- शन्नो अग्रवाल
हे भगवान ! फेसबुक पर झंझटों का जमघट..अब ये सब कुछ कहते भी नहीं बनता और सहते भी नहीं बनता.
जो कुछ मैं कहने जा रही हूँ फेसबुक के बारे में वो सभी फेसबुकियों के बारे में सही है या नहीं ये तो नहीं कह सकती पर कुछ फेसबुकियों को जरूर हजम नहीं हो रही हैं ये बातें. और इतना तो क्लियर है ही कि चाहें हर कोई मुँह से ना बताये कि कितना पेन होता है उन्हें ( इन्क्लूडिंग मी ) कुछ लोगों की टैक्टिक से कि अब फेसबुक एक फसबुक यानि झंझट, या कहो कि सरदर्द लगने लगा है. फेसबुक पर भ्रष्टाचार उपज रहा है...कहानियाँ सुनी जा रही हैं..घटनायें होती रहती हैं जिनका उपाय समझ में नहीं आता...ना ही निगलना हो पाता है ना ही उगलना...यानि उन बातों के बारे में साफ-साफ कहने में तकलीफ होती है सबको और पचाने में भी तकलीफ...ये सब फेसबुक देवता की मेहरबानी है...दिमाग में बड़ी उथल पुथल मचती है..कुछ फेसबुकियों को बहुत सरदर्द हो रहा है जो इसमें काफी फँस चुके हैं...अब कश्ती मँझदार में फंसी है और किनारा मिल नहीं रहा है...
फेसबुक पर आना शुरू-शुरू में तो बड़ा ट्रेंडी और खुशगवार लगता है..लेकिन नये-नये होने पर नर्वसनेस भी जरूर होती है..फिर हर इंसान धीरे-धीरे उसमे रमकर जम जाता है. और फिर जैसे-जैसे इसमें धंसते जाओ..मतलब ये कि लोगों से और उनकी रचनाओं से मुलाक़ात करते जाओ तो अक्सर क्या अधिकतर ही बहुत बोझ बढ़ जाता है जिससे एक तरह का प्रेशर भी जिंदगी पे पड़ने लगता है..कुछ लोग फ्रेंड बनते ही पेज पर आकर सबके साथ नहीं बल्कि केवल इनबाक्स में ही अलग-अलग आकर वही एक से पर्सनल लाइफ के बारे में सवाल पूछते हैं और समझाने पर बुरा मान जाते हैं..इनबाक्स में कभी-कभार जरूरत पड़ने पर ही बाते होती हैं..ये नहीं कि किसी को साँस लेने की फुर्सत ना दो..सवाल के बाद सवाल करते हैं व्यक्तिगत जीवन के बारे में उसी समय तुरंत ही मित्र बनने के बाद. कितनी अजीब सी बात है कि पेज पर आकर खुलकर सबके सामने बात नहीं करते..और दूसरी टाइप के वो हैं जो बहुत सारी वाल फोटो लगाकर दुखी करते रहते हैं..पहले बड़ा मजा आता था किन्तु अब उन वाल फोटो की संख्या बढ़ती जाती है..और अगर धोखे से भी ( या कभी-कभी जानबूझ कर भी अपनी सुविधा के लिये ) डिलीट हो जाती हैं तो फिर दुविधा में फँस जाने के चांसेज रहते हैं..वो टैगिंग करने वाला इंसान अपने तीसरे नेत्र से पूरा हाल लेता रहता है..और पूछने की हिम्मत भी रखता है कि...'' क्या आपने हमें अपनी फ्रेंड लिस्ट से निकाल दिया है '' या '' क्या आप मुझसे नाराज हैं '' या फिर अपने स्टेटस में कोई सज्जन लिखते हैं कि '' अगर कोई मेरी रचनाओं पर टैगिंग नहीं चाहता तो साफ-साफ क्यों नहीं बताता मुझे ताकि आगे से उनको टैग ना करें हम '' अब आप ये बताइये कि समझदार के लिये इशारा वाली कहावत का फिर क्या मतलब रह गया...