इंटरनेट का अगला अध्याय सिर्फ अँग्रेज़ी में ही नहीं लिखा जाएगा। सिर्फ एशिया में ही इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या इस समय उत्तरी अमेरिकियों से दुगनी है और 2012 तक ये संख्या बढ़कर तिगुनी हो जाएगी। अभी भी गूगल पर सर्च करने वालों की संख्या में आधे से ज़्यादा व्यक्ति अमेरिका से बाहर के होते हैं। इंटरनेट के वैश्वीकरण ने ही बंगलूरू के एक इंजीनियर राम प्रकाश हनुमानथप्पा को कुछ नया कर गुजरने के लिए प्रेरित किया। वैसे तो वे बचपन से ही अँग्रेज़ी जानते हैं, लेकिन फिर भी अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों से उन्हें अपनी मातृ भाषा 'कन्नड़ में ही बात करना पसन्द है। लेकिन इंटरनेट पर कीबोर्ड द्वारा 'कन्नड़' लिपि में इस समय लिखना उन्हें काफी कठिन प्रतीत हुआ।
वो दिन अब लद चुके, जब आप सोचें कि आप अँग्रेज़ी में किसी वैबसाईट का निर्माण करते हैं और उम्मीद करते हैं कि पूरी दुनिया से लोग उस पर खिंचे चले आएँगे क्योंकि आप उन्हें कुछ ज़रूरी सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं
स्रोत- ज्यूपिटर रिसर्च
इसलिए 2006 में उन्होंने 'क्वैलपैड' नामक ऑनलाइन सर्विस का निर्माण किया। जिसके द्वारा 10 एशियाई भाषाओं में आसानी से टाइप किया जा सकता है। इसमें इस्तेमालकर्ता जिस भाषा में बोलता है, उसी ध्वनि को कीबोर्ड द्वारा रोमन शब्दों में उतार देता है और उसके बाद 'क्वैलपैड' का अपने आप अन्दाज़ा लगा लेने वाला इंजन उसे उसी ऐच्छिक लिपि में बदल देता है जिस भाषा का वो शब्द है। क्वैलपैड की इस खूबी के चलते बहुत से ब्लॉगर और लेखक इसकी तरफ आकर्षित हुए। इसी कारण मोबाइल फोन बनाने वाली कम्पनी नोकिया और गूगल का ध्यान भी इस तरफ गया। इसके बाद गूगल ने अपना ट्रांसलिट्रेशन टूल (लिप्यंतरण टूल) निकाला।राम प्रकाश के बताते हैं कि बाहर की तकनीकी कम्पनियों ने भारत की बहुभाषीक संस्कृति को समझने में भूल की है। यहाँ अँग्रेज़ी केवल 10% आबादी द्वारा ही बोली और समझी जाती है। यहाँ तक कि कॉलेज के पढ़े-लिखे लोग भी अपने दैनिक जीवन में अपनी मातृ भाषा में ही बात करना पसन्द करते हैं। आपको उनपर जबरन अँग्रेज़ी थोपने के बजाए उन्हें...उनकी ही भाषा में विचारों को व्यक्त करने का मौका देना होगा।
अभी इंटरनेट पर सॉफ्टवेयर और अन्य चीज़ें अंग्रेज़ी के अलावा किसी दूसरी भाषा में ज़्यादा उपलब्ध नहीं है। इसलिए अमेरिका की बड़ी-बड़ी तकनीकी कम्पनियाँ सालाना लाखों डॉलर खर्च कर दूसरी भाषाओं में वेबसाइटें वगैरा बनवा रही हैं ताकि क्वैलपैड जैसी स्थानीय कम्पनियाँ उनके मुनाफे में सेंध न लगा सकें।
2012 तक दुनिया में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या में भारत, अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर होने जा रहा है। भारतवासियों की खासियत है कि वो अपने मालिक से एक भाषा में बात करते हैं, अपनी पत्नि से दूसरी भाषा में और अपने माता-पिता से किसी तीसरी भाषा में।
ज्यूपिटर रिसर्च (एक अमेरिकी ऑनलाईन शोध कम्पनी) के एक वरिष्ठ ऐनालिस्ट ज़िया डैनियल विगडर के अनुसार "वो दिन अब लद चुके, जब आप सोचें कि आप अँग्रेज़ी में किसी वैबसाईट का निर्माण करते हैं और उम्मीद करते हैं कि पूरी दुनिया से लोग उस पर खिंचे चले आएँगे क्योंकि आप उन्हें कुछ ज़रूरी सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं"यहाँ मुश्किलें कहीं नहीं हैं और मेहनत का फल मिलना तय है। ज्यूपिटर रिसर्च के अनुसार 2012 तक दुनिया में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या में भारत, अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर होने जा रहा है। भारतवासियों की खासियत है कि वो अपने मालिक से एक भाषा में बात करते हैं, अपनी पत्नि से दूसरी भाषा में और अपने माता-पिता से किसी तीसरी भाषा में।
भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों के लिए याहू और गूगल ने पिछले दो सालों में एक दर्जन से अधिक नई सुविधाओं को शुरू किया है, जिनके द्वारा वे सर्च से लेकर ब्लॉगिंग तक और चैट से लेकर भाषा सीखने तक के हर काम को अपनी मातृ भाषा में कर सकें। माईक्रोसॉफ्ट ने अपने विण्डोज़ लाइव ऑनलाइन बण्डल को सात भारतीय भाषाओं में बनाया है। फेसबुक ने सैंकड़ों स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं की मदद से अपनी सोशल नैटवर्किंग की साइट का हिन्दी और दूसरी भारतीय भाषाओं में अनुवाद शुरू किया है, और विकिपीडिया पर आज की तारीख में भारतीय भाषाओं के पृष्ठों की संख्या कोरियन भाषा के पृष्ठों से अधिक है।
गूगल की सर्च करने की सुविधा को चीन में स्पर्धा के चलते पिछड़ना पड़ा। इस कारण भारत में स्थानीय भाषा में सुविधाओं को उपलब्ध कराना ही उसकी प्राथमिकता बन गई। भारत में गूगल का मुख्य उद्देश्य है यहाँ के सुस्त चाल से बढ़ते हुए कम्प्यूटर बाज़ार को तेज़ गति प्रदान करना।
"यहाँ 22 भाषाओं का होना अपने आप में जटिलता पैदा करता है। यहाँ आप सभी भाषाओं के एक ही लाठी या एक ही भाषा से नहीं हांक सकते अर्थात् आप एक भाषा में बोल के सभी को खुश नहीं कर सकते।"
भरत राम प्रसाद, प्रमुख, शोध एवं विकास, गूगल
भारत में गूगल के शोध एवं विकास प्रमुख भरत राम प्रसाद के अनुसार भारत एक सूक्ष्म ब्रह्माण्ड की तरह है। यहाँ 22 भाषाओं का होना अपने आप में जटिलता पैदा करता है। यहाँ आप सभी भाषाओं के एक ही लाठी या एक ही भाषा से नहीं हांक सकते अर्थात् आप एक भाषा में बोल के सभी को खुश नहीं कर सकते।वेबसाइटों को क्षेत्रीय रंगों में रंगने वाली लॉवेल, मैसेच्चुसेट्स की एक परामर्शी कारोबारी कम्पनी कॉमन सेंस एडवाइजरी के मुख्य शोधकर्ता सडोनाल्ड ए॰ डीपाल्मा के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियाँ हर वर्ष हज़ारों लाखों डॉलर इस बात पर खर्च कर रही हैं कि वे अपनी वेबसाइट का किस-किस भाषा में अनुवाद करें ताकि उनकी पहुँच ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक हो सके।
उनके अनुसार ई-कॉमर्स और ऑनलाइन विज्ञापन बाज़ार के क्षेत्र में भारत, रूस, ब्राज़ील और दक्षिणी कोरिया के मुकाबले पिछड़ा हुआ है।
गूगल के राम मानते हैं कि कम्पनी द्वारा भारत में दी गई स्थानीय भाषाओं की सुविधा के जरिए अभी वो अर्थपूर्ण आमदनी नहीं कर पा रहे हैं।
डी पाल्मा के अनुसार "लेकिन ये समझदारी से किया गया निवेश है। संभवत: वो भारत के विज्ञापन बाज़ार का निर्माण कर रहे हैं।"
बहुत चर्चित पुस्तक "विनिंग इन द इंडियन मार्केट" ("Winning In The Indian Market") की लेखिका और मार्किटिंग परामर्शदाता रमा बीजापुरकर के अनुसार भारत के बढ़ते ऑनलाईन बाज़ार से जुड़ने के लिए सिर्फ अँग्रेज़ी ही प्रयाप्त नहीं है, ये सबक पश्चिमी देशों के टीवी कार्यक्रम बनाने वाले तथा उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माता पहले ही जान चुके हैं।
वो आगे बताती हैं-"अगर आप करोड़ों लोगों या लाखों लोगों तक पहुँचना चाहते हैं और उनसे जुड़ना चाहते हैं तो आपके पास अलग-अलग भाषाओं के इस्तेमाल के अलावा और कोई चारा नहीं है"।
