मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का नया कारनामा. अब स्कूल में बच्चों को गीता पढना ज़रूरी है. क्या बात है, ये फैसला करके उन्होंने भगवान् कृष्ण से अपने लिए बहुत कुछ डिमांड कर डाला होगा, आखिर हमारे यहाँ धर्म का मतलब आम तौर पर मन्नत मांगना ही तो होता है और हमारे मुख्यमंत्री तो 'सिर्फ धार्मिक' ही हैं. ये अपने आप में एक बड़ा विषय है जिसके बारे में बाद में बात करेंगे, फिलहाल हम वापस अपने प्रिय मुख्यमंत्रीजी पर वापस आते हैं. गीता तो आपने थोप दी लेकिन क्या आपको खबर है कि जो पढाई ज़रूरी है एक बच्चे को आगे बढ़ने के लिए वो भी हो रही है या नहीं? स्वाभाविकतः नहीं, वरना मध्यप्रदेश को देश के सबसे पिछड़े राज्यों में एक नहीं गिना जाता. ये तथ्य है कि मध्यप्रदेश के बच्चों को बाहर जाकर प्रतियोगिता करना भारी पड़ता है. लेकिन मुख्यमंत्रीजी को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि उन्होंने इतना सोचा भी होगा मुझे नहीं लगता. उनके अब तक के कार्यकाल में उन्होंने जो भी काम किये हैं वे उनकी बेहद सतही सोच को ही दर्शाते हैं. वो एक मुख्यमंत्री की तरह नहीं बल्कि किसी मोहल्ले की गणेश मंडली के अध्यक्ष की तरह सोचते हैं और राज्य को गणेश मंडल की तरह चला रहे हैं. स्कूलों में गीता पढ़वाएंगे लेकिन शिक्षक की जो फटीचर हालत है वो नहीं देखेंगे. प्राथमिक स्कूल के शिक्षक को एक दिहाड़ी मजदूर से भी कम मेहनताना मिलता है उसमे वो क्या शिक्षा देगा बच्चों को. सच्चाई तो ये है कि जो आदमी किसी भी काम के योग्य नहीं होता (शिक्षक बनने के भी ) वो शिक्षक बन जाता है. सभी हारे हुए और अयोग्य लोग शिक्षा देने के धंधे में लगे हुए हैं तो कोई आश्चर्य नहीं कि पूरे राज्य की तस्वीर भी ऐसी ही है. मुख्यमंत्री भी ऐसे ही शिक्षकों का परिणाम लगते हैं जिन्होंने शिक्षा में विचार को कभी जगह ही नहीं दी. वैसे तो मुख्यमंत्रीजी बहुत ही लचीले हैं जिन्होंने कभी कोई मजबूत फैसला नहीं लिया लेकिन अब तक जिन बातों पर वे कड़क हुए हैं वे उनकी सोच के दीवालियेपन को ही दिखाती हैं. बानगी देखिये - जब राज्य में १ महीने तक बारिश नहीं होती तो वे महांकाल के मंदिर में जाकर ५०००० पंडों के साथ भोजन करते हैं और भगवन को बारिश की अर्जी देते हैं. अब एक आम आदमी को इस तरह की हरकत के लिए मूर्ख होने का तमगा देकर माफ़ किया जा सकता है लेकिन एक राज्य के मुखिया को नहीं. लेकिन इस एक काम के सिवा मुख्यमंत्रीजी ने पानी के मुद्दे पर कोई विचार नहीं किया, उन्हें अब भी पानी का मेनेजमेंट पूरी तरह भगवन के हाथ में ही लगता है, उन्हें ये पता ही नहीं है कि हमें ही कुछ नियम बनाने होंगे, कुछ कदम उठाने होंगे ताकि सही समय पर बारिश हो और पर्याप्त हो. मालवा में भूमिगत जलस्तर भयावह स्थिति में है लेकिन वे बेखबर हैं उन्हें लगता है कि ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि भगवन विष्णु अपने नाग पर नीचे बैठे हैं जो पानी कम नहीं होने देंगे. राज्य में पेडों की कटाई कोई मुद्दा ही नहीं है क्योंकि उन्हें लगता ही नहीं कि ये किसी काम के हैं. दूसरी ज़ोरदार आवाज़ उन्होंने उठाई थी एक मसाज सेंटर के बोर्ड के खिलाफ....?????....क्या कर रहे हैं ये आप? आपको राज्य की बागडोर इन ओछे कामों के लिए नहीं सौंपी गई है. आपका राज्य बहुत बहुत पिछड़ा हुआ है, कभी अपने कुए से बाहर निकल कर देखिये कि दुनिया बहुत बड़ी है. अपने आप को ऊपर उठाइये, अपने कुए को और गहरा मत खोदिये. लाडली लक्ष्मी योजना को क़ानून बनाने के लिए वे बहुत आक्रामक नज़र आये लेकिन राज्य में जो गुंडों का साम्राज्य फ़ैल गया है (जिसके आका उन्ही कि पार्टी और सरकार के लोग हैं) उस पर गौर करना उन्हें ज़रूरी नहीं लगता. जहाँ भी कोई सोच-समझ से सम्बंधित मुद्दा सामने आता है वे केंद्र सरकार के ऊपर पूरी जिम्मेदारी डाल कर सो जाते हैं. ८ साल हो गए हैं उनके शासन को लेकिन प्रदेश में बिजली की समस्या में रत्ती भर भी सुधार नहीं आया है बल्कि हालात और भी बदतर हुए हैं. पहले सर्दियों में तो बिजली मिल जाती थी अब तो पूरे साल बिजली मेहमान कि तरह आती है. लेकिन ये समस्या केंद्र सरकार कि है, हम तो बस मंदिर जायेंगे और धर्म बचायेंगे तो भाई पुजारी बन जाओ मुख्यमंत्री बन कर इतने लोगों की ज़िन्दगी क्यों खराब करते हो? कहने को तो उन्होंने अपनी एक वेब साईट भी बनाई है और उस पर नागरिक अपनी समस्याएँ बता सकते हैं लेकिन मुझे नहीं लगता की कोई कभी उसे देखने की ज़हमत भी उठाता होगा क्योंकि उनके आस-पास के लोग भी तो उभी की तरह के होंगे न जो भगवन भरोसे काम कर रहे हैं. मैंने कई बार उस पर पत्र लिखे लेकिन मुझे आज तक कोई जवाब नहीं आया.
