड़ लिया....और हमारे इस लेख से भी क्या हो जाएगा....हम तो आज भी चैन की नींद सो ही लेंगे, भोपाल की आंखों में 25 सालों से नींद नहीं है....वो जाग रहा है क्योंकि उसकी पहचान पर अमेरिका के कुछ दलालों ने गैस की कालिख पोत दी है.....
शर्म...शर्म...शर्म.....
निखिल आनंद गिरि
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16 बैठकबाजों का कहना है :
Bhaiyaji muze puri sahanubhooti hai aapke gusse bhri post se...
jis desh me chunkar aane wale janta ke noukro ko bhagwan mankar..smman kiya jaega ........ endarson...kwotrochchi..afjal..kasab..aadi hame pal-pal pr thenga dikhaege...
कचहरी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक न्याय व्यवस्था की यही हालत है। न्याय समय से न मिले तो वह अन्याय ही है और इस लोकतंत्र में यह आम बात है। मैं तो होश सम्हालने की उम्र से सुनता आ रहा हूँ कि मेरे बाबा/नाना 50 साल से अपनी जमीन का मुकदमा लड़ रहे हैं।
यहां तो ऐसा ही होता है कार की टक्कर से किसी की मौत हो जाए तो सजा उस ड्राइवर को मिलती है जो कार मालिक के निरदेशों पर कार चला रहा होता है। फिर केस के इदॆ-गिदॆ घूमते हैं वो ड्राइवर और उसका अमीर मालिक....... मरने वाला व्यकित और उसका परिवार तो कागजी कायॆवाही, कोटॆ के चक्कर और इस कशमकश में ही उलझा रह जाता है कि.. बिन गलती के मिल रही इस सजा की उम्र कितनी लंबी होगी और दोषी को कब सजा मिलेगी??? कानून को क़टघरे में खड़ा करने के साथ ही इस घटना से और भी कई भयावह तथ्य जुड़े हैं। तमाम नई खोजों का ठिकरा फोड़ने वाले साइंटिस्टों को क्यों आज तक वहां खतरनाक रेडिएशन की जांच और उसके निस्तारण के उपाय करने के लिए नहीं भेजा गया। कानूनी धाराओं में बेशक इस तथाकथित गैर इरादतन हत्या के लिए दो साल से ज्यादा की सजा न हों लेकिन किसी सरकार के लिए २५ साल .........बहुत लंबा समय है समस्या को सुधारने का।
hamare desh me tum jaise naujawano ki kami hai , i wish you ki bhagwan tumhe har mod more pe kamyab kare.
bahut ki karara kataksh likha hai .... zabardast... tumhara lekhan aur tumhare vichaar !!
शुक्रिया दीदी...
bahut dil ko jinjhorne wala mudda uthaya hai, bhopal ek aisa case hai, shayad jahan media aur aam janta dono hee aksham reh gaye hain case ko doobara is tarah uthane ke liye kee koi nishchit taur par samadhan ho paye.
dil rota hai jab tv par tasveeren uchali jati hain bhopal trasidi kee.
anubhav
ये अमेरि्की दवाब की एक शानदार मिसाल है.. हम वाकई कुछ नहीं कर सकते.. उनके ज़ख्मों पर मरहम लगाने के बजाए हमने उनके ज़ख्मों को और टीस दे दी।
भोपाल में जब यूनियन कार्बाइड के जहरीले गैस का बादल पसरता जा रहा था उस वक्त अर्जुन सिंह ये तय कर रहे थे कि सरकार को बदनाम होने से कैसे बचाया जाय। औऱ जब दम घुटने की वजह से लोग भागने लगे तो इसी अर्जुन सिंह ने ये ऑर्डर दिया कि किसी को भी शहर से बाहर नहीं जाने दिया जाए,उस वक्त पुलिस खुद मास्क पहनकर बाहर जाते लोगों को खदेड़ रही थी, अगर ऐसा नहीं होता तो कई जिंदगियां बच सकती थीं। देश में कानून को गिरवी रखने का उदाहरण देना अब ठीक नहीं होगा न ही ये समझने की जरूरत है कि हमारे यहां कोठे के कानून की तर्ज पर व्यवस्था चलाई जाती है, सीबीआई की तरफ से मुकदमे को इतना कमजोर कर पेश करना 304 ए के तहत मामला दर्ज होना जिसमें अधिकतम 2 साल की ही सजा हो सकती है, एंडरसन का उस समय कांग्रेस कनेक्शन, देश के सबसे बड़े हादसे के जिम्मेदार को सहूलियत मिलना नंगई इससे ज्यादा सोच नहीं सकते हम...लेकिन एक बात समझ नहीं आई क्या यूनियन कार्बाइड के प्लांट से निकली गैस वाकई इतनी जहरीली थी कि जिसने 25 हजार लोगों की मौत के बाद 25 साल से जग रहे लोगों और इस दरम्यान की पैदा हुई नस्लों का आक्रोश जला दिया....
