Thursday, May 07, 2009

देव का पाकिस्तान

बड़ी मुश्किल से फोन मिला था... पहले बस हेलो... और फिर अगले ही पल “सलाम वाले कुम... भाई कैसे हैं... सब ख़ैरियत... तबियत अच्छी है” जो मैं पूछना चाह रहा था वो पहली ही सांस में दूसरी तरफ़ से पूछा जा रहा था। हम ठीक हैं भाई... मैं तो आपकी ख़ैरियत पूछना चाह रहा था। जो ख़बरें हम तक पहुंच रही हैं वो बेचैन करने वाली हैं। आपका फोन ही नहीं मिल रहा था तो चिंता और बढ़ रही थी। “ नहीं भाईजान मैं बिल्कुल ठीक हूं (हल्की हँसी के साथ) ऐसा कुछ नहीं है... सब सकून में है... सब मंगल कुशल है...”

हमारे सामने फरवरी 2006 का वो दिन आकर खड़ा हो गया जब पहली बार हम इस इंसान से पेशावर में मिले थे, तब हालात आज जैसे नहीं थे। वैसे तो पेशावर का हमारा ये सफर हमारे चैनल की तरफ से भारत-पाक एकदिवसीय मैच के लिये था लेकिन उस रोमांच में रहमान बाबा रोड पर स्थित कांटीनेंटल गेस्ट हाउस के रिसेप्शन काउंटर के पीछे खड़े शख़्स ने और रंग भर दिये थे।

ये वही सरज़मीन थी जहां 1923 में एक पठान बच्चे ने जन्म लिया था। बच्चा बड़ा हुआ तो हिंदुस्तान की धड़कन बन गया। लोग उसे ट्रेजडी किंग कहने लगे। पेशावर का यूसुफ ख़ान बंबई का दिलीप कुमार बन गया। लेकिन आसिफ जावेद की शक्ल में फिर एक ट्रेजडी हमारे सामने थी। आसिफ जावेद (विज़िटिंग कार्ड पर आसिफ कुमार का यही नाम छपा था) ने उस दिन पेशावर में हमारा इस्तेक़बाल नहीं स्वागत किया था। पाकिस्तान कई बार गया था मगर पहली बार एक हिंदू पाकिस्तानी से मुलाक़ात हुई थी, वो भी पेशावर में। अफगानिस्तान की सीमा से लगे इस शहर में हम चार दिन रहे और इन चारों दिनों में हमारे काम की व्यस्तताओं के बाद हमारे रहबर, दोस्त, गाइड, सब कुछ आसिफ भाई ही थे।

मगर इन तीन बरसों में पाकिस्तान ने बरबादियों का एक लंबा सफर तय किया है। आसिफ भाई लाख कहें सब मंगल कुशल है लेकिन हक़ीक़त से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता, और हक़ीक़त ये है कि पाकिस्तान की अवाम पर तालिबानी ख़तरा मौत की तरह मंडरा रहा है। जब वहां का बहुसंख्यक तबका महफूज़ नहीं है तो अल्पसंख्यकों के बारे में फ़िक्र कौन करेगा? पेशावर में सिंध के मुक़ाबले हिंदू परिवार बहुत कम हैं। आसिफ भाई के मुताबिक़ कोई हजार बारह सौ परिवार। और उनके समुदाय के एक एम॰पी॰ किशोर कुमार सहब भी है। “यहां शहर में तो हम ठीक हैं.... हाँ बाजोड़ के आगे जो सिख फैमलीज़ हैं उन्हें बड़ा टार्चर किया हुआ है... काफी लोग तो पंजा साहब आ गये हैं... काफी पंजाब की तरफ निकल आये हैं... हिंदू परिवारों के साथ ऐसा नहीं है न... सिखों का मामला दूसरा है... इनकी तो शिनाख़्त नज़र आ जाती है न...”

यानी ख़तरा है मगर शिनाख़्त न हो पाने की वजह से बचे हुए हैं। जैसे ही हमने ये कहा आसिफ कुमार की आवाज़ में दर्द पैदा हो गया “देखे जी बस... जहां इतने... 16-17 करोड़ अवाम पड़ी हुई हैं वहां हम भी एक कोने में पड़े हुए हैं...जो सबके साथ है वो हमारे साथ भी है...” आसिफ जिस जमात से आते हैं वो पाकिस्तान में सिर्फ तीन प्रतिशत है। इनमें हिंदुओं के साथ सिख और ईसाई भी शामिल हैं। पेशावर के मशहूर रेस्ट्रॉ “हेरिटेज” के खान साहब बताते हैं कि “अकेले पेशावर में सैकड़ों चर्च हैं, कई शहर की महत्वपूर्ण लोकेशंस पर बने हैं। दर्जनों मस्जिदें यहां बमों से उड़ा दी गईं लेकिन कभी किसी चर्च को नुकसान नहीं पहुँचाया गया। न ही किसी मंदिर के बारे में ऐसी खबर मिली। पता नहीं ये कौन लोग हैं जो मस्जिदों को निशाना बना रहे हैं।” ख़ान साहब के दर्द में गुस्सा भी शामिल है। उनका कहना है कि इन आतंकियों का संचालन भी अमरीका कर रहा है और उनके खिलाफ जंग भी अमरीका कर रहा है।

