
एक जगह दो पंक्तियाँ पढ़ीं थीं, शायद गोपालदास ’नीरज’ द्वारा लिखित हैं। यदि मैं गलत हूँ तो कृपया मुझे बता दें।
आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य।
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य॥
इन पंक्तियों को पढ़कर हर कोई कवि होना सौभाग्यशाली मानेगा। अगर किसी को पता चले कि फ़लां व्यक्ति कवितायें लिखता है तो वो अचम्भित हो जाता है। कविता लिखना आसान काम नहीं समझा जाता। कवि के सारे भाव उस कविता में समाहित हो जाते हैं। कवि गोपालदास की बात मानें तो काव्य और कुछ नहीं बल्कि आत्मा का सौंदर्य है जो कवि की लेखनी से बाहर आता है।
एक और पंक्ति है- जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि... कवि अपने शब्दों में ऐसी उपमायें लगा देता है कि साधारण से लगने वाले शब्द भी पढ़ने वाले के दिल को छू जाते हैं। लेकिन दिल से लिखने वाले कवि क्या दिल से अच्छे भी होते हैं? क्या जो लिखा जाता है वो कवि के मन में भी होता है? हो सकता है आज से दशकों पहले ये सवाल न उठता हो, पर आज मैं ये प्रश्न पूछने पर मजबूर हो गया हूँ।
हिन्दी ब्लॉगों की बढ़ती संख्या कहें, हिन्दी अब अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच रही है। जिस हिन्दी को हम नवीं दसवीं तक पढ़कर छोड़ दिया करते थे, आज उस हिन्दी में रोज़ लिख-पढ़ रहे हैं। शायद यही कारण है कि जो कागज़ पर लिखा करते थे, वे अब कम्प्यूटर पर लिखते हैं। जितनी अधिक ब्लॉगों की संख्या, उसी गति से कविताओं के ब्लॉग व साइट की संख्या में बढ़ोतरी।
ब्लॉगजगत पर आजकल एक अजीब सा ट्रैंड दिखाई देने लगा है। कवि एक दूसरे में गलतियाँ निकालने में रहने लगे हैं। उदाहरण देखिये एक ये और एक यहाँ। कोई कहता है कि "मेरी कविता उससे अच्छी", तो कोई कहता है कि फ़लां व्यक्ति की कविता छपने लायक ही नहीं थी। कभी कोई दोष तो कभी कोई। जिस तरह हमारे देश में हर कोई क्रिकेटरों को क्रिकेट सिखाने में लगा रहता है, ठीक उसी तरह ब्लॉग की दुनिया में हर "कवि" दूसरे को सिखाने में लगा हुआ है। क्योंकि हर कोई कहता है कि उसने खूब साहित्य पढ़ा है, इसलिये वो ही ठीक है।
कवि कहने लगते हैं कि फ़लां मंच उनकी कविताओं के लायक ही नहीं है। कवि कहने लगे हैं कि "मेरी कविता का कोई सानी नहीं इसलिये इस साइट पर मैं नहीं छापूँगा क्योंकि अच्छे पाठक नहीं आते"। कविता-अकविता पर विवाद होता है। अकविता क्या होती है ये कोई नहीं बताता। कविता क्या होती है इसकी परिभाषा भी मैंने कभी नहीं पढी क्योंकि मैंने खुद आठवीं के बाद हिन्दी नहीं पढ़ी। पर विवाद जरूर पढें हैं। उदाहरण के तौर पर यह कविता। एक उदाहरण यहाँ है । ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जायेंगे। शायद फिर कोई पाठक एक और उदाहरण चिपका जाये।
कुछ साइट तो अपने ब्लॉग पर से कमेंट तक ये कहकर हटा देती हैं कि वे "अभद्र" हैं। इस लिंक पर आप जायेंगे तो पाठकों की टिप्पणियों को पढ़कर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इनमें से कुछ कमेंट हटा लिये गये हैं। ये हाल तब है जब इस साईट को चलाने वाले खुद एक "कवि" हैं। अब कमेंट क्यों हटा लिये गये इन कारणों का पता नहीं। हटाई गई टिप्पणी तो मैं आपको नहीं पढ़ा सकता, लेकिन ऐसा कुछ साइट पर होता है इसका अंदाज़ा आप यहाँ जाकरपहली टिप्पणी पढ़ कर ही लगा सकते है। जब कवि ही कवि की बातों को अभद्र करार दे! आज हालात यह हैं कि कवि कोर्ट-केस की धमकी देने लगे हैं। ज़रा यहाँ जा कर पढें। हालाँकि टिप्पणीकार ने अपनी टिप्पणी को हटा लिया किन्तु फिर भी विवाद तो पता चल ही जायेगा। जिस प्रकार फिल्म इंडस्ट्री में एक दूसरे के गीत चुराने के इल्जाम लगते रहते हैं, वैसे ही अब कविता-जगत में भी शुरु हो गया है।
