अभी थोड़ी देर पहले ही मित्र रामजी यादव ने बताया कि जनसत्ता में खबर छपी है कि शमशेर अहमद खान नहीं रहे। मेरे लिए यह विश्वास करने वाली सूचना नहीं थी। रामजी ने बताया कि आज के जनसत्ता में खबर छपी है कि लम्बी बीमारी के बाद 7 फरवरी 2011 को उनका निधन हो गया। मुझे यक़ीन इसलिए भी नहीं हुआ क्योंकि नवम्बर तक उनसे लगातार बात हुई थी। उन्होंने अंतिम बार यह ज़रूर कहा था कि आजकल छुट्टी पर हूँ। चेहरा और शरीर के कई अन्य भाग बुरी तरह से फूल गये हैं। इस स्थिति में कहीं आ-जा नहीं सकता। लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं बताया कि उन्हें ब्लड-कैंसर हैं। अभी कुछ देर पहले ज़ाकिर भाई को फोन किया तब पता चला कि दिसम्बर में उन्हें पता चला कि ब्लड-कैंसर है और वे उसी का इलाज करवा रहे थे।
अंतिम बार मैं उनसे तब मिला था जब पीपुल्स विजन्स के साथ मिलकर हिन्द-युग्म ने वरिष्ठ कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह का कहानीपाठ आयोजित किया था। (दर्भाग्य से यह कार्यक्रम प्रस्तावित रूप में नहीं हो पाया था)। हमलोग जब कभी भी कोई कार्यक्रम करते थे, चाहे वो बड़ा हो या छोटा, शमशेर जी को फोन करके यह निवेदन करते थे कि वे अपना कैमरा वगैरह लेकर आ जायें। शमशेर जी को साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग का बेहद शौक था। हिन्द-युग्म को उन्होंने पिछले 2 सालों में कम से कम 100 रिपोर्ट बनाकर दिये होंगे। खुद का संसाधन और समय लगाकर किसी कार्यक्रम की वीडियोग्राफी करना, फोटोग्राफी करना, उसकी रिपोर्ट बनाना और बहुत से प्रिंट और इंटरनेटीय पत्र-पत्रिकाओं को भेजना, एक श्रमसाध्य कार्य है। लेकिन इसमें वे कभी थके नहीं। मुझे याद है कि जब वे दिल्ली के बाहर कहीं भी जाते, तो वहाँ की रिपोर्ट इंटरनेट के माध्यम से वहीं से भेज देतें। मैं उनकी रिपोर्टों को छापने में उतना तेज़ नहीं था, जितनी तीव्रता से वे उन्हें भेजते थे।
हिन्द-युग्म के स्थाई पाठक ज़रूर इस नाम से परिचित होंगे। लगभग 2 साल पहले ज़ाकिर अली रजनीश जब दिल्ली आये थे, तक उन्होंने शमशेर जी से मुझे मिलवाया था। उसके बाद महीने में कम से कम 15 दिन उनका फोन ज़रूर आता था। इंटरनेट पर हिन्दी की दुनिया की सजीव उपस्थिति देखकर वे बहुत उत्साहित थे। इंटरनेट विधा की त्वरितता और इसकी जन-पहुँचता उन्हें बहुत लुभाती थी। वे कम्प्यूटर के पक्षधर थे और बहुत जल्दी ही उन्होंने इसका इस्तेमाल सीख लिया था। वे इस बात के लिए हमेशा दुखी रहते थे कि उनके सहकर्मी कम्प्यूटर पर हिन्दी का इस्तेमाल क्यों नहीं कर पाते। उन्होंने अपने प्रशिक्षण संस्थान में मुझे दो बार अपने सहकर्मियों को ब्लॉगिंग और यूनिकोड-प्रयोग का प्रशिक्षण देने के लिए बुलाया था। लेकिन अभी तक वे अपने सहकर्मियों को यूनिकोड-फ्रेंडली नहीं बना पाये थे, इसका उन्हें बेहद अफसोस था।
उन्होंने मुझे सांसदों द्वारा राजभाषा हिन्दी के उत्थान के लिए किये जा रहे हास्यास्पद प्रयासों के बारे में बताया था और मुझे लगातार इस बार के लिए प्रोत्साहित करते थे कि जरा एक RTI डालकर देखिए कि कितनी चुटकुलेदार उक्तियाँ मिलेंगी। उन्होंने पिछले साल 'सूचना का अधिकार' कानून का इस्तेमाल कर यह जानकारी ली थी कि भारतीय नोटों पर सभी भारतीय भाषाओं में मुद्रा का मान क्यों नहीं लिखा जाता और यह भी कि इंडिया गेट पर शहीदों का नाम देवनागरी लिपि में क्यों नहीं है और क्या उन्हें कभी देवनागरी लिखे जाने की कोई योजना बनाई गई?
उन्हें पशु-पक्षियों से बेहद लगाव था। जब मैं पहली बार और इक मात्र बार उनके घर गया था तो उन्होंने अपने बागीचे के बहुत से छोटे-छोटे जीवों से मेरा परिचय करवाया था और अपने लैपटॉप पर उन्होंने उनके प्रेम करने की, प्रजनन, शिकार करने तथा खाने का वीडियो भी दिखाया, जिसको वे बहुत शांति से शूट कर लिया करते थे। पिछले ही साल उन्होंने एक सैकंड-हैंड वीडियो कैमरा लिया था, जिसकी मदद से वे लघुफिल्में बनाना चाहते थे। उन्होंने एक शॉर्ट फिल्म बनाई भी थी, जिसे वे अपने हर परिचित को दिखाते भी थे।
खाना बनाने का भी शौक रखते थे। नवम्बर 2011 में ही उन्होंने कई बार कहा कि अगर आप किसी शाम खाली हो तो आइए मछली बनाता हूँ। बाकी वे एक वरिष्ठ लेखक और बालसाहित्यकार थे, यह तो सभी जानते हैं। लेकिन मैं तो उन्हें एक रिपोर्टर, फोटोग्राफर और वीडियोग्राफर के तौर पर अधिक जानता था। हमदोनों एक साथ बाल साहित्य के कई कार्यक्रमों में गये, लेकिन मेरी हमेशा उनसे बातचीत हिन्दी और इससे जुड़ी तकनीक पर ही होती थी। मेरे विचार से शमशेर अहमद खान का जाना हिन्दी भाषा की क्षति है।
शमशेर जी का ब्लॉगशमशेर जी द्वारा हिन्द-युग्म को भेजी गईं रिपोर्टें