अरे भाई, कभी तो हिंट भी लेना चाहिये ना, कि नहीं ? और साथ में धकाधक भजन के वीडियो भी एक इंसान की वाल पर आ रहे हैं कई-कई लोगों के एक ही दिन में और साथ में उन्हीं की दो-दो रचनायें भी..और बाकी अन्य लोग भी टैग कर रहे हैं तो पढ़ने वाले का दिमाग पगला जाता है सोचकर कि इतना समय कहाँ से लाये सबको खुश करने को..कुछ और अपने भी तो पर्सनल काम होते हैं आखिरकार. एक रचना कुछ दिन तो चलने दें ताकि आराम से सभी की रचनाओं को पढ़ा जा सके और अपना भी काम किया जा सके. पर इस अन्याय / अत्याचार के बारे में कैसे समझाया जाये किसी को. हर किसी को अपनी पड़ी है यहाँ...चाहें किसी के पास टाइम हो या न हो. और ऊपर से मजेदार बात ये कि वो इंसान तुरंत कमेन्ट लेना चाहता है. कुछ लोग तो लगान वसूल करने जैसा हिसाब रखते हैं कि एक भी इंसान छूट ना जाये कमेन्ट देने से. उस बेचारे की मजबूरियों का ध्यान नहीं रखा जाता...शेक्सपिअर के ' मर्चेंट आफ वेनिस ' जैसे उन्हें भी बदले में फ्लेश जैसी चीज चाहिये अगर जल्दी कमेन्ट ना दे पाओ तो पूछताछ चालू कर देते हैं...बस अपने से ही मतलब. और कुछ लोग बड़े-बड़े आलेख लगाते हैं और वो भी एक दिन में दो-दो जैसे कि लोगों को केवल उनका ही लेख पढ़ना है...ये नहीं सोचते कि अन्य लोगों ने भी किसी को अपनी रचनाओं में टैग कर रखा है...एक आफिस के काम से भी ज्यादा समय लग जाता है अब फेसबुक पर. मेल बाक्स के कमेन्ट पढ़ने, लिखने और मिटाने में ही कितना टाइम लग जाता है. खैर...
कुछ लोग कितने स्मार्ट होते हैं कमेन्ट लेने के बारे में इस पर जरा देखिये:
फ्रेंड: नमस्ते शन्नो जी, मुझसे कुछ नाराज हैं क्या ? मैं अपनी खता समझ नहीं पा रहा हूँ...
मैं: अरे आप ये कैसी बातें कर रहे हैं..मैं भला आपसे क्यों नाराज़ होने लगी. इधर काफी दिनों से मुझे समय अधिक नहीं मिल पाता है फेसबुक पर एक्टिव होने के लिये...इसीलिए शायद आपको ऐसा लगा होगा. मैं किसी से भी नाराज नहीं हूँ..बस समय और थकान से मात खा जाती हूँ. इसी वजह से कुछ अधिक लिख भी नहीं पाती हूँ इन दिनों.
फ्रेंड: मेरे कई फोटोग्राफ से बिना कोई प्रतिक्रिया के आपने अपने आप को अनटैग कर लिया. तभी मुझे ऐसा महसूस हुआ था.
मैं: जी, टैगिंग तो इसलिये हटानी पड़ी कि वहाँ पर कमेन्ट बाक्स नही सूझता था मुझे...शायद कोई फाल्ट होने से. और बहुत लोग अब वाल पिक्चर ही लगाते हैं तो बहुत इकट्ठी हो गयी थीं इसलिये एक फ्रेंड ने सलाह दी तो कुछ को छोड़कर बहुत सी हटानी पड़ीं.
( ये अपनी टैगिंग का ध्यान रखते हुये हर किसी से कमेन्ट ऐसे वसूल करते हैं जैसे कि कर वसूली कर रहे हों..किसी को भी छोड़ना नहीं चाहते खासतौर से उन लोगों को जो उनसे शिकायत करने में कमजोर हैं..या झिझकते हैं )
मैं: जब मैं आपको अपनी रचनाओं में टैग करती थी..तो आप कमेन्ट नहीं देते थे तो फिर मैंने आपको टैग करना बंद कर दिया...किन्तु कभी शिकायत करने की हिम्मत नहीं कर पायी फेसबुक पर किसी दोस्त से कि कोई बुरा न मान जाये इसलिये.
