बच्चों को नौजवान बना दे, और बूढ़ों मे कूट-कूट कर भर दे जवानी! जी हॉं , अदभुत चमत्कारी हैं ये जी.बी. रानी। ये न कोई अंग्रजी दवा हैं न फ्रेंच , न स्पैनिश , न चीनी दवा। न ही किसी पहाड़ की जड़ी-बूटी हैं न ही कोई आयुर्वेदिक या हकीमी नुस्खा ! बाबा रामदेव के योग का भी नहीं है इनमें सूत-कपास-चरखा ! ये देश के गरीबों पर हैं बेहद मेहरबान, अमीरों को बिलकुल ही घास नहीं डालती हैं, ये अद्भुत कद्रदान ! माना कि वेदों-पुराणों , कुरान, बाईबिल , गुरुग्रन्थ साहिब , अजावेस्ता इत्यादि में नहीं है इनके वर्णन की बहार , फिर भी जो पा जाये इनका प्यार , उसे तार-तार करके देती हैं उसे तार ! चुस्ती , फुर्ती , चैतन्यता , चपलता का देती हैं ये उसे उपहार ! ये तुम्हारी ही महान कृपा है जो मैं घटती उम्र के बावजूद , लोगों को दिखता हूं स्मार्ट ,यंग , फुर्तीला और दमदार !!
आइए शुरु करता हूं इनकी राम कहानी। जी.बी. का अर्थ है भारतीय रेल की जनरल बोगी, जिसमें पन्द्रह-बीस बार सफर कर लेने के बाद कोई नहीं रहता है रोगी। या तो रोग चला जाता है, या फिर रोगी ही चला जाता है हमेशा-हमेशा के लिए, या तो ए.सी. कम्पार्टमेण्ट जैसे, देवताओं के स्वर्ग में , अथवा अपेक्षाकृत जनरल बोगी से कम असुविधाजनक , तथाकथित नर्क में। ठसाठस भरी हुई , चांपा-चांपी से भरपूर जनरल बोगी, अपने आप में दुनिया की किसी भी जेल से बढ़के है, किसी भी पुलिस लॉकप में , धुनाई के बाद कोई मुजरिम , इतना चूर-चूर नहीं होता , जितना जनरल बोगी के दमघोंट माहौल में लोगों की दुलतियां-पंचललियां झेलने वाला- इसमें लगातार चालीस घंटे तक सफर करने वाला।
पहले एक पैर पर खड़े होके तपस्या करने वाले लोगों का लोग महान ऋषि-मुनि मानकर उनका सम्मान करते थे, मगर कैसा घोर कलयुग आ गया है कि पूरा या आधा सफर एक पैर खड़े होकर, करने वालों की आजकल कोई नोटिस ही नहीं लेता। महान तपस्वियों से महान, भयानक भीड़ में दबा-सहमा सा इनसान किसी भी तरह न पानी पीने का इन्तजाम कर सकता है, न खाने-पीने का, न ही ट्रेन के शौचालय में जाने का ! वास्तविक, जनरल बोगी में ! जिस बोगी में, यह सब दुष्कर कार्य आसान हो, उसे मैं किसी भी कीमत पर , वास्तविक जनरल बोगी मानने को तैयार नहीं। वो निश्चित रुप से ´´मुकद्दर का सिकन्दर´´ है जो कुली को उसका फिक्स्ड रेट देकर जी.बी. में बैठने की जगह पा जाता है, और वो साक्षात् ´शहंशाह´ है जो जी.आर.पी. वालों की मुट्ठी गरम करके , ऊपर सोने का जुगाड़ फिट कर लेता है! वो एक नम्बर का ´चालबाज´ व ´दस नम्बरी´ का बाप है , जो बगैर टिकट के उक्त दोनों में से किसी सुविधा का जुगाड़ कर लेता है। वास्तविक जी.बी. में , शातिर से शातिर चोर आपका सामान नहीं उड़ा सकता-चुरा भी ले तो पांच कदम भी लेके नहीं जा सकता , कोई आपको जहर खुरानी का शिकार नहीं बना सकता , जिसके पास एक पुड़िया ज़हर होगा वो खुद खाके जानलेवा यंत्रणा से मुक्ति चाहेगा या आपको खिलायेगा....कोई भी टी.टी. टिकट चेक करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता, और न ही कोई चाय वाला, खीरे वाला, आप तक पहुंचने की गुस्ताखी कर सकता है।
अब सवाल यह उठता है कि ऐसी तमाम व्यवस्थाओं के बावजूद जी.बी. रानी आपको कैसे बूढ़े से जवान बनाती हैं.. आपको पूरी तरह स्वस्थ, निरोग, चुस्ती-फुर्ती से भरपूर इन्सान बनाती हैं...अगर भगवान ने आपको मेरे जैसा दिमाग दिया होता, तो मुझे बताने की जरुरत नहीं पड़ती, मगर बताने की महती कृपा कर दे रहा हूं ताकि नासमझां तक की समझ में आ जाये, सौ टके की सच्ची बात ! पुलिस में भर्ती पाने वाले रंगरुटों को रोज सुबह मीलों दौड़ा के क्यों सताया जाता है, सेना में भर्ती होने वाले जवानों को, सौ तरह की बेहद कठिन कसरतों व उछल-कूद से क्यों गुजरना पड़ता है..क्रिकेट खेलने वालों को फिटनेस के नाम पर घंटों ´नेट´ पर पसीना बहाके चूर-चूर होने को क्यों विवश किया जाता है, कभी सोचा है आपने.. यह सब होता है इन्सान की मांसपेशियों, हडि्डयों, धमनियों-शिराओं से हर तरह की जकड़न, सुस्ती व शिथिलताएं बाहर भगाने के लिए !
