Wednesday, April 15, 2009

तपन का चीन विरोधी अभियान - क्या आप साथ हैं ?



हमारा भारत देश आसपास से कईं देशों से घिरा हुआ है। अफ़्गानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, चीन, बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका। अब ज़रा इन नामों को पढेंगे तो पायेंगे कि इनमें से दोस्त बनाने लायक कोई नहीं। या यूँ कहें कि हर ओर दुश्मन ही दुश्मन। कहीं तालिबान, कहीं उल्फ़ा, हूजी, कहीं माओवादी और तस्कर, कहीं लिट्टे और इनमें सबसे बड़ा है ड्रैगन। जी हाँ, चीन। अभी हाल ही में चीन ने हमारे साथ एक मज़ाक किया। बल्कि उसे मज़ाक नहीं धृष्टता कहनी चाहिये।

हुआ यूँ कि हमारी प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा पाटिल अरूणाचल प्रदेश के दौरे पर थीं। यह जगजाहिर है कि चीन अरूणाचल की कुछ हिस्से को अपना मानता आया है। यूँ तो वो सिक्किम के भी कुछ हिस्से को खुद का बताता फिरता है। कश्मीर का कुछ हिस्सा तो उसका है ही। वो हर बार दहाड़ता है और भारत सरकार हर बार छोटा सा मुँह बनाकर चुप हो जाती है। चीन के साथ न जाने कितनी ही द्विपक्षीय वार्ता हुईं पर सब विफल। दमदार तरीके से अपनी बात कहने से पहले ही हम चीन की बात स्वीकार कर लेते हैं। बांग्लादेश जैसा छोटा सा देश भी हमें आँख दिखाता है तो चीन तो बड़ा ड्रैगन है। प्रतिभा पाटिल जी का अरूणाचल के तवांग जिले में जाना हुआ। यहाँ इनके पैर पड़े वहाँ चीन ने अपनी नाराजगी व्यक्त कर दी। गौरतलब है कि तवांग तिब्बत और चीन से जुड़ा हुआ इलाका है। और चीन उसको अपना हिस्सा मानता है। प्रतिभा पाटिल से पहले मनमोहन सिंह अरूणाचल के दौरे पर गये पर तवांग नहीं गये। पिछले नौ सालों में किसी प्रधानमंत्री का यह पहला दौरा था। तवांग न जाने से चीन को ये गलत संदेश भी गया कि जैसे भारत ने उसकी बात मान ली हो और तवांग को चीन को सौंप दिया हो।

आखिर क्यों जवाब नहीं देता भारत चीन को? क्या भारत १९६२ की हार से अभी तक डरा हुआ है? भारत जानता है कि चीन सीधे तौर पर न सही पर पाकिस्तान को नई तकनीक देकर भारत के खिलाफ ही इस्तेमाल कर रहा है। चीन भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है ये भारत की सरकार को समझ में नहीं आ रही है क्या? सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश को अपना बनाने की कोशिश ये करता रहता है। हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिये इन पूर्वोत्तर राज्यों के निवासियों का जो चीन में जाने की बजाय भारत में रहना पसंद करते हैं। यदि वे चीन में मिलना चाहते तो आज वहाँ भी कश्मीर जैसे हालात हो चुके होते। ये भी सभी जानते हैं कि पूर्वोत्तर में बांग्लादेशी घुसपैठ अब आम हो गई है। वहाँ कोई रोकटोक नहीं रह गई है। उल्फ़ा में अधिकतर बांग्लादेशी हैं और हूजी जैसे संगठन भी इन राज्यों को नुकसान पहुँचा रहे हैं। लेकिन चुनाव और वोट बैंक के चलते बांग्लादेशियों को हटाने के बारे में सोचा तक नहीं जाता।

