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Saturday, December 12, 2009

रॉकेट सिंह : आकाश की उंचाईयों में

प्रशेन ह. क्यावल द्वारा फिल्म समीक्षा

हृषिकेश मुखर्जी एक ऐसे निर्देशक हैं जिन्हें कभी भी डिजायनर ड्रेसेस और चमकते सेट्स की जरूरत नहीं पड़ी। फिर भी उनकी फिल्में आज क्लासिक्स कहलाती हैं। मैं ऐसे ही सोच रहा था कि आजकल की फिल्में इसलिए बेअसर होने लगी हैं क्योंकि उनमें सब कुछ डिजायनर हो गया है। सेट्स, कपड़े (हीरो कहानी में फटीचर हो तो भी डिजायनर जींस पहनेगा) और बुरी बात तो ये है कि एक्टिंग और भावनाएँ भी डिजायनर। तो होता ये है कि दर्शक किरदारों से जुड़ ही नहीं पाता तो उनके दुःख दर्द में कैसे घुल मिल सकेगा? और जब तक किरदार दर्शकों को नहीं लुभायेंगे, फिल्म कैसे लुभा पायेगी?

पर जैसे ही मैंने रॉकेट सिंह : द सेल्समैन ऑफ द यीअर देखी, मुझे उम्मीदें दिखने लगी कि आज भी भावनाओं और किरदारों पर काम कर के बिना चका-चौंध के फिल्में बनाने वाले हैं।

कथा सारांश :

कथा सारांश कुछ इस प्रकार है कि हरप्रीत (रणबीर कपूर) एक सीधा-साधा नौजवान है जो अपने दादाजी के प्यार और संस्कारों के साथ बड़ा हुआ है। वो पढ़ाई में अच्छा नहीं है पर आपसी रिश्तों में और लोगों से काम निकलवाने में उस्ताद है। इसलिए वह सोचता है कि वह सबसे अच्छा सेल्समन बन सकता है। हरप्रीत को जॉब भी मिल जाती है। पर कंपनी के तौर तरीकों से जब वह वाकिफ़ होता है तो उसे पता चलता है कि यह जगह उसके लिए नहीं है। फिर एक समय पे वह उसके इमानदारी के वजह से कंपनी में जलील होता है तो वह कंपनी में रहते खुद का काम चालू कर देता है। अपनी इस छोटी कंपनी को वह नाम देता है "रोकेट सेल्स"। देखते ही देखते ये कंपनी उसके मालिक के कंपनी को कारोबार में चुनौती देने लगती है। आगे क्या होता है यही कहानी है इस फिल्म की।

पटकथा:

जयदीप साहनी द्वारा लिखित इस फिल्म की कहानी और पटकथा को आनेवाली पीढियां फ़िल्मी अभ्यास का एक महत्वपूर्ण सन्दर्भ मानकर पढेंगी। इनके भरोसे और हिम्मत की दाद देनी चाहिए कि एक मामूली से सेल्समन की कहानी इतने रोचक तरीके से सुनहरे पर्दे पर लाने की कोशिश इन्होने की... और क्या असरदार कोशिश है ... माशाल्लाह ! आगे बढ़ते रहिये जयदीप सहनी !

दिग्दर्शन:

शिमित अमिन ने अपनी पिछली दोनों फिल्मों में अपने हुनर का लोहा मनवाया है। इस बार भी वह चूके नहीं हैं। ये फिल्म दिखने में जितनी सिम्पल है उतनी ही ज्यादा कठिन फिल्माने में है। सहजता और सादगी से भरी इस फिल्म की कहानी, पटकथा और किरदारों को बखूबी इन्साफ दिया है शिमित ने अपने सफल दिग्दर्शन से।

अभिनय:

अभिनय की बात करें तो फिल्म में गिने-चुने ही जाने-पहचाने चेहरे हैं और बाकी सब कलाकार नए हैं। पर शिमित ने जिस तरह से उनसे काम निकलवाया है उसे जितनी दाद दी जाय कम होगी। सभी के नाम नेट पर उपलब्ध नहीं है वरना सभी एक विशेष उल्लेख के हक़दार हैं। रणबीर कपूर हर फिल्म में साबित करते जा रहे है के वह किस मिट्टी से बने हैं। लगातार तीसरी दमदार अदाकारी वाली फिल्म देकर उन्होंने जल्द ही नंबर वन का मुकाम पाने की और दौड़ लगाना शुरू कर दिया है। इनका उतने ही अच्छे तरीके से साथ दिया है गौहर खान, डी. संतोष, प्रेम चोपड़ा ने। नयी लड़की शहनाज़ पदमसी ठीक है पर उसका रोले ही छोटा है। विशेष नाम लेना जरूरी है उन कलाकारों का जिन्होंने हरप्रीत के बॉस और कंपनी मालिक का रोल निभाया है।

चित्रांकन :

बिना किसी चमक-धमक और ऊँचे सेट्स के सिनेमेटोग्राफ्रर नौलखा ने फिल्म को प्रदर्शनीय रूप दिया है। ये अपने आप में बड़ी सफलता है।

