Wednesday, April 01, 2009

आइए पॉलीथीन के खिलाफ संकल्प लें....



अभी हाल ही में उड़ीसा के नंदन कानन अभयारण्य में गया। यह एक चिड़ियाघर भी है। यहाँ जैसे ही हम लोग अंदर घुसने को हुए तो हमारी तलाशी ली गई और हमसे पूछा गया कि प्लास्टिक की कोई बोतल, पॉलीथीन की थैली आदि तो नहीं है? और फिर अंदर पहुँचते ही जगह जगह मुझे यह बोर्ड दिखाई दिया। यह सब देखते ही यकायक दिल्ली का ख्याल आ गया। अभी कुछ सप्ताह पहले ही तो दिल्ली से पॉलीथीन की थैलियाँ गायब करने की घोषणा की थी राज्य सरकार ने। पर हुआ क्या अभी तक? कुछ दिनों तक दुकानों पर एक पोस्टर चिपका हुआ दिखाई दिया-"असुविधा के लिये खेद है"। कुछ दिनों तक पॉलीथीन की थैलियाँ नहीं मिली। लेकिन जो थैलियाँ दुकानदार खरीद चुके थे, वो तो इस्तेमाल होनी ही थी। और फिर सब्जी वाले क्या इस्तेमाल करेंगे? जो ग्राहक घर से कोई थैली लाना भूल गये वो कैसे सामान लेंगे? इन सभी सवालों के चलते पॉलीथीन की थैलियाँ भी चलती रहीं और आज भी बेधड़क चल रही हैं।
अब तो असुविधा वाला कागज़ भी फट चुका है। थैलियाँ अभी भी प्रयोग में हैं।

आखिर इन थैलियों से नुकसान क्या है? हममें से अधिकतर सभी जानते हैं। बात है केवल जागरूकता फैलाने की। लोगों को समझाने की। आइये एक बार फिर जानें कि क्या कुछ कर सकती हैं ये थैलियाँ-

१)धरती को खोखला कर रही हैं ये थैलियाँ: ये थैलियाँ हमारे घरों, ऑफिसों, सब्जी की रेहड़ियों, दुकानों से होती हुई पार्कों, सड़क के किनारे की पगडंडियों और कूड़े के ढेरों में पहुँच जाती हैं। और गंदा कर देती हैं मिट्टी को, दिक्कत देती हैं पेड़-पौधों की सिंचाई में। यही थैलियाँ नालियों से होती हुई नदियों में जा पहुँचाती हैं। इनके जलने से जहरीली गैस भी निकलती है।

२)क्या आप जानते हैं इन थैलियों से हर साल लाखों जानवर मारे जाते हैं। इनमें डालफिन, मछलियाँ व अन्य जलचर शामिल हैं। इन्हीं थैलियों में खाने को डालते हैं और यही सब खाकर गाय-भैंस बीमार पड़ती हैं। और एक चौंकाने वाली बात यह है कि उस जानवर के मारे जाने के बाद भी वो प्लास्टिक उसके शरीर में ज्यों का त्यों रहता है और जो भी अन्य पशु उस मृत पशु को खाता है उसके शरीर में भी प्लास्टिक प्रवेश कर जायेगा।

३)प्लास्टिक को पूरी तरह खत्म होने में हज़ार वर्ष लग जाते हैं। यानि पर्यावरण में हजार साल तक प्लास्टिक रहेगा।

४)एक और चौंकाने वाला तथ्य यह है कि प्लास्टिक पैट्रोलियम पदार्थों से बनता है। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि पेट्रोलियम के इस्तेमाल से ही पॉलीथीन बनाया जाता है। पेट्रोलियम पदार्थ पहले से ही हमारे जीवन की जरुरत बन चुके हैं। वाहन का ईंधन, घर में रसोई गैस, फैक्ट्री, बिजली घर इत्यादि यानि कि हर पल पेट्रोलियम की जरुरत हमें रहती है। अब यदि पॉलीथीन को इस तरह हम बर्बाद करेंगे तो इसका आशय यह है कि हम अधिकाधिक पेट्रोल को बर्बाद कर रहे हैं।


आखिर हम कर क्या सकते हैं?

