अपनी नज़्म पर पाठकों की प्रतिक्रियाओं को पढ़ते |
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उजले कुरते में निदा थोड़ा थके-से लग रहे थे...मेरे पास निदा से पूछने को हिंद-युग्म के पाठकों के कई सवाल थे....मुझे लगा, नींद से अभी-अभी जागे हैं....शायद ज़्यादा बात न करें...ख़ैर, नाज़िम जी ने शैलेश और हमारा परिचय उनसे करवाया और हिंद-युग्म के बारे में भी बताया...निदा का रिएक्शन वैसा ही था, जैसे किसी नींद से अभी-अभी उठे बच्चे को आप पढ़ने के लिए कह दें......फिर, उन्हें हमने हिंद-युग्म पर छपी उनकी हालिया नज़्म दिखाई और ये भी कि ढेरों पाठकों ने उनकी रचना पर तफ़्सील से टिप्पणी भी की है, तो वे बड़े ध्यान से सब टिप्पणियां पढने लगे...
निखिल, शैलेश और निदा फ़ाज़ली |
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चाय की चुस्की ने जब उन्हें थोड़ी राहत दी तो हमने अपना रिकॉर्डर उनके सामने कर दिया और अपने आधे घंटे को भुनाने में लग गये....सवालों की पूरी लिस्ट हम लेकर आये थे और ये भी डर था कि कहीं उन्हें ऊब न होने लगे.....मग़र, निदा जब बोलने पर आये तो न हमें आधे घंटे का होश रहा तो न उन्हें अपनी फ्लाइट का.....
पूरी बातचीत में एक बात उन्होंने बार-बार कही कि एक बार कागज़ पर रचना उतर आयी तो फिर वो पाठक की हो गयी...लेखक का उस पर अधिकार खत्म....कई सारे मुद्दों पर बातचीत हुई....उनकी आत्मकथा पर, उनके लेखन पर, देश-दुनिया पर और न जाने क्या-क्या....
पाठकों के सवालों का जवाब देते निदा |
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उन्होंने कहा कि निदा के भीतर का शायर मुंबई की चकाचौंध में भी अपनी मिट्टी, अपने पेड़ और अपनी पगडंडी को भी जीता रहा है....वो आम आदमी का शायर है....उसने वही शब्द रचे जो आम ज़िंदगी में सबने जिये हैं....
फिल्मों में लिखे जा रहे गीतों पर निदा ने कहा कि उन्हें फिल्मों के लिए लिखने से ज़्यादा स्वतंत्र होकर लिखने में मज़ा आता है.....फिल्म में लिखना सिर्फ आपकी मर्ज़ी पर नहीं होता....आपको औरों की “डिमांड” पर शब्दों की कांट-छांट करनी पड़ती है, जो किसी भी रचनाकार को नहीं सुहाता....
निदा फ़ाज़ली |
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दसवीं में पढ़ता था जब एक आशुभाषण प्रतियोगिता (मतलब दिये गये विषय पर बिना सोचने का वक़्त मिले बोलना) में मुझे बोलना था…शीर्षक था “मेरी माँ”...मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहा जाये....तभी मेरे टीचर जल्दी से आए और दो-चार लाइनें कागज़ पर थमाकर चले गये...खोल कर पढ़ा तो लिखा था-
"बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी मां,
याद आती है चौका-बासन, चिमटा-फुँकनी जैसी मां"
ख़ैर, प्रतियोगिता खत्म हुई, मैं जीत भी गया....वो शेर दिमाग पर चढ़ गया...पता चला कि बहुत बड़े शायर निदा फ़ाज़ली का शेर है...मैंने सोचा कि ये जो भी हैं, मेरे सामने होते तो मैं उन्हें चूम ही लेता....निदा जब सामने थे तो दिमाग में स्कूल के दिन घूमने लगे.... आज भी माँ पर जितना लिखा गया है, मुझे चिमटा-फुँकनी वाली मां से बेहतर कुछ नहीं लगता.....आज जब कवि सम्मेलनों और मुशायरों में कवियों और शायरों की जगह चुटकुला सुनाने वालों ने लेनी शुरू कर दी है, निदा जैसे शायरों का मंच पर होना अब भी कविता की वाचिक परंपरा की आखिरी धरोहर जैसा लगता है...