आजकल "अनामी" टिप्पणीकारों की संख्या में भी इजाफ़ा हो रहा है। ये पढ़िये। ऐसे "कवि" शायद डर गये हैं कि उनकी असलियत सामने न आ जाये। सच कहने से कैसा डर!! ऐसे तो न होते थे गुजरे जमाने के कवि। इसी कविता पर जा कर देखिये कैसे छुपकर "वार" करते हैं "कवि"। यहाँ भी एक डरपोक कवि बैठे हैं। समझ में यह नहीं आता कि सच बोलने से क्यों डरते हैं हम।
मैंने बचपन में संस्कृत के किसी श्लोक में पढ़ा था, जब आपके वाक्यों में "मैं" शब्द आ जाता है तो समझ लें कि "अहम" यानि अहंकार का प्रवेश हो गया है। कमोबेश वही हाल आजकल के कवियों का भी है। या यूँ कहें कि "ब्लॉगी कवि"। मेरा सवाल सरल है। क्या आजकल के इस प्रतियोगी युग में कवि भी कलियुग के शिकार हो गये हैं?
--तपन शर्मा
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13 बैठकबाजों का कहना है :
हिन्द युग्म मंच के माननीय नियंत्रक महोदय,
साहित्य शिल्पी www.sahityashilpi.com मंच का लिंक दे कर इस तरह की बाते पोस्ट में कहना आपके मंच को शोभा नहीं देता। कृपया किसी मंच का नाम उछालने अथवा उसके भीतर की किसी बात को अपने दृष्टिकोण से सार्वजनिक करने से पहले पूरी जानकारी रखें अथवा संदर्भित मंच को संज्ञान में अवश्य लें। दूसरी और महत्वपूर्र्ण बात कि साहित्य शिल्पी www.sahityashilpi.com मंच किसी "कवि" द्वारा नहीं चलाया जा रहा। यह एक सामूहिक मंच है और सर्वसम्मति वाले सिद्धांत पर कार्य कर आगे बढ रहा है। इसे एक "कवि" का मंच कहना आपकी अज्ञानता है।
अभद्र टिप्पणियाँ अनेक मंचों की समस्या है और संचालकों के पास उसे हटाने के सिवा कोई चारा नहीं रहता। हाल में ही नेट पर स्थित एक प्रमुख वेबजीन नें भी 'कमेंट मॉडरेशन' इसी समस्या से ग्रसित हो कर लगाया है। हम साहित्य शिल्पी www.sahityashilpi.com मंच पर अपने माननीय पाठकों एवं लेखकों के सम्मान को जानबूझ कर ठेस पहुचाने वाले प्रयासों को प्रोत्साहित नहीं करते तथा इसे आपके द्वारा "अहंकार" कहे जाने से सहमत नहीं हैं।
आप अपने ब्ळोग पर प्रकाशित रचनाओं पर विवेचना करें आप स्वतंत्र हैं किंतु साहित्य शिल्पी www.sahityashilpi.com जैसे जिम्मेदार मंच का उद्दरण देते समय आपसे पूरी जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है।
-साहित्य शिल्पी समूह।
(इसका अंदाज़ा आप यहाँ जाकर पहली टिप्पणी पढ़ कर ही लगा सकते है। जिस लिन्क की बात की जा रही है - यह आपकी पोस्ट का हिस्सा है)
किसी मंच का लिन्क अपनी पोस्ट में देने से पहले उसके बारे में सही सही जानकारी रखना जरूरी है शायद ये बात इस लेख के लेखक को मालूम नहीं है. किस बजह से टिप्पणी हटाई गई यह भी वह नहीं जानते. उसी लिन्क पर एक टिप्पणी अभी भी मौजूद है जो शायद "इसी लेख के लेखक की है" उसे उसी रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है.
