2005 था शायद....2005 ही था...5 अक्टूबर 2005...दिल्ली आए ज़्यादा समय नहीं गुज़रा था....नए-नए दोस्तों में दो-चार ‘अच्छे’ दोस्त बन गए थे...उन्हीं में से एक का जन्मदिन था...वो दिल्ली का ही रहनेवाला है.....मेरे कम ही दोस्त ऐसे हैं जिनके पिताओं ने दिल्ली में अपना घर बना लिया और यहीं के हैं....उनमें से एक था..उसके घर पर बर्थडे की पार्टी थी...हम भी आमंत्रित थे...मेरे लिए दिल्ली भी नई थी और किसी बर्थडे की पार्टी भी....अच्छा लग रहा था कि ‘दिल्ली’ के किसी दोस्त का बर्थडे है और वहां बुलाया गया हूं....हम दो-तीन दोस्त इकट्ठे घर पहुंचे तो देखा पार्टी शुरू नहीं हुई है....कुछ और दोस्त पहुंचे हुए हैं....तीन-चार लड़कियां भी थीं...मैं उन्हें जानता था...ज़्यादा तो नहीं, मगर पहचान भर दोस्ती थी....ये नहीं जानता था कि उनसे किसी एक ही पार्टी में मुलाकात होगी....घर में और कोई था नहीं.....दोस्त के मां-पिताजी शायद पुणे गए हुए थे....बस हम सात-आठ दोस्त ही थे और एक नौकर....
पार्टी शुरु हुई....दोस्तों में आपसी परिचय हुआ, थोड़ा हंसी-मज़ाक और फिर शराब परोसी गई...मैं पीता नहीं हूं, तो बाक़ी मुझे चौंककर देखने लगे...एक और दोस्त और नहीं पीता था...हम दोनों ने कोल्ड ड्रिंक पी और संतुष्ट रहे...फिर दो लड़कियों ने अपना गिफ्ट निकाला और उसे दिया....सबके सामने गिफ्ट खोलने को कहा गया....दोस्त ने खोला तो कांडम का डिब्बा था.....दस का पैक...मैंने कांडम पहली बार तभी देखा था, इतना नज़दीक से...थोडा संकोच हो रहा था मगर अचानक सबके सामने ‘भोला’ बनता तो बेवकूफी होती.....ऐसे बैठा रहा जैसे बडी नॉर्मल-सी बात हो मेरे लिए....हालांकि, कांडम को लेकर बहुत ज़्यादा सोचा नहीं था इससे पहले और ये तो बिल्कुल ही नहीं सोचा था कि दो लड़कियां एक दोस्त को कांडम भी गिफ्ट कर सकती हैं...फिर आपसी मज़ाक शुरू हुआ....दोस्त से कहा गया कि वो कांडम खोले और लगाकर दिखाए....फिर किसी तरह से ये सब टाला गया और हंसी-मज़ाक की वजहें बदलती रहीं...मेरे लिए ये सब बिल्कुल नया था...मैं अब तक बहुत असहज महसूस कर चुका था....इन सबके बीच शराब का नशा परवान पर था और औपचारिक हंसी-मज़ाक अब गाली-गलौज तक पहुंच चुका था....किसी दोस्त ने मुझसे भी दो-चार बातें कहीं जो मुझे अच्छी नहीं लगीं....उस रात किसी को वापस नहीं जाना था....खा-पीकर वहीं सो जाना था और सुबह अपने-अपने घर जाना था....ये मेरे पिछले पार्टी अनुभवों से अलग था...मुझे ये बर्दाश्त नहीं हुआ.....जब सब पी लिए और नींद में जाने लगे तो मैं ढाई बजे रात को नौकर से दरवाज़ा खुलवाकर उसके घर से निकल गया...एक और दोस्त भी साथ में था जिसने पी नहीं थी....हम जैसे-तैसे वापस अपने कमरे तक पहुंच गए और उस रात को भूलने की कोशिश करने लगे..उस रात को मैं न चाहते हुए भी बिगड़ गया था...
