Sunday, May 10, 2009

मां के साए में...

सुबह-सुबह आंख खुली तो पता चला कि आज मदर्स डे है.....मतलब, बाज़ार का कैलेंडर ये भी तय करने लगा कि हम अपनी-अपनी मांओं को कब याद करें.....घर पर फोन कर लिया....मां दही में से मट्ठा निकाल रही थी....मदर्स डे की तामझाम से एकदम अनजान.....मन ही नहीं हुआ कि हैप्पी मदर्स डे जैसा कुछ बोलूं.....मां ही बोलती रही.....दुनिया भर की फिक्र.....ठीक से खाना, गर्मी से बचना और न जाने क्या-क्या.....यही सब सुनते-सुनते जाने कब बड़े हो गए....मां वही की वही रही....कभा बूढ़ी नहीं हुई.....बचपन से आज तक हसरत ही रही कि देखूं, मां उठती कब है......आज तक देख नहीं पाया....जब भी आंखे खुलीं, मां एकदम मुस्तैद.....घर का आधा काम सूरज निकलने से पहले ही निपट चुका होता था...

अब साल में एकाध बार ही मां से मुलाकात हो पाती है.....पता नहीं हम कौन-सा काम किए जा रहे हैं.....कोफ्त होती है, क्या करें.......नोएडा, ग़ाज़ियाबाद का इलाका भी ऐसा है कि सबकी ज़ुबान पर मां रहती है, हमेशा....तेरी मां की....मां की ये.....मां की वो......ओफ्फ.....
आज मन होता है कि मां को ऐसे याद कर रहे किसी सज्जन को पकड़ूं, जादू की झप्पी देकर बोलूं.....हैप्पी मदर्स डे.....आपको ऐसा महसूस नहीं होता क्या....

निखिल आनंद गिरि

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5 बैठकबाजों का कहना है :

राजकुमार ग्वालानी का कहना है कि -

मां तूने दिया हमको जन्म
तेरा हम पर अहसान है
आज तेरे ही करम से
हमारा दुनिया में नाम है
हर बेटा तुझे आज
करता सलाम है

Udan Tashtari का कहना है कि -

मातृ दिवस पर समस्त मातृ-शक्तियों को नमन एवं हार्दिक शुभकामनाऐं.

Nikhil का कहना है कि -

आपको भी....

आलोक साहिल का कहना है कि -

बिलकुल ऐसा ही महसूस होता है भैया...
आपने अन्दर के दर्द को कुरेद कर हरा-तजा कर दिया
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

आपने अपना दर्द लिखा.यानि स्टीम निकाली-
टिपण्णियां पालीं! कभी उन मां-बाप की कुर्सी में बैठकर लिखिये जो औलाद के दूर जाने पर अपने अरमानो,अहसासों को बच्चों और दुनिया से छुपाए-गम को गहराइयों में छुपा-बच्चों के आने या फोन आनए पर केवल मुस्करा कर अपने दर्द मात्र इस्लिये छुपा लेते हैं कि बच्चे दुखी ना हों
आपका अपना
एक बैठक्बाज

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