मनुष्य की सबसे बडी ताकत है भावनओं को महसूस करना, अपनी भी और दूसरों की भी, और फिर उन्हें अभिव्यक्त कर सकने की क्षमता। प्रत्येक व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकारों से अपने मनोभावों को व्यक्त करता है और इसके लिये वह जिन माध्यमों का प्रयोग करता है उनमें कविता भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है। कविता की ताकत सहज सम्प्रेषण की क्षमता में निहित है, यह मन की बात मन तक पहुँचाने का सहज साधन तो है ही दूसरों के मनोभावों को समझने और समझाने का सौन्दर्यपूर्ण तरीका भी है।
साहित्य की सबसे पुरातन विधा है कविता| कविता ही पहली ज्ञात हिंदी साहित्यिक रचना है जो छठवीं-सातवीं शताब्दी के दरमियान लिखी गयी होगी| तब से आज आधुनिक समय तक मानवीय भावनाओं के भावुक चित्रण का सशक्त माध्यम है कविता| मनुष्य के दुःख-सुख, क्षोभ, आनंद, हर्ष, विद्रोह, स्नेह, भक्ति और प्रेम इत्यादि भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए कविता से सुन्दर और कोई दूसरा माध्यम नहीं है|
कविता अपनी विकास यात्रा, मनुष्य की विकास यात्रा के साथ तय करते हुए और काई पड़ावों से गुजरते हुए अपने वर्तमान स्वरुप तक पहुँची है| इस यात्रा और यात्रा के दौरान आने वाले पड़ावों, मंजिलों का गहरा प्रभाव कविता के बदलते हुए स्वरुप पर देखने को मिलता है| कविता हमेशा अपने समय से घुल मिल कर रही है, कभी वर्तमान से कटाने की चेष्ठ कविता के द्वारा नहीं हुई| मनुष्य जरूर कविता से दूर हटता चला गया परन्तु कविता हमेशा मनुष्य के साथ हर पल रही है| वर्तमान से कट कर कभी भी कविता नहीं रही, हमेशा वर्तमान दौर में आइना बनकर समाज का सच्चा चहरा दिखाया है इसने|
एक प्रश्न उठता है कि आखिर कविता है क्या? क्य यह शब्दों के समुच्चय मात्र है जो अलंकारों, बिंबों और रूपकों से सजा हुआ है? और क्या यह एक कल्पनिक लोक का निर्माण करती है? रामधारी सिंह दिनकर जी ने कभी कहा था “कविता वह सुरंग है जिससे गुजरकर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व मे प्रवेश करता है।“
कल्पना के बगैर कविता नही हो सकती मगर यह एक कोरी कल्पना से बहुत अधिक है जिसमें यथार्थ भी है, प्रेम भी, आनंद है और छटपटाहट भी, मुक्ति है और विद्रोह भी, शांति है और त्याग भी, भक्ति है और वैराग्य भी।
कविता कवि की कल्पना से रचा संसार है जो वह यथार्थ की मिट्टी से रचता है और यथार्थ की कठोर सच्चाई के साथ बहुत कुछ ऐसा मिलाता है जिससे मनुष्य को जीने का साहस भी मिलता है और जीवन के सौन्दर्य की अनुभूति भी होती है। कविता फूलों की महकती बगिया में उड़ती रंग-बिरंगी तितलियों के समान मनुष्य की कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति भी है और जीवन का स्पंदन भी। कविता का अपना संसार है जो बिंबों, ध्वनियों और छायाओं से बनता है। प्रत्येक कविता में परत-दर-परत अर्थ के बहुआयामी दृष्य बनते हैं, बिलकुल एक तिलस्म के समान जो अंदर ही अंदर खुलते जाते हैं लेकिन तिलस्म के विपरित आदमी उसमे भटकता नहीं है, बल्की खुद को एक नये स्वरूप मे खोज लेता है ।
