Sunday, March 21, 2010

महिला आरक्षण बिल – एक लंबे सफर की शुरूआत (2)

0प्रेमचंद सहजवाला


॰॰॰प्रथम भाग से आगे

शास्त्रों को एक तरफ कर दें, तो भी इस पुरुष-प्रधान समाज में नारी-वेदना का एक लंबा इतिहास रहा है। केवल उदहारण के तौर पर सही, कोई सन् 1891 में ब्रिटिश द्वारा पारित ‘Age of Consent Bill’ को ही एक नज़र देख ले. यह बिल मुख्यतः पूना व बंगाल के समाज सुधारकों द्वारा दो दशक से भी अधिक तक चलाए गए अथक अभियान के बाद पारित हुआ. तत्कालीन ‘हिंदू विवाह अधिनियम’ (1860) के अनुसार किसी भी विवाहित लड़की का पति तब तक उस का शारीरिक संभोग नहीं कर सकता, जब तक कि वह 10 वर्ष की आयु की न हो जाए. सुधारकों ने इस बात के कड़े प्रयत्न शुरू कर दिये कि यह आयु कुछ वर्ष बढ़ाई जाए. बंबई में एक दस वर्ष व कुछ महीनों की लड़की के पति ने उस का संभोग किया तो वह इस प्रक्रिया को न सहन कर के मर गई. पुलिस ने उस के पति को गिरफ्तार कर के बलात्कार व हत्या का मुकदमा चलाया. लेकिन अदालत ने उसे इसीलिये बरी कर दिया कि कानूनन, वह लड़की क्योंकि दस वर्ष से बड़ी थी, इसलिए यह मृत्यु मात्र एक दुर्भाग्य है और पति किसी प्रकार के दंड का भोगी नहीं हो सकता. अंततः सुधारकों के गहरे प्रयासों के बाद ब्रिटिश ने विधेयक पारित कर के यह आयु दस से बढ़ा कर बारह कर दी. दुर्भाग्य कि देश के शास्त्रांध लोगों के गले यह विधेयक उतर नहीं पा रहा था. उन सब को पृथ्वी बुरी तरह कांपती महसूस हुई और लगा जैसे देवता सहसा खून के आंसू बहाने लगे हैं. नतीजतन इस विधेयक के विरुद्ध रैलियों का एक तांता लग गया. इस विधेयक के कड़े से कड़े विरोधियों में सब से अग्रणी थे लोकमान्य तिलक, जिन्होंने विधेयक की तथा उन तमाम लोगों की कड़ी भर्त्सना की जो कह रहे थे कि विधेयक किसी भी प्रकार से शास्त्रों की आत्मा को ठेस नहीं पहुंचाता. तिलक- अनुयायियों के कोप का भाजन बने प्रसिद्ध सुधारक गोपाल गणेश अगरकर, जिन का एक पुतला बना कर पुतले के एक हाथ में उबला हुआ अंडा और दूसरे में व्हिस्की की बोतल पकड़ा दी गई, ताकि वे ब्रिटिश की पश्चिमी संस्कृति के पिट्ठू से नज़र आएं ! पुतले को पूरे शहर में घुमाया गया और उस का अन्तिम संस्कार कर दिया गया। सुधारकों को तिलक यह कह कर लताड़ने लगे कि ‘अगर आप शास्त्रों के बारे में पता ही नहीं तो बेहतर कि आप सब अपनी ज़बान न खोलें’. कलकत्ता में दो लाख लोगों की एक महारैली होनी लगी और खूब त्राहि त्राहि मच गई. सुधारकों पर ढेरों ज़हर उगलने के बाद अनेक तो ऐसे भी थे जो एक शिष्ट-मंडल लंदन भेजना चाहते थे कि वहां जा कर महारानी विक्टोरिया के आगे साष्टांग प्रणाम किया जाए और उन्हें नमन कर के प्रार्थना की जाए कि कृपया हमारी ‘हिंदू सभ्यता’ को बचा लें! तिलक एक महान देशभक्त थे, लेकिन एक बार जब पूना में महिला-शिक्षा के विषय पर वाद-विवाद के उद्देश्य से एक जनसभा का आयोजन किया गया, तब तिलक समर्थक हर उस वक्ता की हूटिंग करने लगे, जो महिला-शिक्षा के पक्ष में बोल रहा था. यहाँ तक कि जब सभा में उपस्थित दो महिला विचारक भी बारी बारी बोलने आई तो सुधार-विरोधियों ने उन की भी हूटिंग कर दी. तिलक ने इसीलिये महिला-शिक्षा समर्थकों का इतना कोप अर्जित कर लिया कि वे जब स्वयं बोलने आए तो मंच पर टमाटरों, चप्पलों और अण्डों की धुआंधार वर्षा होने लगी. एक पोलिस- इंस्पेक्टर को मंच पर फुर्ती से छलांग लगानी पडी और तिलक को बांहों के घेरे में में घेर कर किसी प्रकार मंच से कहीं सुरक्षित जगह ले जाना पड़ा.

