अपने देश की सरकार की वैसे तो बहुत सी खासियतें हैं पर उसकी सबसे बड़ी खासियत है कि वह जिंदों को रोटी देने में भले ही कोताही बरते पर उनके हताहत होने पर उन्हें बड़ी धूमधाम से श्रद्धांजलि देना कभी नहीं भूलती।
त्रासदियों के दौर में उस त्रासदी में खासतौर पर उन हताहतों को श्रद्धांजलि लेने के लिए विशेष रूप से महीना पहले निमंत्रण पत्र जारी कर दिए गए थे जिनके पीछे बचों को लचर व्यवस्था के चलते राहत राशि न मिल सकी थी । और उनके पीछे बचे वाले उस राहत राशि में से हताहतों के क्रिया कर्म पर अनमने मन से ही सही, फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं कर पाए थे जिस कारण वे अभी तक प्रेत यानि में ही विचरण कर रहे थे।
अशांत प्रेतों को जैसे ही निमंत्रण पत्र मिले तो वे फूले न समाए। उन्हें इस बात की प्रसन्नता थी कि चलो! आज सरकार बेशक सबकुछ भूल रही है पर प्रेतों को श्रद्धांजलि वाली डेट तो नहीं भूली। जनता को सरकारी डिपुओं पर समय पर राशन पहुंचे या न पहुंचे पर प्रेतों को उनके श्रद्धांजलि समारोह के निमंत्रण पत्र समय पर मिलते रहे हैं। सरकार के प्रति एकबार फिर उन प्रेतों के मन में गहरी आस्था जगी। अब जनता चिल्लाती रहे तो सरकार क्या करे साहब! जनता को चाहिए कि वह प्रेतों से कुछ सीखें।
नियत समय से दो घंटे बाद एक खुले अति सुरक्षित मैदान में त्रासदी में हताहत प्रेतात्माओं को श्रद्धांजलि देने का दौर शुरू हुआ। श्रद्धांजलि की तैयारियां वैसे तो डीसी साहब की देखरेख में पिछली शाम ही पूरी तरह पूरी हो चुकी थीं। नेता जी ने उन्हें साफ कह दिया था कि दो चार दिन वे जिले के सारे कामों को छोड़ श्रद्धांजलि के आयोजन पर खुद को केंद्रित करें ताकि विपक्ष को उंगली उठाने को कोई भी मौका हाथ न लगे। अगर ऐसा वे नहीं कर पाए तो उनके पास उन्हें किसी पिछड़े जिले में भेजने के अतिरिक्त और कोई चारा न होगा। अब डीसी साहब कहां जाते बेचारे!
श्रद्धांजलि समारोह का उदघाट्न नेता जी ने किया तो पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा। श्रद्धांजलि समारोह में आए हताहतों के परिवार जनों के खाने पीने का विशेष इंतजाम किया गया था ताकि उन्हें इस बात का मलाल न हो कि उन्हें तो अनदेखा किया ही जा रहा है पर प्रेतों के प्रति भी सरकार उदासीन है।
लोंगों की भीड़ को देख नेता जी का सीना फूलता ही जा रहा था। वे मन ही मन त्रासदी में मरने वालों का धन्यवाद कर रहे थे कि न वे लोग इस त्रासदी का शिकार होते और न ही उन्हें उम्मीद से अधिक भीड़ को संबोधित करने का सुअवसर मिलता। आज मजा आ गया भाषण देने का।
नेता जी के काजू बादाम पर हाथ साफ करने के बाद श्रद्धांजलि आयोजन संयोजक ने नेता जी से कार्यक्रम को आरंभ करने की इजाजत मांगी तो उन्होंने खिलखिलाकर इजाजत दी।
सामने के पेड़ पर उल्टी सीधी लटकी प्रेतात्माएं दिल को थाम कार्यक्रम को देख फूली न समा रही थीं। उनके दिल की धड़कनें रूकी हुईं थी। उन्हें इस त्रासदी में मरना भूख से मरने वालों से सौ गुणा बेहतर लग रहा था। राहत राशि मिले न मिले। इससे उन्हें क्या! जो बचे हैं वे चोरी चकारी कर खाएं कमाएं। जिन हताहतों के परिवारों को राहत राशि मिली भी उन्हें कौन सी नरक से राहत मिली? हां उससे उनके पीछे बचों के महीना दो महीना मौज जरूर रही।
तभी एक चमचमाती कार से फिल्मों की हीरोइन उतरी तो पेड़ों पर लटकी त्रासदी की शिकार प्रेतात्माएं झूम उठीं। वे तो बड़ी देर से इस हीरोइन का इंतजार कर रही थीं। ज्यों ही हीरोइन ने गाड़ी से अपने कदम जमीन पर रखे तो सारा पंडाल तालियों से गूंज उठा। लगा भीड़ त्रासदी में हताहतों को श्रद्धांजलि देने के लिए नहीं , हीरोइन के दर्शन के लिए इकट्ठी हुई हो। नेता जी हीरोइन के गले लगे तो जन्नत मिली।
श्रद्धांजलि आयोजन के संयोजक ने हीरोइन के हाथ में चार फूल धरे तो हीरोइन के हाथों का हल्का सा स्पर्श पा वह भी भवसागर पार हुआ।
हीरोइन ने मंद मंद चल मंच पर त्रासदी के हताहतों के प्रतीक रूपी बुत के आगे फूल पूरे फिल्मी स्टाइल में चढ़ाए तो श्रद्धांजलि देने आए लोग तो लोग, श्रद्धांजलि कार्यक्रम देखने आई पे्रतात्माएं भी अपनी प्रेत योनि को भूल कुलांचे भरती हुई प्रेतलोक को बिना किसी डर के सपनों में खोई वापस लौट गईं इस आस के साथ कि अगले साल इस बहाने सरकार इससे भी खूबसूरत हीरोइन के दर्शन करवाएगीे। यार, मजा आ गया,कसम से। मेरा भी सरकार से आग्रह रहेगा कि वह अगले श्रद्धांजलि समारोह में अच्छी सी हीरोइन को विशेष अतिथि के रूप में लाए ताकि प्रेत होने का मजा बना रहे। राहत राशि जाए भाड़ में।
अशोक गौतम
गौतम निवास,अप्पर सेरी रोड, सोलन-173212 हि.प्र.
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बैठकबाज का कहना है :
रचना अच्छी लगी।
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