भारतीय बाज़ारों पर शोध करने वाली एक कम्पनी जक्स्ट कंसल्ट (JuxtConsult) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत के लगभग पाँच करोड़ इंटरनेट इस्तेमाल कर्ताओं का करीब तीन चौथाई हिस्सा स्थानीय भाषाओं में ही पढ़ना पसन्द करता है। JuxtConsult के मुख्य प्रबन्धक संजय तिवारी के अनुसार बहुत से लोगों को जो चाहिए होता है, नहीं मिल पाता है। स्थानीय भाषाओं में सामग्री की यहाँ बहुत कमी है"
कम्प्यूटर को स्थानीय भाषाओं के अनुकूल बनाने के लिए भारतीय शैक्षिक संस्थानों, स्थानीय व्यपारियों और एकल सॉफ़्टवेयर डेवलपरों द्वारा किए जा रहे प्रयासों को माईक्रोसॉफ़्ट की पहल पर बनाया गया 'भाषा' नामक प्रोजैक्ट एक साथ संयोजित करता है। 'भाषा' की वैबसाइट (जिसके हज़ारों पंजीकृत सदस्य हैं) के अनुसार भारतीय संस्कृति को जटिल करने में वहाँ की अलग-अलग भाषाओं का बड़ा योगदान है।
माईक्रोसॉफ्ट के प्रोग्राम मैनेजर प्रदीप परिप्पल के अनुसार माइक्रोसॉफ्ट के पास भारतीय भाषाओं में अपनी सेवाएँ देने के लिए सरकारी संस्थाओं और कम्पनियों की माँग लगातार बढ़ रही है। क्योंकि इनमें से बहुत सी कम्पनियाँ अपनी सेवाओं को भारत के ग्रामीण हिस्सों और छोटे-छोटे शहरों तथा कस्बों तक पहुँचाना चाहती हैं।
भाषा प्रोजैक्ट की वैबसाइट Bhashaindia.com प्रयोगकर्ताओं को तकनीकी शब्दों के लिए उन्हीं के द्वारा संपादित स्थानीय भाषा के शब्दों तथा सोशल नैटवर्किंग साइटों के लिए अजीबोगरीब शब्दों जैसे "nudge" और "wink" के इस्तेमाल की सुविधा प्रदान करती है।
पिछली दिसम्बर को याहू और जागरण (भारत का एक बड़ा दैनिक हिन्दी अखबार) ने मिलकर jagran.com के नाम से हिन्दी (42 करोड़ भारतवासियों की भाषा) में एक पोर्टल बनाया।
याहू (जो अपनी ई-मेल और अन्य सुविधाएँ कई भारतीय भाषाओं में प्रदान करती है) के अनुसार jagran.com ने उनकी उम्मीदों से बढ़कर अपनी तरफ ट्रैफिक को खींचा है।
भारत में याहू के मुख्य प्रबन्धक गोपाल कृष्ण सलाह देते हैं "भारत जैसे देशों में स्थानीय भाषाओं के रंग में खुद को ढाल लेना ही सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है"
अभी हाल ही में गूगल ने अपनी एग्रीगेशन साइटस को हिन्दी तथा तीन मुख्य दक्षिण भारतीय भाषाओं में पेश किया है और साथ ही उसने अपने ट्राँसलिट्रेशन टूल (लिप्यंतरण टूल) को पाँच भारतीय भाषाओं में शुरू किया है। उसका सर्च इंजन नौ भारतीय भाषाओं में काम करता है और खोज के नतीजों को अँग्रेज़ी से हिन्दी और हिन्दी से वापिस अँग्रेज़ी में बदल सकता है।
गूगल के इंजीनियर आवाज़ को पहचान सकने, अनुवाद कर सकने, एक लिपि को दूसरी लिपि में बदलने और लिखे हुए को पढ़ सकने योग्य औज़ार के निर्माण में लगे हैं ताकि अन्य विकासशील देशों में भी उनका प्रयोग हो सके।
क्वैलपैड के राम प्रकाश के अनुसार जब उन्हें गूगल में कार्यरत अपने मित्रों के द्वारा पता चला कि उन्होंने क्वैलपैड की तुलना अपने ट्राँसलिट्रेशन वाले टूल से की है तो वो बहुत प्रेरित हुए। उनका विश्वास है कि जैसे-जैसे भारतीयों में अँग्रेज़ी से मुकाबला करने की होड़ जगेगी, वैसे-वैसे इंटरनेट पर स्थानीय भाषाओं का प्रयोग बढ़ता चला जाएगा"
राम प्रकाश कहते हैं कि सिर्फ अँग्रेज़ी से ही काम नहीं चलने वाला। वो 'क्वैलपैड' का नारा (English is not enough) दोहराते हुए कहते हैं कि "ये ठीक है कि लोग आगे बढ़ना चाहते हैं और इसी कारण अँग्रेज़ी सीखना चाहते हैं लेकिन सिर्फ अँग्रेज़ी ही उनकी सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती"।
--राजीव तनेजा
