दो साल पहले आशीष कुमार 'अंशु' पहली बार मिले थे तो कवि थे...हम एक ही मंच पर कविता सुनाने के लिए जुटे थे...धीरे-धीरे मेलजोल बढ़ा तो पता चला कि आशीष 'सोपान' पत्रिका के लिए नौकरी करते हैं और देश भर में घूम-घूम कर सामाजिक मुद्दों पर कलम चलाते हैं...हिंदयुग्म के तेवर इन्हें पसंद हैं...बैठक के लिए आशीष ने पहला लेख भेजा है...दिल्ली से मीलों दूर रायपुर के पत्थर खदान मजदूरों का ज़िक्र है...ब्लॉग पर इस खबर को जगह नहीं मिली तो और कहीं मिलने की उम्मीद भी नहीं...आइए रायपुर के मजदूरों का ग़म बांटें...
रायखेड़ा के बालमुकुन्द वर्मा के घर इस साल 19 अगस्त की तारीख बड़ी मनहूसियत लेकर आई। वे नहीं भूलते उस दिन को जब दो लोग इनके घर आए, यह खबर लेकर कि उनका 22 वर्षीय लड़का दीपक वर्मा अस्पताल में भर्ती है। उसे गंभीर चोट लगी है। वे दो लोग बालमुकुन्द को अपने साथ लेकर अस्पताल जाना चाहते थे। बालमुकुन्द को पहले गड़बड़ की आशंका हुई और उसने साथ जाने से इंकार कर दिया। लेकिन बेटे के मोह में वे अपने को रोक भी नहीं पाए।
वे दो लोगों के साथ खरोड़ा उच्च विद्यालय के पास स्थित अस्पताल में चले गए। वहां अस्पताल में उन्हें उनका बेटा तो मिला लेकिन अस्पताल की बेड पर लेटा हुआ नहीं बल्कि अर्थी पर लेटा हुआ। उसकी मौत पहले ही हो चुकी थी। बालमुकुन्द के अनुसार- दीपक को अस्पताल में भर्ती कराने की बात झूठी साबित हुई। दीपक की मां पिछले दस-बारह सालों से लकवा ग्रस्त है। उनके लिए अपने जवान बेटे की मौत किसी वज्रपात से कम नहीं था। इस घटना के बाद उनकी हालत विक्षिप्त सी हो गई है।
यह कहानी है रायपुर के धाड़िशवा विधानसभा क्षेत्र के तील्दा प्रखंड की। दीपक यहीं के एक पत्थर मील मालिक विट्ठल भाई राजू पटेल के यहां काम करता था। उसकी मौत कार्यस्थल पर हुई। लेकिन जिस प्रकार पिता बालमुकुन्द वर्मा को बेटे के दाह संस्कार के लिए दस हजार रुपए देकर पूरे मामले को निपटाने की कोशिश की गई, उससे कई सवाल खड़े होते हैं।
पत्थर खदानों के लिए प्रसिद्ध रायपुर के तील्दा प्रखंड की यह इकलौती घटना नहीं है। वहां के चीचौली रायखेड़ा, मढ़ही, सोनतरा, गैतरा, मूरा, टांड़ा, ताराशिव आदि गांवों में अब दुर्घटना मानो आम सी बात है। इस क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 1500 मजदूरों को श्रम कानून, मजदूरों के बीमा, भविष्यनिधि जैसे सामाजिक सुरक्षा इंतजामों के संबंध में कोई जानकारी ही नहीं है। पत्थर खदानों में होने वाली दुर्घटनाओं को उन्होंने अन्य आम घटनाओं की तरह अपनाना सीख लिया है। इसे वे अपनी नियति मान चुके हैं। इसलिए वे अपनों की मौत पर, या खुद खाई चोट पर कोई सवाल खड़ा नही करते। वरना नितिन खाकरिया के खदान में काम करते हुए एक दुर्घटना में अपने आंखों की पचास फीसदी से अधिक रोशनी गंवा चुके लल्ला राम सागरवंशी 400 रुपए लेकर संतोष नहीं करते।
ऊपर से सागरवंशी खुश होकर बताते हैं- `आंखों से कम दिखने के बावजूद मुझे मालिक ने काम से नहीं निकाला।´ सागरवंशी को यह चोट खाकरिया के पत्थर खदान में काम करते हुए जून 2009 में लगी थी। एक महीना मजबूरीवश उन्हें बिस्तर पर रहना पड़ा चूंकि वे उठने की हालत में ही नहीं थे। बेड की मियाद वैसे और भी लंबी थी लेकिन पेट की भूख ने उन्हें जुलाई से ही काम पर लगा दिया।
