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इसी प्रकार मुस्लिम शायरों तथा विद्वानों ने विवादित स्थल पर राम मंदिर की बात स्वीकारी है। अबुल फजल मुगल काल के एक लेखक थे। जिन्होने आइना-ए-अकबरी में अवध (अयोध्या) को महापुरूष राम की निवास स्थान बताया। ‘‘औरंगजेब आलमगीर’’ में स्पष्ट (पृष्ठ संख्या 623-630) रूप से विस्तार को दिया गया काफिरों (हिन्दुओं) ने इस स्थान (राम जन्म भूमि) की मुक्ति के लिए 30 बार आक्रमण किये 1664 ई0 में एैसे ही किये गये आक्रमण में दस हजार हिन्दू हताहत हुए। सहीफा-ए-नसैर बहादुर शाही (1700-1800) यह पुस्तक औरंगजेब की पौत्री तथा बहादुर शाह जफर की पुत्री बंगारू अमातुज्ज-जोहर द्वारा लिखी है। जिसके अनुसार (पृष्ठ 4-7) मथुरा बनारस और अवध (अयोध्या) में काफिरों (हिन्दुओ) के इबादतगाह है जिन्हे वे गुनहगार व काफिर कन्हैया की पैदाइशखाना, सीता की रसोई व हनुमान की यादगार मानते हैं जिसके बारे में हिन्दू मानते है कि यह रामचन्द्र ने लंका पर फतह हासिल करने के बाद बनवाया था। इस्लाम की ताकत के आगे यह सब नेस्तनाबूद कर दिया गया और इन सब मुकामों पर मस्जिद तामीर कर दी गयी। बादशाहों को चाहिए कि वे मस्जिदों को जुमे की नमाज से महरूम न रखे, बल्कि यह लाज़मी कर दिया जाय कि वहॉ बुतों की इबादत न हो, शंख की आवाज मुसलमानों के कानों में न पहुचे। बाबरी मस्जिद का विवरण पुस्तक के नवे अध्याय में जिसका शीर्षक ‘‘वाजिद अली और उनका अहद’’ में लिखा है- पहले वक्तो के सुल्तानों ने इस्लाम की बेहतरी के लिए और कुफ्र को दबाने के लिए काम किये। इस तरह फैजाबाद और अवध (अयोध्या) को भी कुफ्र से छुटकारा दिलाया गया। अवध में एक बहुत बड़ी इबादत गाह थी और राम के वालिद की राजधानी थी जहॉ एक बड़ा सा मन्दिर बना हुआ था। वहॉ एक मजिस्द तामीर करा दी गयी। जन्म स्थान का मंदिर राम की पैदाइशगाह थी जिसके बराबर में सीता की रसोई थी। सीता राम की बीबी का नाम था। उसी जगह पर बाबर बादशाह ने मूसा आसिकान की निगहबानी में एक सर बुलन्द मस्जिद तामीर करायी। वह मस्जिद आज भी सीता पाक (सीता की रसोई) के नाम से जानी जाती है।
न्यायिक व्यवस्था के अनुसार भी सन् 1885 में फैजाबाद जिले के न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कर्नल चेमियर ने एक नागरिक अपील संख्या 27 में कहा यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मस्जिद का निर्माण हिन्दुओं के एक पवित्र स्थल पर भवन तोड़कर किया गया है चूंकि यह घटना 356 वर्ष पूर्व की है इसलिए अब इसमें कुछ करना कठिन है। अयोध्या के उक्त विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर पिछले 60 वर्षों से चल रही सुनवाई लखनऊ उच्च न्यायालय में 26 जुलाई को पूरी हो गयी। जिसका कि फैसला मध्य सितम्बर में आने की पूरी सम्भावना है। इस सन्दर्भ में उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एस.