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Saturday, May 09, 2009

नोटिस है या नौटंकी

क्या मज़ाक़ लगा रखा है चुनाव आयोग ने। सन्नी देओल की दामिनी फ़िल्म का एक डायलॉग याद आता है जब वो भरी अदालत में ये कहता है कि तारीख पर तारीख़....तारीख़ पर तारीख़... मन करता है...चेप लूं...और बोलूं..नोटिस पे नोटिस ..नोटिस पे नोटिस। जया प्रदा पर चुनाव आचार संहिता का जब एक और मामला फिर से दर्ज हुआ, तो कुछ ऐसा ही लगा। एक सरकारी नोटिस से इस लोकतंत्र का तथाकथित राजा यानी आम आदमी के हाथ पैर फूलने लगते है। लेकिन जया जी पर आयोग की घुड़कियां असर डालती नज़र नहीं आती..नोटिस नहीं हो गया नौटंकी हो गयी। हम जैसे ख़बरियों के लिए हेडलाईन हो गई। साथ में पता चली नेताओं के सामने आयोग की औक़ात। ये कोई पहला मामला नहीं है। कोई पार्टी नहीं ह, जिसके नेताओं को आचार संहिता की अनदेखी करने के लिए नोटिस न जारी हुआ हो। सरकार की रेल चला रहे लालू हों या उनकी धर्मपत्नि राबड़ी हो। जया प्रदा हों। छुटभैया नेता हों। गाली गलौज़ हो, बिंदी बांटू अभियान हो या मुलायम जी और गोविंदा के नोट लुटाने जैसी दरियादिली हो। ये सब चुनाव आयोग की आँखों के सामने आया। आंखों में किरकिरी भी हुई। नतीजा नोटिस पर नोटिस। और दूसरी ओर से सफ़ाई पर सफ़ाई। जवाब पर जवाब। और हर जवाब के साथ आयोग लाजवाब। या तो चुनाव आयोग नोटिस के अलावा कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा रहा है, या फिर इन खद्दरधारियों के सामने नोटिस और उस पर सफ़ाई एक रूटीन वर्क बन गया है। सही भी है- चुनाव है तो जोश आ ही जाता है। आदमी कुछ बोल ही जाता है। कुछ ग़लत जैसा फ़ील नहीं होता। और भई दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का शो चल रहा है, कुछ तो मसालेदार आईटम होना ही चाहिए नहीं तो रंग नहीं जमेगा। पब्लिक बोलेगी कि इस बार के इलेक्शन में कुछ मजा नहीं आया। तो शो की टीआरपी बनी रहे। नेताओं की टीआरपी बनी रहे। कुछ न कुछ तो करते रहना पड़ेगा भाई। ऐसे में जनता जनार्दन का मूड देखा जायेगा या कि चुनाव आयोग की बंदरघुड़की, .डर नहीं लगता। अरे वरूण गांधी इतना कुछ बोल गया, तो चुनाव आयोग कुछ कर ही नहीं पाया। मुख्तार अंसारी का क्या कर पाया है चुनाव आयोग। इसी चुनाव आयोग के राज में फूलन देवी भी चुनाव लड़ चुकी है। शहाबुद्दीन जैसे लोग लोगों की नुमाईन्दगी करते आये हैं। ख़ून बहता रहा है। पैसा लूटता रहा है। लोग पाला बदलते रहें हैं। वोट ख़रीदते रहे हैं। वोट बिकते रहे हैं। बूथ लुटते रहे हैं। चौराहे पर बोली लगती रही है उस भरोसे की जो आम आदमी ने जताया इन तथाकथित अपने सेवकों पर। और ये सब कुछ होता रहा है चुनाव आयोग के सामने। चुनाव आयोग के रहते। तब अगर नेता इसके नोटिस को नौटंकी समझे तो समझ में आता है आयोग का असर। चावला जी इन नोट वालों को नोटिस नहीं आपका डंडा समझा सकता है। आप इस बात को समझे। नहीं तो सारी कोशिशे अंडा हो जायेंगी यानी ज़ीरो। नेताओं के फेवर में एक शायरी चुनाव आयोग के नाम-

मिटा सके हमको ये ज़माने में दम नहीं
ज़माना हमसे है ज़माने हम नहीं।


-रवि मिश्रा (लेखक ज़ी (यूपी) में न्यूज़ एंकर हैं)