अख्तर हुसैन का इस दुनिया में मां सीमा बेगम के सिवा कोई नहीं था। पिता की मृत्यु पहले हो चुकी थी। इसी 18 अप्रैल को नवीन शर्मा के पत्थर खदान में पत्थर तोड़ने की मशीन में फंस कर सीमा बेगम की मौत हो गई। उनकी हडिडयों का मशीन में फंसकर चूरा हो गया था। अख्तर के अनुसार जब उनकी अम्मी मशीन में पत्थर डाल रही थी, उस वक्त वहां कोई नहीं था। उनकी साड़ी मशीन में फंसी और वह मशीन के अंदर चली गई। इन दिनों अख्तर अपने फूफा शेख मुम्ताज के साथ रहता है। शेख मुम्ताज के अनुसार सीमा बेगम की मौत के बाद नवीन शर्मा उनके परिवार से बात करने को भी तैयार नहीं है।
तील्दा प्रखंड में लगभग 50 क्रेशर मालिकों की खदाने हैं। अनिल रुपरैला इनके नेता माने जाते हैं। जब उनसे मजदूरों के साथ लगातार हो रही दुर्घटनाओं और उनके सामाजिक सुरक्षा को लेकर बातचीत हुई तो उन्होंने माना कि लगातार हो रही दुर्घटनाएं चिंताजनक है। इसलिए सभी क्रेशर मालिक मजदूरों की सुरक्षा को लेकर चिन्तित है। यदि साल दो साल में एक घटना हो तो उसे अपवाद माना जा सकता है। लेकिन एक के बाद एक हो रही दुर्घटनाओं को रोकने का उपाय हमें मिलकर करना ही होगा। रुपरैला ने विश्वास दिलाया कि अगले छह महीने के अंदर तील्दा क्षेत्र में काम कर रहे सभी मजदूरों का बीमा कराया जाएगा। साथ ही, भविष्य में किसी भी दुर्घटना पर क्रेशर मालिकों की तरफ से भी पीड़ित को अथवा उसके परिवार को सम्मानजनक सहायता राशि दी जाएगी।
रुपरैला की बातों पर रायपुर पत्थर-खदान मजदूर संघ के सदस्य अविश्वास प्रकट करते हैं। उनका मानना है- रुपरैला की बातें राजनीतिक बयानबाजी से ज्यादा कुछ भी नहीं। इस तरह की बातें करना और उसे समय के साथ भूल जाना उनकी आदत रही है। संघ के अध्यक्ष नरोत्तम शर्मा कहते हैं- `यहां पत्थर खदान मालिकों ने श्रम कानूनों का मखौल बनाकर रखा है। यहां पत्थर मजदूरों से अधिक काम लेकर कम पगार दी जाती है। पगार का भी कहीं आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है।´
आशीष कुमार 'अंशु'
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5 बैठकबाजों का कहना है :
अंशु जी सबसे पहले बैठक पर आपके पहले आलेख के लिए आपको मुबारकबाद.
इसके बाद यह कहना चाहूँगा की सिर्फ पठार तोड़ने वाले मजदूरों की ही नहीं हर तरह के मजदूरों की ज़िन्दगी परेशानियो के पहाड़ से भरी हुई है. आज आपका आलेख पढ़कर केदार जी कविता याद आ गई.
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ !
हाथी सा बलवान,
जहाजी हाथों वालाऔर हुआ !
सूरज-सा इंसान,
तरेरी आँखोंवाला और हुआ !!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ!
माता रही विचारः
अँधेरा हरनेवाला और हुआ !
दादा रहे निहारः
सबेरा करनेवाला और हुआ !!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ !
जनता रही पुकारः
सलामत लानेवाला और हुआ !
सुन ले री सरकार!
कयामत ढानेवाला और हुआ !!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ !
( कविता संग्रह, "कहें केदार खरी खरी" से )
दिल को द्रवित करने वाला सच आलेख पढा , तन -मन से कठोर मेहनत करने वाले मजदूरों का २१ वीं सदी में भी अमानवीय व्यवहार और शोषण हो रहा हैं .अधर्म के ठेकेदारों को सदबुद्धि ईश दे .
किसी की भी आँखें नम कर देने वाला है ये वृताँत अंशु जी को इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाने के लिये बधाई।फराज़ जी की कविता भी अच्छी लगी आभार्
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