कल ही मुझे एक सपना आया। बड़ा विचित्र सपना कि विश्व हिन्दू परिषद ने राम-मन्दिर पर उच्च-न्यायालय का फैसला इसलिये खारिज कर दिया कि यह आस्था का मामला है और आस्था के मामले में न्यायालय को फ़ैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं है।
तब एक वामपंथी-सेक्युलरवादी नेता आये और वे अपना पुराना बयान दोहरा कर कह रहे थे कि जेरूसलम में व ब्रिटीश शासन में वर्तमान- पाकिस्तान के गुरूद्वारों पर न्यायालय ने आस्था के मामले में फैसले दिये थे तो भारतीय न्यायालय फैसला क्यों नहीं सुना सकती । उन्हे उच्च-न्यायालय का फैसला पूरी तरह से मान्य है; बल्कि इसी न्यायालय के फैसले के आधार पर वे राम के ईश्वररूप को और राम की जन्मभूमी अयोध्या होने की बात को स्वीकार करते हैं। उन्होने यह भी कहा कि वे शास्त्र-पुराण की बात तो नहीं मानते पर पुरातत्व-विभाग की खुदाई के आधार पर परीक्षण द्वारा सत्य को प्रतिपादित करते है। कोई उन्हें कान में बाबरी मस्जिद के नीचे खुदाई में कुछ भी न मिलने की बात कह गया था और जैन-मन्दिर की तरफ बात को मोड़ देने की सलाह दे गया था पर अब जब अदालत ने स्पष्टरूप से हिन्दू-मन्दिर होने की बात कही है तो वे अपने इतिहास के ज्ञान पर भी फिर से विश्लेषण करने के लिये राजी हो गये हैं।
सपना तो सपना ही है! नरेन्द मोदी अपनी दाढ़ी खुजलाते हुये कह रहे थे कि जब वे मुसलमान भाइयों से बातचीत और समझौते की बात करते हैं तो उनका अर्थ वक्फ़-बोर्ड को दी गई एक तिहाई ज़मीन वापस लेना नहीं है; वे तो राम-मन्दिर को मिले हिस्से में से मस्ज़िद को कुछ भाग दे कर भी शांति और भाईचारा बनाये रखने की बात कर रहे है।
वक्फ़-बोर्ड ने कहा है कि पहली बार पता चला कि यह मस्जिद मन्दिर के अवशेष पर बनी है अत: वे तीन में से एक न्यायाधिश की बात का अनुमोदन करते हैं कि यह वास्तव में मस्जिद है ही नहीं । उन्होने एक तिहाई भाग राम-मन्दिर के लिये सहर्ष दे देने का प्रस्ताव रखा इस पर उच्च न्यायालय के जजों ने कहा हमसे गलती हो गई कि राम-लला की मूर्ति चोरी से रखी जाने की बात मानते हुये भी हमने उसी जगह पर राम-मन्दिर बनाने की इज़ाजत दे दी।
एक मार्क्सवादी इतिहासकार ने कहा कि जब उन्हें पता चला था कि मस्ज़िद के नीचे मन्दिर के अवशेष मिल रहे हैं तो मैंने बिना देखे और बिना सोंचे समझे आरोप लगा दिया कि ये साक्ष्य भगवा-ग्रुप वालों ने गुंडागर्दी करके रख दिये हैं । क्या करता ! मेरे इतिहास-ज्ञान की नीव ढहती जा रही थी ! मैं तो औरंगजेब को सेक्यूलर और शिवाजी को साम्प्रदायिक सिद्ध करने पर तुला हुआ हूँ और इस विषय पर Ph. D. भी प्राप्त कर चुका हूँ । सभी तथ्य मेरे ज्ञान के सांचे में ढलने चाहियें । तथ्यों के कारण मैं अपने ज्ञान की कुर्बानी नहीं दे सकता।
तब आये करुणानिधि ! अरे सपना तो अजीब होने लगा ! कहने लगे क्या करूं यह झगड़ा मेरे क्षेत्र का नहीं है पर आश्चर्य है फैसला सुन कर हिन्दु-मुसलमान आपस में झगड़ते नहीं, दंगा-फ़साद भी नहीं करते ऐसा क्यों? इसलिये मैं मेरा वही पुराना आर्य और द्रविण सभ्यता का झगड़ा उठाता हूँ। अरे! बिना इस प्रकार के झगड़ों के पोलिटिक्स भारत में चल सकती है क्या?
मैं सुन कर दंग रह गया । क्या करता? सपने पर मेरा कुछ बस नहीं था। कुछ भी हो सकता था ! पता नहीं उस समय बाबर ने क्यों कब्र से अंगड़ाई ले कर मीर बाँकी को गालियाँ सुनाई “उल्लू के पठ्ठे ! तुझे मस्ज़िद ही बनानी थी तो मेरे नाम पर क्यों बनाई? क्या इसलिये मैने तुझे इतने हक दिये थे कि तू मेरा ही नाम बदनाम करे? देख तेरी हरकत के कारण मैं गुनाह के बोझ से दबा जा रहा हूँ।“ इस पर राजीव गांधी ने उन्हे ढाढस बंधाई और बोले कि गलती मेरी है मैने मुस्लिम-तुष्टिकरण के तुरत बाद हिन्दू-तुष्टिकरण की नीति अपना कर मन्दिर के द्वार खोल दिये और इस तरह सोये भूत को जगा दिया। इस पर दिवंगत और जीवित एक साथ देखने की बारी आई। उनका पुत्र राहुल गांधी बोल पड़ा “पापा, यह तो राजनीति है। इसमें सब चलता है। मैंने भी आर.एस. एस. और सीमी को समद्रष्टि से देखकर बोलना शुरू कर दिया है”
तभी क्या देखता हूँ साक्षात भगवान राम प्रकट हुये। उन्होंने आंखों से आंसू बहाते हुये कहा कि यदि मुझे मालुम होता कि मेरे जन्मस्थल को लेकर इतना विवाद होने वाला है तो मैं जन्म ही न लेता। तो न सीता मेरे साथ वनप्रस्थान करती और न ही सीताहरण होता; कम से कम रावण मुफ़्त में न मारा जाता। इस पर सभी छुटभइये नेता शर्म से पानी पानी हो गये। आ आकर क्षमा मांगने लगे कि माफ़ करो हमने जनता की भावनाओं को भड़का कर राजनीति की रोटी सैंकी है। इसके बाद तो काफी धर्मान्ध समझे जाने वाले लोग भी इकठ्ठे हो गये। वे कह रह थे कि नहीं चाहिये हमें मन्दिर या मस्ज़िद ! क्यों नहीं वहाँ कोई अस्पताल या पुस्तकालय खोल देते ! यह सब हम इसलिये कह रहे हैं कि अब खुल गई हैं हमारी आँखे ! पर इसके साथ ही मेरी आँखे भी खुल गई।
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-हरिहर झा
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3 बैठकबाजों का कहना है :
Bahut hi badhiya Hariharji. ekdum original soch. aapne sabko lapet liya.
धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धारण करके कर्म करना एवं इनकी स्थापना करना ।
व्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके, उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है ।
असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है ।
सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । वर्तमान में न्यायपालिका भी यही कार्य करती है ।
धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म पालन में धैर्य, संयम, विवेक जैसे गुण आवश्यक है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
व्यक्ति विशेष के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर की उपासना, दान, पुण्य, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjri
वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी आम मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार एवं मानवीय मूल्यों के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।
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