हम बात कर रहे हैं एमसीआई, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की...जो अब सिर्फ इतिहास बन चुका है...क्योंकि एमसीआई के चेयरमैन केतन देसाई को भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ्तार होने के बाद उसे भंग कर दिया गया...जिस पर बाद में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने अपनी मुहर लगा दी...और अब पूरे गाजे-बाजे के साथ एमसीआई जमींदोज हो गई...इस नए संकल्प के साथ कि अगले साल से केंद्र द्वार बनाए गए नए क़ानून के तहत एमसीआई की जगह एक नई संस्था का गठन होगा...यानी एक संस्था इतिहास के पन्नों में और दूसरी इतिहास के पहले पन्ने पर...
क्या थी एमसीआई?
एमसीआई का गठन इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1933 के तहत, 1934 में किया गया.
उद्देश्य था...देश के सभी मेडिकल कॉलेजों का नियमन...आजादी तक तो सब ठीक था...लोकिन आजादी के बाद मेडिकल कॉलेजों की संख्या धड़ल्ले से बढ़ने लगी...तो समस्याएं भी बढ़ने लगीं...फिर धीरे-धीरे यह महसूस किया जाने लगा कि 1934 में बनाए गए...नियम कानूनों में कुछ सुधारों की ज़रूरत है...जिसके चलते 1956 में इसकी जगह एक काफी हद तक नया...एक्ट लाया गया...जिसमें बाद में फिर 1964, 1993 और 2001 में तीन संशोधन किए गए...इसके उद्देश्य बहुत स्पष्ट थे...सभी संस्थानों में पढ़ाई का स्तर समान रखते हुए...भारतीय और अन्य विदेशी संस्थाओं के मान्यता संबंधी फैसले लेना....उचित डिग्री और योग्यता वाले डॉक्टरों का पंजीकरण और उनकी स्थाई और अस्थाई मान्यता...और विदेशी संस्थाओं से आपसी सामंजस्य के साथ मान्यता संबंधी मसले पर काम करना.
ले डूबा भ्रष्टाचार
एमसीआई कौन है, क्या है...इसके बारे में विरले लोगों को ही पता था...यूं कहें किंचित ही लोगों ने इसका नाम भी सुना हो...लेकिन मीडिया की देन कहें या फिर एमसीआई के तात्कालिक चेयरमैन के सुकृत्यों की अनुकंपा, कि अब काफी लोग जान गए हैं कि एमसीआई क्या थी...दरअसल, एमसीआई चेयरमैन केतन देसाई को इसी साल 22 अप्रैल को सीबीआई ने रिश्वत लेते हुए गिरफ़्तार किया था...वजह थी पंजाब मेडिकल कॉलेज को बिना सुविधा के अतिरिक्त छात्रों को भर्ती करने की अनुमति देने के लिए रिश्वत की मांग...रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने के बाद उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ गया...और इस तरह 22 अप्रैल को ही आजादी पूर्व के इस संस्थान की विदाई का ब्लूप्रिंट तैयार हो गया...जो जल्द ही जमीनी हक़ीक़ीत में तब्दील हो गई...
नहीं पता कब तक, ऐसे भ्रष्टाचार देश के छोटे से लेकर बड़े संस्थानों को अपनी जद में लेते रहेंगे...लेकिन एक बात तो तय है संस्था चाहे छोटी हो या बड़ी...हर संस्था के खात्मे के साथ... आस्था के स्तंभ भी ध्वस्त होते हैं...परंपरा है, परंपराओं का क्या...ये तो शास्वत प्रक्रिया है...चलती रहेगी...कल को फिर कोई देसाई आएगा और अपने कारनामों के साथ आस्था के हज़ारों-हज़ार स्तंभों को ध्वस्त कर जाएगा...
आलोक सिंह साहिल
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4 बैठकबाजों का कहना है :
अच्छी जानकारी साहिल भाई..
मुझे मशरूम की तरह उगते इंजीनियरिंग कॉलेजों की भी बहुत चिन्ता है.. आपने १२वीं में विज्ञान पास किया हो या नहीं आप इंजीनियरिंग कर सकते हैं..
इन पर कब रोक लगेगी पता नहीं...
न जाने कितनी ऍम सी आई अभी भ्रष्टाचार की काली बोतल में बंद है .....
यही तो विडंबना है...सैकड़ों ऐसी संस्थाएं...विलुप्त होने की राह तक रही हैं...
खुद्दार एवं देशभक्त लोगों का स्वागत है!
सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले हर व्यक्ति का स्वागत और सम्मान करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य है। इसलिये हम प्रत्येक सृजनात्कम कार्य करने वाले के प्रशंसक एवं समर्थक हैं, खोखले आदर्श कागजी या अन्तरजाल के घोडे दौडाने से न तो मंजिल मिलती हैं और न बदलाव लाया जा सकता है। बदलाव के लिये नाइंसाफी के खिलाफ संघर्ष ही एक मात्र रास्ता है।
अतः समाज सेवा या जागरूकता या किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को जानना बेहद जरूरी है कि इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम होता जा है। सरकार द्वारा जनता से टेक्स वूसला जाता है, देश का विकास एवं समाज का उत्थान करने के साथ-साथ जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों द्वारा इस देश को और देश के लोकतन्त्र को हर तरह से पंगु बना दिया है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, व्यवहार में लोक स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को भ्रष्टाचार के जरिये डकारना और जनता पर अत्याचार करना प्रशासन ने अपना कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं। ऐसे में, मैं प्रत्येक बुद्धिजीवी, संवेदनशील, सृजनशील, खुद्दार, देशभक्त और देश तथा अपने एवं भावी पीढियों के वर्तमान व भविष्य के प्रति संजीदा व्यक्ति से पूछना चाहता हूँ कि केवल दिखावटी बातें करके और अच्छी-अच्छी बातें लिखकर क्या हम हमारे मकसद में कामयाब हो सकते हैं? हमें समझना होगा कि आज देश में तानाशाही, जासूसी, नक्सलवाद, लूट, आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका एक बडा कारण है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के भ्रष्ट अफसरों के हाथ देश की सत्ता का होना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-"भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" (बास)- के सत्रह राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से मैं दूसरा सवाल आपके समक्ष यह भी प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! क्या हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे अफसरों) को यों हीं सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति इस संगठन से जुडना चाहे उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्त करने के लिये निम्न पते पर लिखें या फोन पर बात करें :
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
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