"Anonymous March 23, 2009 6:52 AM
पहले तो 'आयी हयात' नहीं बल्कि 'लायी हयात' है, आपका व्याकरण ज्ञान महज़ 'आवरद' तक सीमित है, जो 'आमद' की नहीं सोचता! अगर आप सही विवेचना पर विश्वास रखते हैं तो इस टिप्पणी को हटाये नहीं, यह आपकी बुराई नहीं आपकी शिक्षा है!
-- अदना"
इस टिप्पणी के उत्तर में मेरी टिप्पणी यह थी
"मोहिन्दर कुमार March 23, 2009 10:19 AM
अनोनिमस जी,
आपको पूरे आलेख में सिर्फ़ आयी और लायी ही नजर आया जो कि एक टाईपोग्रफ़ीकल मिस्टेक हो सकती है..
आलोचना से किसी को भी इन्कार नहीं है मगर वो सार्थक होनी चाहिये न कि ह्तोसाहित करने वाली...आप पहले भी ऐसी टिप्पणिया कर चुके हैं और यह आपकी मानसिक कुंठता का ही प्रतीक हैं.
सतपाल जी निश्चय ही आपके लेखों से सीखने वालों को बहुत कुछ मिला है. आप निरर्थक टिप्पणियों को अनदेखा कर लिखते रहिये.. हमें यह मान कर चलना चाहिये कि सभी.. इंजन या ड्व्वे नहीं होते जो लोगों को गन्त्वय यक पहुंचाते हैं.. कुछ लोग सिर्फ़ ब्रेक का काम जानते हैं
राजीव जी से अनुरोध है कि वह मेल से टिप्प्णी के नोटिफ़िकेशन को ओन करें ताकि अनोनिमस टिप्पणी करने वालों तक पहूंचा जा सके."
यदि साहित्य शिल्पी को आलोचना से इन्कार होता तो "अदना जी" की टिप्पणी को भी हटाया जा सकता था.. परन्तु ऐसा नहीं हुआ. जो टिप्पणिया हटाई गई वह इस कारण से हटाई गई कि उनकी भाषा और सार किसी भी भद्र व्यक्ति के लिये पढना शर्म की बात थी. हम अपनी साईट पर साहित्य चाहते हैं न कि गाली और कूडा कचरा.
साहित्य शिल्पी एक सजग मंच है और यह बात आगे से ध्यान में रखी जानी चाहिये.
ddd
कुछ नहीं.
हिन्दी साहित्य में
ब्लोग्गिने से अपना काम बनाने
और गुटबाजी करके पैसा कमाने के वास्ते
बधाई
मेरे खयाल से यह लेख एक व्यक्तिगत विचार है और बैठक हर तरह के व्यक्तिगत विचारों का खुला मंच है....इसमें किसी विशेष मंच या कवि का नाम उछालने जैसी कोई बात ही नहीं है....हम ऐसे लेख अक्सर प्रकाशित करते रहते हैं, जिनमें लोगों, मंचों, स्थानों के नाम का ज़िक्र होता है....
