Thursday, July 29, 2010

भारतीय गृहिणी की कीमत 1250 रुपये महीने !

24 जुलाई का नवभारत टाइम्स पढा...मुखपृष्ठ पर ही खबर थी कि..'घर की नारी और भिखारी एक बराबर'... यहीं से जानकारी मिली कि जनगणना में कुछ लोगों को गैरकमाऊ लोगों की श्रेणी में रखा गया है!...इनमें गृहिणियां, भिखारी, कैदी और वेश्याएं है!... हद हो गई!... जो स्त्रियां घर में सारा दिन बच्चों के लिए और पतियों के लिए खटती रहती है....खाना बनाना, कपडे धोना, घर की सफाई और...और भी बहुत-से काम करती हैं...उनको गैरकमाऊ की श्रेणी में जगह देना क्या न्यायसंगत है?....अगर गृहिणियां घर नहीं संभालेगी तो पुरुष बाहर के काम कैसे कर पाएंगे?... पुरुष के बाराबर ही कमाई का श्रेय एक स्त्री को भी जाता है!... सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केन्द्र सरकार को निर्देश दिया है कि महिलाओं का नए सिरे से सम्मानजनक मूल्यांकन करें!.. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक स्त्री के सड़क हादसे से मारे जाने पर उसके परिवार को पर्याप्त मुआयजा देने से इन्कार किया था..क्यों कि गृहिणियों की हैसियत महज 1250 रु.प्रतिमाह आंकी गई है!....इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मुआवज़े की रकम रु.600000 दिलवाई है!..और कहा है कि गृहिणियों को भिखारी, कैदी और वेश्याओं की श्रेणी में रखना अपमानजनक है!
..... क्या भारत सरकार की आंखें अब भी खुलेगी?.... अगर 'मेरा देश महान' कहने वाले नेता जब अपनी ही मां, बहनें और पत्नियों को सम्मानजनक स्थान नहीं दे पाते तो...इस देश की छवि दुनिया के सामने कैसी होगी?

डॉ अरुणा कपूर

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13 बैठकबाजों का कहना है :

Shanno Aggarwal का कहना है कि -
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Shanno Aggarwal का कहना है कि -

वाह ! वाह ! क्या कभी औरत के त्याग का मूलयांकन भी किया जा सकता है ? घर में औरत बिना समय की परवाह किये हुए निस्वार्थ सबकी खुशियों के लिये दिन हो या रात खटने को तैयार रहती है...यह उसे तब महसूस होता है जब उसकी कदर नहीं होती..वर्ना उसके दिमाग में कभी अपना मूल्य लगाने का सवाल ही नहीं उठता है...किस तरह के लोग हैं...और क्या सोच कर ऐसा मूलयांकन करते हैं उसका ?
इस आलेख के लिये धन्यबाद अरुणा जी.

घर भर का वह भार उठाये
बेचारी नारी की लाचारी है
त्याग की मूर्ति रही युगों से
अब कर दिया उसे भिखारी है.

-शन्नो

Aruna Kapoor का कहना है कि -

धन्यवाद शन्नोजी!... आपकी कविता की चंद पंक्तियो द्वारा अभिव्यक्ति बहुत अच्छी लगी!

Aruna Kapoor का कहना है कि -

...कृपया इस लेख में 'नवभारत टाइम्स' की जगह 'हिन्दुस्तान टाइम्स' पढें....गलति के लिए क्षमा याचना!

संत शर्मा का कहना है कि -

यह वाकई अपमानजनक है | आपने उचित आवाज उठाई है | आपकी आवाज बुलंद हो |

डॉ महेश सिन्हा का कहना है कि -

नेता और शर्म दोनों विपरीत ध्रुव हैं .
नारी अगर घर में काम करना बंद कर दे तो इस देश में क्या होगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती .

दिपाली "आब" का कहना है कि -

had ho gai, wakai apmanjanak hai yeh. agar koi stri bahar ja kar kaam nahi karti iska matlab yeh nahi hai ki wo kuch nahi karti.
ab kya kahein, bharat sarkaar ki leela wahi jaane .

Aruna Kapoor का कहना है कि -

धन्यवाद श्री.शर्मा, डॉ.सिन्हा और दीपाली!... यह आवाज सिर्फ मेरी नही, बल्कि भारतीय नारी की है!

संपादक का कहना है कि -

अरुणा जी,
भारतीय नारी नही...हर भारतीय की आवाज़ कहिए....

Aruna Kapoor का कहना है कि -

आप के विचार जान कर बहुत खुशी हुई निखिलजी!...इस आवाज में सभी भारतीय आवाज मिलाएंगे, तब यह और बुलंद हो जाएगी!....तभी भारतीय नारी जीवन में सन्मान का अनुभव करेगी!

Suman का कहना है कि -

arunaji maine is khabar ko milap ke phale panne par papdha .bahut dukh huva pdhakar.mahilaonke saath hamesha hamare purush prdhan samaj ne pakshapath kiya hai.aap thik kahati hai .gruhiniyonka arthik mulyankan hona chahiye.

Anonymous का कहना है कि -

अरुणा जी आपने बहुत ही विचारोत्तेजक मुद्दे को छुआ है..इस प्रभावशाली लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई!

ZEAL का कहना है कि -

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बहुत ख़ुशी हुई आपकी यह पोस्ट पढ़कर, कम से कम कुछ महिलाओं को बुरा तो लगता है। वर्ना ज्यादातर तो जानती भी नहीं उन्हें भिखारियों के साथ वर्गीकृत कर दिया गया है ।
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