कोई भी लेख लिखना जाने क्यूं मुझे असुविधा जनक सा लगता है.....पर कभी-कभी ऐसा कुछ घट जाता है के ये बेहद मुश्किल काम भी किए बग़ैर चैन नहीं पड़ता...अभी एक ख़बर पढ़ी थी मंग्लुरु की...एक नयी- नवेली सेना द्बारा पब संस्कृति के विरोध की ......पब संस्कृति का मैं भी किसी भी तरह से पक्षधर नहीं हूँ.....ना यूँ खुले आम उन्मुक्तता ही मुझे पसंद है.....हाँ खुला होना एक अलग बात है...लिहाजा मुझे भी इस सेना का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि मेरे ख्यालात समझ कर उनहोंने इस का विरोध किया... मगर क्या विरोध किया.....? क्या किसी को ऐसा करने का हक है..? विरोध करने के क्या यही तरीके रह गए हैं...?
अगर लड़कियों के बयान पर भी गौर करें तो (और गौर क्यूं ना करें..? वो भी तो इसी मुल्क की नागरिक हैं... ना भी हों तो इंसान तो हैं ही..) तो उनके मुताबिक वहाँ पर विरोध प्रकट करने के नाम पर जो मार-पिटाई हुई...बाल पकड़ कर घसीटा गया...बदतमीज़ियां की गयीं......और तो और कपड़े तक उतरवाने की बात हो गयी.. तो अब इस विरोध का क्या अर्थ निकाला जाए...क्या वास्तव में ये लोग "नग्नता" का विरोध करने गए थे...साफ़-साफ़ नहीं लगता आपको कि कौन-सी कुंठाएं लेकर गए थे वहाँ पर...? इस से अधिक स्पष्ट तो मेरे ख्याल से और क्या होगा...?
हो सकता है सेना प्रमुख कहें कि इस में कुछ बाहरी लोग भी शामिल हो गए होंगे...... लेकिन एक आग के ख़िलाफ़ दूसरी आग भड़काना कहाँ तक ठीक है...और इस आयोजन से होने वाले नुक्सान का जिम्मेवार कौन है...."नुक़सान" से मेरा मतलब है कि उन लड़कियों के सारे नही तो कुछ बयानों में तो सच्चाई होगी ही .... यही कहा जायेगा कि सब राजनीति का खेल है.....चुनाव का चक्कर है ......पब्लिसिटी स्टंट है....और बात ख़त्म ..... हाँ मालूम है कि इन महान लोगों के बगैर तो ना राजनीति चल सकती है, ना चुनाव ही हो सकते हैं ...और देश का, कल्चर का, सभ्यता-संस्कृति का तो उद्धार कदापि नहीं हो सकता.....पर ज़रा उन चंद लड़कियों के दिल से तो कोई पूछ कर तो देखे कि उस वक्त उनके दिल पर क्या बीती होगी ...चाहे कैसी भी ग़लत राह पर कुछ युवा जा रहे हों ...पर ये अपमान किस तरह से शोभा देता है....इस से हमारी कौन सी सभ्यता का सिर ऊंचा हो जायेगा...कौन सी संस्कृति फले-फूलेगी.....और नैतिकता ...........????
इश्वर किसी को भी इतना नैतिक ना बनाए ..जिन्हें दंगे फसाद टाइप के ये आयोजन भी नैतिक कार्यवाई लगते हों, उनकी अक्ल पर हंसूं या रोऊँ ....अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का सबको हक है...हाँ ...जो संयम से, सही तरीके से जियेगा वो ख़ुद पर अहसान करेगा....और नहीं तो जल्द बर्बाद हो जायेगा ...इससे ज्यादा और क्या.......
(दोनों कार्टून लेखक ने ही बनाये हैं...)मनु "बे-तक्ख्ल्लुस
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18 बैठकबाजों का कहना है :
बहुत सही कहा आपने....पूर्ण सहमत हूँ.
मनु भाई,
मै आपकी बात से सहमत हूँ, मै ये भी कहना चाहता हूँ, पब संसकृति को समाप्त करना है तो बच्चो को नैतिक शिक्षा देनी चाहिए और जो बच्चे पब जाते है जब उनके माता पिता ही चुप हो तो हमे क्या हक है पब मे जाकर उनहे पीटने की, ये लोग भगवान के नाम पर सेना बनाकर लोगो को पीटते है, भगवान के नाम को भी बदनाम कर रहे है
अगर लडकिया वहां जाती है तो उनके माता पिता से कहो, सरे आम इस तरह बे-इज्जत करने से हमारी संस्कृति ही बदनाम होगी, और मीडिया को breaking news मिलेगी
सुमित भारद्वाज
संस्क्रति रोज अपनी परिभाषाये बदल रही है ....बड़ा कंफ्युस हूँ
मनु भाई, आपकी बात से असहमत होने की कोई वजह नज़र नहीं आती.........
समस्या यह है की हम उन्हे समझाने की बेवकुफ़ाना कोशिश कर रहे हैं जिन्हे सिर्फ़ अपनी रोटी दिखतीहै......वोट की रोटी
आलोक सिंह "साहिल"
अरे अनुराग जी,कंफ्यूज मत होइए जनाब....
