हमारे देश का इतिहास विश्व में सबसे पुराना है। इस देश में धर्मों और सम्प्रदायों की कोई कमी नहीं। एक ढूँढो हजार मिलते हैं। और हर कोई कहता है कि 'हमसे बेहतर कोई नहीं'। खैर ये ईश्वर में श्रद्धा का विषय है। लेकिन इसी धर्म ने एक और चीज़ पैदा की.... वो है अँधविश्वास-इसे मैं कईं बार घर्म का साइड-इफेक्ट मानता हूँ। ईश्वर में आस्था अलग है पर जब यही आस्था बढ़ जाती है तो अँधविश्वास का रूप ले लेती है। आज बात इसी पर होगी। वैसे ये विश्वास और अँधविश्वास बहुत अच्छी तरह से बिकता है। टीवी पर कभी काल-कपाल दिखाई देते हैं। कभी साईं बाबा की फूलों की माला बढ़ जाती है तो कभी किसी भगवान की फोटों में आँखों से पानी आने लगता है। कभी तांत्रिक विद्या का लाइव प्रसारण होता है तो कभी लोगो को हाथों के इशारे से गिरते हुए दिखाया जाता है। पता नहीं न्यूज़ चैनल चाहते क्या हैं।
पीछे एक खबर देखी। हुआ यूँ कि नागपुर में भाजपा की बैठक शुरु होनी थी सुबह ११.३० बजे पर शुरु हुई १२ बजे। मुझे नहीं पता कि यह गलती से हुआ या जानबूझ कर। चैनल ने बताया कि ११.३० से १२ तक राहुकाल था और १२ बजे के बाद अविजीत काल जिसमें शुरु किया हुआ हर काम सफल होता है। फिर उन्होंने हैडलाइन दी- भाजपा का अँधविश्वास। मुझे हँसी आ गई। जो चैनल सुबह-सवेरे तीन देवियों के साथ आकर हमारे ग्रह-तारे बताता है वो चैनल अँधविश्वास की बात करता है!!
पिछले २ वर्षों में ज्योतिष का कारोबार चार गुना तक बढ़ा है। मंदी के दौर में केवल यही पेशा मुनाफे में है। पिछले कुछ सालों में शनिदेव और साईंबाबा के मंदिरों में बढ़ोतरी इन्हीं पंडितों और ज्योतिषियों की मेहरबानी है। मेरे इलाके में एक आदमी आता है। हर पूर्णिमा, अमावस्या, मंगलवार, शनिवार, अष्ट्मी, सक्रांति, शिवरात्रि व प्रत्येक त्योहार में। अच्छा हट्टा-कट्टा है पर हर दूसरे दिन माँगने आता है। कभी तेल, कभी अनाज। और हमारे देश में वैसे भी भोले लोग हैं जो उसे तेल इत्यादि दे देते हैं। वैसे फुटपाथों पर तेल के डिब्बे-से भी पड़े दिख जायेंगे और लोग उसमें पैसे डाल देते हैं। अच्छी कमाई का जरिया है ये "धार्मिक भीख"। कभी यह श्रद्धा हुआ करती थी आज कल कमाई के धंधे।
लेकिन बात उस घटना की जिसने मुझे यह लेख लिखने के लिये प्रेरित किया। उस आदमी की जिसे देख कर मैं मेरे इलाके में तेल माँगने से तुलना करने लगा। अभी कुछ दिन पहले की बात थी मैं ऑफिस जा रहा था कि मुझे चौराहे के बीचों-बीच एक रिक्शा दिखाई दिया। उसमें दो लोग सवार थे। दिल्ली की भीड़ से हर कोई वाकिफ है। उस भीड़ में वो रिक्शा वाला रिक्शा खींच रहा था। लेकिन ऐसा क्या था जो उसका जिक्र यहाँ करना जरुरी है? दरअसल उसका बाँया हाथ नहीं था!! वो केवल दायें हाथ से रिक्शे को खींच रहा था। उसमें मुझे दृढ़-संकल्प और विश्वास दिखाई दिया।
दो लोग..एक हृष्ट-पुष्ट और दूसरा विकलांग...एक आलसी और भिखारी व दूसरा उतना ही मेहनती और हिम्मती। एक अँध-विश्वास तो दूसरा दृढ़ विश्वास का प्रतीक। इस देश को कैसे व्यक्ति चाहिये ये हम सब समझ सकते हैं।
तपन शर्मा
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4 बैठकबाजों का कहना है :
तपन तुमने बिल्कुल ठीक लिखा। आज धर्म के नाम पर अनेक आडम्बर तो हैं किन्तु कर्म कुछ भी नहीं। नई पीढ़ी को इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए और अपनी कलम से क्रान्ति लानी चाहिए।
तपन भाई ,
एक जीवंत उदाहरण से प्रेरित हो लेख लिखने के लिए धन्यवाद |
हम निज स्वार्थ में इतना खो गए हैं कि अपनी गलतियों के लिए देश की विभिन्नता और धर्म - सम्प्रदाय को दोषी मानते हैं |
धर्मों का जीवन में होना आवश्यक है |
संतुलन की आवश्यकता है |
अवनीश तिवारी
आपने बिल्कुल सही कहा- विश्वास अच्छी बात है लेकिन अंध-विश्वास बहुत सी बुराईयों को जन्म देता है और इसमे मुख्य भूमिका निभाते हैं आजकल टी.वी चैनल
बड़ी ही खूबसूरती से बहुत बड़ी बात केह गए तपन भाई ... बधाई ....
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