संगीत और पार्श्वसंगीत:

कहानी और पटकथा में गानों के लिए कोई जगह नहीं है पर पार्श्वसंगीत में सलीम सुलेमान ने अच्छा काम किया है।

संकलन:

अरिंदम घटक का संकलन उत्तम है पर मुझे लगता है पटकथा और दिग्दर्शन इतना परिणामकारक है कि उन्हें विशेष कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी होगी।

निर्माण की गुणवत्ता:

जिस तरीके के माहौल की पटकथा को जरूरत है, उसे निर्माण करने में ज्यादा लागत नहीं लगी होगी पर पटकथा के तौर पर इमानदारी बरतकर निर्माता ने जो रिस्क लिया है वह काबिले तारीफ है। ये फिल्म चलेगी कि नहीं, ये तो आप दर्शक ही बताएंगे पर मेरे हिसाब से ये इस साल की कुछ अच्छी फिल्मों में से एक जरूर है।

लेखा-जोखा:

*** (4 तारे)

ये लगातार दूसरे सप्ताह मुझे 4 तारे देने का मौका मिला है। जब अच्छी फिल्म आती हैं तो मुझे खूब खुशियाँ मिलती हैं। आप भी ये खुशियाँ अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ समेट लें। जिन्हें हृषिकेश मुखर्जी की फिल्में पसंद हैं (न कि सिर्फ उनकी कॉमेडी) उन्हें ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए।

चित्रपट समीक्षक:--- प्रशेन ह.क्यावल

Friday, November 06, 2009

अजब प्रेम की गजब कहानी : हँसी के गुब्बारे

प्रशेन ह. क्यावल द्वारा फिल्म समीक्षा

"अंदाज अपना अपना" जैसी क्लासिक कॉमेडी फिल्म देने वाले राजकुमार संतोषी कई सालों से इस कथा प्रकार से दूर थे। उनकी बहुत सारी फिल्में भी बीच में फ्लॉप हुईं। इसी बीच ऐसे देखा गया कि एक संजीदा फिल्म से भी ज्यादा बिज़नेस एक औसत दर्जे की कॉमेडी फिल्म कर लेती है। शायद यही सोचकर एक हिट फिल्म देने की आस में राजकुमार संतोषी लेकर आये है, रणबीर कपूर और कैटरिना कैफ की "अजब प्रेम की गजब कहानी"।

शीर्षक से ही मजेदार लगने वाली ये फिल्म क्या दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करने में कामयाब हो पाई है? क्या इस फिल्म में वह बात है जो दर्शकों को राजकुमार संतोषी के निर्देशन का लोहा मनवा सके?

कथा सारांश:

प्रेम (रणबीर कपूर) नामक एक मस्तमौला जवान अपने कलंदर दोस्तों के साथ ऊटी में एक "हैप्पी क्लब" नाम का ग्रुप चलाता है। प्रेम इस क्लब का स्वघोषित प्रेसिडेंट है और सदा ही वह टैग अपने शर्ट पे लगा कर घूमता है। इस क्लब का काम है मुसीबत में फँसे प्रेमियों की मदद करके उन्हें मिलाना। इसी चक्कर में वह अपने दोस्त के लिए एक लड़की को उठा कर के उनकी शादी करा देता है।

ये सब देख के जेनी (कैटरिना कैफ) नामक एक सुंदरी प्रेम और उसके दोस्तों को अगवा करने वाली टोली समझ बैठती है। जेनी के पिता प्रेम के ही दिलाये हुए फ्लैट को रेंट पे लेते है। प्रेम जेनी से मन ही मन में मुहब्बत कर बैठता है पर कुछ कह नहीं पता। लेकिन वह उसकी हर बात मानता है और उसके लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहता है। इसी चक्कर में वह जो उट-पटांग हरकतें करता है, वही इस फिल्म की कहानी है।

पटकथा:

कहानी तो छोटी और सीधी-साधी लगती है पर राजकुमार संतोषी ने पटकथा को कुछ इस तरह निखारा है कि फिल्म दर्शकों को पकड़े रखती है और हँसाने पे मजबूर भी करती है। पर कुछ कुछ गिग्स याने कॉमेडी दृश्य कामयाब होते हैं तो कुछ फीके पड़ते हैं।

कथा में नायक नायिका के पास आने और दूर जाने के सिलसिले बार-बार होने के कारण कभी-कभी कम असरदार लगते हैं। और विलन का ट्रैक बीच में ही घुसेड़ा हुआ सा लगता है।

आर. डी. तेलंग लिखित संवाद मजेदार है जो सीधे-साधे दृश्यों में भी जान डालते हैं।

दिग्दर्शन:

