झारखंड का सबसे चर्चित अखबार है प्रभात खबर....अखबार का नारा है ' अखबार नहीं आंदोलन ' ...पत्रकारिता के हर स्वरूप में प्रभात खबर का नाम अदब से लिया जाता है....इसके प्रधान संपादक हरिवंश जी के साथ काम करने का मौका मुझे भी कुछ सालों पहले मिला है...अब टीवी के हाईफाई संपादकों के बीच हरिवंश जी की सादगी याद आती है....तब अखबार की कीमत तीन-साढ़े तीन रुपये थी और हाल के दिनों मे चार रुपये ...अचानक इस खबर पर नज़र पड़ी कि अखबार अब दो रुपये में मिलेगा, उसी पुरानी गुणवत्ता के साथ....झारखंड में दैनिक भास्कर जल्द ही आने वाला है, जिसकी कीमत कम ही होती है...हिंदुस्तान और दैनिक जागरण पहले ही वहां चार रुपये में बिककर होड़ में बने हैं... ऐसे में एक अखबार की कीमत आधी हो जाना सुखद भी है और चुनौती भी कि कहीं एक अच्छा अखबार बाज़ार की बेरहमी से बंद न हो जाए....प्रभात खबर के मुताबिक कीमत कम करने की वजह बस इतनी है कि पूरे झारखंड को दो रुपये में अखबार मिलेगा, तो आंदोलन का सपना सच हो सकेगा....काश ! यही सच हो....प्रभात खबर ने कीमत कम करने को लेकर संपादकीय में जो कहा, वो आपके सामने हैं...वैसे, आप क्या कहते हैं....
पाठकों को दो रुपये में प्रभात खबर
'पढ़ेगा पूरा झारखंड’ अभियान के तहत आज (15 जून, 2010) से प्रभात खबर पाठकों के लिए दो रुपये में उपलब्ध है. चार रुपये में नहीं. एक अखबार की लागत कीमत लगभग नौ रुपये है. पर पाठकों को दो रुपये में क्यों? झारखंड बने 10 वर्ष होने को हैं. सात मुख्यमंत्री जा चुके हैं. अब आठवें की तलाश जारी है. न सरकार स्थिर है, न विधानसभा. इस तरह न विकास हो रहा है. न राज्य आगे जा रहा है. दुनिया को 21वीं शताब्दी में ज्ञान का युग (नॉलेज ऐरा) कहा गया है.
सूचना क्रांति का दौर. यानी सूचनाएं ही लोगों को या समाज को जागरूक या संपन्न बनाती हैं. सूचनाएं अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे, तो झारखंड में एक नयी चेतना पैदा होगी. आंदोलन और बदलाव की नयी भूख और बेचैनी होगी. राज्य में जन-जन तक राज्य की सूचनाएं पहुंचे, बदलती दुनिया की खबरें पहुंचे, देश के कोने-कोने में आ रहे बदलावों की सूचना पहुंचे, तो सही अर्थो में एक नया आंदोलन पैदा होगा. आंदोलन सृजन का. आंदोलन प्रगति का.
आंदोलन विकास का. इसलिए जन-जन तक सूचनाएं पहुंचाने के लिए ही प्रभात खबर ने पाठकों को दो रुपये में अखबार उपलब्ध कराने का ऐतिहासिक निर्णय किया है, ताकि घर-घर अखबार खरीद और पढ़ सके. अब आप पाठकों से गुजारिश है कि आप ‘पढ़ें अखबार’ आंदोलन चलायें. अखबार को पास, पड़ोस, समाज हर जगह फ़ैलायें. यह सूचना युग है. इसमें शिक्षा और ज्ञान ही इंसान को आगे ले जा सकते हैं. प्रभात खबर ज्ञान का मंच बने. यह हमारी कोशिश होगी.
लंबे समय से झारखंड में यह चर्चा हो रही थी कि अखबारों की कीमत अधिक होने के कारण बड़ी संख्या में लोग अखबार नहीं खरीद पाते. बीच-बीच में अखबार समूहों ने सर्वे कराये, उसमें भी यह बात सामने आयी. झारखंड की आबादी तीन करोड़ से ज्यादा है, लेकिन उस अनुपात में यहां अखबार नहीं बिकते.
इसका सबसे प्रमुख कारण है, अखबारों का दाम ज्यादा होना. समय-समय पर पाठकों के सुझाव आये, कीमत दो रुपये रखने का. लेकिन न्यूज प्रिंट और अन्य सामग्रियों के बढ़ते भाव से यह संभव नहीं हो सका था. प्रभात खबर प्रबंधन ने महसूस किया कि दाम घटाने से झारखंड का एक बड़ा तबका, जिसकी संख्या लाखों में हो सकती है, अखबार खरीद सकता है, अखबार पढ़ सकता है.
यह हर कोई जानता है कि प्रभात खबर ने झारखंड राज्य के निर्माण और उसके पुनर्निर्माण में अहम भूमिका अदा की है. झारखंड के प्रमुख सवालों पर अभियान चलाया. जब भी झारखंड के विकास की बात उठी, प्रभात खबर ने समझौता नहीं किया. लेकिन अखबार की कीमत के कारण यह आवाज झारखंड के जन-जन तक नहीं पहुंच सकी.
यह सूचना का युग है. जब तक हर व्यक्ति तक सूचना नहीं पहुंचेगी, कोई भी सामाजिक आंदोलन सफल नहीं होगा. प्रभात खबर चाहता है कि झारखंड के लोग जागरूक बनें, उनमें जनचेतना फ़ैले और यह आंदोलन का रूप ले. इसके लिए जरूरी है कि राज्य का हर व्यक्ति अखबार खरीद कर पढ़े. इसी प्रयास से नये झारखंड के उदय का रास्ता खुलेगा, नयी चेतना आयेगी. गांव-गांव, घर-घर अखबार चेतना के वाहक के रूप में फ़ैलेगा-पसरेगा. इस तरह अखबार एक सृजनात्मक आंदोलन को आकार देगा. पाठकों के सहयोग से. पाठकों के बूते. पाठकों की बदौलत.
प्रभात खबर प्रबंधन
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4 बैठकबाजों का कहना है :
निखिल जी मैने तो पहली बार सुना इस अखबार का नाम शाय्द पंजाब हिमाचल मे लाँच नही हुया है।
नहीं निर्मला जी, ये अखबार सिर्फ झारखंड से निकलता है....बाद में बिहार पहुंचा और दार्जिलिंग से भी एक एडिशन निकलता है...क्षेत्रीय पत्रकारिता में बड़े अदब से नाम लिया जाता है प्रभात खबर और हरिवंश जी का....आप वेबसाइट पर जा सकी हैं इसके..
www.prabhatkhabar.com
prabhaat khabar ek bahut hi purana aur pratishtith samachar patra hai. khabare bhi acchhi deta hai.
टीआरपी की मारामारी में लगभग भूल ही गया था पत्रकारिता को...समझ नहीं आता पत्रकारिता के इस रूप को क्या नाम दूं...
साहसिक....नहीं, खौफनाक!
डर बस इतना कि कहीं पत्र और सूचना की लड़ाई अस्तित्व की लड़ाई में न तब्दील हो जाए...
प्रभात ख़बर को मेरा सलाम
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