जनरल बोगी। इस मामले में पूरी दूनिया में इसका कोई जवाब नहीं। चूंकि आजकल रामदेव बाबा ने आसनों एवं योग की महिमा को पुनर्जीवित व स्थापित किया है लिहाजा आसनों के माध्यम से आप सबको बात समझाने की कोशिश करता हूं।
गधासन- जब आप जी.बी. में खड़े रहते हैं किन्तु मजबूरन आपको अपना सामान अपने कंधों या सिर पर ही रखने की मजबूरी रहती है। इससे आपके कंधों की मांसपेशियां, गर्दन एवं सिर की हडि्डयां बेहद मजबूत होती हैं।
पंजासन- जब आपके पंजों पर दर्जनों लोगों के पांवों का बारी-बारी इतना दबाव पड़े कि आप कराह उठें-चीत्कार उठें। इससे पांवों के पंजे, बिल्ली या शेर के पंजों से ज्यादा मजबूत हो जाते हैं, धीरे-धीरे।
कम्प्रेशन आसन- जब आप जी.बी. के गलियारे में चारों और से इतना चंप जाये कि आपको अपना पोर-पोर टूटता महसूस हो तो सच मानिये कि आप ही वो भाग्यशाली हैं जो हजारों रुपये बचाते हुए बहुमूल्य मसाज-सेंक पा रहे हैं एक दम मुफ्त में। पोर-पोर को एवं फेफड़ों को चुस्त-दुरुस्त करने वाला आसन!
''वासन- जब आप कुछ मिनटों के लिए एकदम से “वास लेना ही भूल जायें। इस आसन से आप पानी में कभी भी नहीं डूब सकते, आंसू गैस आप पर असर नहीं करती और युद्ध छिड़ने पर बमों के धुएं आप का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हैं क्योंकि “वास रोकने की कला में आपको प्रवीण कर देती हैं जी.बी.
कपिआसन- लोगों के सिर पर जबरन, बेहयाई से पांव रखते हुए यदि आप वास्तव में उछल-कूद के, शौचालय तक पहुंच जायें तो कपि-आसन में दक्ष हो जाते हैं , इससे आप बानर की तरह फुर्तीले हो जाते हैं।
पायदान आसन- लाख प्रयास करके भी जब भयानक भीड़ के चलते बोगी में घुस सकें और पूरा सफर टेन के पायदान पर ही, भारी सांसत सहते-करना पड़े तो समझिए आपके पांव, हाथ एवं हाथ के पंजे बेहद मजबूत हो रहे हैं ,ऊंगलियों में असीम ऊर्जा का समावेश हो रहा है।
स्थानाभाव के कारण, ´एक पदासन´ संड़स्यासन, ´शीश झंकृति आसन, ´मिल्खासन´ आदि अनेक आसनों की व्याख्या नहीं कर पा रहा हूं , किन्तु अब तो आपको पक्का यकीन हो ही गया होगा कि कैसे जी.बी. रानी भरती हैं बूढों में जवानी- ´कूट-कूट कर। यदि आप अमीर हो, मोटापे या गठिया इत्यादि के शिकार हो तो कम से कम पच्चीस बार, वास्तविक, जी.बी. में कम से कम तीन सौ किलोमीटर की यात्रा करें और आशातीत लाभ होने पर मुझे धन्यवाद अवश्य दें। खैर, मैने तो कसम खा रखी है, जब तक जिऊंगा, जी.बी0.और सिर्फ जी.बी. में सफर करुंगा और चिर युवा बना रहूंगा। यदि आप ऐसा न कर रहे हों तो अपने मस्तिष्क की किसी डाक्टर से जांच अवश्य ही करा लें।
संदीप कुमार श्रीवास्तवलेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। फिलहाल इलाहाबाद के एक पत्रकारिता संस्थान में पढ़ाते हैं। बैठक पर ये इनका पहला लेख है.. )
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10 बैठकबाजों का कहना है :
Kya baat hai.Yhi to sbke dil ka haal hai.G.b rani hi nhi mumbai ki local raniyo ka bhi yhi haal hai.Roj inhi asno ka anubhav mumbikro ko hota hai,tbhi to jindadili ka ahsas hai.Sandeep ji Badhayee.