निदा को ध्यान से सुनते हिन्द-युग्म के शैलेश, निखिल और प्रेमचंद सहजवाला |
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सच कहूं तो निदा ने हमें ज्यादा बोलने का मौका ही नहीं दिया...उनके पास बोलने को बहुत कुछ था....कोई जब शिद्दत से बोले तो सुनने का भी खूब मन करता है....मैं भी बड़ी इमानदारी से उन्हें सुनता रहा ताकि उनका प्रवाह न टूटे....वो बोलते भी बहुत खनक के साथ हैं....आवाज़ का भारीपन बात में और वज़न डाल रहा था...इतने क़रीब से सुनने का मौका फिर न जाने कब मिले....आपके लिए उनकी आवाज़ भी कैद कर के लाये हैं...शैलेश तकनीकी रूप से उस रिकॉर्डिंग को दुरुस्त कर आप सबको भी सुनाएंगे...जब आप सुनेंगे तो आपको अहसास होगा कि जब एक शायर नींद से जगकर थोड़ी-बहुत उबासी और थकान में भी बोलता है तो भी कितना “ओरिजिनल” बोलता है.....एक बात और, जहां-जहां वो ख़ामोश हुए, वहां-वहां भी उन्हें सुनता रहा क्योंकि आवाज़ उनके चेहरे का परदा है, ऐसा निदा कहते रहे हैं....
---निखिल आनंद गिरि
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23 बैठकबाजों का कहना है :
जब मथुरा मथुरा थी, काशी काशी तब तो बड़ी प्रासंगिकता थी| ऐसी प्रासंगिकता की सोमनाथ टूटने से भी नही ढही| लेकिन एक आडवानी सदियों की टूटन पर भारी पड़ गया|
एक एक लफ्ज़ सही कहा निदा जी ने....ये अनुभव वाकई बढ़िया रहा निखिल....बधाई बहुत बहुत
आवाज़ उनके चेहरे का परदा है...
उन्हें सुनने को बेताब हूँ
जब भी कोई महान आदमी बोलता है तो राम, रामायण और आडवाणी का जिक्र जरूर आता है. सब कुछ ठीक है इस देश में, बस यही तीन ग़लत हैं. निदा भी ऐसे ही एक महान आदमी लगते हैं.
सहमत हूँ सुरेश जी| महान बनने के लिए कुछ न कुछ special तो करना ही पड़ता है|
hahahaha.......
kad ka bada ho jana kitna majedaar anubhav hota hai na,aap bejhijhak apne dil ki baat ko alfaajon mein piro dete hain aur agla bina toka taaki sunta/padhta hai....
ALOK SINGH "SAHIL"
बहुत बहुत ख़राब बात है यह की आपने हमारा सवाल माँगा था और उसका जवाब नही लाये बस पत्रकारों की तरह से ही जो आपको पूछना था वो ही आपने जान किया. अगर ऐसा था तो आपने सवाल क्यों माँगा था. किर्पया जवाब दे.
कैसी बात करते हैं इरशाद भाई...आप पूरा लेख ठीक से पढिए और थोड़ा सब्र रखिए..मैंने अपनी तरफ से एक भी सवाल नहीं किया...आप लोगों के नाम के साथ सवाल किया है...जल्द ही ऑडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध करायेंगे....
निखिल
सियासत और साहित्य के लिए धर्म के मायने अलग अलग होते है............
कितना तो सही कहा है इन्होने.....
फ़िर क्यूं कुछ टिप्पणियों से शायर के लिए सियासत की बू मुझे महसूस हो रही है...???
मै क्षमा चाहता हूं, शैलेश जी, आपने सवाल किया भी और निदा जी ने उसका जवाब भी दिया। आपके इस प्रयास के लिए मेरी तरफ से बहुत-बहुत बधाई। गलतफहमी के लिए पुनः क्षमस्चयः
तजुर्बे बड़े काम आते हैं और हर तरह जिसने जिया हो, वह तो निदा ही है!
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
irshad bhai,bahut achha laga ki aapne itni sakriyata aur ruchi dikhayi.isme kshama mangne jaisi koi bat hi nahin hai.keep it up...
with wishes
ALOK SINGH "SAHIL"
राम जी को हाई- जैक करने और करवाने वाले पहले कुरान की भी बात करे ,बहुत दुःख हो रहा है यह देख कर की हिन्दयुग्म को राजनीति का मंच बनाने की निरर्थक कोशिश हो रही है ,इस तरह की tippadiyon से हिन्दयुग्म को बचना ही होगा अत्यन्त आवश्यक है ,अगर इसे आगे उज्जवल भविष्य देना है |
nida ji aisi gair jaroori tippniyon se bache to behtar hoga ,hum aapki bahut ijjat karte hain ,aapki jo kuch bhi anmol kratiyaan mili padhi ya suni ,magar ram ko koi kahi nahi le jaa sakta ,yah prabuddh varg ki
bhaavnaaon ke saath majaak hai ,jo hume achchaa nahi laga .
