चीनी के भाव तेजी के रथ पर सवार हैं। सरकार बढ़ते भाव से परेशान है क्योंकि चुनाव आ रहे हैं। हालांकि 28 फरवरी को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान महंगाई की दर घट कर 2.43 प्रतिशत पर आ गई लेकिन खुदरा बाजार में चीनी के भाव में कोई कमी नहीं आ रही है। सरकार इसी बात से परेशान है। सरकार चीनी के भाव रोकने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन भाव कुछ रुकते हैं लेकिन कुछ समय बाद ही बढ़ने आरंभ हो जाते हैं। या तो भाव कम नहीं होते हैं और यदि कम भी होते हैं तो तुरंत ही उससे अधिक बढ़ जाते हैं।
चीनी कम है, चीनी कम है...
वास्तव में अक्टूबर से आरंभ हुए चालू चीनी वर्ष 2008-09 में अब तक चीनी के भाव में लगभग 35 प्रतिशत की तेजी आ चुकी है। तेजी का कारण इस वर्ष उत्पादन में भारी कमी होना है। एक अनुमान के अनुसार चालू वर्ष के दौरान चीनी के उत्पादन में लगभग 100 लाख टन की कमी आने की आशंका है। गत वर्ष देश में चीनी का उत्पादन 264 लाख टन हुआ था लेकिन इस वर्ष घट कर केवल 165 लाख टन ही रह जाने का अनुमान है। हालांकि सरकार का कहना है कि पिछले वर्ष का बकाया स्टाक मिलाकर देश में चीनी की कुल उपलब्धता मांग से अधिक ही रहेगी लेकिन व्यापारी व मिल मालिक सरकार की इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि गत वर्ष का बकाया स्टाक सरकारी मात्रा (105 लाख टन) की तुलना में कम है। इससे वर्ष के अंत में चीनी की कमी अनुभव की जाएगी।
चीनी को भाव को रोकने के लिए सरकार ने रॉ शुगर के आयात को एडवांस लाईसेंस के तहत शुल्क मुक्त कर दिया है। मिलें फिलहाल कच्ची चीनी का आयात कर उसे रिफाईंड करके बाजार में बेच सकती हैं और 36 महीनों के भीतर उसे दोबारा निर्यात कर सकती हैं।
सरकार की इस घोषणा के बाद चीनी के भाव में कुछ गिरावट आई लेकिन दोबारा फिर बढ़ गए।
अब सरकार ने चीनी व्यापारियों पर स्टाक लिमिट और स्टाक रखने की अवधि का प्रतिबंध लगा दिया है। दूसरे शब्दों में अब व्यापारी एक सीमा से अधिक चीनी का स्टाक नहीं रख सकेंगे और स्टाक को एक महीने के भीतर बेचना भी होगा।
सरकार की इस घोषणा से चीनी के भाव में कुछ गिरावट आ सकती है लेकिन बाद में फिर बढ़ने आरंभ हो जाएंगे।
वास्तव में सरकार की इस कार्यवाही से इंस्पैक्टर राज को बढ़ावा मिलेगा और इसके अलावा कुछ नहीं होगा।
चीनी में तेजी के कुछ कारण हैं। इनमें प्रमुख कारण है देश और विदेश में चीनी का उत्पादन कम होना। विश्व में चीनी उत्पादन में पहला स्थान ब्राजील का है और दूसरा भारत का। भारत में उत्पादन में 100 लाख टन की कमी होने का मतलब है विश्व में उपलब्धता कम होना। इससे विश्व बाजार में भी चीनी तेज चल रही है और आयात से देश में उपलब्धता बढ़ाना संभव नहीं लगता है।
दूसरा कारण है-चीनी में वायदा कारोबार।
मिलों की मनमानी
तीसरा कारण है मिलों की मनमानी। वास्तव में सरकार खुले बाजार में बिक्री के लिए हर माह एक निश्चित मात्रा में चीनी का कोटा जारी करती है। ताकि बाजार में चीनी की कमी न हो। कानून कहता है कि जो मिलें आबंटित मात्रा को बाजार में न बेचें सरकार उसे लेवी के भाव-जो खुले बाजार की तुलना में कम हैं-पर खरीद ले। लेकिन ऐसा आज तक नहीं हुआ है। इससे मिलों में कोई डर नहीं है। वे अपनी इच्छानुसार बाजार में चीनी बेचती हैं और अनबिकी मात्रा को अगले माह बेचने के लिए सरकार से अनुमति ले आती हैं।
यही कारण है कि सरकारी घोषणाओं के बावजूद चीनी के भाव कम नहीं हो रहे हैं। संभव है कि स्टाक सीमा लगने के बाद चीनी के भाव में कुछ गिरावट आ जाए लेकिन चुनाव समाप्त होते ही चीनी तेजी का ऐसा रंग दिखाएगी कि उपभोक्ता हैरान रह जाएगा।
राजेश शर्मा (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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3 बैठकबाजों का कहना है :
पूर्ण पकड़कर हाथ, साथ हैं सलवट बनकर.
शब्द-शब्द में बसीं, याद कविता में ढलकर.
कहे 'सलिल' कविराय, न मिटतीं सुधि की कृतियाँ.
बिना कुछ कहे कह जाती कुछ मन की बतियाँ.
चीनी करे भी तो क्या करे? चीनी खिलौने कम दाम में मिलें तो परेशानी... चीनी ज्यादा दाम में मिले तो परेशानी... चीनी ज्यादा मीठी हो तो डॉक्टर कहे मत खाओ, चीनी कम मीठी हो तो खरीददार परेशां कि खपत ज्यादा होती है. चुनाव और चीनी का रिश्ता चुनाव और प्याज की तरह हुआ तो सरकार की खटिया ही खडी हो जायेगी.
चीनी के दाम के बढने का एक और कारण
सरकार चाहती है लोग कम चीनी खाए ताकि शुगर की बीमारी को जड से उखाडा जा सके :-)
कहीं कोई नेता चुनावों के चक्कर में चीनी न बांटने लग जाए
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
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