यू. खान, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा की विशेष पीठ ने 27 जुलाई, 2010 को दोनो पक्षों के अधिवक्ताओं को सिविल संहिता प्रक्रिया की धारा-89 के तहत बुलाकर समाधान के विषय पर बातचीत की परन्तु दुर्भाग्यवश सार्थक हल नहीं निकला। उक्त पीठ ने दोनो पक्षों से विवाद के हल के सन्दर्भ में प्रयास जारी रखने को कहा तथा कहा यदि उस विषय पर कोई सार्थक सम्भावना दिखती है तो विशेष कार्याधिकारी को सूचित करें। यदि उच्च न्यायालय का उक्त प्रयास सफल होता है तो बहुत शुभ, नहीं तो हिन्दू तथा मुसलमान दोनो वर्गों को चाहिए मध्य सितम्बर में उक्त विवाद के सन्दर्भ में न्यायलय द्वारा यदि कोई निर्णय आता है तो उसका सम्मान करें।
इस बात को कोई नकार नहीं सकता लगभग ढाई हजार वर्षों से विदेशी भारत को लूटते और तोड़ते-फोड़ते रहे उनमें से बाबर भी एक था। जिसने भारत वर्ष में आतंक पैदा किया एवं उसे लूटा तथा तोडा। उक्त विवाद के समाधान हेतु देश के अनेक प्रधानमंत्रियों ने प्रयत्न भी किये लेकिन उनमें सत्य स्वीकार करने की क्षमता न होने के कारण समाधान पर न पहुँच सके। पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने तो व्यवस्थित वार्ताओं के द्वारा वास्तव में समाधान का प्रयास करना चाहा परन्तु कुछ मजहबी हठधर्मियों के असहयोग के चलते नतीजे पर न पहुँच सके। 1936 के बाद से उक्त स्थल पर नमाज अदा नही की गयी जिसे कोई अस्वीकार नहीं कर सकता। शरीयत के अनुसार भी उक्त स्थल मस्जिद नहीं है लेकिन तथाकथित सेकुलरवादियों ने हमेशा उक्त स्थल पर मंदिर होने के साक्ष्य हिन्दुओं से ही मांगे। सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है आने वाली पीढ़ी को हमारा धर्मनिरपेक्ष वर्ग क्या देना चाहता है। झूठा इतिहास या भ्रम की स्थिति झूठ में प्रत्यारोपित राष्ट्र या बिखरी संस्कृति। न्यायालय के आदेश से हुई खुदाई में प्राप्त साक्ष्य भी उन सत्ता लोलुप शासक वर्ग का मुँह खुलवाने के लिए प्रर्याप्त नहीं है या उन्हे भय है अल्पसंख्यक वर्ग के मतों का जो उनकी सत्ता छीन सकती है। समाधान को लटकाता एवं विकल्प की तलाश में भटकता उक्त वर्ग ही मुख्य जिम्मेदार है उस 6 दिसम्बर, 1992 की दुर्भाग्यशाली घटना का जिसने कभी भी जिम्मेदारी से निर्णायक बात कहने का साहस नही किया या। उन्हे इन्तजार है दूसरे भूचाल का जब लाशों के ढेर पर बैठ वे सत्ता का बंदरबॉट कर सके।
राघवेंद्र सिंह
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2 बैठकबाजों का कहना है :
जानकारी के लिए धन्यवाद
बहुत सही जानकारी..
"तथाकथित सेकुलरवादियों ने हमेशा उक्त स्थल पर मंदिर होने के साक्ष्य हिन्दुओं से ही मांगे।"..
ये तो होता आया है... भारत सरकार ने तो राम के अस्तित्व पर ही सवाल लगा दिया है॥ रामसेतु विवाद जब कोर्ट में चल रहा था तो सरकारी वकील ने कहा था कि राम कोई था ही नहीं.. कांग्रेस सरकार के दिग्गज क्या अपनी से सात पीढ़ी पहले के किसी व्यक्ति के होने का सुबूत दे सकते हैं? तो फिर हजारो साल पहले के राम का सबूत क्यों माँगा जाता है?
लेख में काफ़ी जानकारियाँ थी जो पता नहीं थी...
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