लेकिन भारतीय लोकतंत्र ने 28 दिसंबर 1885, से ले कर 9 मार्च 2010 तक, एक बेहद लंबा सफर तय किया है. यानी जब बंबई में ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ का जन्म हुआ, तब से उस दिन तक जब देश के वरिष्ठ लोगों के सदन राज्यसभा ने देश की अधिकाधिक महिलाओं को क़ानून निर्माता (सांसद) बनने के लिए सशक्तीकृत कर देने में पहला कदम उठाया. कम से कम भारत की शहरी महिला का चेहरा कोई कम कान्तिमय नहीं है और वह गौरवशाली तरीके से अपनी तमाम उपलब्धियों के होते पुरुष की प्रशंसा का पूरा अधिकार रखती है. ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की प्रथम महिला अध्यक्ष ऐनी बेसेंट से ले कर भारतीय मूल की अंतरिक्ष-वैज्ञानिक सुनीता विलियम्स, जिस ने अधिक से अधिक समय तक अंतरिक्ष में रहने का गौरवशाली विश्व-कीर्तिमान स्थापित किया, यहाँ तक कि अंतरिक्ष में ‘मैरेथन’ दौड़ दौड़ने वाली विश्व की पहली महिला बनी, तक नारी के चेहरे की चमक के अंतहीन आयाम हैं, जिस में आज इस देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति व लोकसभा की प्रथम महिला अध्यक्षा भी शामिल हैं. ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की पहली भारतीय अध्यक्षा सरोजिनी नायडू जो कि आज़ादी के बाद भारत के किसी राज्य की पहली महिला राज्यपाल भी थी, भारत के किसी राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपालानी, ‘संयुक्त-राष्ट्र महासभा’ की भारत व विश्व में पहली महिला अध्यक्षा विजयलक्ष्मी पंडित, भारत की पहली व एकमात्र महिला प्रधानमंत्री तथा पहली महिला भारत-रत्न इंदिरा गाँधी, ‘रमन मैग्सेसे पुरस्कार’ प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला तथा नोबेल-पुरस्कार प्राप्त एकमात्र भारतीय महिला मदर टेरेसा... इन सब को कोई हल्के तौर पर नहीं ले सकता... पहली ‘भारतीय पोलिस सेवा’ (IPS) अधिकारी किरण बेदी, गौरवशाली बचेन्द्री पाल जो हिमालय के सब से ऊंचे शिखर माऊँट एवरेस्ट पर पहुँचने वाली पहली भारतीय महिला थी तथा उतनी ही गौरवशाली संतोष यादव जिस ने वही करिश्मा जीवन में दो बार कर दिखाया... ये सब भी तो विश्व फलक पर भारत का नाम ऊंचा करने में शामिल रही! और पी.टी उषा (ओलंपिक फाईनल में पहुँचने वाली पहली भारतीय महिला जो केवल 0.01 सेकण्ड से पदक प्राप्त करते करते रह गयी), गीता जुत्शी, अंजू बौबी जार्ज, अपर्णा पोपट, अंजलि भागवत, करनम मालेश्वरी, सानिया मिर्ज़ा व सायना नेहवाल...और गिनती के लिए अनेकों और! ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ से केवल कुछ दिन बाद NDTV चैनल पर भारीय महिलाओं की उपलब्धियों का विश्लेषण करते हुए विनोद दुआ कह रहे थे कि ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ पर ‘एयर इंडिया’ ने देश की महिलाओं के खाते में एक और सितारा जोड़ दिया, अपनी ‘सर्व-महिला उड़ान’, द्वारा जो मुंबई से शुरू हो कर 11 देशों से उड़ान भर्ती हुई न्यू यार्क पहुँची! (हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के अनुसार जिस उड़ान में शराब का सेवन होता हो उस में कम से कम दो पुरुष अवश्य होने चाहियें. ‘टाईम्स ऑफ इंडिया’ ने 9 मार्च को पृष्ठ 15 पर पहले ही यह खबर दे दी थी कि –‘ केवल उन दो पुरुषों के अतिरिक्त 15 घंटे की लगातार उड़ान ने ‘सर्व-महिला क्रू’ के तौर पर कीर्तिमान स्थापित कर दिया होता’).

हमें इस बात का अक्सर खेद अवश्य रहता है कि यही बात समस्त भारतीय भूखंड पर लागू नहीं होती. केवल कुछ ही दिन पहले एक दूरदर्शन चैनल पर एक बदकिस्मत महिला को दिखाया जा रहा था जिसे पंचायत ने सिर्फ इसलिए गांव की बिरादरी से बाहर कर दिया क्योंकि किसी बाहर से आए एक पुरुष अधिकारी ने उसे असावधानी से छू लिया! इस अभागी महिला के पति ने पत्नी को खोया हुआ दर्जा दिलाने के लिए इन्साफ के ठेकेदारों पर खूब मोटी चढ़ावे के तौर पर चढ़ाई! इन सर्वाधिक पिछड़ी हुई महिलाओं से ले कर सुष्मिता सेन व लारा दत्ता जिन्हें ‘ब्रह्माण्ड सुन्दरी’ जैसे गौरवशाली खिताबों से नवाज़ा गया तथा रीता फेरिया ऐश्वर्य राय डायना हेडन युक्ता मुखी व प्रियंका चोपड़ा जिन्हें ‘विश्व सुन्दरी’ खिताब के ताज पहनाए गए तक भारतीय नारी की एक अंतहीन विविधता है, जो बहुत प्रसन्नता-पूर्ण परिदृश्य प्रस्तुत नहीं करती. पृथ्वी के सब से बड़े लोकतंत्र जिस के साथ परमाणु शक्ति होने की पहचान संलग्न है, तथा जो विश्व-मार्केट का सर्वाधिक स्पर्धा-शील देश कहलाता है, व पास में रोबदार भारत-अमरीका परमाणु समझौता रखे है, को अभी अपनी नारी को Justice (न्याय) Liberty(स्वतंत्रता) व Equality(समानता) जो कि भारतीय संविधान की आत्मा हैं, दिलाने तक एक लंबा सफर तय करना है...

(क्रमशः)
(अगले अंक में: पिछले 14-15 वर्षों में किन कारणों से भटकता रहा ‘महिला आरक्षण बिल’– लालू-मुलायम की टुच्ची राजनीति और क्या अपनी महिलाओं के सन्दर्भ में मुस्लिम समाज की स्थिति हिंदू समाज से बेहतर है?)

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