Friday, November 06, 2009

अजब प्रेम की गजब कहानी : हँसी के गुब्बारे

प्रशेन ह. क्यावल द्वारा फिल्म समीक्षा

"अंदाज अपना अपना" जैसी क्लासिक कॉमेडी फिल्म देने वाले राजकुमार संतोषी कई सालों से इस कथा प्रकार से दूर थे। उनकी बहुत सारी फिल्में भी बीच में फ्लॉप हुईं। इसी बीच ऐसे देखा गया कि एक संजीदा फिल्म से भी ज्यादा बिज़नेस एक औसत दर्जे की कॉमेडी फिल्म कर लेती है। शायद यही सोचकर एक हिट फिल्म देने की आस में राजकुमार संतोषी लेकर आये है, रणबीर कपूर और कैटरिना कैफ की "अजब प्रेम की गजब कहानी"।

शीर्षक से ही मजेदार लगने वाली ये फिल्म क्या दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करने में कामयाब हो पाई है? क्या इस फिल्म में वह बात है जो दर्शकों को राजकुमार संतोषी के निर्देशन का लोहा मनवा सके?

कथा सारांश:

प्रेम (रणबीर कपूर) नामक एक मस्तमौला जवान अपने कलंदर दोस्तों के साथ ऊटी में एक "हैप्पी क्लब" नाम का ग्रुप चलाता है। प्रेम इस क्लब का स्वघोषित प्रेसिडेंट है और सदा ही वह टैग अपने शर्ट पे लगा कर घूमता है। इस क्लब का काम है मुसीबत में फँसे प्रेमियों की मदद करके उन्हें मिलाना। इसी चक्कर में वह अपने दोस्त के लिए एक लड़की को उठा कर के उनकी शादी करा देता है।

ये सब देख के जेनी (कैटरिना कैफ) नामक एक सुंदरी प्रेम और उसके दोस्तों को अगवा करने वाली टोली समझ बैठती है। जेनी के पिता प्रेम के ही दिलाये हुए फ्लैट को रेंट पे लेते है। प्रेम जेनी से मन ही मन में मुहब्बत कर बैठता है पर कुछ कह नहीं पता। लेकिन वह उसकी हर बात मानता है और उसके लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहता है। इसी चक्कर में वह जो उट-पटांग हरकतें करता है, वही इस फिल्म की कहानी है।

पटकथा:

कहानी तो छोटी और सीधी-साधी लगती है पर राजकुमार संतोषी ने पटकथा को कुछ इस तरह निखारा है कि फिल्म दर्शकों को पकड़े रखती है और हँसाने पे मजबूर भी करती है। पर कुछ कुछ गिग्स याने कॉमेडी दृश्य कामयाब होते हैं तो कुछ फीके पड़ते हैं।

कथा में नायक नायिका के पास आने और दूर जाने के सिलसिले बार-बार होने के कारण कभी-कभी कम असरदार लगते हैं। और विलन का ट्रैक बीच में ही घुसेड़ा हुआ सा लगता है।

आर. डी. तेलंग लिखित संवाद मजेदार है जो सीधे-साधे दृश्यों में भी जान डालते हैं।

दिग्दर्शन:

राजकुमार संतोष का संजीदा फिल्मों के साथ-साथ कॉमेडी में भी कोई हाथ नहीं पकड़ सकता, यह उन्होंने फिर से साबित कर दिया है। कैरिकेचर तरीके से शूट की गयी ये फिल्म बच्चों और बूढों सहित सभी को भर पेट हँसाएगी। राजकुमार संतोषी फिर से ये दिखा देते हैं कि उट-पटांग हरकतें और अश्लील हावभाव और संवादों के बिना भी कॉमेडी फिल्म बनायीं जा सकती है। एकदम साफ़ सुथरी और हँसी से भरपूर फिल्म बनाने के लिए राजकुमार संतोषी का हार्दिक अभिनन्दन।