( इतना कहते ही मुझे लगा कि वो मेरी जुर्रत से खिसिया गये )
फ्रेंड: क्षमा कीजियेगा मेरे इन्टरनेट अकाउंट की लिमिट प्रतिमाह १ जी बी तक ही है और वह आमतौर पर महीने की २३-से २४ तारीख तक पूरी हो जाती है इसी लिए कमेन्ट कम कर पाता हूँ. यदि आपको कमेन्ट बॉक्स ना मिले तो मेरी फोटो के ऊपर मेरी Profile को क्लिक करियेगा जिससे मेरा पेज खुल जायेगा फिर पेज के साइड में ऊपर की ओर बने हुए "Like" बटन को क्लिक कर दीजियेगा तब कमेन्ट बॉक्स दिखने लगेगा.
मैं: हर किसी की अपनी मजबूरियाँ होती हैं...मैं समझती हूँ..औरतों को तो घर के भी काम करने पड़ते हैं..मैं तो कई बार सारे दिन के बाद फेसबुक पर आ पाती हूँ तो सबकी रचनाओं पर लोगों के कमेन्ट से मेलबाक्स भरा होता है और निपटाते हुये घंटों लग जाते हैं..बड़े-बड़े लेख पढ़ने का तो समय ही नहीं मिलता...इसलिये बहुत कुछ छूट जाता है. जब मैं टैगिंग करती हूँ तो बहुत से लोग जबाब नहीं देते तो मैं समझ जाती हूँ कि उनकी भी कुछ मजबूरियाँ होंगी. और कुछ लोग अपनी रचनायें एक के बाद एक लगाते हैं और तब मुश्किल हो जाती है एक ही दिन में कमेन्ट देने में..वो बस अपनी ही रचनाओं के कमेन्ट पर ध्यान देते हैं....फिर मेरी रचनाओं पर कमेन्ट के समय गायब हो जाते हैं..इस तरह के कई लोग हैं...
( अब उन्हें लगने लगा कि मेरे भी मुँह में जबान है तो...)
फ्रेंड: बिलकुल सही कहा आपने .......सबकी अपनी मजबूरियाँ....... आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ......शुभ रात्रि.
मैं: देखिये, मैंने आपको अपनी तरफ से हर बात शत-प्रतिशत ईमानदारी से सही-सही बताई हैं...पर आप बुरा ना मानियेगा...नो हार्ड फीलिंग्स..ओ के ?...शुभ रात्रि !
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6 बैठकबाजों का कहना है :
कडवा सच बडी खूबसूरती से कह दिया।
वन्दना जी,
लेख की वास्तविकता से परिचित होकर आपने इस सच पर अपनी सहमति की प्रतिक्रिया दी..इसके लिये आपका बहुत धन्यबाद.
धन्यवाद शन्नो जी,
भाई मैं तो बहुत net-savvy न होने के कारण फेसबुक (या फसबु पर सक्रिय नहीं हूँ.
आज इत्तेफ़ाक़न आपके लेख पर निगाह पड़ गयी. बहुत अच्छा है. मैं शत प्रतिशत आपके विचारों से सहमत हूँ.
आभार सहित,
अवध लाल
अवध जी,
आपने लेख पढ़ा और समझा...लगता है कि फेसबुक पर बढ़ती समस्याओं और लोगों के बदलते attidude ने आपके दिल को भी कहीं न कहीं छुआ है..और आपने महसूस किया है...
आपके कमेन्ट का बहुत शुक्रिया.
kya sahi likha hai aapne.apni e mail ka hi dhyan rakhliya jaye vahi bahut hai .me janti hoon smy kaese hara deta hai kabhi kabhi.aap ki ek baat mene dekhi hai aap kisi baat ko bahut rochak tarike se likhti hai .
dhnyavad
saader
rachana
रचना जी,
और भी बहुत बातें यानि समस्यायें हैं फेसबुक से सम्बंधित...लेकिन सबको एक आलेख में कवर नहीं किया जा सकता है..और फिर मुझे ये भी डर है कि अन्य तमाम लोगों के फेसबुक पर होने पर कहीं लोग मेरी बातों को गलत ना समझ जायें इसलिये शायद ना ही लिखूँ भविष्य में तो ही सही रहेगा...
आपने इस लेख को पढ़ा और समझने की कोशिश की यह जानकर बहुत अच्छा लगा..आपका हार्दिक धन्यबाद..
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