Thursday, April 02, 2009

आधी रात, ट्रेन में टीटी, राजकिशोर का धैर्य....

दरभंगा से चल कर मुजफ्फरपुर, बनारस, इलाहाबाद और अलीगढ़ होते हुए नई दिल्ली जानेवाली स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस के स्लीपर क्लास में एस 3 डिब्बे (कोच नंबर 90309) का बर्थ नंबर 12 (टिकट नंबर 97361975) मेरे लिए आरक्षित था। इस रेलगाड़ी में मैं मुजफ्फरपुर से चढ़ा था। मुजफ्फरपुर में विख्यात समाजवादी चिंतक तथा श्रमिक नेता सच्चिदानंद सिन्हा के अस्सी वर्ष का हो जाने पर एक दिन का घरेलू आयोजन था। आयोजन में सिर्फ सच्चिदानंद सिन्हा की जीवन यात्रा, रचनावली और वैचारिक दृष्टि की ही चर्चा नहीं हुई, बल्कि आधुनिक सभ्यता के संकट के विभिन्न पहलुओं पर सुनने लायक व्याख्यान भी हुए। बाहर से आनेवाले लोगों के स्वागत तथा आवभगत का बहुत उत्तम प्रबंध मनोरमा सिन्हा और प्रभाकर सिन्हा ने किया था। हम सभी अत्यन्त प्रसन्न मुद्रा में अपने-अपने घर लौट रहे थे। मानो किसी तपोवन से लौट रहे हों। इस समय देश में सैकड़ों विद्वान और चिंतक हैं। लेकिन उनमें से कौन ऐसे तपोवन में रहता है, जिसका मासिक खर्च मुश्किल से हजार रुपए होगा?
वापसी की इस कृतज्ञ और प्रसन्न यात्रा के स्वाद को खट्टा कर दिया एक ऐसे टीटी ने, जिसे कायदे से जेल में होना चाहिए था। उससे मेरी मुठभेड़ हुई 29-30 मार्च की रात बारह बज कर पंद्रह मिनट पर। गाजीपुर और बनारस के बीच। इस युवा टीटी के दर्शन होने के पहले मेरी यात्रा बहुत अच्छे ढंग से चल रही थी। कई यात्रियों का सहयोग भाव देख कर मैं चकित हो गया। उनके मधुर व्यवहार से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता था कि अभी भी भारत के सबसे भले लोग गांवों में रहते हैं। कुछ सहयोग मैंने भी किया था। मेरा बर्थ सबसे नीचे था। वह मैंने एक सज्जन को दे दिया, जो शायद किडनी के मरीज थे। उनके नाम आठ नंबर का बर्थ था। उस पर जा कर मैं लेट गया। एक टीटी लगभग आठ बजे उस डिब्बे के टिकटों की जांच करके जा चुका था।

आधी रात को इस दूसरे टीटी ने हमारे डिब्बे में प्रवेश किया। सबसे पहले उसने एक व्यक्ति से 300 रुपए गैरकानूनी ढंग से वसूल किए। कुछ और लोगों का शोषण किया। फिर वह सात नंबर बर्थ किसके नाम पर है, यह खोजने लगा। वह बर्थ मेरे बर्थ के नीचे था। उस पर एक युवा दंपति लेटा हुआ था। उसका टिकट देख कर टीटी ने उनके अपने बर्थ पर भेज दिया। इससे सात नंबर बर्थ खाली हो गया। इस बर्थ को उसने एक व्यक्ति को बेच दिया। कितने में, यह मैं बता नहीं सकता, क्योंकि उन दोनों की बातचीत मैं सुन नहीं पाया था।

अब वह मेरे पास आया। उसने मेरा टिकट देखने की मांग की। अगर वह पूरे डिब्बे के यात्रियों के टिकट चेक कर रहा होता, तो अपना टिकट दिखाने में मुझे कोई आपत्ति नहीं थी। पर मैं लक्ष्य कर चुका था कि वह उन्हीं बर्थों के पास जा कर टिकट देख रहा था, जहां से उसे कुछ नकद मिलने की उम्मीद की। इस कारण से उस पर मेरे मन में कुछ गुस्सा भी था। उसके साथ मेरा जो संवाद हुआ, उसका एक हिस्सा इस प्रकार है :
वह -- टिकट दिखाइए।
मैं - अपना टिकट दिखाने के पहले मैं आपका आई कार्ड देखना चाहूंगा।
वह - मेरा कोट नहीं दिखाई नहीं दे रहा है?
मैं - ऐसे कोट बाजार में बहुत मिल जाएंगे।
वह - यह चार्ट भी आप नहीं देख पा रहे हैं?
मैं -- यह तो कंप्यूटर का खेल है। आप मेरे घर चलें, मैं ऐसे कई चार्ट बना कर उनका प्रिंट आपको दे दूंगा।
वह -- बकवास छोड़िए। आप अपना टिकट दिखाइए।
मैं -- मैं अपना टिकट तभी दिखाऊंगा जब आप अपना आई कार्ड दिखा देंगे। मुझे यह यकीन कैसे हो कि आप ही टीटी हैं? वह -- सरकार हमें आई कार्ड नहीं देती।
मैं -- ऐसा नहीं हो सकता। सरकार अपने हर सार्वजनिक अधिकारी को आई कार्ड जारी करती है।
वह - टिकट देखना मेरा काम है। आप सरकारी काम में बाधा डाल रहे हैं।
मैं -- जी नहीं, आपका काम बर्थ बेचना, रिश्वत लेना और यात्रियों का शोषण करना है। यह मैं अपनी आंखों से देख चुका हूं।
वह -- तो ठीक है, जो उखा..ते बने, उखा..ड़ लेना। पहले हिन्दुस्तान को सुधार लो, फिर मुझसे बात करना।
मैं -- सर, आप भी इसी हिन्दुस्तान के पार्ट हैं। मान लीजिए, मैं आप ही से शुरुआत करना चाहता हूं।