वो रात भूल भी चुका था कि अचानक पांच साल बाद फिर याद आ गई....9 अगस्त मेरा जन्मदिन होता है...8 अगस्त की रात से इतने फोन कॉल्स आते हैं कि बैटरी चार्ज में लगाकर ही बात करनी पड़ती है...एकाध गिफ्ट भी मिलते हैं...डायरी, पेन, किताबें, शर्ट, डियोड्रेंट वगैरह....इस बार दो कांडम मिले...ऑफिस के एक साथी ने दिया....बाद में कहा गया कि मज़ाक है....शुक्र है, मुझे कांडम खोलकर दिखाने और पहनने के लिए नहीं कहा गया था...इस बार ये मज़ाक बुरा नहीं लगा.....अच्छा लगा...शायद उम्र का असर हो....शायद दिल्ली के तोहफों की आदत लग गई हो....लाख प्रचार देख लें बिंदास बोल, मगर कांडम से शर्म जुड़ी हुई है....हाथ में कांडम लेकर बहुत अच्छा नहीं लगता....जन्मदिन के दिन भी नहीं....मज़ाक के तौर पर तो बिल्कुल भी नहीं...कांडम कोई मज़ाक की चीज़ तो है नहीं...शायद ये अहसास दिलाने की चीज़ है कि जन्मदिन बड़ा होने के लिए होते हैं...
खैर, जन्मदिन से जुड़ी कई यादें हैं....कांडम दिल्ली से जुड़ी हुई याद है...सबसे अलग.....जब स्कूल में था तो एक दोस्त ने जन्मदिन पर एक कैसेट गिफ्ट किया था....कुमार सानू की आवाज़ में किशोर कुमार के हिट गाने....कई दिनों तक संभाल कर रखा....पहला गाना था ‘समझौता ग़मों से कर लो, समझौता....’..फिर एक दिन वो कैसेट टूट गई.....मुझे बुरा लगा था..वो बुरा लगना याद है अब तक....वो गाना भी कभी भूल नहीं पाया....न ही वो लड़की जिसने कैसेट दी थी....उस लड़की से पूछूंगा, इस जन्मदिन पर याद क्यों नहीं किया.... क्या मुझे गिफ्ट नहीं दोगी इस बार....कैसेट न सही, कांडम ही सही....मज़ाक में ही....प्लीज़...दिल्ली के बर्थडे में बिगड़ना ज़रूरी-है....इस रात को चाहकर भी बिगड़ नहीं पाया.....
निखिल आनंद गिरि
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4 बैठकबाजों का कहना है :
मुबारक हो.. अब आप दिल्ली वासी हो गये हैं। वैसे मेरे अनुसार मीडिया में यह कल्चर कुछ ज्यादा है.. और शायद बी.पी.ओ में भी...
निखिल जी,
ऐसे खेल और ऐसे मिलन-समारोह (रात वाली दारू की पार्टी) पुणे में भी खूब होते हैं। मेरा सौभाग्य/दुर्भाग्य (कह नहीं सकता) रहा है कि मै ऐसी किसी पार्टी में शामिल नहीं हुआ जहाँ बिगड़ने के लिए तोहफ़े दिए जाते हैं। दर-असल हमारे यहाँ तो लोग बर्थ-डे पर भी तोहफ़े नहीं देते, बल्कि जी पी ली (*** पर लात) मार कर निकल जाते हैं और हाँ इस मार खाने के लिए आपको खर्च भी करना होता है.. उनके लिए दारू और चखने का इंतज़ाम। अब जब आजतक हमें गिफ़्ट हीं नहीं मिला तो "कंडोम" मिलने और न मिलने की बात हीं नहीं आती। अभी तक ऐसे तोहफ़े मिले तो नहीं है, लेकिन यही सोच रहा हूँ कि अगर कभी मिल जाए (कोई सामने से यह तोहफ़ा दे) तो उस समय हमारे चेहरे की रंगत क्या होगी। आप तो उस दौर से आगे निकल चुके हैं, हम तो वहीं अटके हैं। अभी भी लोगों की नज़र में बड़े हीं सीधे-सादे इंसान हैं हम :)
बातों-बातों में आपको बधाई संदेश देना तो भूल हीं गया। आपको इस खास दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
-विश्व दीपक
parivartan to sasar ka niyam hai...aur astitwa ko banaye rakhne ki ek shart bhi...so kuch badlaw dilhi ki taraf se ..delhi ke liye ...dilhi me tike rahne ke liye.....
निखिल बाबू दिल्ली के बहाने क्या बिगड़ना...यूं ही बिगड़ जाइये ना...प्लीज़
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