Saturday, January 16, 2010

तुम जिओ हजारों काल

अबके उनके जन्मदिन पर फेस टू फेस उन्हें शुभकामनाएं देने के लिए मैं उतावला था। पर मेरे उतावले होने से क्या होता है? जितनी बार भी उनके कार्यालय में फोन लगाता तो हर बार पीए कहता,’ अभी तुम उनसे से नहीं मिल सकते। पंद्रह दिन तक तो उन्हें बधाई देने वालों की रिजर्वेशन हो चुकी है। रोज फोन कर अपना समय तो खराब कर ही रहे हो मेरा भी समय खराब करते हो?’
‘उनका जन्मदिन कब तक चलने की संभावना है?’
‘यार ! झुग्गी वाले तो हैं नहीं। दमखम वाले हैं। जब तक उनके नियाोक्ताओं की इच्छा होगी तब तक जन्मदिन का जश्न चलता रहेगा। पर तुम हो कौन?’
‘ मैं... मैं तो रामजी दास हूं सर जी। जिसने उन्हें वोट दिया है। जो जबसे उनकी सरकार बनी है तबसे अभावों में जी रहा है। ’
‘यार बड़े बदतमीज हो। चार साल पहले एक वोट क्या दिया, जैसे उन्हें ही खरीद लिया।’
‘एक एक वोट कर ही तो वे नेता बने हैं। कभी कहते हैं कि मैं ज्योतिषी नहीं जो यह बता दूँ
कि कब चीनी सस्ती होगी। और दूसरे ही दिन भविष्यवाणी कर देते हैं कि आने वाले समय में जल्दी ही चीनी सस्ती हो जाएगी। उनसे मेरी ओर से यह तो पूछना कि उन्हें हमने जिताकर भविष्यवाणियाँ करने के लिए भेजा है या आम जनता के लिए काम करने के लिए?’
‘ अच्छा चल यार! जो नेता चरित्र और जबान फिसले लानत है उस नेता पर। ज्यादा दिमाग मत खा! कल आ जाना उनसे मिलने ठीक चार बजे। बीच में से उनका कीमती समय चुराकर तुझे दे रहा हूं।’
‘दो बजे क्यों नही?’
‘दो बजे तो उनका जनता का पेट काटने सॉरी, केक काटने का प्रोगाम है।’
‘धन्यवाद सर जी! बहुत बहुत धन्यवाद सर जी!’
‘ अच्छा अब बंदकर फोन! हिंदुस्तान का तभी तो विकास नहीं हो रहा है जब तुम लोग हिंदी को मरी बंदरिया के बच्चे की तरह गले से लगाए हो।’
....और मैं कल दस बजे कोहरे को चीरता हुआ उनके कार्यालय की ओर कूच कर गया। न कहीं ठंड लग रही थी न ही महीने से चल रहे जुकाम का दूर दूर तक कोई नामोनिशान था। इन दोनों को पता था कि मैं किस से मिलने जा रहा हूं। बड़ी से बड़ी बीमारियां इनका नाम सुनते ही समाज से छू मंत्र हो जाती हैं।
पीए द्वारा बताए टाइम के दो घंटे आद मेरी बारी आई। मर गया बैठ बैठ कर,‘ हूं! क्या नाम है?’ मुझे बिलकुल खाली देख उनका पीए घूरा।
‘ रामजी दास! जनाब को जन्मदिन की शुभकामनाएं देना चाहता हूं! बस!!’
‘क्या काम करते हो?’
‘ प्रधानमंत्री रोजगार योजना में सबको देने के बाद जो बचता है, करता हूं।’
‘चलो अंदर! पता नहीं कहां कहां से उठकर खाली हाथ चले आते हैं।’ और मैं उनसे मिलने अंदर। वे कुर्सी पर जन्मदिन इतने दिन जक मना शुभकामनाएं ले लेकर पूरी तरह थके हुए।
‘नमस्कार जी!’
‘ कौन??’
‘जी मैं रामजी दास !’
‘पर तुम तो मेरे जलसे के लिए हो। यहां कैसे आ गए?’
‘ जन्मदिन की शुभकामनाएं देने आया हूं।’
देख लो ,साथ में कोई समस्या तो नहीं लाए हो? समस्या से मुझे बहुत चिढ़ है।’ उनके कहने पर मैंने खुद को झाड़ा तो पता नहीं कहां से मरी एक समस्या झड़ गई। मैं इसे साथ लेकर तो आया नहीं था। समस्या फर्श पर गिरते देख वे गुस्साए,‘ यार! कम से कम जन्मदिन वाले दिन तो रंग में भंग मत डाला करो। जब देखो! कपड़ों की जगह समस्याओं को ओढ़े घूमते रहते हो। तुम लोगों के साथ यही तो एक प्राब्लम है। तभी तो तुम लोगों से सरकार में आने के बाद हम लोगों को मिलना कतई भी अच्छा नहीं लगता। प्राब्लम के अतिरिक्त कभी तो कुछ और भी लाया करो यार!’
‘अपने जन्म महीने में आप जनहित में क्या करना चाहते हो सर जी!’
‘सबसे पहले तो जनहित में इस महीने अपने लिए चार फार्म हाउस बनाऊंगा। जनता के कामों से जब जब थका करूंगा तो जनता के लिए रीफ्रेश होने कहीं भी चला जाया करूंगा ताकि मीडिया को पता ही न चले कि मै थक कर कहां हूं। फिर जनहित में इसी महीने अपने दिल का इलाज करवाने विदेश जाऊंगा ताकि लंबे समय तक जनता की सेवा कर सकूं। फिर जनहित में पक्की सड़कों को तुड़वा उन्हें फिर और पक्की करवाऊंगा। इसी महीने जनहित में अपनी दवाई की फैक्टरी की सप्लाई सरकारी अस्पतालों में लगवाऊंगा जनहित में गरीब बस्ती उठवा वहां फाइव स्टार होटल का पत्थर रखवाऊंगा। जनहित में अपने जन्म महीने में अपने नाम के दस और शिक्षा संस्थान खुलवाऊंगा ताकि वहां पर जनता के बच्चे चैन से पढ़ सकें। इसी महीने जनहित में ऊंचे पदों पर अपनों को बिठाऊंगा ताकि वे बेहिचके मेरे एंगिल से जनसेवा कर सकें।
‘और??’
‘अपने जन्म महीने में जनहित में शहर के अपने बंगले को और बड़ा करूंगा ताकि दूसरे नेताओं के आगे तुम्हारे नेता का कद बौना न लगे। विपक्ष की ऐसी तैसी घूमा कर रख दूंगा।‘
‘और????’
‘यार! बहुत नहीं हो गया एक महीने के लिए! काम करवा करवाकर मुझे मारने का इरादा है क्या!! तुम लोगों के साथ यही तो एक सबसे बड़ी मुश्किल है। दारू की बोतल ले एक वोट क्या देते हो सोचते हो स्वर्ग जमीन पर उतारने वाला मिल गया।’
‘जन्म मुबारक हो सर जी। आप जिओ हजारों साल, दिन के एक घंटे हो एक लाख!’

डॉ.अशोक गौतम

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बैठकबाज का कहना है :

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

मज़ा आ गया ! इस व्यवस्था की जीती जगती तस्वीर दिखाई

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