बातचीत जारी रही।

वह -- बाबूजी, आप टिकट दिखाइए।
मैं -- सर, मैं आपको टिकट नहीं दिखाऊंगा।
वह - आप बुजुर्ग हैं, इसलिए मैं सीधे से कह रहा हूं कि आप अपना टिकट दिखाइए।
मैं -- मैं बच्चा होता, तब भी यही करता।
वह -- आप टिकट दिखाइए।
मैं -- मैं आपको नहीं दिखाऊंगा। आपने अभी-अभी सात नंबर बर्थ बेचा है।
वह - यह मेरा बर्थ है। इसे मैं बेच सकता हूं।
मैं -- जी नहीं, आप नहीं बेच सकते। आप इसे अलॉट कर सकते हैं। लेकिन रसीद काटने के बाद। आपने अलॉट नहीं किया है, बेचा है।
वह -- तो आपकी क्यों ..ट रही है? आप अपना टिकट दिखाइए।
मैं -- यह टिकट देखने का समय नहीं है। सवा बारह बज रहे हैं। आप मेरी नींद में खलल डाल रहे हैं।
वह -- आप दिल्ली तक नहीं पहुंच पाएंगे।
मैं -- मुझे इसकी परवाह नहीं है। आपका आई कार्ड देखे बिना मैं आपको टिकट नहीं दिखा सकता।
वह -- मुझे दूसरे तरीके भी आते हैं। आप टिकट दिखा दीजिए।
मैं -- आप मुझे खिड़की से फेंक देंगे. तब भी मैं आपको टिकट नहीं दिखाऊंगा। मुझे आप पर विश्वास नहीं है। क्या पता आप मेरा टिकट फाड़ कर फेंक दें और बाद में मुझे बेटिकट साबित कर मुझे अगले स्टेशन पर उतार दें। फिर मेरा बर्थ किसी और को बेच दें।


अब उसे यकीन हो गया कि वह मुझे सिर्फ धमकी दे कर बाध्य नहीं कर सकता। उसने एक फोन निकाला और किसी से अनुरोध किया -- एक आदमी सरकारी काम में दखल दे रहा है। दो पुलिसवाले तुरंत भेजिए। मैंने कहा -- हां, मैं पुलिस को टिकट दिखा सकता हूं। कुछेक मिनट बाद दो पुलिसवाले प्रगट हुए। टीटी ने उन्हें मेरा केस बताया। मैंने कहा -- ये सज्जन अपना आई कार्ड नहीं दिखा रहे हैं। जब तक इनका परिचय इस्टैब्लिश नहीं हो जाता, मैं इन्हें किस आधार पर टिकट दिखाऊं? एक पुलिसवाले ने मुलायम आवाज में कहा -- आप कैसी बात कर रहे हैं? टीटी ही हैं। मैं -- तो आप पहले इनकी तलाशी लीजिए। इन्होंने मेरे सामने कई आदमियों से रिश्वत ली है। पुलिसवाला -- क्यों बात बढ़ा रहे हैं? आप टिकट दिखा दीजिए, सारा मामला खतम हो जाएगा। मैंने उसकी ओर टिकट बढ़ा दिया। उसने टिकट हाथ में ले कर जोर से पढ़ा -- एस तीन, बर्थ नंबर बारह। चलिए, आप अपने बर्थ पर चलिए। मैंने अपना सामान उतारा और अपने बर्थ की ओर जाने लगा। पुलिसवाला मेरे पीछे-पीछे। बारह नंबर पर वही मरीज था। उसने बताया -- मैं पेशेट हूं। पुलिसवाले ने उस पर दया की। मुझे अपना पहलेवाला बर्थ मिल गया। टीटी और पुलिसवाले चले गए। उनके जाते ही, एक मुसाफिर ने सात नंबर सीट पर लगी हुई एक पट्टी दिखाई, जिस पर लिखा हुआ था -- विकलांग के लिए सुरक्षित।