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15 बैठकबाजों का कहना है :
राजीव जी स्वागत है आपका......बहुत बढ़िया आलेख
मैंने इस संदर्भ से मिलते जुलते हालात पर कुछ पोस्ट अपने ब्लाग आम्रपाली(amrapaali.blogspot.com) पर लिखे थे जिसका शीर्षक था-अंग्रेजी कैसे मरेगी। कई लोगों को ये अटपटा लगा था और कईयों ने इसे मृगमारीचिका बताया था। मेरा मानना है कि बाजार अपना माल बेचने के लिए हर उस भाषा तक जाएगा जिसमें मुनाफा होता हो, और बाजार का मकसद किसी एक ही भाषा या संस्कृति को फैलाना नहीं है बल्कि अपने हिसाब से मुनाफा के लिए अपने आपको ढ़ालना भी है। और इस तीब्र आर्थिक विकास के युग में (कृपया मौजूदा मंदी की तरफ न जाए)बाजार तेजी से बढ़ रहा है लेकिन उतनी तेजी से अंग्रेजी नहीं बढ़ रही है। तो ऐसी स्थिति में बाजार और कंप्यूटर भी दूसरी भाषाओं की तरफ रुख करेंगे-और मेरा यकीन है कि हिंदी को इससे बहुत फायदा होगा। कुछ साल पहले तक ही गूगल सर्च पर हिंदी में टाइप करने पर ज्यादा सामग्री नहीं मिल पाती थी, लेकिन अब आप गूगल पर कुछ भी हिंदी में टाइप कीजिए-ढ़ेरों पन्ने खुल जाएंगे। ये इस बात का सबूत है कि हिंदी और दूसरी राष्ट्रीय भाषाएं अपना जगह बनाती जा रही है। और ऐसा वक्त आएगा जब लोग जानकारी के लिए अंग्रेजी के साईट्स पर बहुत कम निर्भर रह जाएंगे। दूसरी बात ये कि भविष्य में ज्यादा हिंट्स आने से हिंदी साईट्स ज्यादा विज्ञापन भी कमाएंगे और अपने आप को अपडेट भी करेंगे। वे लोगों के ज्यादा नजदीक पहुंचने की हर मुमकिन कोशिश भी करेंगे।
सभी भारतवासियों को सकारात्मक दृष्टिकोण देता है यह आलेख, वो दिन दूर नहीं जब हिन्दी भाषा का वर्चस्व विश्व के कोने कोने तक फैल जायेगा. इस आलेख का हिन्दी रूपांतरण करने के लिए राजीव जी का आभार.
बैठक पर स्वागत है राजीव जी....अच्छा अनुवाद किया है.....हम इससे जुड़े और भी मुद्दों पर बात करते रहेंगे....
निखिल
अच्छा आलेख..
स्वागत है राजीव जी..
हिन्दी को अभी दूर तलक जाना है...
अरे वाह राजीव भाई,स्वागतम!
बेहतरीन आलेख.धन्यवाद
आलोक सिंह "साहिल"
बेहतरीन
पावस,
आपको देखकर खुशी हुई...बैठक में स्वागत है...
अब बैठक से कहीं जाना मत...
See
www.सैमसंग.com
www.भारतीयरेल.com
www.अमरउजाला.com
हिन्दी की भावी संभावनाए जानकर बहुत अच्छा लगा
अगर ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नही जब हिन्दी को national language (राष्ट्र भाषा) का दर्जा मिल जाएगा, मैने कुछ साल पहले आपने college और कुछ समय पहले एक अखबार मे पढा था कि हिन्दी को अभी national language (राष्ट्र भाषा) का दर्जा नही मिला
सुमित भारद्वाज
ha ha ha
बधाई राजीव जी, एक अच्छा अनुवाद करके एक लेख का रुप देने के लिए।
यह बहुत ज़रूरी है कि लोग अपनी मातृभाषा की महत्ता को भी समझें। हम भारतीयों की यह कमी है कि हम अपनी चीजों की कीमत तब समझते हैं जब कोई बाहरी उसे बढ़िया बताता है। एक कहावत है ना कि
घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद
इसी को दूसरे तरीके से कहते हैं-
घर की खाँड़ खरहरी लागे, बाहर का गुड़ मीठा
मतलब हिन्दी भाषी अपनी भाषा जो कि खाँड़ भी ज्यादा स्वादिष्ट है, उसे छोड़कर अंग्रेजी नामक एक साधारण गुड़ के पीछे भाग रहे हैं।
राजीव तनेजा जी यह आलेख प्रकाशित कर कम से कम कुछ लोगों की आँखें तो खोली ही हैं।
साधुवाद
उपयोगी और उपयोगी
बहुउपयोगी एक ऐतिहासिक
दस्तावेज
वेज
नॉनवेज (अंग्रेजी) से
वेज (हिन्दी)
बनाया, खूब पसंद आया।
जुटे रहो
प्रसन्न रहो।
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