किसी भी तरह की आपत्ति के समाधान के लिए 9818634975 पर संपर्क किया जा सकता है...ये लेखक का टेलीफोन नं. है.....हम चाहेंगे कि अन्य मंचों से भी लोग यहां लिखें..हम हर तरह के लेखों का स्वागत करते हैं.....
निखिल आनंद गिरि
संपादक, बैठक
अरे वाह तपन जी,
क्या बैठक जमाई है आपने ,,,अभी अभी पढा पढ़ कर मजा आया ,,,बहुत सी अगली पिछली बाते ,,भूली बाते ताजा हुई,,,, बस एक शिकायत रह गई ,,के ये लेख हमारी सलाह के बिना ही आपने पोस्ट कर दिया,,,,,
मेरे भाई ,
जब लगभग सभी रचनाओं में मेरा नाम है तो मुझसे सलाह तो कर ही लेते ,,,,,मैं शायद और भी मदद करता आपकी,,,,,मसलन इसमें शायद एकाध जगह पर एक ही पोस्ट दो बार खुल रही है,,,,मुझसे कहा होता तो ढेर लगा देता आपकी जानकारियों का,,,,,मुझे ये कहने में कोई परेशानी नहीं के कभी कभी अनाम बन जाता हूँ,,,,,पर किसी को तंग करने के लिए नहीं,,,,केवल मस्ती के लिए,,,,,
अगर किसी को कुच्छ कडा कहना हो तो सीधे सीधे ही बात करता हूँ,,,,जैसे अभी ये कमेन्ट लिख रहा हूँ,,,,बंद करते करते मूड हुआ तो अनाम भी लिख सकता हूँ,,,,,क्यूंकि इसमें किसी को कुछ गलत नहीं कहा है अब तक,,,,,,,,, पर अब काफी समय से ये प्रयोग बंद कर रखा है,,,,,(अब एक दूसरा प्रयोग चल रहा है,,),,,,,,,हाँ यदि कोई तल्ख़ बात लिखूंगा तो खुलकर ,,,,,सामने वाले को पता रहे के बात किस से हो रही है,,,,और शायद उस से ज्यादा ना समझ कौन होगा जो लिखने पर इतनी मेहनत भी करे,,,अपनी रात काली करे ,,,दिमाग में टेंशन भी पाले ,,,,,,
और किसी को पता ही ना चल पाए के आखिर इतनी जहमत उठाई किसने है,,,,?
कौन है जो लेख को इतने ध्यान से पढता है,,,,,,?
किसको पता है के कहा पर क्या कमी है,,,कौन जानता है के क्या क्या बात एतराज के काबिल है और क्या क्या ठीक है,,,,,,?
इतनी माथा पच्ची करके अगर कोई अनाम बनता है ,,तो क्या कहेंगे उसे आप,,,,,,??
और हाँ,
मेरे इन,,,,dash ,,,,,,,dash से आप कुछ गलत ना समझियेगा,,,,,
और हाँ, एक आपने मुझ पर अहसान भी क्या है,,,,बहुत ही बड़ा,,,,,अब मुझे किसी को ये समझाने की जरूरत नहीं है के मैं किसी से कोई जाती दुश्मनी के कारण कुछ कहता हूँ,,,,,,,हिंद युग्म मेरे लिए घर परिवार जैसा है,,,,,और यहीं पर मेरी सभी तरह की ऊट पटांग भी सख्त भी पसंद की भी,,,,नापसंद की भी,,,,किलासने की ,खुद किल्सने की ,,,,,
हर तरह की टिपण्णी हर रंग में मौजूद है,,,,,कम से कम ये तो साबित हुआ के मैं अपनी बात कहने के लिए कोई जगह नहीं देखता और ना ही सामने वाले की ऊंचाई ,,,,, दुसरे वाली बात पर शायद में गलत हो सकता हूँ,,,,( वो भी हमेशा नहीं)
पर ये तो सिद्ध हुआ के यदि हमारा अपनी बात कहने का दिल है तो हम कहेंगे,,,,,खुलकर कहेंगे,,,,,
इस लेख के लिए बहुत बहुत बधाई हो,,,,,
ज्याद ही मेहनत हो गई तो अब मस्ती के लिए एनिमाउस नहीं बनूंगा,,,,,,,
क्या पता इसका सारा क्रेडिट किसको मिल जाए,,,???
