इसे गरीब का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि रिकार्ड उत्पादन होने के बावजूद भी उसे सस्ती रोटी नहीं मिल पा रही है। यही नहीं आगामी सीजन में उसकी रोटी अब और महंगी हो जाएगी क्योंकि सरकार ने गेहूँ के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में बढ़ोतरी कर दी है।
उल्लेखनीय है कि 2007-08 देश में गेहूं का उत्पादन 784 लाख टन हुआ जो एक रिकार्ड है जबकि 2006-07 में उत्पादन 758.1 लाख टन था। रिकार्ड उत्पादन के बावजूद देश में गेहूँ के भाव भी रिकार्ड ही बना गए।
मार्केटिंग वर्ष 2007-08 (अप्रैल-मार्च) में गेहूं का समर्थन मूल्य 850 रुपए प्रति क्विंटल था जिसे 2008-09 में बढ़ाकर 1000 रुपए कर दिया गया। इससे खुले बाजार में गेहूं के भाव में वृद्वि होना स्वाभाविक ही था। अब सरकार ने 2009-10 के लिए इसे बढ़ा कर 1080 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया है। इससे नि:संदेह आगामी महीनों में गेहूं के भाव में और तेजी आएगी।
गत वर्ष देश में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन होने के कारण आरंभ यह उम्मीद थी कि भाव नीचे रहेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसका कारण बाजार से अधिकांश गेहूं सरकार द्वारा खरीद कर लिया जाना रहा।
मार्केटिंग वर्ष 2008-09 के दौरान मंडियों में कुल 248.28 लाख टन गेहूं की आवक हुई और इसमें से सरकार ने 226.82 लाख टन की खरीद की। यह भी एक रिकार्ड है। वास्तव में न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक होने के कारण किसान जहां अधिक से अधिक गेहूं मंडी में लाए वहीं सरकारी अंकुश के कारण व्यापारियों ने इसकी खरीद नहीं की। परिणाम स्वरुप बाजार में गेहूं का स्टाक कम हुआ और बाजार में भाव बढ़ने लगे। हालांकि भाव पर काबू रखने के लिए सरकार ने खुले बाजार में 50 लाख टन गेहूँ बेचने की घोषणा की। यह घोषणा सरकार ने सितम्बर में की थी और उस समय दिल्ली बाजार में खुदरा क्वालिटी की गेहूं के भाव 1060/1063 रुपए प्रति क्विंटल चल रहे थे। सरकारी की इस घोषणा पर कार्यवाही कछुए की चाल से की गई और यही कारण है कि भाव में कोई मंदी नहीं आई और बढ़ते-बढ़ते अब 1182/1185 रुपए हो गए।
सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्यों में बढ़ोतरी किए जाने के बाद दिल्ली में भाव बढ़ कर 1192/1195 रुपए हो गए हैं और संभावना है कि जल्दी ही भाव 1200 रुपए का आंकड़ा पार कर जाएंगे।
ज्ञातव्य है कि इस वर्ष एक जनवरी को सरकारी गोदामों में कुल 180.62 लाख टन गेहूं का स्टाक था जबकि बफर मानदंडों के अनुसार इस तिथि को 82 लाख टन का स्टाक होना चाहिए।
इस प्रकार सरकारी गोदाम तो भरे हैं लेकिन बाजार में भाव कम नहीं हो रहे हैं।
यह संभव है कि आगामी सीजन आरंभ होने पर नई गेहूं की आवक बढ़ने के बाद भाव में कुछ मंदी आए, लेकिन यह तो तय है कि आम आदमी को गेहूं सस्ती नहीं मिलेगी। उसकी रोटी तो महंगी हो ही चुकी है।
राजनीति का शिकार
वास्तव में आम आदमी राजनीति का शिकार हो रहा है। जानकारों का कहना है कि योजना आयोग और प्रधान मंत्री कार्यालय गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में किसी प्रकार की बढ़ोतरी के पक्ष में नहीं थे क्योंकि गत वर्ष ही भाव में 150 रुपए की बढ़ोतरी की गई थी।
लेकिन आगामी चुनाव को देखते हुए सरकार ने किसानों के वोट हासिल करने के लिए गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में बढ़ोतरी कर ही दी है।
चलते-चलते
गुलज़ार की ये त्रिवेणी शायद सरकार को भी पसंद आये-
"मां ने जिस चांद सी दुल्हन की दुआ दी थी मुझे
आज की रात वह फ़ुटपाथ से देखा मैंने
रात भर रोटी नज़र आया है वो चांद मुझे "
राजेश शर्मा
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6 बैठकबाजों का कहना है :
राजनीति की जंग में सब जायज़ है...
अंत में गुलज़ार की त्रिवेणी क्या खूब कही गई है...
sir ji,jabtak aam aadami shikar nahin hoga use mahsus kaise hoga ki wo loktantra me rahta hai.....
ALOK SINGH "SAHIL"
मै जब आटा लेने गया तो दुकानदार ने भी मुझसे यही कहा था, पर उसने मुझे कारण नही बताया था कि दाम क्यो बढाये गये
सुमित भारद्वाज
भाई साहब , गरीब की रोटी तो मैंने शुरू से ही मंहगी ही देखि है......जब से इस दुनिया में आकर होश संभाला है...
बाकी तो गुलजार साहब ने कह ही दिया है....
डर लगता है, दूध के पैकेट में ना जाने,
बनिए ने कोई जादू-वादू घोल रखा है....
ताकि अगली बार उसी दुकान पे आऊं,
ना आया तो "पेट बिगड़ जाये ससुरे का..."
निखिल
फिर न आना उनके रोने मुस्कुराने में ,
वो बड़े ही माहिर हैं ,सूरतें बनाने में ,
उनके बच्चे भी सोये हैं भूखे ,
जिनकी ऊम्र गुजरी है ,रोटियाँ बनाने में
ये हमने कही सुना था ,शायद गुलजार साहब की लाइनों से भी ज्यादा अच्छी लग जाएँ आप सभी को
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