Showing posts with label communal riots. Show all posts
Showing posts with label communal riots. Show all posts

Monday, July 06, 2009

मुसलमानों पर बहस ज़रूरी है...

यूं तो बरेली शहर के इतिहास के तमाम पहलू हैं...कुछ आर्थिक, कुछ सामाजिक....लेकिन यहीं एक खास बात इस शहर की विशेषताओं में है और वो ये कि इस शहर ने हमेशा इंसानियत को एक डोर में बाँधने की कोशिश की है इसी जज्बे की मिसाल है बरेली में हुआ मुस्लिम सम्मलेन जिसका विषय था मुसलमानों के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा शैक्षणिक हितों पर चर्चा....हिंदयुग्म भी इस कार्यक्रम में आमंत्रित था...निखिल आनंद गिरि बतौर स्पीकर कार्यक्रम में मौजूद रहे... सुखद है कि यह आवाज़ नौजवानों के बीच से उठी... इस सम्मलेन को बरेली के बाहर किसी स्तर पर आँका जाये या नहीं लेकिन इसे मुस्लिम युवकों के बीच सामाजिक चेतना के रूप में ज़रूर देखा जाना चाहिए....

लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट आने से ठीक तीन दिन पहिले बरेली कालेज ऑडिटोरियम में हुए मुस्लिम सम्मलेन में तमाम पहलू उभर कर सामने आये...चर्चा में समाधान हुए हों या नहीं लेकिन कुछ सवाल ज़रूर खड़े हुए जिनका जवाब हर मुस्लिम कम -अज-कम ढूँढने की कोशिश ज़रूर करेगा... बरेली के विद्वानों तथा बाहर के कुछ पत्रकारों के संबोधन में मुस्लिम समुदाय के जिन पहलुओं पर चर्चा हुई उसे बैठक के ज़रिये पेश करना चाहता हूँ और अचानक समुदाय में बढ़ रही बेचैनी की कुछ अहम् वजूहात यहाँ बताना ज़रूरी समझता हूँ....
बज़्मी नक़वी


मुसलमानों की क्या है अस्ल समस्यायें



हकीकत है कि आज मुस्लिम समुदाय अपने को असुरक्षित महसूस करता है और इस असुरक्षा के पीछे हजारों वजह मौजूद हैं.... देश आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है.. हालाँकि सम्मलेन में इस पहलू पर चर्चा नहीं हुई लेकिन मुसलमानों की असुरक्षा का वर्तमान सबसे बड़ा कारण आतंकवाद ही है...आम मुसलमान सड़क से घर तक संदेह की नज़र से देखा जा रहा है.. आतंकवाद के इस मुद्दे पर में मैं व्यक्तिगत तौर पर एतराज़ करना चाहता हूँ...इस्लामिक आतंकवाद मुझे इस उपाधि पर ही एतराज़ है...आतंकवाद शब्द तो खुद में पर्याप्त नज़र आता है फिर इसमें इस्लामिक शब्द जोड़ने की साज़िश क्यों और अगर आज आतंकवाद धर्मो और सम्प्रदाय की नज़र से ही देखा जाएगा तो देश में हो रही अन्य घटनाओं में किसी दूसरे सम्प्रदाय का नाम क्यों नहीं जोड़ा जाता
ईमानदार नज़र से देखा जाये तो आतंकवाद को परिभाषित करने के लिए किसी धर्म, किसी सम्प्रदाय को जोड़ना ठीक नहीं है...जिस कारण आम इंसान अपनी राष्ट्र के प्रति मोहब्बत और कुर्बानियों पर पानी पड़ते देख रहा है...शायद इसी वजह से बढ़ रही है बेचैनी, इसी वजह से पैदा हो रही है असुरक्षा की भावना...फिर अपने अस्तित्व को बचाने लिए बागी तेवर दिखें तो ताज्जुब नहीं....
बरेली सम्मलेन में इस संवेदनशील मुद्दे पर बहस अधूरी रही..जबकि अधिकतर मुसलमान आतंकवाद के मुद्दे पर बेकुसूर कुसूरवार साबित हो रहे हैं....अपने को बेकुसूर साबित करने की छटपटाहट आज हर मुसलमान में देखी जा सकती है...व्यक्तिगत तौरपर मेरी राय तो ये है कि कानून के खिलाफ जाना ही आतंकवाद है....इस परिदृश्य में क्या नेताओं का भ्रष्टाचार आतंकवाद नहीं है...क्या जातिगत मारामारी आतंकवाद नहीं है ? किसी भारतीय प्रदेश में दूसरे प्रदेश के लोगों पर अत्याचार आतंकवाद नहीं है? आइये इस्लामी आतंकवाद से हटकर कभी इन मुद्दों पर भी चर्चा कर लें...
देश की आर्थिक तथा सांस्कृतिक व्यवस्था में योगदान दे रहे अथाह मुसलमानों को इस दर्द से निकलने में मदद करें....यह हर भारतीय की जिम्मेदारी है...राजनैतिक उठापटक में अगर आप इस अहम् कोशिश से बचते हैं तो देश में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना का दायित्व पूरा होता नहीं दिखता

