Wednesday, September 29, 2010

अयोध्‍या पर बुनी एक गुमसुम सी गद्य-कविता

अयोध्‍या विवाद के समाधान की ओर अग्रसर होने के पूर्व मामले के दोनों पक्षों हिन्‍दू और मुस्लिम समुदाय के बीच एकता के किसी सूत्र को तलाशना होगा। जब तक हमें कोई ऐसा सूत्र प्राप्‍त नहीं होता जिस पर हिन्‍दू एवं मुस्लिम दोनो पक्ष कोई प्रतिकूल टिप्‍पणी न कर सकें तब तक दोनो समुदाय के बीच किसी समझौते की आशा रखना व्‍यर्थ है।

हिन्‍दू और मुस्लिम समुदाय के बीच वह सम्‍पर्क-बिन्‍दु है, ईश्‍वरीय सत्‍ता का तात्विक बोध, जिसे हिन्‍दुओं ने अद्वैतवाद के माध्‍यम से
निरूपित किया है और मुसलमानों द्वारा जिसे तौहीद (ऐकेश्‍वरवाद) के रूप में व्‍यक्‍त किया गया है। हिन्‍दू और मुस्लिम समुदाय के मध्‍य इसी साम्‍यता को दृष्टि में रखते हुए आगामी पंक्तियों में अयोध्‍या विवाद के समाधान को सुधीजनों के विचारार्थ रेखांकित किया जा रहा है। अयोध्‍या-विवाद के समाधान का बिन्‍दुवार विवरण इस प्रकार है।

1. गर्भगृह के क्षेत्र को पूर्ववत् केन्‍द्र सरकार की अभिरक्षा में रखते हुए ‘श्रीरामजन्‍मभूमि’ नाम देकर मूर्ति-विहीन क्षेत्र के रूप में
संरक्षित रखना चाहिए। इस पावन-भूमि को निराकार-ब्रह्म की प्राकट्यस्‍थली के अनुरूप सदैव प्रकाशित रखना चाहिए। हिन्‍दू मतावलम्बियों को इस बिन्‍दु पर कोई विरोध इसलिए नहीं होना चाहिए क्‍योंकि 'राम' से अधिक महत्व राम के 'नाम' का है। रामचरितमानस सहित अनेक हिन्‍दू ग्रंथों से यह तथ्‍य पुष्‍ट है। मुस्लिम मताव‍लम्बियों को इस बिन्‍दु पर कोई आपत्ति इसलिए नहीं होनी चाहिए क्‍योंकि गर्भगृह क्षेत्र का उपयोग बुतपरस्‍ती के लिए नहीं हो रहा होगा।

2. गर्भ-गृह क्षेत्र में स्थित 'मूर्ति-विहीन' परिसर के चारो तरफ क्षेत्र को हिन्‍दू बाल-संस्‍कारों के कर्मकाण्‍ड संपादन के निमित्‍त सुरक्षित कर दिया जाना चाहिए, जिससे 'बाल-राम' के रूप में राम की सगुणोपासना निरन्‍तर चलती रहे।

3. वर्तमान में गर्भगृह क्षेत्र में पूजित राम-लला विग्रह को स्‍थापित करने एवं उपासना करने हेतु हिन्‍दुओं को मन्दिर निर्माण हेतु विवादित परिसर की बाहरी परिधि प्रदान की जानी चाहिए और मुसलमानों को मस्जिद निर्माण हेतु अयोध्‍या के किसी मुस्लिम-बहुल क्षेत्र में उपलब्‍ध कोई विवाद-विहीन उपयुक्‍त स्‍थल प्रदान कराया जाना चाहिए जहाँ मुस्लिम समाज द्वारा नमाज अदा की जा सके। हिन्‍दू समाज को मस्जिद निर्माण पर आने वाले व्‍यय को सहर्ष वहन करने हेतु आगे आना चाहिए।

हिन्‍दू और मुस्लिम दोनों मतानुयाइयों को पूजा-उपासना को लेकर भविष्‍य में अपनी आगे की पीढि़यों के सामने किसी दुराव की आशंका को निर्मूल करने हेतु उपर्युक्‍त बिन्‍दुओं पर सौजन्‍यता से विचार करना चाहिए।

--आशीष दुबे

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5 बैठकबाजों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

अच्छी लगी गद्द्य कविता। बधाई। मगर हम लोग धर्म के लबादे ओढ कर इन्सान कहाँ रहे बस धार्मिक लाशें बन गये हैं जिन्हें दूसरे की संवेदनाओं से कोई फर्क नही पडता। आज धर्म की नहीध्यातम को समझने की जरूरत है। धन्यवाद।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सारे झगड़ा-फसाद समाप्त करके इस जगह पर कोई ऐसा पूजा-स्थल बनाया जाये जहाँ हिंदू-मुस्लिम दोनों अपने-अपने धर्मों को भूलकर कुछ देर एकाकार होकर यहाँ एक भावना की पूजा व इबादत करें धर्म के नाम पर..फिर इस स्थान को लेकर कोई समस्या ही न रहे.

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -

तमाम बहस बेमानी हैं बात सिर्फ इतनी सी है कि अगर खुदा हर जगह मिलता है तो फिर कहीं मस्जिद और कहीं मंदिर क्यों है? अगर हम सब बराबर हैं तो कोई हिंदू या मुसलमान क्यों है. अगर सारी तखलीक ही उसकी है तो उसपर सवालिया निशाँ ही क्यों है? अगर हम सब का मालिक एक ही है तो हम एक ही जगह बैठ कर अपनी इबादत क्यों नहीं कर सकते. अगर हमारे पास किसी सवाल का जवाब ही नहीं है तो क्या खामोश बैठ कर उसकी रजा की भी इन्तेज़ार नहीं कर सकते? अश्विनी कुमार रॉय

fatima sheen का कहना है कि -

बहुत सही और सटीक

fatima sheen का कहना है कि -

बहुत सही और सटीक

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