प्लास्टिक के बैग की जगह कपड़े व जूट आदि के बने हुए बैग का प्रयोग करें। दूसरा आसान तरीका यह है कि एक ही थैली को बार-बार प्रयोग में लायें। इससे पॉलीथीन का उत्पादन और बर्बादी दोनों कम होगी।
सरकार तो कानून बनाती रहेगी लेकिन पर्यावरण को बचाने और उसकी देखभाल का जिम्मा तो हमारे ऊपर भी है। इस तरह के छोटे-छोटे कदम से हम प्रकृति को खत्म होने से बचा सकते हैं। कहते हैं कि जब क्रिया होती है तो प्रतिक्रिया भी होती है। यदि हम प्रकृति को नुकसान पहुँचायेंगे तो अंत हमारा भी होगा। पर्यावरण को दूषित होने से बचायें। आइये यह संकल्प लें।

तपन शर्मा

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4 बैठकबाजों का कहना है :

Divya Narmada का कहना है कि -

पोलीथीन का उपयोग रोक पाने में असफल होकर उसके अन्य प्रयोगों पर कार्य हो रहा है. राजकोट में एक कारखाने में पोलीथीन कचरे का प्रयोग ईंधन के रूप में हो रहा है. जबलपुर के निकट सीमेंट बनाने में प्लास्टिक और पोलीथीन का उपयोग हो रहा है. एक ऐसा बक्टीरिया खोजा गया है जो प्लास्टिक खता है और जमीन को उपजाऊ banata है. प्लास्टिक की खपत घटाने के साथ-साथ इन प्रयोगों को भी बढ़ाना जरूरी है. क्या प्लास्टिक की सदः नहीं बनाई जा सकती? इस पर शोध होना चाहिए.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

संजीव जी,

यह काम तो शोधकर्ताओं का है, लेकिन हम आम नागरिक प्रथम कर्तव्य अपने पर्यावरण को बचाने का है। और तपन का तरीका मुझे पसंद आया।

manu का कहना है कि -

जी,तपन जी, ,,,,,
,,,,अगर मान लो आज मैं थैला लाना भूल गया तो सामान कैसे ले जाऊंगा,,?? ऐसी ही ,,,
नयी नयी बाते सुन ने को मिली थी पोलिथीन के पक्ष में,,,,,ऐसे लग रहा था लोग के जैसे इनके हाथ ही कट गए हों,,,,,अब भविष्या में कभी सामान ही नहीं खरीद पायेंगे,,,,बगैर पोलीथिन के,,
किसी को ये समझ नहीं आ रहा था के थोडी सी आदत में सुधर लाने की जरूरत है,,,,,सब हो जायेगा,,,,यदि आज आप थैला वाकई लाना भूल गए हैं बाज़ार में और आप बिना सामान लिए वापस जाते हैं,,,,,(इस नए रूल के कारण ),,,,,तो ये बात तो तय है के आप भविष्य में कभी भी बाजार जाते वक्त पैसे ले जाना भले ही भूल जाए ,,,पर थैला ले जाना नहीं भूलेंगे,,

Divya Narmada का कहना है कि -

मेरा यह आशय बिलकुल नहीं था कि पोलीथीन का प्रयोग न रोका जाय. आज से दो दशक पूर्व हमने अभियान संस्था के तत्वावधान में पोलीथीन का प्रयोग कम करने का आन्दोलन चला चुके हैं. गरीब बस्तियोंमें प्रयोग की जा चुकी पोलीथीन थैलियों से चटाई, पर्स, थैले, परदे बनाने का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ धनी बस्तियोंमें प्लास्टिक कोटेड कागज़ के स्थान पर हस्त निर्मित कागज़ का उपयोग, कपडे की थैली, प्लास्टिक के दोनों की जगह पर तेंदू पत्ती के दोने आदि कार्शों करने के बाद परिणाम शून्य...अब सरकार भी प्रयोग कम करने के साथ-साथ कचरे में आये प्लास्टिक के अन्य उपयोगों पर काम कर रही है....मैंने केवल उस की जानकारी देने का प्रयास किया है.

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