बरेली सम्मेलन और राजनैतिक समस्याएं
बरेली सम्मेलन में मुसलमानों की राजनैतिक रूप से नुमाइंदगी की बात उठी...ये बात सच है कि १९४७ के बाद से यह समुदाय मात्र वोट बैंक की राजनीत का शिकार हुआ है....लेकिन आज मुद्दा ये है कि मुसलमान कैसी नुमाइंदगी चाहते हैं..नेतृत्व का दर्द कैसा है.... समझने वाली बात ये है कि पार्लियामेंट में मुस्लिम सांसदों कि संख्या घटी है....मंत्रिमंडल में मुसलमान कहां हैं और जो हैं उनका रोल क्या है, इस मुद्दे पर तो दूसरों को इल्जाम देना अनुचित है... इसके जिम्मेदार मुसलमान स्वयं हैं आज मुसलमानों के नेतृत्व कि बात करने वाले शायद भूल गए कि बिहार में राम विलास पासवान का मुस्लिम मुख्यमंत्री कार्ड पिट गया था... मुस्लिम समुदाय भली भाँति परिचित है कि आपसी मतभेदों के चलते वो हजारो फिरको में बटे हैं इनसे में कितने लोगों को अपना नेतृत्व मिल पायेगा....हाँ, यहाँ एक बात बताना चाहूँगा कि बरसों से हर फिरके का एक ठेकेदार अपने इलाके में मुस्लिमो के वोटो का सौदा करता आया है...सोचने कि बात ये है कि क्या कभी मुस्लिमों की बदहाली को ठीक करने के बदले में इस ठेकेदार ने वोटों का सौदा किया है....जवाब में आपको मायूसी होगी....आज तक का राजनैतिक इतिहास गवाह है कि मुसलमानों की कमजोरियों तथा आपसी मतभेदों का फायदा ही हर राजनैतिक दल ने उठाया है...यहाँ सीधा सवाल उन लोगों पर उठता है जो मुस्लिम समाज में अगली पंक्ति में खड़े हैं.... राजनैतिक परिवेश में ऐसा क्यूं नहीं होता जैसा सतीश मिश्र के आहवान पर उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों ने किया...आज सतीश मिश्रा हर ब्रह्मण के हित का ख़याल रखते हैं और ब्राह्मण मिश्रा जी का....ईमानदारी से दोनों पक्ष एक- दूसरे की राजनैतिक ताक़त हैं….. यह सीख मुस्लिम समुदाय के काम भी आ सकती है... उन्हें भी अपने नेतृत्व से वोटों के बदले मलाई खा रहे ठेकेदारों को नकार कर अपने रास्ते अपनी शर्तों पर बनाने होंगे.

हाशम अब्बास नक़वी 'बज़्मी'
(ये बहस अगले हफ्ते भी जारी रहेगी....आपको लगता है कि आप अपने लेखों के साथ इस बहस में दाखिल हो सकते हैं, तो आपका स्वागत है...)