लव, सेक्स और धोखा....नाम बेहद अजीब है...उस दौर में जब हर हिंदी फिल्म के साथ अंग्रेजी टैग का रिवाज़ हो....हालांकि, फिल्म देखने के बाद साफ़ हो गया कि लव सेक्स और धोखा आजकल के फ़टाफ़ट संबंधों का कच्चा चिटठा है....फ़टाफ़ट संबंधों में पहले फ़टाफ़ट लव होता है, फिर सेक्स होता है और फिर एक तयशुदा धोखा....(जैसा कर्म करोगे, वैसा फल मिलेगा टाइप)....लव आजकल और कमीने से एक कदम आगे की फिल्म....अब सीधे-सीधे फिल्म की कहानी कहने का दौर रहा नहीं.....कि कैमरा ऑन किया, एक्शन बोला और एक लम्बा सा सीन चालू
है....फिर, वक़्त-बेवक्त बढ़िया बोल वाले गाने....दर्शक को सब कुछ मालूम होता था कि वो हॉल से क्या लेकर लौटेगा....एक साफ़-सुथरा सन्देश (जैसे सत्य हमेशा जीतता है या फिर माँ-बाप भगवन होते हैं टाइप) और मिश्री जैसे गाने.....इस फिल्म का गाना है 'तू नंगी अच्छी लगती है....तू गन्दी अच्छी लगती है.....' याद कीजिये 'देव डी'....मॉडर्न पारो अपने देव को नंगी तस्वीर भेजती है....और खेत में आमंत्रण भी देती है....ये मल्टीप्लेक्स दौर का सिनेमा है...आप परदे से सिर्फ दूरी के मामले में नजदीक नहीं होते, परदे पर चल रही फिल्म आपके आसपास की लग रही होती है....लव सेक्स और धोखा (टिकट काउंटर पर जल्दबाजी में एक लड़की इसे एल एस डी कह रही थी ) देखकर डर लगा मुझे....जैसे पूरी फिल्म कह रही हो "आप कैमरे की निगाह में हैं, २४ घंटे, स्टिंग कैमरे आपकी सेवा में सदैव तत्पर..."
देश की बड़ी आबादी शहरी हो रही है...जो खेत थे, वहाँ मॉल उग रहे हैं....मॉल्स में प्यार होता नहीं, किया जाता है.... गुप्त कैमरे को साक्षी मानकर......और फ़टाफ़ट किया जाता है....शिफ्ट में नौकरी करनी है, शिफ्ट के बाद प्यार-व्यार भी करना है....प्यार में कटौती करनी है....भूमिका बांधे बिना सीधा 'मुद्दे' पे आना है.... लड़की के साथ भी यही सब समस्याएं है....शिफ्ट वाली, कटौती वाली...मगर वो कहेगी नहीं, लड़की जो है.....फिल्म सब कुछ कहती है....स्टिंग कैमरा पूरी फिल्म का सूत्रधार जैसा है....फिल्म आगे बढती है और कैमरा गुस्ताखियाँ करता जाता है....किरदार कुछ नहीं कहते, कुछ नहीं करते....कैमरा सब कुछ करवा देता है.....कैमरे के आगे कहीं फिल्म तो कहीं पैसा बनाने की सनक में ज़िन्दगी धोखा खा जाती है (लव और सेक्स के बाद ) तो कहीं किसी को बर्बाद करने की सनक....मीडिया सबको बर्बाद कर रहा है....चालाक बना रहा है.....होशियार बना रहा है....ये फिल्म हमें बार-बार बताती है...इसके लिए निर्देशक दिबाकर का लाख-लाख धन्यवाद....मीडिया रेड लाइट इलाके के दलाल जैसा हो गया है की जहां जिस्म की बू आती है, वहाँ पान चबाता नज़र आ जाता है....अपना कैमरा घुसेड़ देता है....लड़की का इस्तेमाल होता है, चैनल को सुपरहिट बनाने के लिए....हिंदी चैनलों के न्यूज़ रूम में आधे घंटे के प्रोग्राम का नाम रखने के लिए जैसे 'कैची' नाम सोचे जाते हैं, फिल्म में उसकी एक झलक भर है....'फलां नंगा अच्छा लगता है....' आह, क्या नाम है....क्या तमाचा है दिबाकर जी.....
ये फिल्म नौसिखियों की कहानी है....जो फिल्म बनाना सीख रहे हैं, उनके लिए एक सन्देश कि फिल्म बनाना बेहद आसन है, अगर आप अपने समाज को पढ़ पाते हैं तो हर गली के आखिरी मकान में एक कहानी है जो कही जानी है....इसके लिए किसी बड़े सेट, बड़े स्टार की ज़रूरत नहीं है....एक हैंडी कैम भर चाहिए, जो बच्चों के बायें हाथ का खेल है आजकल....ये फिल्म बॉलीवुड के आने वाले दशक के लिए क्रांति है....फिल्म इतनी ओरिजिनल है कि अगर आप दो-चार साल किसी भी महानगर में रह चुके हैं, तो लगेगा ही नहीं कि आपने कोई फिल्म देखी है....सीधे-सीधे कहानी कहने-समझने का ज़माना अब रहा नहीं, इसीलिए भारतीय दर्शकों, हॉल जाएँ तो थोड़ी-बहुत बुद्धि भी साथ लेकर जाएँ, फिल्म का भरपूर आनंद ले पायेंगे....हॉल में फिल्म देखते वक़्त हर सीन पर युवा दर्शकों की विशेष टिप्पणियाँ फिल्म का जायका और बढ़ा देगी....
ये फिल्म उन तमाम मृगनयनियों की कहानी है, जिन्हें इंडियन आईडल बनने की जल्दी में बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है..... और जो चुकाने को तैयार भी हैं...ये आदर्शों को ढोती फिल्म नहीं है....ये आदर्शों को धोती फिल्म है....इस फिल्म को देखना इसीलिए ज़रूरी है क्योंकि देखने में ये फिल्म जैसी बिलकुल भी नहीं...ये हमारे आपके समय का सच है जहां सेक्स एक सीढ़ी की तरह है जिसे इस्तेमाल करना मर्द पहले से जानते थे, औरत अब सीख रही है.
--निखिल आनंद गिरि
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3 बैठकबाजों का कहना है :
लव, सेक्स और धोखा पर आपने अच्छा लिखा। आपकी इस बात से हम सहमत है कि सेक्स को सीढ़ी बनाने का काम तो पुरुष पहले से ही कर रहे हैं, अब महिलाएं इसे इस्तेमाल करने की कला सीखने लगी हैं।
love sex aur dhoka ko nayi nahi hai ye to puranik kal se chala aa raha hai aur jab tag insaniyat jinda rahegi tab tak love sex aur dhoka ek doosre ke humjoli bane rahenge
akhiri line jara nahi jachi bhai sahab, ye aapse kisne kah diya ki aurat siikh rahi hai :) ye kahiye ki ye film bina laag lapet ke sach kahne kii kuvvat hai, baaki khel to sadiyon purana hai, gazzete zaroor naye hain
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