हाँ, एक काम ज़रूर हो रहा है कि इंदौर में सड़कें बन रही हैं लेकिन शासन ऐसे लोगों के हाथ में है जो दूर तक कुछ सोच ही नहीं पाते या यूँ कहें कि सोच ही नहीं पाते. जब सड़के बनाई जाती है तो हर एक पहलु पर विचार किया जाता है. यहाँ सड़कें बन रही हैं लेकिन बारिश का पानी कहाँ जाएगा ये किसी ने नहीं सोचा. पानी कि निकासी कि कोई व्यवस्था नहीं है. सब तरफ कंक्रीट बिछा दिया है लेकिन ज़मीन में पानी कैसे जाएगा ये नहीं सोचा. नतीजा बारिश का पानी ज़मीन के अन्दर नहीं जाता, ज़मीन में पानी का स्तर कम होता जा रहा है. सड़कें बनाने के लिए बेहिचक हज़ारों पेड़ काट दिए जाते हैं लेकिन वापस पौधे लगाने के बारे में कोई नहीं सोचता. आश्चर्य तो ये है कि लोग भी ऐसा नहीं मानते कि सड़कों के आस-पास पेड़ होने चाहिए.
लेकिन जनाब नेता भी कोई आसमान से नहीं उतरता, वो भी जनता के बीच का ही एक आदमी होता है और मोटे तौर पर उसी जनता का चेहरा होता है. यथा राजा तथा प्रजा या यथा प्रजा तथा राजा. मध्य प्रदेश के लिए दोनों ही उक्तियाँ सही हैं. यहाँ जनता भी उलटे-सीधे गोरखधंधों में ही अपना समय ख़राब करती है, जो मुद्दे वास्तव में मुद्दे हैं उनसे उन्हें कोई सरोकार नहीं, फिर चाहे वो उनके अपने ही हित में क्यों न हो.
-अनिरुद्ध शर्मा
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2 बैठकबाजों का कहना है :
मध्य प्रदेश की बात निकली है तो कहूँगी,कि बिजली,पानी,
ये समस्याएं ऐसी समस्याएं है जिनसे झूझते-झूझते
यहाँ कि जनता इस जिंदगी कि अभ्यस्त हो गई है और वो सोचती है
कि ऐसा कोई प्रधान -मंत्री या मुख्य-मंत्री पैदा नहीं हुआ जो उन्हें इन
समस्यायों से मुक्ति दिला पायेगा,,,,
,,,, मध्य प्रदेश की बात निकली है तो कहूँगी,कि बिजली,पानी,
ये समस्याएं ऐसी समस्याएं है जिनसे झूझते-झूझते
यहाँ कि जनता इस जिंदगी कि अभ्यस्त हो गई है और वो सोचती है
कि ऐसा कोई प्रधान -मंत्री या मुख्य-मंत्री पैदा नहीं हुआ जो उन्हें इन
समस्यायों से मुक्ति दिला पायेगा,,,,लेकिन ये समस्या सिर्फ मध्य-प्रदेश कि नहीं है
पूरे देश में गर्मी कि शुरुआत होते ही ये समस्याएं एक राक्षस कि तरह विराट मुंह-
खोल कर खड़ी है,,,,और माननीय मुख्यमंत्री जी से कहूँगी कि भगवान् भी उनकी ही मदद
करते है जो अपनी मदद आप करते है,,,, इसलिए कुछ कर्म किया जाए जिसका फल आपकी
ग़रीब जनता को मिले..
धन्यवाद,,
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