विचार, दर्शन, संवेदनाएँ और भावनाएँ कविता की आत्मा होते हैं। प्रेमानुभूति की तीव्रता हो, प्रकृति वर्णन हो, ईश उपासना हो अथवा कोई मानवीय भावना की अभिव्यक्ति, कविता तभी सार्थक हो पाती है जब वह किसी विचार और संवेदना के धरातल पर रची गयी हो, क्योंकि कविता मात्र मनोरंजन नहीं है। यह मानव मात्र की शक्ति भी है और टूटते विश्वास और नैतिक साहस की कमी से जूझते मनुष्य के लिये एक संभावना भी। यह आम आदमी के हाथ का साहस बनती है किसी अत्यचार के विरुद्ध। व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा होने का साहस भी कविता से ही जन्मता है। रघुवीर सहाय जी की कविता का आम आदमी कहता है:
“कुछ होगा अगर मैं बोलूँगा
न टूटे न टूटे तिलस्म सत्ता का
मेरे अन्दर एक कायर टूटेगा”
कविता शब्दों से बनती है लेकिन कविता को बनाने वाले शब्द मात्र किताबों में मिलने वाले शब्द नहीं होते वे फसलों की तरह खेतों में भी लहलहाते भी मिल सकते हैं, तो नदियों की तरह् कलकल करते बहते हुए भी। मनुष्य के अनुभवों से उत्पन्न भी हो सकते हैं तो हवाओं में खुशबू की तरह महकते हुए भी। शब्दों को खोजने के लिये कवि को अपने दायरे से बाहर आना होता है और खो जाना पड़ता है।
केदारनाथ सिंह जी की कविता एक उदाहरण देती है:
“चुप रहने से कोई फायदा नहीं
मैंने दोस्तों से कहा और दौड़ा
सीधे खेतों की ओर
कि शब्द कहीं पक न गये हों
यह दोपहर का समय था
और शब्द पौधों की जड़ों में सो रहे थे
खुशबू यहीं से आ रही थी– मैंने कहा
यहीं–यहीं – शब्द यहीं हो सकता है
जड़ों में”
कविता वर्त्तमान में होकर सभी युगों का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता रखती है इसीलिए हर युग में, हर तरह की कविता पढ़ी जाती रही है, लिखी जाती रही है| इसकी विषय-वस्तु चाहे कालानुसार बदलती रही हो परन्तु भाषा और शैली वर्त्तमान समय का प्रतिनिधित्व करते हैं, यही वजह है कि इस विधा से लोगों का जुड़ाव हर युग में रहा है| कविता का जन से जुड़ा होना बहुत जरूरी है और रचना अगर भावनाओं को तीव्रता से प्रस्तुत न कर पाये और पाठक उससे अपने आप को जोड़ ना पाए तो कविता सफल नहीं हो सकती, कविता से पाठक भाषा के माध्यम से ही जुड़ेगा|
हम कविता के साथ एक आत्मीय जुड़ाव महसूस करते हैं| कविता एक प्रकार का पुल बनती है हमारी कल्पना और हमारे यथार्थ के बीच और इस पुल से गुजरता आदमी कल्पना और यथार्थ दोनों को एक साथ भोगता है| कहीं-कहीं कविता यथार्थवादी कल्पना होती है तो कहीं कहीं काल्पनिक यथार्थ| हमारा जीवन केवल कल्पना अथवा केवल यथार्थ पर नहीं व्यतीत हो सकता, कल्पना और यथार्थ के बीच संतुलन आवश्यक होता है, कविता यही संतुलन बनती है|
कविता एक समंदर है जिसमें मानवीय भावनाओं की विभिन्न धाराएँ आकर समाहित हो जाती है और एक समग्र प्रभाव बनता है जिसमें पढ़ने वाला पाठक स्वयं को आनंदित महसूस करता है| जब एक कवि कोई कविता करता है तब वह उसकी अपनी होती है, लेकिन जैसे ही वह पढ़ने सुनने वालों तक पहुँचती है वह सार्वभौमिक हो जाती है और कविता में प्रस्तुत भावनाएँ, दर्शन, विचार, संवेदनाएँ पाठक को आनंदित, उद्देलित और भावविभोर कर देती है| किसी भी कविता की ताकत उसमें प्रस्तुत यही संवेदनाएँ, विचार, दर्शन और भावनाएँ ही होते हैं, इनके माध्यम से ही पाठक स्वयं को कवि के साथ एक भावनात्मक धरातल पर खड़ा पाता है| कोई भी कविता जिसमें कोई दर्शन न हो, भावनाएँ न हों वह कविता आत्मा विहीन ही होगी|
--प्रदीप वर्मा
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बैठकबाज का कहना है :
अति सुन्दर.
प्रदीप जी. बहुत सुन्दर आलेख और व्याख्या.
आभार सहित,
अवध लाल
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