Friday, December 25, 2009

3 इडियट्स : गांधीगीरी से इडियटगीरी तक ... आल इज वेल

प्रशेन ह. क्यावल द्वारा फिल्म समीक्षा

राजकुमार हिरानी अपने मुन्नाभाई सीरिज की फिल्मों के द्वारा दर्शकों को सकारात्मक सोच के साथ दिल जज्बा लेकर जिंदगी के मुश्किल चुनौतियों का सामना करने की सीख देते आये हैं। मुन्नाभाई सीरिज से हटकर इस बार वह लेकर आये हैं 3 इडियट्स जो चेतन भगत के सफल उपन्यास पर आधारित है।

क्या राजकुमार हिरानी तीसरी बार भी छक्का लगा पाए है... ?

कथा सारांश:

चेतन भगत की प्रसिद्ध उपन्यास से राजूने सिर्फ आधार बनाया है और उसकी जमीन पर अपनी कथा की नीव रखी है। तो कथा कुछ इस तरह है कि रांचो (आमिर खान) एक ऐसे छात्र हैं जो कॉलेज सिर्फ रटने के लिए नहीं, ज्ञान बटोरने के लिए आते हैं। इंजीनियरिंग उनका जूनून है। इसि बात को वह सब दोस्त और शिक्षकों को समझाना चाहते हैं। पर उनके दो रूममेट्स राजू रस्तोगी (शरमन जोशी) और फरहान कुरैशी (माधवन) के अलावा कोई और समझ नहीं पाता। इन तीनों में गहरी दोस्तीं हो जाती है और रांचो की सोच से दोनों में बहुत से सकारात्मक बदलाव आते हैं जो उनके जीवन को एक ठोस लक्ष्य देते हैं।

पर कॉलेज के आखरी दिन रांचो बिना बताये गायब हो जाता है। कहा जाता है रांचो.. क्या उसके 2 दोस्त उसे ढूंढ़ पाते हैं? पर इस तरह जाता ही क्यूँ है वह?

पटकथा:

उपन्यास की सशक्त जमीन पर कहानी की ठोस नीव रखकर राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी ने पटकथा का ऐसा महल खड़ा किया है, जिसकी सुन्दरता और असाधारणता के गुण कई साल गाये जायेंगे। विधु विनोद चोपड़ा ने भी सहायक के तौर पर अपने सुझाव पटकथा में दिए हैं। मुन्नाभाई जैसे 3 इडियट्स की पटकथा से भी फिल्मों के छात्र अभ्यास करेंगे।

दिग्दर्शन:

सशक्त जमीन और ठोस नीव पर खड़े अपने ताजमहल को राजूने अपने दिग्दर्शन से कुछ इस तरह निखारते हैं कि देखने वाले दंग रह जाते हैं। सकारात्मक वातावरण बरकरार रखते हुए संजीदा करने वाला उनका हुनर तो आज के पीढ़ी में सिर्फ उन्हीं के पास है। जिस तरीके से कहानी के प्रस्तुतीकरण पे उनकी पकड़ है वह सच में काबिलेतारीफ है। राजू ऐसे ही ऊँचे दर्जे की फिल्मे बनाते रहे और हमें अपनी फिल्मों की कहानी और किरदारों के जगत में समा जाने दें। हमारी हार्दिक शुभेच्छाएँ हमेशा उनके साथ हैं।

अभिनय:

आमिर जिस फिल्म में होते हैं उस फिल्म में सभी को अपना सबसे बेस्ट देना पड़ता है। और आमिर ही ऐसे कलाकार हैं जो पूरी फिल्म के परिणाम स्वरुप हरेक को अपने किरदार को पूरी तरह से प्रस्तुत करने में मदद करते हैं। ये फिल्म जितनी आमिर की है उतनी ही बाकी सबकी भी है। आमिर ने तो अपने जिंदगी में और एक ऊँचाई को छू ही लिया है पर शरमन जोशी और माधवन ने भी अपने किरदार को पूरी इमानदारी से निभाया है। ओमकर के जो नए कलाकार हैं उन्होंने चतुर के किरदार में अमिट छाप छोड़ी है। उनका भाषण सबको हँसा-हँसा कर लोट पोट कर देता है।

करीना कपूर और बोमेन इरानी ने बेहतरीन अदाकारी का प्रदर्शन किया है। मोना सिंह और जावेद जाफरी भी अपने छोटे रोले में छा गए हैं।

चित्रांकन:

मनाली से शिमला तक और फिर लद्दाख तक बेहेतरीन सिनेमाटोग्राफी भी इस फिल्म की एक जोरदार पेशकश है। फ्लैशबैक में ब्लैक एंड व्हाइट का अच्छे से इस्तेमाल किया गया है।

संगीत और पार्श्वसंगीत:

स्वानंद किरकिरे द्वारा लिखित और शांतनु मोइत्रा द्वारा संगीतबद्ध किये गए गीत आज ऊपरी पायदान पर हैं। मजेदार गीत और सुहाना संगीत 3 गानों को तो लोगों के होंठों पर रखने में कामयाब है।

संकलन:

चुस्त संकलन के कारण इतनी बड़ी होने के बावजूद फिल्म में एक में बार भी दर्शकों की नजर परदे से नहीं हटतीं। ये जितना श्रेय दिग्दर्शक को जाता है उतना ही असरदार संकलन को भी जाता है।

निर्माण की गुणवत्ता:

विधु विनोद चोपड़ा ने निर्माण की गुणवत्ता में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उन्हें सराहा जाना चाहिए इतने सारे जिनिअस लोगों को साथ लेकर ये प्रोजेक्ट खड़ा कर के प्रस्तुत करने के लिए। ये कोई शिव धनुष उठाने से कम बड़ा काम नहीं था। और उन्होंने ये काम बखूबी निभाया है।

लेखा-जोखा:

*** (4.5 तारे)

हिंदी चित्रपट जगत में जिन फिल्मों के नाम आदर से लिए जायेंगे उनमें राजकुमार हिरानी की ये फिल्म भी जरूर रहेगी। अपनी संजीदा सोच को सर्वसामान्य दर्शकों की पसंद को मद्देनजर रखकर पेश करना उन्हें खूब आता है। तो आप किस चीज की राह देख रहे है? उठिए, दौड़िए, पूरे मोहल्ले के साथ ये फिल्म देखने जाइये। जनाब! ऐसी फिल्में बार-बार नहीं बनती हैं।

चित्रपट समीक्षक:- प्रशेन ह.क्यावल

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

2 बैठकबाजों का कहना है :

Sandeep Agrawal का कहना है कि -

बहुत अच्छी समीक्षा है.फिल्म देखने ले लिए मजबूर कर देती है.

Silent Observer का कहना है कि -

yeh

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)