भोपाल में जब यूनियन कार्बाइड के जहरीले गैस का बादल पसरता जा रहा था उस वक्त अर्जुन सिंह ये तय कर रहे थे कि सरकार को बदनाम होने से कैसे बचाया जाय। औऱ जब दम घुटने की वजह से लोग भागने लगे तो इसी अर्जुन सिंह ने ये ऑर्डर दिया कि किसी को भी शहर से बाहर नहीं जाने दिया जाए,उस वक्त पुलिस खुद मास्क पहनकर बाहर जाते लोगों को खदेड़ रही थी, अगर ऐसा नहीं होता तो कई जिंदगियां बच सकती थीं। देश में कानून को गिरवी रखने का उदाहरण देना अब ठीक नहीं होगा न ही ये समझने की जरूरत है कि हमारे यहां कोठे के कानून की तर्ज पर व्यवस्था चलाई जाती है, सीबीआई की तरफ से मुकदमे को इतना कमजोर कर पेश करना 304 ए के तहत मामला दर्ज होना जिसमें अधिकतम 2 साल की ही सजा हो सकती है, एंडरसन का उस समय कांग्रेस कनेक्शन, देश के सबसे बड़े हादसे के जिम्मेदार को सहूलियत मिलना नंगई इससे ज्यादा सोच नहीं सकते हम...लेकिन एक बात समझ नहीं आई क्या यूनियन कार्बाइड के प्लांट से निकली गैस वाकई इतनी जहरीली थी कि जिसने 25 हजार लोगों की मौत के बाद 25 साल से जग रहे लोगों और इस दरम्यान की पैदा हुई नस्लों का आक्रोश जला दिया....
भोपाल में जब यूनियन कार्बाइड के जहरीले गैस का बादल पसरता जा रहा था उस वक्त अर्जुन सिंह ये तय कर रहे थे कि सरकार को बदनाम होने से कैसे बचाया जाय। औऱ जब दम घुटने की वजह से लोग भागने लगे तो इसी अर्जुन सिंह ने ये ऑर्डर दिया कि किसी को भी शहर से बाहर नहीं जाने दिया जाए,उस वक्त पुलिस खुद मास्क पहनकर बाहर जाते लोगों को खदेड़ रही थी, अगर ऐसा नहीं होता तो कई जिंदगियां बच सकती थीं। देश में कानून को गिरवी रखने का उदाहरण देना अब ठीक नहीं होगा न ही ये समझने की जरूरत है कि हमारे यहां कोठे के कानून की तर्ज पर व्यवस्था चलाई जाती है, सीबीआई की तरफ से मुकदमे को इतना कमजोर कर पेश करना 304 ए के तहत मामला दर्ज होना जिसमें अधिकतम 2 साल की ही सजा हो सकती है, एंडरसन का उस समय कांग्रेस कनेक्शन, देश के सबसे बड़े हादसे के जिम्मेदार को सहूलियत मिलना नंगई इससे ज्यादा सोच नहीं सकते हम...लेकिन एक बात समझ नहीं आई क्या यूनियन कार्बाइड के प्लांट से निकली गैस वाकई इतनी जहरीली थी कि जिसने 25 हजार लोगों की मौत के बाद 25 साल से जग रहे लोगों और इस दरम्यान की पैदा हुई नस्लों का आक्रोश जला दिया....
''लेकिन एक बात समझ नहीं आई क्या यूनियन कार्बाइड के प्लांट से निकली गैस वाकई इतनी जहरीली थी कि जिसने 25 हजार लोगों की मौत के बाद 25 साल से जग रहे लोगों और इस दरम्यान की पैदा हुई नस्लों का आक्रोश जला दिया....''
अमृत जी, बस यही एक बात तो खलती है....हम विश्वकप जीतकर आई टीम के लिए पूरी मुंबई जाम कर सकते हैं, क्या हारे हुए भोपाल के लिए संसद में हल्लाबोल नहीं कर सकते.....सही में हमारा आक्रोश जल गया है....
it's happens only in india.
वाह निखिल बाबू,
फाड़कर रख दिया, लेकिन मैं या जो हालात हैं वो तो बस इतना ही कह सकते हैं, वो भी अपनी झेंप मिटाने के लिए कि " जी में आता है.. लगा दूं आग कोहेतूर पर... मगर ख़्याल आता है.. कि मूसा.... बेवतन हो जाएगा" निखिल भाई वाकई शर्म से मर जाना चाहिए... या वाकई रगों में ख़ून बाकी है... तो दाग देना चाहिए.. कि ढह जाए अमेरिकी सल्तनत, हम दरअसल हालात की आड़ में ख़ुद को ठीक उसी तरह मजबूर दिखाने की कोशिश करते रहते हैं... जिस तरह सरकार हालात की मजबूर बता रही है ख़ुद को उस वक्त के हालात बताकर। आप क्रांतिकारी हैं... आगे बढ़ने का रास्ता बताइए।
लेख के लिए साधुवाद.
राकेश जी,
टिप्पणी पढ़कर सुकून हुआ कि शादीशुदा लोगों में भी आक्रोश बाक़ी है अभी....अमेरिका को मारने से क्या होगा, पहले उन हिंदुस्तानी सांपों को मारना होगा जिन्होंने अमेरिका से ज़हर उधार लिया है.....बैठक पर आते रहें....
wakai sach kaha apne ek samay tha jab yeh desh veer jawano aur imandar desbhakto ka hua karta tha par aj yeh desh bhrast netaon ke sikanjo me phanso hua hai. 200 varson tak hum angrejon ke pinjare me band rahe aur ab in bhrast netaon ke.jab tak aise netao ka jal faila rahega tab tak desh me Bhopal jaisi Trasdi Hote Rahenge aur log insaf ke liye courtka darwaja khatkate rahenge. mera to yeh kahna hai ki aj ke neta desh ko bad me banaye pehle khudko ko banaye . kyunki jab tak yeh nahin badlenge tabtak aisi wardaten hoti rahengi hoti rahengi.
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