Behtareen Rachana..aapne kitane achche dhang se bhartiy rail ke khamiyon ko aur desh ki badhati jansankhya dono par prhaar kiya..
bahut bahut badhayi..
bahut hi badhiya...bahut mazedaar tariqe se itni pareshaniyon ko bayan kar diya...
संदीप जी,
जी. बी. रानी की महिमा को जानने से मैं वंचित रह जाती यदि आपका लेख ना पढ़ा होता. पढ़ कर लगा की बिना extra पैसा और समय लगाये ही उसमें सफ़र करते हुये इतने आसनों को करने की जो सुविधा मिलती है वह भला और कहाँ उपलब्ध हो सकती है. उसमें यात्रा करने का जिन्हें सौभाग्य मिलता है वह उन फायदों/कसरतों का आनंद उठा रहे हैं. वाह!! आपका लेख पढ़कर मुझे इतनी हंसी आई और ऐसी प्रतिक्रिया हुई मुझपर की मैं भी एक ख़ास क्रिया.....मेरा मतलब हँसासन से लाभ उठा रही हूँ. कसरत की हसरत जिन्हें हो उन्हें जी. बी. में यात्रा करके उसका भरपूर लाभ उठाना चाहिये. शरीर का एक तरह से यात्रा के अंत तक कचूमर सा बन जाता होगा.....आपका जी. बी रानी के बारे में इतना ज्ञान व लगाव सराहनीय है. क्या लाजबाब सोच है आपकी भी.....तन - मन भी चेतन्य रहता है व खुद व खुद कसरत भी हो जाती है.
बहुत धन्यबाद!
संदीप जी बहुत अच्छा लेख लिखा है आपने...मैं एक बार मुंबई से दिल्ली तक का सफर जीबी रानी में कर चुका हूं, वो भी दीवाली से एक दिन पहले, सोचिए आपके लेख का कितना मज़ा लिया होगा मैंने...
एक बात बैठक लगाने वालों से... कृप्या लेख पर फोटो लगाने से पहले देख लें... लेख में जो तस्वीर खींची गई है, चस्पां तस्वीर उससे मेल नहीं खाती... इससे तो अच्छा होता कि आप मनु-बेतख़ल्लुस जी से अनुरोध करते तो वो इसपर कार्टून का तड़का लगा देते...
अरे मैं अपना नाम लिखना तो भूल ही गया...
नाज़िम नक़वी
शीर्षक पर जब नजर गयी तो बहुत अच्छा लगा .जब शानदार आलेख पढा तो जी .बी रानी की व्यंग्य में पोल खुलने लगी . मुम्बई की जीवन रेखा लोकल का सजीव हाल प्रस्तुत कर दिया .बधाई .मंजू नवी मुम्बई .
बहुत ही सुन्दर तरीके से व्यंग कहा है आपने. आपकी सोच का जवाब नहीं. यह व्यंग एक बेजान व्यंग होता लेकिन आपने आसन वाली बात कहकर एक नया रंग जमा दिया. वाकई बहुत खुबसूरत. जितनी तारीफ की जाये काम है. व्यंग करने का आपका अंदाज़ निराला है.
आपके लिए कहना चाहूँगा
You wear my Pen as others do their Sword. To each affronting sot you meet, the word Is Satisfaction: straight to thrusts you go, And pointed satire runs him through and through
sundar asanon aur acchi bhasha me itni mahatvaporrna jankariyan uplabdh karane ke liye sandeep ji ko sadhuvad.
is vyanga ka sabse jyada anand wahi utha sakta hai jisne Gb rani me safar kiya ho aur main unme se hi ek khushnaseeb hoon.
badhai
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