::::::::::::)):::::::::))
ये भी सिर्फ स्माइल है,,,
आज बहुत दिन बाद हिंदी युग्म पर टिप्पडी कर रहा हूँ वो भी इस लिए की चुप रहते नहीं बना
आपने जो भी लिंक दिए किसी को मैंने नहीं खोला मेरा किसी मंच से कोई लेना देना नहीं है
बस आपसे यही कहना चाहता हूँ की मल करने वाले को गन्दा कहाँ जाये या मल को छितरा छितरा कर बिखेरने वाले को गन्दा कहाँ जाये
मैं बस यही पूछना चाहता हूँ इस लेख को लिखने वाले महोदय से की आप मल को छितरा छितरा कर क्या साबित करना चाहते है
हिंदी युग्म पहले अपने अन्दर झांके फिर किसी और से कुछ कहे
आपने कभी उस टिप्पडी को नहीं मिटाया जिससे विवाद हो रहा हो तो इसमें आपको अपनी महानता दिख रही
शायद पहल आप मेरी टिप्पडी को मिटा कर करैं
वीनस केसरी
नियंत्रक महोदय ,
बिना कुछ पढ़े भी यदि कोई टिपण्णी हो,,,,,
उसे क्या समझा जाए,,,,,हम तो हर बात को देख भाल कर अपनी तरफ से टिपण्णी करते हैं,,,
खैर,,,,, क्या आप इस सभ्य टिपण्णी को मिटाना चाहेंगे,,,,,?????
देख लीजिये,,
आपको एक नयी शुरूआत करने का मौका दिया जा रहा है,,,,,,
ना,,,,,, नहीं,, नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
थोड़ी सी बदबूदार जरूर है पर अभी अभद्र नहीं हुयी है,,,,,,अभी काफी गुन्जाइशे हैं,,,,,
अभी शायद और ,,,,,,
खैर,,,,,,फिलहाल तो नाक पर रुमाल रखकर बर्दाश्त किया जा सकता है,,,,,
Very Mature Observation तपन भाई ....
सादर
दिव्य प्रकाश
http://www.youtube.com/watch?v=oIv1N9Wg_Kg
h
क्या पोस्ट डाली है तपन जी,,,,
एनिमाउस आ भी रहे हैं और कुछ कह भी नहीं पा रहे,,,
एकदम मस्त ,,,,,,,,
मजा आ गया,,,,,,
मैं तो कहूंगा के इसका पार्ट --२ भी लिख ही डालिए,,,,,
क्या बात है तपन जी बहुत ही बढ़िया लेख प्रस्तुत किया है आपने , मैं इस बात से तो सहमत हूँ की कभी कभी कुछ कवि अहंकारी हो जाते है पर ऐसा भी नही है की समझाने के तौर पर की गयी बात को भी अंहकार कहा जाये |
लेखन एक ऐसी विधा है जिसमे जो जितना ज्यादा समझ रखता है वही बड़ा होता है उम्र इसमें कोई सीमा नहीं होती , कभी कभी एक छोटा और साधारण लेखक जो बात कहता है वो बड़े बड़े कहने की जेहमत नही उठा पाते | इसी बात पर अपना लिखा एक दोहा प्रस्तुत करना चाहुगा शायद इस लेख में रौशनी डाल सकूँ :
मैं अपने को जप रहा चादर से निकले पाँव ,
अभिमानी जन के होवे नही कोई नाम और गाँव ||
अर्थ ये की जो लोग अभिमानी होते हैं उनकी दशा वैसी ही होती है जैसी उस व्यक्ति की जिसका न कोई घर होता हे न पता |
धन्यवाद
अभि ताम्रकार
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