राजकुमार संतोष का संजीदा फिल्मों के साथ-साथ कॉमेडी में भी कोई हाथ नहीं पकड़ सकता, यह उन्होंने फिर से साबित कर दिया है। कैरिकेचर तरीके से शूट की गयी ये फिल्म बच्चों और बूढों सहित सभी को भर पेट हँसाएगी। राजकुमार संतोषी फिर से ये दिखा देते हैं कि उट-पटांग हरकतें और अश्लील हावभाव और संवादों के बिना भी कॉमेडी फिल्म बनायीं जा सकती है। एकदम साफ़ सुथरी और हँसी से भरपूर फिल्म बनाने के लिए राजकुमार संतोषी का हार्दिक अभिनन्दन।

पर ये बात ज़रूर है के वे फिल्म को और क्रिस्प बना सकते थे। एक दो गाने कम कर सकते थे और कुछ कम असरदार कॉमेडी को हटा सकते थे। फिल्म की लम्बाई कम भी होती तो चलता, मगर असर कम नहीं होना चाहिए। दर्शकों को कुछ और सोचने का मौका नहीं मिलना चाहिए।

अभिनय:

ये फिल्म पूरी की पूरी रणबीर कपूर के अभिनय गुणों को उजागर करती है। रणबीर ने जिस फुर्ती और समझदारी से इस किरदार को निभाया है कि उनके जेनरेशन का कोई भी अभिनेता उनके सामने फीका पड़ जाए। रणबीर स्क्रीन पर अपने प्रभाव से चमका देते हैं। उन्होंने एक पार्टी में डांस वाले दृश्य को आने वाले कई सालों के लिए यादगार बना दिया है। यह ऐसा दृश्य है जिसमें लोगों की हँसते-हँसते कुर्सी से नीचे गिरने की संभावना है। रणबीर वाकई अगले सुपर स्टार हैं।

उनके अलावा कैटरिना ने भी पहली बार कॉमेडी करते हुए भी अच्छी अदाकारी दिखाई है। वे दिखती भी ऐसी हैं कि किसी को भी दीवाना कर दें। बाकि सभी चरित्र कलाकारों ने भी पूरी ईमानदारी और लगन से अपना काम निभा कर फिल्म में पूरी तरह से योगदान दिया है। दर्शन जरीवाला, स्मिता जयकर, गोविन्द नामदेव आदि ने अच्छा अभिनय किया है। साजीद डॉन के किरदार में जाकिर हुसैन फिट नहीं बैठते। उनकी जगह किसी और को ये मौका देना चाहिए था। उपेन पटेल ठीक-ठाक हैं।

रणबीर के हैप्पी क्लब के मेम्बेर्स का किरदार करने वाले अभिनेताओं का अभिनन्दन। उन्हें अच्छे-खासे दृश्य और संवाद मिले हैं और उन्होंने उसमे चार-चाँद लगा दिए हैं।

चित्रांकन और स्पेशल एफ्फेक्ट्स:

चित्रांकन उत्तम दर्जे का है और निर्माण की गुणवत्ता को दर्शाता है. कैरिकेचर स्टाइल रहने के कारण राजकुमार संतोषी ने स्पेशल एफ्फेक्ट्स का खुले दिल से कॉमेडी करने में उपयोग किया है, और ५ मिनिट का वह दृश्य जहाँ प्रेम ऑफिस जाता है, वह दर्शकों को हँसा-हँसा के लोटपोट कर देता है।

संगीत और पार्श्वसंगीत:

प्रीतम का संगीत जबरदस्त है और हिट है. पर्श्वसंगीत दृश्यानुरूप है।

संकलन:

संगणकीय संकलन (कम्प्यूटराइज्ड एडीटिंग) सॉफ्टवेर के अच्छे गुणों का उपयोग करते हुए संकलक ने जो स्टाइल उसे किया है, वह फिल्म को और ज्यादा मोशन देता है और कहानी का फ्लो सही रखता है। पर वही.. अनावश्यक और गति में बाधा डालने वाले दृश्यों और गानों को उन्हें कम करना चाहिए था।

निर्माण की गुणवत्ता:

टिप्स के तौरानी भाइयों द्वारा निर्मित ये फिल्म कम लागत में ऊँचे दर्जे की गुणवत्ता और असरदार मनोरंजन का एक अच्छा उदाहरण है। फिल्म की बजट कण्ट्रोल में रख कर फिल्म के कंटेंट की ओर ज्यादा ध्यान देकर उन्होंने एक मिसाल कायम की है। और इसी कारण फिल्म सभी को मुनाफा देगी।

लेखा-जोखा:

*** 1/2 (3.5 तारे)
एक तारा साफ़ सुथरी मनोरंजक पेशकश के लिए जो पूरी फॅमिली एक साथ देख सकते हैं। एक तारा करिकेचर स्टाइल के दिग्दर्शन के लिए राजकुमार संतोषी को। एक तारा खास रणबीर कपूर के अदाकारी को। और आधा तारा सभी के अभिनय और फिल्म के संगीत को।

आप सभी घरवालों और दोस्तों के साथ ये फिल्म ज़रूर देखिये। आपका वीक-एंड हँसी के गुब्बारों से खेलते हुए बीतेगा।

चित्रपट समीक्षक: --- प्रशेन ह.क्यावल