लेकिन हम बात कर रहे थे चीन की। न हमसे बांग्लादेश सम्भलते बन रहा है और न ही चीन को मुँहतोड़ जवाब दे पा रहे हैं। हर तीसरे दिन वही राग अलापना अब इसकी आदत बन गया है। पूर्वोत्तर राज्यों के साथ सौतेला व्यवहार करने के बावजूद वे हमारे साथ हैं। आप ने सही पढ़ा। हम सौतेला व्यवहार ही करते हैं। मणिपुर, मिज़ोरम आदि जगह से आये लोगों को हम "चिंकी" कह कर बुलाते हैं। उनका मजाक उड़ाते हैं। आपसी भाईचारा बनाना बहुत जरुरी है। असम में ब्लास्ट होते हैं, पाँच मिनट तक सुर्खियों में रहते हैं और फिर खत्म हो जाते हैं। वहीं अगर बैंग्लोर, मुम्बई, दिल्ली जैसे शहरों में १ सिलेंडर भी फटे तो पूरे दिन चैनल पर उसी सिलेंडर का पोस्टमार्टम करते देखा जा सकता है। आखिर क्यों करते हैं हम इनके साथ सौतेला व्यवहार? क्या हम इन राज्यों को अपना नहीं समझते? सरकारी एजेंडे में सिर्फ कश्मीर है पर अरूणाचल, असम और सिक्किम नहीं? अभी सम्भलना होगा हमें। अभी जवाब देना होगा चीन को। अभी भगाना होगा ६२ का भूत। वरना उत्तर-पूर्व से अरूणाचल जायेगा चीन में, सिक्किम मिल जायेगा तिब्बत में और असम बन जायेगा कश्मीर। जागना होगा हमें। जागना होगा सरकार को। भारत को टूटने से बचाना होगा।

तपन शर्मा

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5 बैठकबाजों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

चीन के साथ के सम्बन्ध, वार्ता से सुलझ सकते हैं | वह पाकिस्तान जैसा नहीं है |

अपने इर्द - गिर्द के देशों से रिश्ते और बेहतर करके भारत एक नेता के रूप में आगे जा सकता है | " सार्क" इसका एक माध्यम है |

आज के बिगडे माहौल में भारत के पास पूरी संभावना है |

पूर्वोत्तर प्रान्तों की अनदेखी सच बात है |

अवनीश तिवारी

Divya Narmada का कहना है कि -

सत्य यही है हम दब्बू हैं...

अपना सही नहीं कह पाते।

साथ दूसरों के बह जाते।

अन्यायों को हंस सह जाते।

और समझते हम खब्बू हैं...

निज हित की अनदेखी करते।

गैरों के वादों पर मरते।

बेटे बनते बाप हमारे-

व्यर्थ समझते हम अब्बू हैं...

सरहद भूल सियासत करते।

पुरा-पड़ोसी फसलें चरते।

हुए देश-हित 'सलिल' उपेक्षित-

समझ न पाए सच कब्बू हैं...

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AMIT ARUN SAHU का कहना है कि -

तपन जी आपके विचार बहुत अच्छे लगे . आपने एकदम सही मुद्दा उठाया है कि सिर्फ पाकिस्तान को दुश्मन समझने कि बजाय हमने चीन पर भी उतना ही ध्यान देना चाहिए .

अभिषेक ताम्रकार "अभि" का कहना है कि -

सलिल जी की गद्य से पूरी तरह सहमत नही हूँ , पर तपन का प्रश्न अपनी जगह सही है जहाँ तक मैं सोचता हूँ वह यह है की किसी भी देश में अगर कोई और देश अपनी दखलंदाजी करता है जैसे तपन जी ने चीन के सम्बन्ध में कहा तो उस देश की सरकार इन मुद्दों पर पर पूरी एकाग्रता से गौर करती है क्यूकी यही मुद्दे उसे राजनैतिक रूप से प्रबल बनाते है | इसीलिए ये कहना की हम या सरकार दब्बू है ये उचित प्रतीत नही होता | सलिल जी के सामने और बैठक में ससम्मान प्रस्तुत |

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

मुद्दा केवल चीन के मित्र या शत्रु होने का नहीं है..
हम जिस तरह से पूर्वोत्तर राज्यों से व्यवहार करते हैं, वो चिंता का विषय है...

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