“भाईजान हम सब हैरान हैं यहाँ कि ये कौन लोग हैं। यहाँ की अवाम के सामने सवाल है कि क्या ये हमारी जंग है? ये लड़ाई हमारे शहरों गली-कूचों तक आ गई है। अगर फौजी ऑपरेशन इसी तरह चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब पूरा मुल्क तालिबानियों के कब्ज़े में होगा। हम तो चाहते हैं भाईजान कि हमारे सियासी रहनुमाओं, मज़हबी विद्वानों और समाजी हस्तियों की मदद से इन लड़ाकुओं को बेनक़ाब किया जाय ताकि पूरी कौम उनका चेहरा अच्छी तरह से देख ले। इसके बाद लोगों को भरोसे में लेकर एक भरपूर फौजी आपरेशन कर, दहशतपसंदों को सरेंडर करने पर मजबूर करके, समस्या का सियासी हल निकालने के लिये रास्ता हमवार किया जाय। और जंग में बरबाद हो चुके लोगों की बहाली यूँ की जाय कि वो आतंकी ताकतों की तरफ आकर्षित न हों।”

मैं सोच रहा था कि कितना फर्क़ है अवाम की सोच में, अल्पसंखयकों की सोच में और अमरीकी-पाकिस्तानी हुक्मरानों की सोच में। अवाम के पास जो हल है उसका कोई खरीदार नहीं है, दूसरी तरफ अमरीकी इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के रिसर्च फेलो इम्तियाज़ अली के अनुसार पाकिस्तान के टूटने-बिखरने की बातें हो रही हैं। अलक़ायदा, तालिबान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे विषयों के पंडित भविष्यवाणियां कर रहे हैं कि पाकिस्तान टूटने की कगार पर है। यहां तक कि एक नक़्शा भी प्रकाशित किया जा चुका है, जिसमें दिखया गया है कि बलूचिस्तान तथा अफगानिस्तान से लगे पाकिस्तानी इलाकों के निकल जाने के बाद भविष्य का पाकिस्तान कैसा दिखेगा।

पाकिस्तान में तालिबानी ताक़त इस्लामाबाद से सिर्फ़ 60 किलोमीटर पर मौजूद है और ये दूरी लगातार कम होती जा रही है। वाशिंगटन में हिलैरी क्लिंटन पाकिस्तान पर इल्ज़ाम लगा रही हैं कि उसकी सरकार तालिबानियों के लिये रास्ता साफ कर रही है कि वो पूरे मुल्क की हुकूमत अपने हाथ में ले लें। पाकिस्तान के एक वरिष्ठ राजनायिक वाजिद शम्सउल हसन जो ब्रिटेन में राजदूत भी रह चुके हैं, राष्ट्रीय खूफिया परिषद की वैश्विक भविष्य आंकलन की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहते हैं कि 2005 में ही पाकिस्तान पर पड़ने वाले काले साय की पेशिनगोई की जा चुकी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सिविल वार, खूनखराबा, प्रांतीय झगड़े और न्यूक्लियर हथियारों पर कब्ज़ा करने के लिये संघर्ष के चलते, 2015 तक पाकिस्तान एक नाकाम देश की श्रेणी में आ जायगा।

2006 में आसिफ भाई से हमने जानना चाहा था कि क्या आमतौर पर हिंदुओं के नाम ऐसे ही होते हैं जैसा उनका नाम है? उन्होंने हामी भरी थी कि हाँ ऐसे ही नाम हम लोग रखते हैं। “पिछले साल मेरे यहाँ बेटा हुआ है और हमने उसका नाम देव रखा है। ये हमारे परिवार में पहला हिंदू नाम है।” आसिफ भाई का गर्व से फूलता सीना और आंखों की चमक हमारी याद्दाश्त में अभी तक उतनी ही ताज़गी के साथ बसी हैं।

हमारी हिम्मत नहीं हुई कि हम आसिफ कुमार से देव के बारे में कुछ पूछें। हमें इसका एहसास है कि ऐसे सवाल न चाहते हुए भी डर पैदा करते हैं। फिर भी हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उनका देव अब स्कूल जाने लगा होगा। गुजरता वक़्त उसे बड़ा कर देगा लेकिन ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि किस पाकिस्तान के नक्शे में उसका घर होगा। और शायद ये भी कि कैसा होगा देव के भविष्य का पाकिस्तान?

--नाज़िम नक़वी

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7 बैठकबाजों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

naajim ji ,
bahut hi dard bhari kaufnaak tasveer hai allah jaane kya hone wala hai ,pakistaan ki sarhad alag jaroor ho gayi thi ,par donon mulkon me rahne waale logon ko koi alag nahi kar paaya tha.humaari samajh se pare hai ye sab ,aaj ki dahsat ,hum sab to padosi ki salaamati ki dua karne waalon me se hain .

Divya Narmada का कहना है कि -

dardnak haur durbhagyapoorn

manu का कहना है कि -

नाम तो चाहे जो मर्जी रखा जाए,,,क्या फर्क पढ़ना है ,,,अगर वाकई अपनी पसंद का हो ,,,,
पर बाकी का लेख सोचने पर मजबूर करता है,,,,,
आंम इंसान इधर उधर के एक से ही हैं,,,,
जैसे के आम हुक्मरान,,,,!!!!!!

Nikhil का कहना है कि -

बढिया आलेख....बढिया वापसी

Randhir Singh Suman का कहना है कि -

thik hai.

rachana का कहना है कि -

पढ़ के बहुत दुःख हुआ ये सब कहाँ पता चल पता है .काश सब जगह शांति हो
सादर
रचना

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना का कहना है कि -

we are not safe, even in our own home.it is panic and raise a quiestion on human civilisation.

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