कलकत्ता पहुँचने के बाद से बस यही सुन रहे थे हम। सुबह-सुबह 3:30 बजे हम भुवनेश्वर से कोलकाता पहुँचे। हमारा उद्देश्य था गंगासागर जाने का। एक ऐसा धाम जिसके लिये कहा जाता है कि चाहे आप किसी और धाम पर कितनी ही बार चले जायें, आपको उतना पुण्य नहीं मिल पाता जितना एक बार गंगासागर जाकर मिल जाता है। कोलकाता से करीबन 100 किमी दूर वो जगह जहाँ से हमें स्टीमर पकड़ना था। हम इस बात से अंजान थे कि हमें कितने तरह के यातायात के साधनों का प्रयोग करना पड़ेगा। टैक्सी वाला हमें समुद्र किनारे ले आया।
हम यह सोच कर यात्रा के लिये निकले थे कि बस समुद्र पहुँचकर ही यात्रा समाप्त हो जायेगी। पर ऐसा नहीं था। टैक्सी वाले ने आने-जाने के 1600 रू लिये। 200 किमी के इतने रूपये बहुत ज्यादा लग रहे थे। किनारे पर पहुँच कर हमें पता चला कि हमें स्टीमर लेना होगा। सुबह सुबह 5:30 बजे हम वहाँ थे। उस जगह से हमें एक टापू साफ़ दिखाई दे रहा था।
तट से टापू का दृश्य:
टापू का नाम था- सागर। 6.50 रू प्रति यात्री की टिकट थी और करीबन 20 मिनट में हम उस टापू पर थे। क्या हम अपने गंतव्य पर पहुँच गये?
नहीं, अभी तो 30 किमी का सफ़र और तय करना बाकि था। हमने वहाँ से वैन करी। आपको बस, क्वालिस, कार सब कुछ मिल सकता है। 45 मिनट से एक घंटे के बीच में आप फिर एक जगह पहुँच जायेंगे।
और यह है कपिल मुनि का मंदिर।
यहाँ पवनचक्की से पैदा करी जाती है बिजली:
यहाँ से आपको 5 मिनट और पैदल चलना होगा। फिर हम उस जगह पहुँच गये जहाँ पहुँचने का हम पिछले 12 घंटे से इंतज़ार कर रहे थे। गंगा का सागर में विलय!!!
गंगासागर के विहंगम का दृश्य:
दूर से दिखाई देते केकड़े:
नज़दीक से देखने पर कुछ ऐसे लगते है:
मकरसक्रांति पर यहाँ स्नान करने के लिये लाखों की संख्या में लोग आते हैं। कहते हैं कि जिस स्टीमर बैठ कर हम 20 मिनट में "सागर" टापू पर आ गये थे, उस स्टीमर में बैठने के लिये 7-8 घंटे तक का इंतज़ार करना पड़ता है!!!
हिमालय से निकली गंगा, बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है और उस जगह को गंगासागर का नाम दे दिया जाता है। पर कपिल मुनि का मंदिर? हमें समझ नहीं आया। फिर पुजारी जी से इसकी कथा सुनी। अयोध्या के राजा सागर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। इंद्र को लगा कि यदि यह यज्ञ सफल हो गया तो उसका महत्व कम हो जायेगा। इसलिये उसने कपिल मुनि के तपस्या के स्थान के निकट घोड़े को बाँध दिया। राजा सागर के 60,000 बच्चे थे। वे सभी अश्व की तलाश में उस स्थान तक पहुँच गये। उन्होंने सोचा कि मुनि ने ही घोड़े को बाँध लिया है। इसलिये वे उन पर आरोप लगाने लगे। कपिल मुनि को इससे क्रोध आ गया और जैसे ही उन्होंने तपस्या से आँखें खोली, सारे भाई भस्म हो गये। इसलिये इस स्थान पर कपिल मुनि का मंदिर है और उन्हें पूजा जाता है।
(बीच में कपिल मुनि, दाईं ओर राजा सागर और बाईं ओर माँ गंगा)
इन भाइयों के चचेरे भाई थे भगीरथ। भगीरथ ने अपने भाइयों को जीवित करने के लिये ब्रह्मा जी की तपस्या करी। ब्रह्मा जी ने कहा कि यह तभी सम्भव है जब गंगा जी पृथ्वी पर जायें। उनका वेग बहुत अधिक था, इसलिये शंकर जी की सहायता ली। उन्होंने अपनी जटाओं से गंगा के वेग को धीमा किया और गंगा जी धरती पर आईं। वही गंगा बाद में सागर से जा मिली और बन गया गंगासागर।
सारे तीरथ बार-बार, गंगासागर एक बार...
--तपन शर्मा
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 बैठकबाजों का कहना है :
गंगासागर में मुझे तो केंकड़े नहीं दिखे....बाक़ी आपने तीरथ करा ही दिया....धन्यवाद
गंगा सागर के बारे में घर बैठे
इतनी विस्तृत जानकारी देने का बहुत बहुत शुक्रिया, नंदन कानन की सैर के बाद गंगासागर अब इसके बाद और कहाँ घुमाएंगे ?
आपने तो घर बैठे ही यात्रा करा दी......आभार
बहुत अच्छी प्रस्तुति तपन भैया
मै काफी समय से इसका इंतजार कर रहा था
बहुत अच्छी प्रस्तुति तपन भैया
मै काफी समय से इसका इंतजार कर रहा था
बहुत दिनो बाद बैठक पाना आना हुआ, वास्तव में तपन जी के लेख और चित्रों ने एक बार गंगासागर जाने की मन में इच्छा पैदा कर ही दी।
Very very thankyou tapan sharma ji jo aapne itni saari jaankari de di hai jisse koi bhai anjan person aaram se gangasagar pahunch sakta hai
आपका बहुत बहुत धन्यवाद् ये अच्छी बाते हमारे साथ शेयर करने के लिए, ये पोस्ट पड़के बहुत ख़ुशी हुयी धन्यवाद
में २ बार गंगासागर यात्रा कर चुका हुं आज आप का लेख पढ कर फिर से यादे ताजा हो गयी,,,,बहुत बहुत धन्यवाद ,,,अती सुन्दर लेख
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)