बेहतर होगा अपने विचारों मे उनके विचारों को भी फ्यूज कर लीजिए...क्योंकि वी तो बदलने से रहे........अरे भाई मरते दम तक इंसान को रोटी की दरकार होती है........
आलोक सिंह "साहिल"
राम सेना ने पब्लिसिटी स्टंट किया.. और बाकि पार्टियाँ राजनीति कर रही है...
मेरा एक दोस्त है बैंग्लोर से.. उसने कहा कि अच्छा हुआ पब बंद हो गये बैंग्लोर के...क्योंकि वो परिवार के साथ रहता है...
कहने का अर्थ ये कि पब किसी के लिये अच्छे हैं किसी के लिये बुरे...
पर किसी पर हमला करना... ये उचित नहीं...
सभी बैठकबाजों का स्वागत है....मुझे ये चित्र बनाते हुए कई दिन हो गए हैं....कई बनाए ...फ़िर फाड़े....पर अब भी लगता है के जो वहशत मैं महसूस किए बैठा हूँ ....उसका ज़रा सा भी अंश इनमें ना डाल सका...........वाकई रंग ,लेखनी,तूलिका.....सब कम पड़ जाता है ...अगर कोई चीज भीतर तक चोट करे ...उसे अभिव्यक्त करने के लिए.... अगर महसूस कर के देखें तो दिल एक ..अजब सा दर्द महसूस करता है......उन लोगों के लिए .....जो के बे शक ग़लत राह पर जा रहे हैं.........पर उसके लिए ये सज़ा.....ये बदसलूकी ...अपनी गन्दी कुंठा यूँ उन पर निकालना ...जिन्हें हम ठीक करने जा रहे हैं......ऐसे.......???
aur nikhil ji shukriyaa .....apne salaah karke mujhe ek kashmkash se nikaal liyaa......
apni baat kahne ke liye auron ko bhi dekhna zaroori hotaa hai..
मैं तो इतना जानता हूँ निखिल जी किसी को भी (न सरकार को, न श्री राम सेना को) किसी की निजी जिंदगी में दखलंदाजी करने का कोई हक़ नहीं है...
जहाँ तक मुझे लगता है हर चीज को कहने का ढंग होता है ठीक तरीके से कही जाए तो असरदार होती .पर सेना के लोगोंने अपना भी मतलब निकला .तो क्या ये मरियादा के खिलाफ नही था ? स्वतंत्रता होनी चाहिए पर एक दायरे के अंदर . ये मै मानती हूँ ,पर उस को कहने और रोकने का तरीका बहुत ही ग़लत है
मनु जी आप ने बहुत सही लिखा है और आप के कार्टून तो कमाल है
सादर
रचना
सही है....
मनु जी.. अब तो समझ में नही आता कि सीमाएं क्या हैं और वास्तविक संस्कृति क्या है सीमाएँ हर जगह लाँघी जा रही है। सबसे ज्यादा वही लाँघ रहे है जो इसकी रक्षा का दावा करते हैं।
मनु जी.. अब तो समझ में नही आता कि सीमाएं क्या हैं और वास्तविक संस्कृति क्या है सीमाएँ हर जगह लाँघी जा रही है। सबसे ज्यादा वही लाँघ रहे है जो इसकी रक्षा का दावा करते हैं।
पब पर पाबंदी मुश्किल है पूर्णतया, लेकिन इसे ऐसे सुधारा जाए जिससे संस्कृति पर कुप्रभाव नही पड़े |
भारत जैसे diversity वाले देश में संतुलन बनाना सबसे मुश्किल काम है |
हर मुद्दा जाती और धर्म से जुड़ जाता है | वैधानिक तरीका एक उपाय है |
अवनीश तिवारी
संस्कृति के नाम पर ये संगठन दुर्व्यवहार करते हैं वो शायद संस्कृति में है?
आपने बिल्कुल सही लिखा है पब से किसी को विरोध हो सकता है किसी को नही पर विरोध करने का तरीका होना चाहिए
वस्तुतः वो लोग अपनी कुंठाओं के चलते वहां गए थे
चलो दिलदार चलो
हम हैं तैयार चलो
चाहे लेके उधार चलो
श्याम सखा श्याम
मनुजी... बहुत ही सार्थक लेख लिखा है आपने... बधाई...भविष्य उन्हीं का है जो परिवर्तन चाहते हैं...
वाह भई.. बहुत खूब अब तो हम भी पब ..वब ज्वाइन कर ही लेंगे.. पर निखिल जी अगर आप ऐसे ही लिखते रहे तो घर दुआर छोड़ कर साहित्य और आलोचना के लिये सन्यास लेना होगा ।
क्या .. बात है सर मजा आ गया ,पर मेरा मानना है की उस सेना के सैनिक तो कसूरवार हैं ही लेकिन उनसे ज्यादा कसूरवार तो वो है जो उस पब संस्कृति में मौज करते है , माना की हमारा देश डेमोक्रेटिक कंट्री है पर आप अपनी संस्कृति को भी तो समझिये ,जो भारतवासी अपने देश की धडकनों को समझता है वो कभी पब नही जाएगा .................
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