Bahut achcha laga sab padhna.Aabhaar.
कुछ नहीं होगा नीलम जी.. खामाख्वाह परेशान हो रही हैं..हिन्दयुग्म पर राजनीति नहीं होगी..उस पर लोग विचार जरूर रख सकते हैं..
हर इंसान अलग सोचता है.. और कोई भी गलत नहीं होता... किसी के लिये मैं सही हो सकता हूँ और किसी के लिये मैं ही गलत...
आपको जो उसका अच्छा लगे उसे अपना लें...
मेरा निवेदन है कि अगर किसी को बुरा लगता है तो इस ओर ध्यान न दें... निदा के कईं शे’र हैं.. उन्हें ही पढ़ें.. उन्हें ही सुनें..
घर से मस्जिद है बहुत दूर....
tapan bhai bilkul sahi kah rahe hain neelam ji.aap nishchint rahein.vaise bhi hamara to uddeshy hi hai sarthak bahas ko bal dena.
yah to khushi ki bat hai ki hamari koshish safal ho rahi hai.so,dnt worry
ALOK SINGH "SAHIL"
एक बात जो अरसे से मुझे परेशान करती है वह निदा फाजली और इन जैसे गुनीजन के दिमाग केवल रथयात्रा, आडवाडी और इन्हीं मकडजालों के बीच क्यों घूमते रहते हैं । वह यह क्यों नहीं देख पाते कि आस पास के मुल्कों में हिंदुस्तान ही क्यों सेक्यूलर है । वह यह क्यों नहीं देख पाते कि एक ढांचे के एवज में इस देश ने क्या क्या खोया है । अगर रथयात्राओं से ही चुनाव जीते जाते तो पुरी के महंत तो इस हिंदु बहुल देश में कितनी ही बार क्या क्या बन गए होते । उम्मीद करता हूं कि हमारे यह गुनीजन मकडजालों से बाहर आएं और उन 99.99 प्रतिशत लोगों को देखें जिनकी वजह से यह देश सनातन समय से सेक्यूलर है और रहेगा।
पुरसुकून लगा निदा साहब से मिलना बरास्ते हिन्दीयुग्म.
क्या कह्ते क्या कह जाते हैं,पता नहीं चलता है.
शब्दों के माहिर कवि जाने क्या कहना चाहते हैं
तुलसीराम केसंग अडवाणी, क्या तुक समझ ना आया
राम-मंदिर पर राजनीति का खेल समझ में आया
निदा भी जो द्वि-अर्थी बोलें,क्या होगा संस्कृति का
रसखानों-रहीमों-बशीरों सब पर हमें नाज था.
निदा जी से बातचीत बेहतरीन है. निखिल और शैलेश भाई शुक्रिया .....जहाँ तक उनकी बात पर चर्चा की बात है उन्होंने आधे घंटे में कई बातें कहीं किसी एक बात को पकड़ने से अच्छा होगा जो बातें ग्राह्य हैं उनपर ध्यान दिया जाए पावस
atul ji kuch bahut acche acche aur mahaan lekhak rajnaitik hone ka prayaas karte hain lekin yeh prayaas lekhan ki vidha ka abhilanghan nahin kar paata... isliye main toh humesha har lekhak ke rajnaitik drishtikon ko sun ke nikaal deta hoon... aur bahut se mahaan lekhak (naam lena uchit ho toh agli post mein de dunga) aur bahut se tathakathit buddhijivi log secularism aur communism ka bhed nahin samjh sake hain ISLIYE PAHLI BHI KUCH POSTS MEIN KAHAAN GAYAA HAI ki jo graahaya hai wo hum le len... jo nahin use chhod den.. taaki hindyugm ka prayaas bhramit na ho... isi manch ke kaaran to hum nida fazli ke ek aur pahlu se avgat huye....
निखिल निदा के बारे में पढ़ कर बहोत अच्छा लगा इस संकेत को शायद नीलम महसूस नहीं कर पायी यह तुम्हारी सूफियाना शुरुवात है खुदा करे तुम्हारी कोशिश रंग लाये और आने वाले कल में तुम हो तुम्हारे एहसास हों और निदा जैसी बातें हों निखिल अवध में मुस्लिम्स में बच्चा की पैदाइश पर एक गीत गाया जाता है `अल्लाह मियां अब के से दीज्यो नन्दलाल' पूरी दुनिया में इस गीत की आवाज़ सुनना चाहता हूँ
बज्मी नकवी
Nidaji ke parichay ka vistaar bahut bada hai. jitna jaana , pada usse jyada aur jaane ko baqi hai, Thanks to nikhil nad tean for presenting hin
Devi nangrani
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