कुछ देर बाद बनारस स्टेशन आ गया। मैंने सोचा, ट्रेन में जगह-जगह अंकित सुझावों के अनुसार गार्ड के पास जा कर शिकायत लिखवाऊं। पर उसका डिब्बा बहुत दूर था। वहां तक जाना संभव नहीं था। स्टेशन मास्टर के पास जाता, तब तक रेल छूट जाती। इलाहाबाद आया, तब भी कोई ऐसा रास्ता नहीं दिखाई दिया, जिससे मैं अपनी शिकायत दर्ज करवा सकूं। उधर टीटी से विवाद के दौरान दस-पंद्रह आदमी जमा हो गए थे, पर कोई कुछ नहीं बोला। अगले दिन सबेरे, वही व्यक्ति जिसने विकलांग वाला बर्थ दिखाया था, मुझे शाबाशी देने लगा। उसका नाम-पता और टिकट नंबर ( 42517369) मैंने नोट कर लिया। मैंने सोचा, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच कर अपनी शिकायत दर्ज करवा दूंगा। स्टेशन आने पर मैं अजमेरी गेट साइड की ओर चला। सीढ़ी पर रेलवे का इश्तहार देखा, जिसमें 'शिकायत' के सामने दोनों ओर तीर का निशान था। नीचे आने पर लगभग पंद्रह मिनट तक वह जगह खोजता रहा, जहां शिकायत दर्ज कराई जा सके। सफलता नहीं मिली।

घर की ओर जाते हुए मैं यही सोच रहा था कि रेल मंत्रालय को सफलतापूर्वक चलाने के लिए लालू प्रसाद को बहुत बधाई मिली है, पर लगता है कि वे रेल के आंतरिक भ्रष्टाचार को दूर नहीं कर पाए हैं। नहीं तो वह सब कैसे हो पाता जो मेरे डिब्बे में हुआ? वह और उस जैसे सैकड़ों टीटी आज जेल में होते।

फिर याद आया -- हमारे डिब्बे के दोनों शौचालयों में न पानी था, न बिजली थी। मन में यह सवाल उठा -- अगर मैं उस टीटी को पानी और बिजली की कमी दूर कराने के लिए अनुरोध करता, तो उसकी क्या प्रतिक्रिया क्या होती? डिब्बे के शौचालयों में पानी और रोशनी हो तथा टीटी बेईमान और बदतमीज न हों, यह सुनिश्चित करने के लिए मैं या मेरे सहयात्री क्या कर सकते थे? शायद रेल मंत्री अपने चुनाव भाषणों में इस पर प्रकाश डालें।

राजकिशोर

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7 बैठकबाजों का कहना है :

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

यह तो रोज़ की और हर ट्रेन की कहानी है। मैं बहुत हतप्रभ हूँ कि आप अब जान पाये हैं। हो सकता है कि आप ट्रेन से बहुत कम ही आते-आते हों, और यदि जाते हों तो शायद AC3, AC2 में, वह भी राजधानी में।

इरशाद अली का कहना है कि -

bloging karnae ka maksad safal hota hae yaha ..main nae itni acchi post abhi tak nahim pari....yah ek sandesh bhi dati hae aur sheek bhi.

Nikhil का कहना है कि -

शैलेश जी,
आपने वही कह दिया जो मैं कहना चाहता था....ये तो दाल-रोटी की तरह बेहद आम बातें हैं...मुझे लगता है कि ट्रेन में हमारा-आपका सफर बहुत ही ज़्यादा होता है, इसीलिए राजकिशोर जी का लेख आम बात लगी.....
दरअसल, सिर्फ टीटी को कोसने से काम नहीं चलने वाला......बिहार में (चूंकि मैं बाक़ी प्रदेशों के बारे में नहीं जानता) जनता भी इस "टीटी कला" का खूब फायदा उठाती है.....मसलन, सिर्फ 50 या 100 का टिकट लीजिए, स्लीपर या एसी में घुस जाइए और टीटी से "सेटिंग" कर लीजिए....तो दोष सिर्फ टीटी महोदय को देने से नहीं काम चलेगा...हमारे जैसे लोगों ने उन्हें पाला पोसा है, पहले उनकी ख़बर लीजिए राजकिशोर जी...

Gaurav Pandey का कहना है कि -

rightly said, we have to put and stand up against these corrupt people. corruption is prevalent in other countries as well but they do not take bribe to do their work. In our country, one can even get away with murder by bribing.

Divya Narmada का कहना है कि -

राजकिशोर जी आपको बहुत-बहुत धन्यवाद... आपने गलत के खिलाफ आवाज़ तो उठाई... सुदूर दक्षिण अफ्रीका में भी एक भारतीय ने रेल के गर्द द्वारा ऊंचे दर्जे का टिकेट होते हुई भी नीचे दर्जे में यात्रा के लिए विवश किये जाने पर प्रतिरोध किया था, न किया होता नतो शायद आज हम स्वतंत्र न होते... आपने गलत का न केवल प्रतिरोध किया अपितु उसकी चर्चा भी की... शायद इस चर्चा को पढ़कर कुछ और लोग प्रतिरोध करें,,,कुछ और लोग चर्चा करें तो कुछ बदले... साधुवाद...

Divya Narmada का कहना है कि -
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ABHAI का कहना है कि -

a very nice post by you .

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