पर ये बात ज़रूर है के वे फिल्म को और क्रिस्प बना सकते थे। एक दो गाने कम कर सकते थे और कुछ कम असरदार कॉमेडी को हटा सकते थे। फिल्म की लम्बाई कम भी होती तो चलता, मगर असर कम नहीं होना चाहिए। दर्शकों को कुछ और सोचने का मौका नहीं मिलना चाहिए।

अभिनय:

ये फिल्म पूरी की पूरी रणबीर कपूर के अभिनय गुणों को उजागर करती है। रणबीर ने जिस फुर्ती और समझदारी से इस किरदार को निभाया है कि उनके जेनरेशन का कोई भी अभिनेता उनके सामने फीका पड़ जाए। रणबीर स्क्रीन पर अपने प्रभाव से चमका देते हैं। उन्होंने एक पार्टी में डांस वाले दृश्य को आने वाले कई सालों के लिए यादगार बना दिया है। यह ऐसा दृश्य है जिसमें लोगों की हँसते-हँसते कुर्सी से नीचे गिरने की संभावना है। रणबीर वाकई अगले सुपर स्टार हैं।

उनके अलावा कैटरिना ने भी पहली बार कॉमेडी करते हुए भी अच्छी अदाकारी दिखाई है। वे दिखती भी ऐसी हैं कि किसी को भी दीवाना कर दें। बाकि सभी चरित्र कलाकारों ने भी पूरी ईमानदारी और लगन से अपना काम निभा कर फिल्म में पूरी तरह से योगदान दिया है। दर्शन जरीवाला, स्मिता जयकर, गोविन्द नामदेव आदि ने अच्छा अभिनय किया है। साजीद डॉन के किरदार में जाकिर हुसैन फिट नहीं बैठते। उनकी जगह किसी और को ये मौका देना चाहिए था। उपेन पटेल ठीक-ठाक हैं।

रणबीर के हैप्पी क्लब के मेम्बेर्स का किरदार करने वाले अभिनेताओं का अभिनन्दन। उन्हें अच्छे-खासे दृश्य और संवाद मिले हैं और उन्होंने उसमे चार-चाँद लगा दिए हैं।

चित्रांकन और स्पेशल एफ्फेक्ट्स:

चित्रांकन उत्तम दर्जे का है और निर्माण की गुणवत्ता को दर्शाता है. कैरिकेचर स्टाइल रहने के कारण राजकुमार संतोषी ने स्पेशल एफ्फेक्ट्स का खुले दिल से कॉमेडी करने में उपयोग किया है, और ५ मिनिट का वह दृश्य जहाँ प्रेम ऑफिस जाता है, वह दर्शकों को हँसा-हँसा के लोटपोट कर देता है।

संगीत और पार्श्वसंगीत:

प्रीतम का संगीत जबरदस्त है और हिट है. पर्श्वसंगीत दृश्यानुरूप है।

संकलन:

संगणकीय संकलन (कम्प्यूटराइज्ड एडीटिंग) सॉफ्टवेर के अच्छे गुणों का उपयोग करते हुए संकलक ने जो स्टाइल उसे किया है, वह फिल्म को और ज्यादा मोशन देता है और कहानी का फ्लो सही रखता है। पर वही.. अनावश्यक और गति में बाधा डालने वाले दृश्यों और गानों को उन्हें कम करना चाहिए था।

निर्माण की गुणवत्ता:

टिप्स के तौरानी भाइयों द्वारा निर्मित ये फिल्म कम लागत में ऊँचे दर्जे की गुणवत्ता और असरदार मनोरंजन का एक अच्छा उदाहरण है। फिल्म की बजट कण्ट्रोल में रख कर फिल्म के कंटेंट की ओर ज्यादा ध्यान देकर उन्होंने एक मिसाल कायम की है। और इसी कारण फिल्म सभी को मुनाफा देगी।

लेखा-जोखा:

*** 1/2 (3.5 तारे)
एक तारा साफ़ सुथरी मनोरंजक पेशकश के लिए जो पूरी फॅमिली एक साथ देख सकते हैं। एक तारा करिकेचर स्टाइल के दिग्दर्शन के लिए राजकुमार संतोषी को। एक तारा खास रणबीर कपूर के अदाकारी को। और आधा तारा सभी के अभिनय और फिल्म के संगीत को।

आप सभी घरवालों और दोस्तों के साथ ये फिल्म ज़रूर देखिये। आपका वीक-एंड हँसी के गुब्बारों से खेलते हुए बीतेगा।

चित्रपट समीक्षक: --- प्रशेन ह.क्यावल

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6 बैठकबाजों का कहना है :

वाणी गीत का कहना है कि -

मतलब ...देख ही लें ...इस अजब प्रेम की गजब कहानी को ..!!

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इस सप्ताहांत तो भाई मैं इसे देख रहा हूँ। प्रशेन तो बड़ी मुश्किल से किसी फिल्म की तारीफ़ करते हैं। अब इन्होंने जिस तरह से समीक्षा की है, उस तरह से तो बहुत मज़ेदार फिल्म होगी।

आलोक साहिल का कहना है कि -

बहुत गजब प्रतीत हो रही है यह अजब सी प्रेम कहानी...
अब जिस फ़िल्म में समीक्षक को बताने के लिए इतनी खूबियां हों, भला उसे कैसे मिस कर सकते हैं.... शुक्रिया प्रशेन जी...बाकी बातें फ़िल्म देखने के बाद करेंगे...
आलोक "साहिल"

kishore ghildiyal का कहना है कि -

aakhir naam se hi sahi film dekhne laayak to bani hi hain

Aniruddha Sharma का कहना है कि -

राजकुमार संतोषी इस प्रयास के लिए वाकई धन्यवाद् के हक़दार हैं. अंदाज़ अपना अपना के बाद मैं हमेशा सोचता था कि संतोषी फिर से कोई केसी क्यों नहीं
बनाते...लेकिन ये फिल्म देखकर ये विश्वास और भी पक्का हुआ कि महान फिल्में अपने आप बनती हैं, वो एक फिल्मकार की एक ख़ास स्टेट ऑफ़ मंद
की पैदाइश होती हैं. ऐसी फिल्में एक जुनून से आकार लेती हैं. संतोषी अंदाज़ अपना अपना को दोहरा तो नहीं पाए लेकिन फिर भी उन्होंने दिखा दिया कि
उटपटांग हरकतों और द्विअर्थी संवादों को कॉमेडी नहीं कहते. कटरीना कैफ फिल्म कि सबसे कमज़ोर कड़ी हैं लेकिन आज फिल्मकारों को उन्हें लेना मजबूरी है
क्योंकि अच्छी अदाकारों का इंडस्ट्री में अकाल है. आजकल अदाकारा को उसकी अदाकारी से नहीं उसके जिस्म से आँका जाता है वरना कैटरिना को ठीक
तरह से हिंदी बोलनी भी नहीं आती हाँ पर वे सुन्दर हैं इसमें दो मत नहीं.
प्रशेन का कहना सही है कि जाकिर हुसैन डॉन के रोल में उतने नहीं जंचे. याद आती है परेश रावल की अंदाज़ अपना अपना में. लाजवाब अभिनय. इस फिल्म में
कुछ चीज़ें अंदाज़... से ली हुई हैं जैसे अपहरण प्लान. गोविन्द नामदेव कॉमेडी करने के चक्कर में ओवरएक्टिंग कर गए. उपेन पटेल से कोई भी उम्मीद करना मूर्खता होगी. उसे कोई कैसे काम दे देता है समझ में नहीं आता.
प्रशेन जी कि समीक्षा अच्छी लगी बधाई!

Hetprakash vyas का कहना है कि -

film to dekhne ka mood tha hi lekin apki samiksha ne to Jan hi le lii. very good review.
Het vyas

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