लगभग 3 वर्षों के बाद गेहूं एक बार फिर सरकार के लिए सिरदर्द बन गई है। उस समय देश में गेहूं की कमी के कारण यह सरकार के लिए परेशानी का सबब बनी थी और अधिकता के कारण।
उल्लेखनीय है कि तीन वर्ष पूर्व देश में गेहूं की कमी थी और बढ़ते भाव को काबू में करने के लिए सरकार ने इसका आयात किया था। यह आयात अनेक वर्ष बाद किया गया था।
बहरहाल, अब स्थिति बदली हुई है। देश में गेहूं की अधिकता है (लेकिन यह बाद दूसरी है कि भाव अधिक चल रहे हैं।) और नई फसल सिर पर है और वह भी रिकार्ड। देश की अनेक मंडियों में नई गेहूं की आवक आरंभ हो चुकी है और कुछ क्षेत्रों में इसके भाव सरकार द्वारा तय किए गए समर्थन मूल्यों से भी नीचे चल रहे हैं क्योंकि सरकारी खरीद सभी स्थानों पर आरंभ नहीं हुई है।
एक अनुमान के अनुसार एक अप्रैल को सरकारी गोदामों में लगभग 140 लाख टन गेहूं का स्टाक था, जबकि खाद्य सुरक्षा के लिए बफर स्टाक के अनुसार एक अप्रैल को सरकारी गोदामों में केवल 50 लाख टन का स्टाक ही होना चाहिए।
देश के दो प्रमुख राज्यों-पंजाब व हरियाणा-में भारतीय खाद्य निगम के गोदाम गेहूं और चावल के स्टाक से भरे पड़े हैं और लगभग 20 लाख टन गेहूं का स्टाक खुले में रखा हुआ है।
सरकार जिम्मेदार
वास्तव में सरकारी गोदामों स्टाक के लिए सरकारी नीतियां ही दोषी हैं। दो वर्ष पूर्व सरकारी खरीद कम होने के कारण गत वर्ष सरकार ने व्यापारियों, आटा मिलों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर गेहूं की खरीद के लिए अनेक अंकुश लगा दिए और इसके साथ ही गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 1000 रुपए प्रति क्विंटल कर दिए।
इससे सरकारी खरीद में भारी वृद्वि हुई। रबी मार्केटिंग वर्ष 2008-09 (अप्रैल-मार्च) के दौरान सरकारी एजेंसियों ने लगभग 226 लाख टन गेहूं की खरीद की जो एक रिकार्ड है। यह पूर्व वर्ष की खरीद की तुलना में डबल थी। समर्थन मूल्य अधिक होने के कारण लगभग पूरे वर्ष मंडियों में गेहूं की आवक बनी रही और सरकारी गोदामों से गेहूं का उठाव अधिक नहीं हो पाया। हालांकि सरकार ने रोलर फ्लोर मिलों को गेहूं बेचने की घोषणा की लेकिन गलत नीतियों के कारण इस स्कीम के तहत उठाव सीमित ही रहा।
अब हालात यह कि सरकारी गोदाम लबालब भरे पड़े हैं और नई फसल आने लगी है। बाजार में धन की तंगी के कारण व्यापारी, स्टाकिस्ट और बहुराष्ट्रीय कम्पनियां इस वर्ष भी खरीद करने के मूड में नहीं लगती हैं क्योंकि चालू वर्ष के लिए सरकार ने समर्थन मूल्य बढ़ा कर 1080 रुपए कर दिया है। व्यापारियों का कहना है कि ये भाव अधिक हैं।
गेहूं के निर्यात पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। व्यापारियों का कहना है कि यदि सरकार प्रतिबंध समाप्त भी कर देती है तो भी निर्यात की संभावनाएं नहीं हैं क्योंकि विश्व बाजार में भाव भारत सरकार द्वारा तय समर्थन मूल्यों की तुलना में कम हैं। वास्तव में विश्व बाजार में जो भाव चल रहे हैं उन पर तटीय प्रदेशों में आयात किए जाने की संभावनाएं नजर आ रही हैं।
वास्तव में गेहूं की आवक बढ़ने पर आगामी दिनों में सरकारी एजेंसियों को गेहूं की खरीद करनी पड़ेगी और गोदामों में इसका स्टाक और बढ़ जाएगा और मजबूरन स्टाक को खुले में मौसम के सहारे छोड़ना पड़ेगा।
यदि सरकार गत वर्ष गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य 150 रुपए बढ़ाकर 1000 रुपए नहीं करती तो वर्तमान स्थिति से बचा जा सकता था। लोकसभा के आम चुनाव को देखते हुए अब सरकार ने भाव और बढ़ाकर 1080 रुपए प्रति िक्वंटन कर दिए हैं। इससे परेशानी और बढ़ जाएगी।
--राजेश शर्मा
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
3 बैठकबाजों का कहना है :
अच्छी जानकारी दी ... धन्यवाद।
बढ़िया जानकारी... हिन्दी ब्लॉगों में बहुत कम मिलती हैं ऐसी जानकारी..
उपयोगी, शोधपरक जानकारी... मध्य प्रदेश में गेहूं पुल्लिंग में प्रयोग होता है, यथा गेहूं बोया, गेहूं खाया आदि... शीर्षक में गेहूं स्टीलिंग में प्रयुक्त हुआ है.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)